भाजपा : आकार लेना एक वटवृक्ष का…!

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भाजपा के इकतीसवें स्थापना दिवस पर विशेष

भारत की पश्चिमी घाट को महिमा मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा….! भारतीय जनता पार्टी के पहले अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा अपने भाषण का उपसंहार इन शब्दों के साथ करना निश्चय ही एक महान साहस की बात थी। आपातकाल की गुंडागर्दी से आहत तन, जनता पार्टी जैसे अपनों का साथ छूट जाने से टूटा मन और सामने खड़ी सभी तरह के भौतिक साधनों एव हथकंडों से लैस वर्षो तक देश पर अधिनायकवाद थोपने वाली कांग्रेस। लेकिन यदि आज भाजपा इतनी प्रतिकूलताओं के बावजूद अपने उपरोक्त सपने को पूरा कर पायी है तो उसका कारण रहा है भाजपा की राष्ट्रवादी भावना, कंकड़ पत्थर बन राष्ट्र नींव को सुदृढ़ करने की उसकी आकांक्षा, राष्ट्र की बलिवेदिका पर अपनी जवानी कुर्बान कर देने की तमन्ना रखने वाले कार्यकर्ताओं का हुजूम और साथ ही संपूर्ण राष्ट्र को भावनात्मकता पर आधारित एक सांस्कृतिक इकाई मान उसका उन्नयन एवं उत्कर्ष हेतु कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करने वाली विचारधारा।

अय: निजं परोवेति गणना लघुचेतसाम, की सामासीय संस्कृति की शिक्षा देने वाली यह राष्ट्रवादी विचारधारा भाजपा को जनसंघ से विरासत में प्राप्त हुई, जनसंघ को संघ से और संघ को भारतीय पौराणिक सांस्कृतिक परंपराओं, शास्त्रों, वेदों पुराणों से। अपने इन्हीं विचारों को आत्मसात कर उत्कर्ष के अनेक प्रतिमान गढऩे वाली भाजपा अपने इकतीसवें वर्ष में प्रवेश कर रही है। शून्य से शुरू हुए भाजपा की विकास यात्रा के इस पड़ाव पर पाथेय है पूर्व राजग सरकार की उपलब्धियां, संसद में मुख्य विरोधी दल की भूमिका, 9 प्रमुख राज्यों में स्वयं की या गठबंधन की सरकार जिसमें कर्नाटक जैसे दक्षिण भारतीय राज्य भी शामिल है इसके अलावा संपूर्ण राष्ट्र में विकसित होता जनाधार। पार्टी की विभिन्न सरकारों के सुशासन का ही नतीजा है कि छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में भाजपा दुबारा चुन कर आयी है साथ ही उन राज्यों में हुए विभिन्न स्थानीय निकाय, मंडियों, पंचायत आदि के चुनावों में भी भाजपा तीन चौथाई से अधिक स्थानों पर कब्जा करने में कामयाब रही है। बिहार में 15 वर्षो के कुशासन को राजग गठबंधन द्वारा समाप्त किया जाना भी भाजपा नीत गठबंधन की एक बड़ी उपलब्धि रही।

जब-जब न केवल भारतवर्ष अपितु विश्व की राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा। तब-तब उन लेखकों, इतिहासकारों के लिए विचार का एक बड़ा बिंदु रहेगा कि आखिर कोई दल मात्र ३० वर्ष में कैसे इतनी सफलता प्राप्त कर सकता है। 6 अप्रैल 1980 को जब भाजपा का जन्म हुआ दो देश के सामने तुष्टिïकरण, गरीबी, भूख, दिशाहीनता, अवैचारिकता आदि का सन्नाटा पसरा हुआ था। एक श्मशान की शांति जैसी दिख रही थी भारतभूमि पर। आपातकाल के अन्याय, अत्याचार से उबकर लोगों ने जनता पार्टी को गैर कांग्रेसी विकल्प के रूप में एक अवसर प्रदान किया था। यह कोशिश थी सभी गैर कांग्रेसीजनों के लिए ऊपर वर्णित किये गये विचारों को अमल में लाने की। लेकिन जनता पार्टी के लोगों का अहंकार, आपसी टकराव एवं जनसंघ के सदस्यों पर अपनी मातृ संस्था से अलग हटने की दबाव के कारण, दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर मोर्चा का विघटन हुआ। संघ की वैचारिक आत्मा एवं भारतीय जनसंघ का सांगठनिक ढांचा लेकर एक विशुद्ध भारतीय विचारों का भाजपा रूपी राजनीतिक दल के रूप में जन्म हुआ। 1984 के लोकसभा चुनाव से दो सदस्यों के साथ शुरू हुई भाजपा यात्रा में भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सर्वश्री वाजपेयी, आडवाणी, जोशी, ठाकरे आदि के कुशल नेतृत्व में लोकसभा में भी क्रमश: 1989 में 86. 1991 में 119, 1996 में 161, 1998 में 179 और 1999 में 182 सांसदों के साथ आगे ही बढ़ती रही और अंतत: भाजपा के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी। अटल जी की वह सरकार तो मानो भारत और भारतीयता की अकेली प्रवक्ता बन अपना इतिहास न केवल भारत अपितु विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गयी। हाँ पिछले दो लोकसभा चुनावों में पार्टी का पेक्षित प्रदर्शन ना कर पाना निश्चय ही एक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ जाने वाला रहा है, जिस पर चिंतन किये जाने की ज़रूरत है।

