भाजपा का वंशवाद : पर उपदेश कुशल बहुतेरे

14
318

-फ़िरदौस ख़ान

राजनीति में वंशवाद का विरोध करने वाली भारतीय जनता पार्टी खुद इससे अछूती नहीं है। हैरत की बात तो यह है कि भाजपा के वयोवृध्द नेता लालकृष्ण आडवाणी कांग्रेस के वंशवाद पर तो अकसर भाषण देते रहते हैं, लेकिन खुद अपनी पार्टी के वंशवाद की तरफ़ से आंखें मूंद लेते हैं। पिछले दिनों पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने वंशवाद का विरोध करते हुए कांग्रेस पर तीखे वार किए थे। इस दौरान वे कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर आपत्तिजनक शब्द कहने तक से नहीं चूके। हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान के लिए माफ़ी भी मांग ली। यह बात अलग है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वंशवाद से मुक्त है।

भाजपा में भी वंशवाद को लेकर कई बवाल उठ चुके हैं। भाजपा नेताओं का पुत्र मोह भी कांग्रेस नेताओं से कम नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना घर तो नहीं बसाया, लेकिन अपने परिजनों को राजनीति में स्थापित करने में मदद ज़रूर की। उनकी बदौलत ही उनके भांजे अनूप मिश्रा ने खुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित करने का प्रयास किया। भाजपा के सत्ता में आते ही वह नेहरू युवा केंद्र के उपाध्यक्ष बने और उन्हें केंद्र में उपमंत्री का दर्जा मिला। यहां उनकी कार्यशैली सवालों के घेरे में रही। उन पर हिसाब-किताब में हेराफेरी के आरोप लगे और आख़िरकार रजिस्टर ही गायब कर दिए गए।

मध्य प्रदेश की भाजपाई सरकार में अनूप मिश्रा लोक चिकित्सा व स्वास्थ्य मंत्री के पद पर विराजमान हुए। उन्होंने अपना कारोबार करने का मन बनाया और इसके लिए उन्होंने ग्वालियर ज़िले के बेलागांव में कॉलेज खोल लिया। वह कॉलेज को विश्वविद्यालय बनाने चाहते थे और इसके लिए उन्हें विश्वविद्यालय आयोग के नियमानुसार ज्यादा ज़मीन की ज़रूरत पड़ी। अपनी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्होंने गांव की ज़मीन पर कथित तौर पर क़ब्ज़ा कर लिया। 24 जून को ग्रामीणों के विरोध करने पर उनके परिजनों ने कहा कि उन्होंने पूरे गांव की ज़मीन लीज़ पर ले ली है, लेकिन ग्रामीणों ने इस बात विश्वास नहीं किया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ हथियारबंद लोग ग्रामीणों को धमकाते रहे और फिर उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी। इसी दौरान अतिक्रमण का विरोध कर रहे भीकम सिंह कुशवाहा के माथे पर गोली मार दी गई। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि हमलावर अटल बिहारी वाजपेयी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम ले रहे थे। ग्रामीणों ने लाश को सामने रखकर प्रदर्शन किया और तब तक शव को उठाने नहीं दिया, जब तक कि आरोपियों के ख़िलाफ़ केस दर्ज नहीं हो गया। मृतक के भाई माखन सिंह कुशवाहा की शिकायत पर अटल बिहारी वाजपेयी के भतीजे दीपक वाजपेयी, अनूप मिश्रा के भाई अजय मिश्रा व अभय मिश्रा, पुत्र अश्विनी मिश्रा और साले योगेश शर्मा पर धारा 302, 307, 147,148 और 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके बाद दो जुलाई को अनूप मिश्रा ने अपने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके अलावा अनूप मिश्रा पर केंद्र की तरफ़ से मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को भेजी गई दवाइयों में घोटाला करने के आरोप भी लगे हैं। विरोधियों का कहना है कि अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बहुत से लोगों ने अपनी रोटियां सेंकी हैं, लेकिन उनके भतीजे ने तो सीधा डाका ही डालने का काम किया है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला दूसरी बार नितिन गडकरी की टीम में शामिल हुईं। उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष पद सौंपा गया। इससे पहले वह महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं। वह झारखंड की प्रभारी भी रही हैं। करुणा शुक्ला वाजपेयी के छोटे भाई की बेटी हैं और छत्तीसगढ़ में उनकी ससुराल है। वह वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की जांजगीर सीट से जीतकर संसद पहुंची थीं। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत को 12 हज़ार मतों से हराया था। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने प्रदेश की कोरबा सीट से क़िस्मत आज़माई, मगर उन्हें कामयाबी नहीं मिली।

पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने भाजपा अध्यक्ष के अपने कार्यकाल में अपने बेटे पंकज सिंह को भारतीय जनता युवा मोर्चा की  उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बना दिया था, लेकिन पार्टी के भीतर ज़बरदस्त विरोध होने पर उन्हें पद से हटा दिया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश की चिरईगांव विधानसभा क्षेत्र से पंकज को टिकट दिया गया। इस पर भी पार्टी में बवाल हुआ। आख़िरकार पंकज को मजबूर होकर चुनाव लड़ने से इंकार करना पड़ा। हाल ही में उत्तर प्रदेश भाजपा की कार्य समिति में पंकज को मंत्री पद दिया गया है। जानकारों का मानना है कि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही ने उन्हें पदोन्नति दी है।

इसके अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता व लखनऊ से सांसद लालजी टंडन के पुत्रों आशुतोष टंडन और गोपाल टंडन को भी कार्यसमिति में शामिल किया गया है। आशुतोष टंडन को मंत्री पद दिया गया है। लालजी टंडन ने अपने पुत्रों को सियासत में आगे बढ़ाया। गोपाल टंडन अपने पिता की छोड़ी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन कार्यकर्ताओं के भारी विरोध के कारण उन्हें पार्टी प्रत्याशी नहीं बनाया गया।

दरअसल, महासचिवों के पांच पदों के लिए चार बड़े नेताओं के बेटों में होड़ लगी थी। इनमें राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह, पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे शरद त्रिपाठी, विधानमंडल दल के नेता ओमप्रकाश सिंह के बेटे अनुराग और लालजी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन शामिल थे। शरद त्रिपाठी ने पिछले लोकसभा चुनाव में संतकबीर नगर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। डॉ. रमापति राम त्रिपाठी भी अपने बेटे को सियासत में स्थापित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में गृह राज्यमंत्री व आबकारी मंत्री रहे सूर्य प्रताप शाही भी अपने पुत्र सुब्रत शाही को राजनीति में कामयाब नेता के तौर पर देखने के अभिलाषी हैं।

नितिन गडकरी ने भाजपा से निष्कासित जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया। वे वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान के बाड़मेर सीट से चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे थे। इसके बाद पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने मानवेंद्र सिंह को इसी सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था। अपने बेटे के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान जसवंत सिंह पर नोट और भोजन के पैकेज बांटने के आरोप भी लगे थे। इतना ही नहीं रामसर में बेटे के समर्थन में आयोजित कार्यक्रम में जसवंत सिंह ने खारे पानी से निजात दिलाने के लिए अपने ख़र्च पर मीठे पानी के कुएं खुदवाने तक का ऐलान किया था। गौरतलब है कि बाड़मेर के जिला कलक्टर ने जसवंत सिंह पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग को रिपोर्ट भेजी थी। बाद में अपनी सफ़ाई देते हुए जसवंत सिंह ने कहा था कि गरीबों की मदद करना हमारी परंपरा है और इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। साथ ही उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि वह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, ऐसे में उन्हें कुसूरवार नहीं ठहराया जा सकता।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर को भाजपा अध्यक्ष ने भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष मनोनीत किया। मगर पार्टी में एक महत्वपूर्ण पद संभालते ही वह विवादों में भी आ गए, क्योंकि कांगड़ा ज़िले के देहरा इलाक़े में छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले के शहीद पंकज की चिता जल रही थी, वहीं इससे कुछ ही दूरी पर अनुराग ठाकुर युवा अध्यक्ष बनने के जश्न में डूबे थे। इस मामले की चहुंओर निंदा होने पर बाद में मुख्यमंत्री व अनुराग ने शहीद के घर जाकर औपचारिकता ज़रूर निभा ली, मगर इससे उनकी छवि पर असर ज़रूर पड़ा। हालांकि इस मामले में प्रदेश भाजपा के प्रभारी सतपाल जैन ने उनका बचाव करते हुए कहा था कि अनुराग को शहीद के अंतिम संस्कार की जानकारी नहीं थी और वह इसका पता लगाने के लिए खुद शहीद के घर गए थे। जैन के इस बयान ने भी धूमल सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया कि सरकार को अपने ही शहीदों की जानकारी तक नहीं है, जबकि कम से कम ऐसे मामलों में तो सरकार को संवेदनशीलता बरतनी ही चाहिए। यह कहा गया कि शहीद की उपेक्षा भाजपा की ‘एयरकंडीशन कल्चर’ का ही उदाहरण था। अनुराग हमीरपुर से सांसद हैं। इसके अलावा वे हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) के अध्यक्ष भी हैं। वे तीसरी बार इस पद पर आसीन हुए हैं। प्रदेश में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) जैसा अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजन कराकर उन्होंने युवाओं में अपनी पहचान बढ़ाई। इसके अलावा उनके एचपीसीए अध्यक्ष के कायकाल में धर्मशाला में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण कार्य पूरा हुआ।

