- योगेश कुमार गोयल
कोरोना संकट के बीच देश में पिछले कुछ दिनों से लगातार सामने आ रहे बर्ड फ्लू के मामले काफी चिंताजनक माहौल पैदा कर रहे हैं। चिंताजनक स्थिति इसलिए है क्योंकि 30 सितम्बर 2020 को ही भारत को ‘बर्ड फ्लू’ की बीमारी से मुक्त देश घोषित किया गया था और कोरोना महामारी के बीच बर्ड फ्लू का संक्रमण कोरोना से भी कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। मुर्गे-मुर्गियों में एच5एन1 वायरस मिलता रहा है लेकिन कौओं में बर्ड फ्लू के एच5एन8 वायरस की पुष्टि भी हुई है। भोपाल की हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज लैब में राजस्थान, केरल तथा मध्य प्रदेश के पक्षियों के सैंपल पॉजिटिव मिले हैं, जिनमें बर्ड फ्लू के एच5एन8 वायरस मिले हैं जबकि हिमाचल के सैंपल में एच5एन1 वायरस पाए गए हैं। कई राज्यों में कौओं, मुर्गियों तथा अन्य पक्षियों की मौतें हो रही हैं जबकि केरल में बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद बड़े पैमाने पर मुर्गों और बतखों को मारा जा रहा है। हरियाणा में तो पिछले दो सप्ताह में ही चार लाख से अधिक पोल्ट्री पक्षियों की मौत हो जाने से हड़कंप मचा है। कई अन्य राज्यों में भी अलर्ट जारी किया गया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल सहित कुछ राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि होने के बाद स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली में एक कंट्रोल रूम बनाया है ताकि प्रत्येक राज्य के सम्पर्क में रहा जा सके।
हालांकि सरकार का कहना है कि सर्दियों में आए प्रवासी पक्षियों की वजह से यह बीमारी फैली है और फिलहाल बर्ड फ्लू के जरिये इंसानों में संक्रमण फैलने का अब तक कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन फिर भी इसे कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है। दरअसल दुनियाभर में पिछले एक वर्ष में कोरोना वायरस से करीब 19 लाख लोगों की मृत्यु हुई और कोरोना से मृत्युदर फिलहाल लगभग तीन फीसदी है लेकिन माना जाता है कि बर्ड फ्लू से संक्रमित मरीजों की मृत्युदर 60 फीसदी तक होती हैं, जो कोरोना से 20 गुना ज्यादा हैं। दरअसल बर्ड फ्लू के कुछ स्ट्रेन (एच5एन1 और एच7एन9) इंसानों के लिए काफी खतरनाक होते हैं जबकि बाकी स्ट्रेन पक्षियों तथा कुछ स्तनधारी पशुओं को भी पीडि़त कर सकते हैं। यह संक्रमण कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2003 से 2019 के बीच करीब डेढ़ हजार लोगों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई, जिनमें से पूरे इलाज के बावजूद करीब छह सौ लोगों को बचाया नहीं जा सका। बर्ड फ्लू से संक्रमित पक्षियों की आंख, गर्दन तथा सिर में सूजन, आंखों से रिसाव और कलगी व टांगों में नीलापन आ जाता है।
बर्ड फ्लू (पक्षियों का बुखार) को ‘एवियन इन्फ्लूएंजा’ नाम से भी जाना जाता है, जो एक वायरल संक्रमण है। यह बीमारी एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस ‘एच5एन1’ की वजह से ही होती है, जो पक्षियों से मनुष्यों तक पहुंचता है। पक्षियों से एक-दूसरे में फैलने वाले वाला यह वायरस बेहद संक्रामक होता है, जिसके कई स्ट्रेन होते हैं लेकिन सबसे खतरनाक स्ट्रेन एच5एन1 माना जाता है, जिससे संक्रमित लोगों में से आधे से ज्यादा की मौत हो जाती है। इंफ्लूएंजा के कुल 11 वायरस ऐसे हैं, जो इंसानों को संक्रमित करते हैं लेकिन इनमें से पांच (एच5एन1, एच7एन3, एच7एन7, एच7एन9 और एच9एन2) ऐसे हैं, जो इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। इन वायरसों को ‘हाईली पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लूएंजा’ कहा जाता है, जिनमें सबसे ज्यादा खतरनाक है एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बर्ड फ्लू का संक्रमण एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचना मुश्किल है लेकिन पक्षियों और जानवरों के जरिये इंसानों में इसका संक्रमण जरूर फैला है। यह वायरस इसलिए जानलेवा है क्योंकि इससे संक्रमित लोगों की मृत्युदर 60 फीसदी तक है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस किसी सतह के जरिये भी इंसानों को संक्रमित कर सकता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार वर्ष 2007 से 2008 के बीच एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस के कारण 349 लोग संक्रमित हुए थे, जिनमें करीब 62 फीसदी अर्थात् कुल 216 लोगों की मौत हो गई थी। बर्ड फ्लू के इंसानों में सामने आए मामलों के विश्लेषण से पता चला है कि ऐसे सभी व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित किसी जीवित या मृत पक्षी के सम्पर्क में आए थे।
