चीन में दूसरे माओ का जन्म

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

 

चीन में इस साल नए माओत्सेतुंग का जन्म हुआ है। माओ जितना ताकतवर नेता चीन में अब तक कोई और नहीं हुआ है। माओ के रहते ल्यू शाओ ची और चाऊ एन लाई प्रसिद्ध जरुर हुए लेकिन वे माओ के हाथ के खिलौने ही बने रहे। माओ के बाद चीन में एक बड़े नेता और हुए। तंग श्याओ पिंग, जिनका यह कथन बहुत प्रसिद्ध हुआ था कि मुझे इससे मतलब नहीं कि बिल्ली काली है या गोरी है, मुझे यह देखना है कि वह चूहा मारती है या नहीं। तंग श्याओ पिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी सड़क पर चलाने की कोशिश की थी और माओ की साम्यवादी कठोर व्यवस्था को उदार बनाया था। लेकिन अब तंग से भी बड़े नेता की पगड़ी शी चिनपिंग के सिर पर रख दी गई है। शी चीन के राष्ट्रपति हैं। वे भारत आ चुके हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 2336 प्रतिनिधियों ने अपने 19 वें सम्मेलन में उन्हें अगले पांच साल के लिए फिर अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। वे सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव (सर्वेसर्वा) और सैन्य आयोग के अध्यक्ष हैं। इन तीनों शक्तिशाली पदों पर तो वे विराजमान हैं ही लेकिन पार्टी संविधान में उनके विचारों को माओ के विचार का स्थान दिया गया है। उसमें उनके चीनी महापथ (ओबोर) की योजना को भी शामिल किया गया है। दो पूर्व राष्ट्रपतियों चियांग जेमिन और हू चिंताओ पार्टी कांग्रेस में उपस्थित जरुर थे लेकिन पार्टी संविधान में उनके नाम का कहीं जिक्र तक नहीं है। शी के उत्तराधिकारी के बारे में भी कोई संकेत नहीं दिया गया है। याने शी अब दूसरे माओ हैं।

 

जाहिर है कि माओ की तरह शी अब न तो आक्रामक हो सकते हैं और न ही तानाशाही रवैया अपना सकते हैं। अब दुनिया काफी बदल चुकी है। इस समय चीन साम्यवादी कम, महाजनी ज्यादा हो गया है। वह पैसा पैदा करने में लगा हुआ है। वह अगले 10-15 साल में दुनिया का सबसे अधिक संपन्न राष्ट्र बनना चाहता है। इस धुन में पगलाया हुआ चीन अपने नागरिकों के साथ कितना न्याय कर पाएगा, यह देखना है। चीन में गैर-बराबरी की खाई बहुत गहरी होती जा रही है और उसी पैमाने पर भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा है। शी को इस बात का श्रेय है कि वे भ्रष्टाचार को जड़मूल से उखाड़ने में लगे हुए हैं। चीन की असली समस्या मार्क्स का वर्गविहीन समाज बनाना नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचारविहीन समाज बनाना है। वैदेशिक मामलों में भी चीन कितना ही बड़बोला बनता रहे लेकिन अब वह युद्ध से बचता रहेगा। भारत की चिंता यही है कि चीन की बढ़ती हुई ताकत उसके लिए खतरनाक सिद्ध न हो।

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