काला धन, कर कानून और तेज़ आर्थिक विकास

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moneyइनफ़ोसिस के पूर्व निदेशक और प्रत्यक्ष कर सुधार पर बनी केलकर समिति के सदस्य रहे मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन सर्विसेज के चेयरमैन श्री मोहनदास पई ने काले धन का पता लगाने की रणनीति को मजाक बताया है! उनका कहना है की सरकार के पास अपराधियों कोतुरन्त पकड़ने, जेल भेजने की कोई नीति या ख़ुफ़िया तंत्र नहीं है!नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी असफलता बताते हुए श्री पई ने बेहतर जांच और अभियोजन तंत्र की आवश्यकता बताई है!उन्होंने कहा कि काले धन का पता लगाने की रणनीति गलत तरीके से तैयार हुई है कोई भी इस देश में रहने के लिए ६०% कर नहीं देगा!यह कार्य बेहतर नीति और बेहतर सूचना पर आधारित होगा! फ़ास्ट ट्रेक अदालतें भी जरूरी हैं!उन्होंने यह भी कहा कि काला धन आपके लिए किसी विदेशी बैंक में इंतज़ार नहीं कर रहा कि आप जब जाएँ, सूचना प्राप्त करलें! बस हो गया!
यही बात काफी समय से श्री सुब्रमण्यम स्वामी भी कह रहे हैं! उनका भी कहना है कि काले धन के सम्बन्ध में श्री अरुण जेटली द्वारा बनाये कानून में विशेषों में जमा काला धन वापिस लाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है!
वास्तव में तो अप्रेल २००९ के बाद से विदेशी बैंकों में जमा काला धन वहां से खिसकना शुरू हो गया था! अप्रेल २००९ में लन्दन में संपन्न हुई जी-२० देशों के शिखरबैठक में काले धन पर लम्बी चर्चा हुई थी और उसमे तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह को काले धन के विरुद्ध बनने वाली समिति की अध्यक्षता का प्रस्ताव किया गया था जिसे भारतीय प्र.म. ने ‘विनम्रता पूर्वक’ अस्वीकार कर दिया था! शायद ‘माताजी’ की अनुमति नहीं मिली थी!उस समय स्विस बैंकिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री लिसेन के अनुसार स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में भारतीयों का कुल जमा धन १.८ ट्रिलियन डॉलर ( लगभग ९४ लाख करोड़ रुपये) था! तत्काल बाद वहां से भारतीयों का धन खिसकना शुरू हो गया! और २०१४ तक यह घटकर केवल लगभग ९-१० हज़ार करोड़ रुपये पर सिमट गया!अर्थात लगभग ९९.९% धन वहां से गायब हो गया!कैसे? भारत कि एजेंसियां क्या कर रही थीं? और केवल स्विस बैंक ही नहीं बल्कि ७७ ऐसे देश हैं जिन्हे टैक्स हैवन के रूप में जाना जाता है! बोफोर्स केस में यह अनुभव आया कि दुसरे देशों से सूचना प्राप्त करने में कितनी कठिनाईयां आती है! अब अगर ऐसे में यह धन दो तीन देशों की यात्रा कर लेता है तो उनकी जानकारी प्राप्त करने के चक्कर में वहां की अदालतों की कार्यवाही में ही कई दशक बीत जायेंगे!और कोई भी प्रभावी कार्यवाही होना लगभग नामुमकिन हो जायेगा!
ऐसे में काले धन का पता लगाने के लिए कहीं अधिक बेहतर और कारगर पद्धति और रणनीति बनाने की आवश्यकता थी! जिसमे वर्तमान कानून विफल ही हैं! श्री जेटली द्वारा बनाये कानून के तहत तीस सितम्बर २०१५ तक स्वैच्छिक घोषणा का समय दिया गया था लेकिन इसमें जितना कर और समाधान राशि देने की व्यवस्था थी उससे आकर्षित होकर केवल नगण्य घोषणा ही हो पायी!जितनी घोषणा हुई उससे कहीं अधिक धन बैंकिंग प्रणाली की खामियों का लाभ उठाते हुए बाहर चला गया!
जून २०११ में बाबा रामदेव के रामलीला मैदान में धरने के पश्चात श्रीमती सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी,दामाद रोबर्ट वाड्रा, सुमन दुबे, विन्सेंट जॉर्ज एवं बारह अन्य व्यक्ति जिन्होंने इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अपना व्यवसाय ‘वित्तीय सलाहकार’ घोषित किया था, एक निजी विमान से ८ जून २०११ को ज़्यूरिख़ (स्विट्ज़रलैंड) के लिए रवाना हुए थे!निम्न लिंक पर इसे देखा जा सकता है:
MediaCrooks: Why Is Indian Media Scared Of Sonia Gandhi?
www.mediacrooks.com/2011/…/why-is-indian-mainstream-media-scared…
www.hvk.org/2012/0612/41.html
https://groups.google.com/forum/#!topic/desiyatra/54bQWM7RW_०