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री व महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया के पुत्र दुष्यंत वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में अपनी मां की परंपरागत सीट झालावाड़ से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता की कभी सुध नहीं ली। इसलिए पिछले लोकसभा चुनाव में अपने बेटे की नैया पार कराने के लिए वसुंधरा राजे को दिन-रात एक करने पड़े, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को राजस्थान में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन गई थी। इन हालात में वह अपने बेटे की संसद सदस्यता बचाए रखना चाहती थीं। इसके चलते उन्होंने अपने विरोधियों से भी हाथ मिलाया। वह पार्टी के बाग़ी नेता प्रहलाद गुंजल को वापस ले आईं। ग़ौरतलब है कि गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान गुर्जरों पर गोली चलाने पर गुंजल ने अपनी ही पार्टी की सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी थी। नतीजतन, महारानी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इस पर गुंजल ने लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी का गठन कर विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार उतार दिए। इस नवोदित पार्टी को सीट तो एक भी नहीं मिली, लेकिन इसने भाजपा के वोट काटने का काम ज़रूर किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस और तीसरे मोर्चे में भी अपने लिए ज़मीन तलाशी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। परिसीमन ने भी महारानी की परेशानी बढ़ा दी थी, क्योंकि परिसीमन की वजह से बारां ज़िले का एक हिस्सा भी झालावाड़ में शामिल हो गया था। इस नए बारां-झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं और इनमें से आठ पर कांग्रेस के विधायक थे। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस इलाक़े से गुर्जर नेता संजय गुर्जर को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया। इससे गुर्जरों में कांग्रेस के प्रति नाराज़गी थी और इसका फ़ायदा महारानी ने उठाया।