जिस प्रकार पूरी दुनिया का मानना है कि कोरोना वायरस विश्वभर में चीन के वुहान से निकला था, उसी प्रकार एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस भी 1996 में चीन में सामने आने के बाद ही इंसानों में फैला। उस समय वहां के हंस में बर्ड फ्लू के लक्षण देखे गए थे। बर्ड फ्लू का मनुष्यों में पहला मामला उसके अगले साल 1997 में हांगकांग में सामने आया था, जहां 18 लोग इससे संक्रमित हुए. जिनमें से 6 की मौत हो गई थी। 2003 में एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस ने दक्षिण कोरिया में अपना रूप बदलकर लोगों को संक्रमित करना शुरू कर दिया और तभी से अब तक म्यूटेशन वाला यही वायरस संक्रमण फैला रहा है। उसके बाद से बर्ड फ्लू अभी तक दुनिया के 60 से भी ज्यादा देशों में महामारी का रूप भी ले चुका है और भारत में भी कई बार इसका संक्रमण देखा जा चुका है। दुनियाभर में अब तक चार बार बर्ड फ्लू बड़े पैमाने पर फैल चुका है। पिछले 14 वर्षों में एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस के 65 बार संक्रमण फैलने के मामले सामने आ चुके हैं। 2008 में तो चीन, मिस्र, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा वियतनाम में एच5एन1 वायरस ने कुल 11 बार संक्रमण फैलाया। एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस के दो स्ट्रेन हैं, नॉर्थ अमेरिकन ‘लो पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लूएंजा एच5एन1’ तथा एशियन लीनिएज ‘हाईली पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लूएंजा एच5एन1’, जिनमें एशियन लीनिएज ज्यादा खतरनाक है।
एच5एन1 वायरस हजारों किलोमीटर उड़कर प्रजनन के लिए आने-जाने वाले प्रवासी पक्षियों के जरिये भी एक देश से दूसरे देश में फैलता है। यदि इनमें से एक भी पक्षी बर्ड फ्लू से संक्रमित है तो वह दूसरे देश में पहुंचकर वहां अन्य पक्षियों में संक्रमण फैला देता है, जिसके बाद यह संक्रमण पोल्ट्री फार्म और फिर इंसानों तक भी पहुंच जाता है। इस वायरस के साथ बड़ी परेशानी यह है कि इसका वायरस हवा से फैलता है और साथ ही तेजी से म्यूटेशन भी करता है। कई बार देखा गया है कि जब पक्षी हवा में उड़ते हुए भी मल-मूत्र का त्याग करते हैं, तब भी यह वायरस फैलता है। संक्रमित पक्षियों के सम्पर्क में आने वाले जानवर और इंसान इस वायरस से आसानी से संक्रमित हो जाते हैं। यह बीमारी संक्रमित पक्षी के मल, नाक के स्राव, मुंह की लार या आंखों से निकलने वाले पानी के सम्पर्क में आने से होती है।
बर्ड फ्लू से संक्रमित होने के बाद आमतौर पर 2-8 दिनों के बाद इसके लक्षण प्रकट होते हैं। इन लक्षणों में सामान्य फ्लू जैसे लक्षण ही देखे जाते हैं, जैसे कफ, डायरिया, तेज बुखार, खांसी, गले की खराश, नाक बहना, मितली, उल्टी, बेचैनी, सिरदर्द, सीने में दर्द, जोड़ों का दर्द, पेट दर्द, आंखों का संक्रमण इत्यादि। संक्रमण बढ़ने पर न्यूमोनिया हो सकता है और सांस की परेशानी भी बढ़ सकती है। बर्ड फ्लू संक्रमण की वजह से होने वाला न्यूमोनिया प्रायः काफी घातक होता है। संक्रमित मरीजों को विशेष देखभाल के तहत इलाज की जरूरत होती है, जिनका इलाज अस्पताल में रखकर ही किया जाता है। चूंकि बर्ड फ्लू भी कोरोना की ही भांति तीव्र संक्रामक बीमारी है और इसके लक्षण भी कोरोना जैसे ही हैं, यह वायरस भी मुंह, नाक व आंख के जरिये ही शरीर में प्रवेश करता है, इसलिए कोरोना काल में पहली से अपनाई जा रही सावधानियां अपनाना बेहद जरूरी है। सांसों के जरिये संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनें, हाथों को अच्छी तरह धोएं या सैनिटाइज करते रहें। छींकने या खांसने से पहले मुंह को अच्छे से कवर करें और इस्तेमाल के बाद टिश्यू पेपर को डस्टबिन में डालें। संक्रमित पोल्ट्री फार्म में जाने और वहां काम कर रहे लोगों के सम्पर्क में आने से बचें। यदि आप बीमार हैं तो भीड़भाड़ वाले स्थानों पर जाने से बचें।
एच5एन1 बर्ड फ्लू वायरस के इलाज के लिए कुछ वैक्सीन तो बनी हैं लेकिन उन्हें ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा जैसे कुछ देशों ने अपने पास जमा करके रखा है। अमेरिका में एफडीए ने भी वर्ष 2007 में बर्ड फ्लू की वैक्सीन को मंजूरी थी लेकिन वह वैक्सीन भी सहजता से उपलब्ध नहीं है। भारत में बर्ड फ्लू की कोई वैक्सीन नहीं है लेकिन एंटीवायरल दवा ‘ओसेल्टामिवीर’ से बर्ड फ्लू से संक्रमित मरीज को राहत दी जा सकती है लेकिन इसका इस्तेमाल डॉक्टर की निगरानी में ही किया जाना चाहिए। चिकित्सकीय परामर्श के बाद बर्ड फ्लू संक्रमण से बचाव के लिए फ्लू की वैक्सीन भी लगवाई जा सकती है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यदि बर्ड फ्लू संक्रमण का सही उपचार नहीं होता है तो मनुष्य के विभिन्न अंगों पर इस वायरस का प्रभाव घातक रूप से पड़ सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है।