यूँ तो भाजपा की इस यात्रा पर कई ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं किन्तु अयोध्या आंदोलन के बिना पार्टी की कोई चर्चा अधूरी ही रहेगी। भाजपा को अपने इस आंदोलन पर गर्व है। स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा यह आंदोलन शुरू तो हुआ था धर्मनिरपेक्षता की गलत अवधारणा के नाम पर, भारत की मूल हिन्दू पहचान को कलंकित करने का विरोध करने एवं रामजन्म भूमि पर मंदिर का पुर्ननिर्माण करने के लिये। लेकिन इस आंदोलन की एक बड़ी उपलब्धि यह भी रही कि तत्कालीन सरकार के निहित स्वार्थ के कारण मंडल कमीशन के बहाने जाति के नाम पर टुकड़े-टुकड़े में बांट दिये गये समाज में राष्ट्रीयता एवं स्वाभिमान का स्वत:-स्फूर्त संचार हो गया था। विषमुक्तता एवं भगवाकरण के नाम पर तुष्टिकरण का खेल-खेलते रहने वाली कांग्रेस को पहले बार एक सही और सच्ची चुनौती मिली थी। हालाकि 1999 में खुद कांगेस ने अपनी कार्यसमिति में यह माना था कि हिन्दूवाद धर्मनिरपेक्षता का सबसे प्रभावी गारंटी कर्ता है।

केन्द्र में राजग की सरकार बनने के बाद सबसे बड़ी सौगात अटल जी ने छत्तीसगढ़ समेत तीन नए राज्य बनाकर दी। राष्ट्रवादी विचारों के इस बीज को पल्लवित पुष्पित करने में सबसे बड़ा योगदान उन लाखों कार्यकर्ताओं का है जिसने अपने सेवा बलिदान एवं त्याग के द्वारा इस नाजुक पौधे को अभिसिंचित कर इसे वटवृक्ष का रूप प्रदान किया। कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता उसका समर्पण ही इस पार्टी की सबसे बड़ी पूंजी है। कार्यकर्तागण ही इस अविराम यात्रा के साथी है, इस कमल बगिया के माली है। इस राष्ट्र नींव के पत्थर है। यह यात्रा न रूकी है न थमी है, अनेक अवरोधों विरोधों को पार करते हुए अनंत तक का यह सफर जारी रहेगा। सदा-सर्वदा-अनवरत उन कार्यकर्ताओं की बदौलत जिनके लिये राष्ट्र सर्वोपरि है, उन शिल्पियों की बदौलत जिनका लक्ष्य है, “कंकड़-पत्थर बन-बन हमको राष्ट्र नींव को भरना है, ब्रम्ह तेज के क्षात्र तेज के अमर पुजारी बनना है।”

भाजपा को यात्राओं का दल कहा जाता है, पार्टी को अपने इस उपाधि पर गर्व है। इन यात्राओं के दौरान आरोह-अवरोह, बाधा-विपत्ति, संकट आदि का आते रहना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कुछ अवांछित स्थितियों का अकस्मात प्रकट हो जाना भी इन्हीं प्रक्रियाओं का अंग है। इन तमाम विघ्रों से जूझती-निपटती पार्टी अपने गति को अविराम रखेगी यही अपेक्षा है। मुखर्जी-दीनदयाल की प्रेरणा, अटल-आडवाणी का मार्गदर्शन एवं नए अध्यक्ष नितिन गडकरी का युवा नेतृत्व इस यात्रा को गति देने में निस्संदेह सहायक होगा।

-पंकज झा

2 COMMENTS

  1. जैसे कांग्रेस के लिए गांधी नाम राजनैतिक लाभ का पर्याय है वैसे ही बीजेपी के लिए अब दीनदयाल उपाध्‍याय है, अब बख्‍श दो दीनदयाल जी मुखर्जी जी को, इनकी आत्‍मा को आज की बीजेपी सिर्फ कटोचती ही नहीं है जार जार रूलाती भी है।

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