वसुंधरा राजे सिंधिया की ही तर्ज़ पर नेहरू-गांधी परिवार की बहू और भाजपा नेता मेनका गांधी ने भी अपनी परंपरागत सीट पीलीभीत से अपने पुत्र वरुण गांधी को टिकट दिलाया। वह पीलीभीत से 1991 से लगातार जीतकर सांसद बनती रही हैं। उन्होंने खुद आंवला सीट से चुनाव लड़ा। वरुण गांधी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। अपने आक्रामक भाषणों के कारण वह भाजपा के प्रमुख प्रचारकों में शामिल हो गए। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान छह मार्च 2009 को उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ जमकर ज़हर उगला। इतना ही नहीं उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा। अपने भाषणों में उन्होंने कहा-”यह हाथ नहीं है, यह कमल है। यह….का सर काट देगा, जय श्रीराम।” एक अन्य चुनावी सभा में उन्होंने आक्रामक तेवर अपनाते हुए कहा-”अगर कोई हिन्दुओं की तरफ उंगली उठाएगा या समझेगा कि हिन्दू कमज़ोर हैं और उनका कोई नेता नहीं है, अगर कोई सोचता है कि ये नेता वोटों के लिए हमारे जूते चाटेंगे तो मैं गीता की क़सम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा, जो हाथ हिन्दुओं पर उठेगा, मैं उसे काट दूंगा।” वरुण गांधी ने महात्मा गांधी के बारे में कहा-”गांधी जी कहा करते थे कि कोई इस गाल पर थप्पड़ मारे तो उसके सामने दूसरा गाल कर दो, ताकि वह इस गाल पर भी थप्पड़ मार सके। यह क्या है? अगर आपको कोई एक थप्पड़ मारे तो आप उसका हाथ काट डालिए, ताकि आगे से वह आपको थप्पड़ नहीं मार सके।” इस पर चुनाव आयोग ने भी वरुण गांधी को नोटिस जारी किया। इस भाषण के लिए वरुण गांधी को जेल की हवा भी खानी पड़ी। इस मुद्दे पर भाजपा नेता पल्ला झाड़ते या फिर वरुण गांधी का बचाव करते नज़र आए। इसी साल मई में इलाहाबाद के चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में चप्पल पहनकर महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की प्रतिता पर माल्यार्पण करने को लेकर वरुण गांधी विवादों में घिर गए। ख़ास बात तो यह भी है कि प्रतिमा के साथ लगी पट्टिका पर चप्प्ल-जूते उतारकर ही माला पहनाने के बारे में निर्देश लिखा हुआ था। भारतीय संस्कारों की दुहाई देने वाली भाजपा ने इस घटना को ‘मामूली’ क़रार देते हुए इसे ‘चूक’ की संज्ञा दी थी। कांग्रेस ने अमर क्रांतिकारी का अनादर करने पर इस घटना कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा था कि शहीद के प्रति वरुण का बर्ताव सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का दम भरने वाली भाजपा की वास्तविकता को ही उजागर करता है। खास बात यह भी है कि एक तरफ़ विदेशी संस्कृति में पली-बढ़ी सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी हैं तो दूसरी तरफ़ भारतीय महिला मेनका के पुत्र वरुण गांधी। दोनों की परवरिश किस माहौल में हुई होगी, यह जगज़ाहिर है।

महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव-2009 में दिवंगत भाजपा नेता प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन राव और गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा पालवे को टिकट दिया गया। पूनम महाजन को मुंबई के उपनगर घाटकोपर पश्चिम और पंकजा पालवे को उनके पिता की परंपरागत सीट पार्ली से चुनाव मैदान में उतारा गया। पार्ली सीट से गोपीनाथ मुंडे के भतीजे व पार्टी कार्यकर्ता धनंजय मुंडे टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन गोपीनाथ मुंडे ने अपनी बेटी पंकजा पालवे और पूनम महाजन को उम्मीदवार बनाए जाने के लिए केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में काफ़ी जोर आज़माया और उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली। पंकजा पालवे 36 हज़ार मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचीं। उन्होंने वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता के प्रचार की कमान संभाली थी। गोपीनाथ मुंडे इस सीट से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के टीपी मुंडे से था। पूनम महाजन राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के उम्मीदवार राम क़दम से हार गईं।

छत्तीसगढ़ में आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास मंत्री केदार कश्यप भी अपने पिता बलिराम कश्यप के कारण ही राजनीति में इस मुकाम तक पहुंच पाए हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद बलिराम कश्यप अपने बेटों को राजनीति में लेकर आए। उनके पुत्र तानसेन कश्यप भी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता थे और जनपद अध्यक्ष पद पर विराजमान थे। तानसेन कश्यप की पिछले साल 27 सितंबर को बेड़ागुड़ा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

पूर्व केंद्रीय मंत्री व बिलासपुर से भाजपा सांसद दिलीप सिंह जूदेव अपने बेटे युध्दवीर सिंह जूदेव को राजनीति में लेकर आए। पिछले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने बेटे के लिए चंद्रपुर सीट चुनी थी। फ़िलहाल युध्दवीर सिंह संसदीय सचिव हैं। इसी तरह कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी अपने बेटे बीवाई राघवेंद्र को सियासत में लेकर आए। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने राघवेंद्र को राज्य की शिमोगा सीट से टिकट दिलाया और बेटे के लिए चुनाव प्रचार भी किया। राघवेंद्र कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगरप्पा को हराकर संसद पहुंचे।

काबिले-गौर है कि वंशवाद के मामले में वामपंथी दल और क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं हैं। समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) अजीत सिंह, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) एम. करुणानिधि, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) लालू प्रसाद यादव और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेला) ओमप्रकाश चौटाला के परिवार तक ही सीमित हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी मायावती, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) जय ललिता और बीजू जनता दल (बीजेडी) नवीन पटनायक के निजी सियासी दल बनकर रह गए हैं।

बहरहाल, भाजपा नेताओं द्वारा कांग्रेस के वंशवाद का विरोध करना इसी कहावत को चरितार्थ करता है-पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

Previous articleभूखे पेट न हों भजन गोपाला
Next articleइस्‍लाम भी हिन्‍दू-माता का पुत्र है
फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

14 COMMENTS

  1. अगर कोई राजनीति में है तो उसके वंशधर भी उस पेशे को अपनाने की कोशिश अवश्य करेंगे. अगर कम्युनिष्ट पार्टी के नेता का कोई बेटा या भतीजा या भतीजी कोई भी कम्युनिस्ट पार्टी को नहीं अपनाता तो यही कहा जा सकता हैकि वे नेता अपनी विचार धारा से अपने नजदीकियों को भी नहीं प्रभावित कर सके.यही बात अन्य पार्टियों के साथ भी लागू होता है और इसे वंश वाद की संज्ञा नहीं दी जा सकती.अगर पंडित का बेटा पूजा पाठ में निमग्न होता है तो यह वंश वाद नहीं है.यह वंश परम्परा है,पर अगर किसी पुजारी का बेटा बिना अपनी योग्यता के केवल इस कारण पुजारी बन जाता हैकि वह पहले पुजारी का बेटा है तो यह वंश वाद हुआ.इसी निष्कर्ष को कांग्रस और अन्य पार्टियों के सन्दर्भ में सामने रखा जाएगा तो यह पता चलेगा कि कांग्रेस वाली बात अन्य किसी राष्ट्रीय पार्टी के सन्दर्भ में नहीं लागू होती. ऐसे कई क्षेत्रीय पार्टियाँ भी इससे अछूती नहीं है,पर कांग्रेस जैसी पुरानी और प्रतिष्ठित पार्टी को जब उन एक वंशीय क्षेत्रीय पार्टियों के साथ खड़ा होने की नौबत आये तो उसका कद बहुत छोटा हो जायेगा और तब वह एक राष्ट्रीय पार्टी के नाम पर धब्बा हो जाएगा.

  2. खबर तेज हो गई है की राहुल को कांग्रेस की कमान दी जा सकती है. मतलब की गांधी परिवार में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संगठन का हस्तानान्तरण. फिर भी यह सवाल नहीं होगा की आख़िरकार राहुल ही क्यों. क्या कांग्रेस में राहुल के अलावा काबिल नेताओं का अकाल है.

  3. कोंग्रेस मैं शीर्ष स्तर पर वंशवाद है…जबकि बीजेपी मैं नहीं…आप मुस्लिम होने के नाते कांग्रेस के समर्थन मैं बोलेंगी…

    ये भी एक तरह से विचारों का वंशवाद है…

    • आपकी टिप्पणी से आपकी मुस्लिम विरोधी मानसिकता का पता चलता है. फ़िरदौस जी ने लिखा है-
      “यह बात अलग है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वंशवाद से मुक्त है।”

      “काबिले-गौर है कि वंशवाद के मामले में वामपंथी दल और क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं हैं। समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) अजीत सिंह, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) एम. करुणानिधि, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) लालू प्रसाद यादव और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेला) ओमप्रकाश चौटाला के परिवार तक ही सीमित हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी मायावती, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) जय ललिता और बीजू जनता दल (बीजेडी) नवीन पटनायक के निजी सियासी दल बनकर रह गए हैं।”

  4. firdaus ji anoop mishra vajpayee ji ke bhatije nahin bhanje hain.isi tarah rajanath singh ji ne apne bete ko bjp uva morcha up ka president banane ki koshish ki thi na ki bjp state president. rahi baat pariwarvad ki to bhaiya yeh paarty with with difference hai. leak se hatkar kaam karna bjp ko achha lagta hai. parivaarvad ka moh rajasthan bjp mein sabse jyada hai. abhi hue nagar palika elections mein yeh saaf dikhai diya ki party worker ki jagah leadar ke parivaar walon ko ticket diya gaya. parivarvaad ki jadein kafi gahri hain. so is matter par bolna aur likna bekar hai. because bjp is a party with differenc.
    mazharuddeen khan editor rajasthan gaurav bhiwadi (alwar)

  5. “Dynasty” ‘Dynastic’ means – a succession of rulers of the same line of descent; a powerful group or family that maintains its position for a considerable time.
    दिल्ली में एक निजी हस्पताल “जीवन” नाम से है जिसमे एक परिवार के ही सौ से अधिक डॉक्टर हैं. परिवार के सभी पुरुष-स्त्री डाक्टरी पेशे में ही है. क्या इसे वंशवाद कहेंगे.
    जेठमलानी – बाप, बेटा, बेटी सभी नामी वकील है. उनको अदालत का काम वंश के कारन तो नहीं मिलता.
    बेटा, बाप, दादा, पढ़दादा सभी ज्योतषी ही है. अगली संतान भी यही काम करने को है. यह भी वंशवाद नहीं है.
    अब बात करें राजनीति दलों की.
    – एक, चुनावी टिकेट वह पाता है जिसके जीतने का अवसर लगता है. वंश का प्रतिनिधि तभी टिकेट पर जीतेगा, यदि जनता दरबार पसंद करेगी. निर्णय तो जनता ने करना है. यह जनता पर निर्भर करता है, न की पार्टी पर.
    – दो, प्रजा तंत्र में people get the government by their choice.
    वंशवाद की वार्तालाप कुछ भी नहीं करने वाली, क्या आप कानून द्वारा किसी को चुनाव लड़ने से रोक सकते है वंशवाद के नाम पर.
    जनता की सेवा करो, देश को आगे ले जाओ.
    विकास करो – जनता का मन जीतो. जीतेगा वह जिसे जनता वोट देगी.
    वंश से हो या नहीं – जनता को कुछ लेना देना नहीं है.

  6. भाजपा में कभी भी राष्ट्रिय स्तर पर पार्टी प्रेसिडेंट का पद या प्रधानमंत्री का पद परिवारवाद का शिकार नहीं हुवा ,हाँ ये सच है की कुछ राज्यों में मंत्री या संगठन के कुछ पदों पर वंशवाद दिखाई देने लगा है ,बीजेपी ने कभी जनता के बीच जाकर ये नहीं कहा की “इंदिरा जी के हाथ मज़बूत कीजिये” “राजीव जी के हाथ मज़बूत कीजिये ” “सोनिया जी के हाथ मज़बूत कीजिये ” “राहुल जी के हाथ मज़बूत कीजिये “और इन सब के नाम पर वोट दीजिये.भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रिय प्रेसिडेंट अटल जी -अडवाणीजी-वेंकैयाजी -राजनाथजी या गडकरी जी हुवे हैं क्या ये परिवारवाद है ?ये पार्टी यदि वंशवाद का विरोध करती है या आलोचना करती है तो इसका कारण स्पष्ट है की इस पार्टी का भविष्य केवल एक परिवार या एक वंश पर निर्भर नहीं करता ये पार्टी सिधान्तों पर जीती है अपने कार्यों के आधार पर वोट मांगती है ..एक साधारण कार्यकर्ता भी इस दल में राष्ट्रिय प्रेसिडेंट या प्रधानमंत्री बन सकता है …इस लिए ये कहना की “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” बीजेपी के लिए सही कहावत नहीं है ….विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

    • हाँ ये बिलकुल सत्य है की बीजेपी ने कभी भी अटलजी के परिवार ,या अडवानी जी के परिवार या राजनाथ जी के परिवार या वेंकैया जी आदि सभी परिवारों के नाम कभी भी वोट नहीं माँगा न ही कभी किसी परिवार के नाम राजनीति चलाई ये पार्टी अपने सिधान्तों और किये गए कामों के लिए वोट मांगती है एक समय था जब पार्टी के केवल दो संसद सदस्य थे धीरे धीरे किन्तु मज़बूत आधार पर अपना जनाधार बढ़ाया है,जब की कांग्रेस एक समय सारे देश में ४५० सीटें जीतती थी पुरे बहुमत पर अपनी सरकार चलाती थी अब इस पार्टी की ये दुर्गति हो गई की अपने दम पर ५४० उमीदवार भी नहीं खड़ा कर सकती ,धुर विरोधी विचारधारा के लोगों के साथ मिलकर सरकार चलाने केवल चलने चलाने का काम मात्र कर रही है …सुमनलता सोनी -दुर्ग छत्तीसगढ़

  7. फिरदौस जी आपने परिवारवाद पर टिपण्णी की वो तो सही है लेकिन ये कहना परिवारवाद के कारण ये लोग विवादस्पद हैं ये दोनों अलग बाते हैं. ऐसे तो बीजेपी के कई नेता परिवारवाद से नहीं हैं तो पर भी विवादस्पद हैं. मेरे विचार से परिवारवाद और विवादस्पद होना, दोनों के बीच कोई मजबूत समानता नहीं है.
    लोकतंत्र के लिए परिवारवाद शुभ संकेत नहीं है. इसे मजबूती से कुचल देना चाहिए. इसके लिए दृढसंकल्प की जरुरत है. जैसे कोई पार्टी परिवर्वादियों को टिकेट ही न दे, भले ही कितना भी नुक्सान क्यों न हो. जनता ऐसे नेताओं और उनके रिश्तेदारों को सबक सिखाए, यह तो उनके बाएं हाथ का खेल है? जनता क्यों नेताओं के रिश्तेदारों को जीतती है?
    अभी भी बीजेपी का उपरी आर्डर परिवारवाद से लगभग अछूता है. जो पार्टी के लिए शुभ संकेत है. लेकिन बीजेपी को भी ठोस कार्ययोजना बनानी चाहिए. अन्यथा यह इस मामले में भी कांग्रेस की बी टीम नजर आएगी.
    बीजेपी के नेताओं के रिश्तेदार जो की राजनीती में हैं, उनकी कमियों को गिनाया गया है, उसकी जरुरत शायद नहीं थी. यह टिपण्णी परिवारवाद पर ही केन्द्रित रहती तो अच्छा रहता. लेखिका यहाँ पर कुछ उलझ गयीं लगतीं हैं. खास कर के वरुण गाँधी के कथन उधृत करने की जरुरत नहीं थी, वो भी तब जबकि केस कोर्ट में विचाराधीन है, और उस cd को वरुण ने नकार दिया है. इतना अधिक स्ट्रेस शायद लेखिका को इस केस में देने की जरुरत नहीं थी. इस केस के लिए वो एक सेपरेट लेख लिखतीं तो अच्छा रहता. क्योंकि मुझको लगता है की इस तरह चीज़ों को मिला देने से परिवारवाद के खिलाफ सन्देश नहीं दिया जा सकता.
    लेखिका ने सिर्फ उन्हीं बीजेपी के रिश्तेदारों को शामिल किया है जिनके ऊपर आरोप लगे हैं. और यदि कोई परिवारवाद से आया व्यक्ति अच्छा आदमी है तो क्या परिवारवाद अच्छा है? मुझको लगता है परिवारवाद अपने आप में बुराई है, इसके लिए ऐसे लोंगों की अलग से कमियां खोजने की जरुरत नहीं है.
    लेखिका मूल मकसद से यहाँ पर भटक गई हैं और अपने लेखनी की दिशा कहीं और मोड़ दी हैं. आशा करता हूँ की लेखिका भविष्य में अपने मूल विचारों पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर पाएंगी.
    फिरदौस जी आशा है आप अपने अपने lekhan karya में kaphi aage badhengi.

  8. फिरदौस जी आपके लेखन के लिए आप बधाई के पात्र हैं. बीजेपी भी परिवार वाद से अछूती नहीं. असल में फिरदौस जी इसे रोकना इतना आसान नहीं है. यदि किसी क्षेत्र की जनता किसी परिवारवादी को चुनना चाहती है तो पार्टी क्यों उसे टिकेट नहीं देगा?
    पार्टियाँ टिकेट लाभ हानि के समीकरण को देखकर दिया करती हैं. यदि किसी बड़े नेता के रिश्तेदार को टिकेट दिया जाता है तो वह उसकी भरपाई कर देता है, जैसे पार्टी के लिए जी तोड़ मेहनत करता है और अपने रिश्तेदार को भी जीता देता है. बड़े नेता की सहमती के बिना उसकी पसंदीदा सीटों को जीतना पार्टियों के लिया काफी मुश्किल होता है और कम मेहनत से अन्य सीटों में भी पार्टी को हरा सकती है.

  9. फिरदौस जी, राजनीती के हमाम के सब नंगे है. कौन किसको दोष दे. पर जिस प्रकार आपने लेख लिखा है वो कई सवाल खड़े करता है. पता नहीं वरुण ने ये कभी कहा है या नहीं कहा -”यह हाथ नहीं है, यह कमल है। यह….का सर काट देगा, जय श्रीराम।” पर आप बार बार ऐसा लिखा कर अपनी कौम के लिए होव्वा खड़ा कर रहीं है.
    बहुत समस्याएँ है और बहुत कुरीतिय है. उनपे लिखिए और कुछ रचनात्मक कीजिए. ये नारात्मक बातें नेताओ के लिए रहेने दीजिए.

  10. फिरदौस के इस आलेख को कोई पढ़े या न पढ़े कम से कम उन तथा कथित राष्ट्रवादियों से निवेदन है की अब इस के तार्किक जबाब की जगह यही बयां कर दें की क्या करें कांग्रेस की छाँव का असर है .
    yadi फिरदौस का आलेख ek vaastwikta है to bhajpa को yh kahne men sha
    rm mahsoos karna chahiye की “we are the paartee with difference”
    कांग्रेव्स को सपोर्ट करना हमारा कतए मकसद नहीं .उसे तो हम एक पूंजीवादी -सामंती पार्टी मानते हैं .याने हम उसे प्रजातंत्र में रहने लायक मानते हैं .उसकी जनविरोधी नीतियों तथा भरुस्टआचरण का विरोध भी करते हैं ;किन्तु भाजपा के बड़े -बड़े नेताओं के श्री मुख से निकल रहे बचकाने हीन्ताबोधक शब्दों से इस पार्टी को वंशवादी तो क्या किसी भी वाद से जोड़ना संभव नहीं

    • फिरदोश जी, आप का लेख काफी अच्छा है. अच्छा लगेगा की आप कांग्रेस और अन्य राजनितिक दलों के परिवारवाद पर भी लिखे. जहाँ पार्टी और सत्ता की कमान उसी परिवार के हाथो गिरवी हो गई है. और कोई उसपर सवाल भी नहीं उठाता. हाँ, यह जरुर खबर बनती है की बीजेपी में पीएम पद के कई उम्मीदवार. इसे कोई नहीं समझाता की राजनितिक दल है, कोई लिमिटेड कंपनी नहीं. जैसे हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार है, वैसे ही हर नता को यह सोचने की आज़ादी है की वह भी उम्मीदवार हो सकता है.

  11. lekhika mahodaya u have missed very important point occurred recently in Bihar.bihar ka newly elected(selected) BJYM(BJP Yuva morcha ke padadhikari sare minister ke ladke hai. Nand kishor yadva,Aswini Chube, Awdesh Narayan singh, Sahnawaj Hussain (ke brother),C.P thakur etc ke contractor bete aur batije ne jagah pa lia hai.AAm karykarta naraj hai. lkin naraj hoker kya karega kuan sunane vala hai..na aam kayakarta contractor hai nahihi Neta ptra.
    For more information ,read daibnik Jagaran

Leave a Reply to R.Singh Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here