उस समय सुब्रमण्यम स्वामी जी सहित अनेकों लोगों ने यह आशंका व्यक्त की थी की भारत में काले धन के विरुद्ध बढ़ते आक्रोश से बौखला कर सोनिया गांधी १२ वित्तीय सलाहकारों को साथ लेकर प्राइवेट जहाज से स्विट्ज़रलैंड अपने काले धन को ठिकाने लगाने के लिए गयी थीं! उनकी यात्रा के विषय में सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गयी जानकारी को देने से तत्कालीन प्रधान मंत्री के कार्यालय ने इंकार कर दिया था!क्या वर्तमान सरकार को भी इस प्रकार की जांच कराने में कोई हिचक है?
एक बात और! काले धन के सम्बन्ध में कोई भी कार्यवाही करने से पहले हमें इस नीतिगत बिंदु पर अपना रुख साफ़ करना होगा की हमारी रूचि काले धन को वापिस देश में लाने में है या केवल दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की है?दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही में बहुत न्यून सफलता ही मिल सकती है!क्योंकि विभिन्न देशों के कानूनो के अंतर्गत वहां से सूचना निकाल पाना अत्यंत दुष्कर है!
काल धन देश का धन है! अतः इसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करके वापिस लाने का प्रयास करना चाहिए!
जैसा की श्री मोहनदास पई ने कहा है की ६०% टैक्स देकर कोई भी अपना धन वापिस नहीं लाना चाहेगा! अतः यदि उस धन को वापिस लाना है और देश के विकास में लगाना है तो उसको वापिस लाने के लिए अलग रन नीति बनानी पड़ेगी! सभी यह स्वीकार करते हैं की काले धन की उत्पत्ति में बड़ा कारण यहाँ के कर कानूनों का अनुचित रूप से दमनात्मक स्वरुप जिम्मेदार रहा है! अब धन तो धन है! काल और सफ़ेद रंग तो हमने भरे हैं!तो क्यों न एक उदार योजना के जरिये देश का यह धन वापिस लाने का प्रयास किया जाये?
मेरे विचार में एक एमनेस्टी योजना के अंतर्गत सारे काले धन को विदेश से लाने पर एक नाम मात्र का भुगतान करने पर अन्य किसी भी कार्यवाही से छूट दे दी जाये! संभव है कि इससे विदेशों में जमा काल धन वापिस आ जाये!लेकिन साथ साथ ऐसे धन का पता लगाने के लिए विदेशों में कार्यरत वित्तीय गुप्तचर संस्थाओं का भी पूरा सहयोग लिया जाये!इससे अधिक संख्या में लोग स्वेच्छा से काला धन वापिस लाने को प्रेरित होंगे!
आगे काला धन का सृजन न हो इसके लिए आयकर और संपत्ति कर में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है!अगर संभव हो तो डायरेक्ट और इनडायरेक्ट करों का अंतर समाप्त करके आयकर को भी जी इस टी में विलीन कर दिया जाये!अनेक अर्थशास्त्री भी मानते हैं की आयकर समाप्त कर देना चाहिए!१६ सितम्बर २०१५ को प्रधान मंत्री को लिखे पत्र में डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी, जो एक जाने मानेअर्थशास्त्री भी हैं और हार्वर्ड विश्विद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक भी रहे हैं,ने निकट भविष्य में ही देश की अर्थव्यवस्था में भारी संकट की आशंका व्यक्त करते हुए आयकर को समाप्त करने का सुझाव दिया है जिससे लोगों के हाथों में अधिक पैसा होने पर अधिक खरीदारी होगी जिससे अधिक मांग के चलते ज्यादा उत्पादन होगा और ज्यादा लोगों को रोज़गार मिलेगा!
तो काला धन, कर कानून और तेज़ आर्थिक विकास के बीच एक समन्वित नीति बनाकर काले धन के बारे में रणनीति बनाने की आवश्यकता है!क्या सरकार ऐसा करेगी?

2 COMMENTS

  1. आज भारतीयों के पास देश और विदेश में अकूत धन है। लेकिन फिर भी भारत गरीब है। आज भारतीय सबसे मेहनती और उद्यमी लोग है, फिर भी भारत गरीब है। आखिर क्यों? हमने अपने कड़े कर कानून से बहुत बड़े धन पर काले धन का बिल्ला लगा दिया है। उस काले धन को अर्थतन्त्र के मूल प्रवाह में प्रवेश करा दिया जाए तो भारत के विकास के लिए बहुत बड़ी धन राशी पूंजी उपलब्ध हो सकती है। काले धन के रूप में वह राशी विदेशी बैंको में है, सोने के रूप में निवेश है, या फिर अर्थतन्त्र में अन्य ढंग से क्रियाशील है। कड़े कर कानून बना कर कुछ नही होगा। जरूरत इस बात की है की हम “एकल कर” (one time tax) लगा कर उस धन को अर्थतन्त्र के मूल धार में ले कर आएं।

  2. विदेशों में कालाधन वास्तविकता कम,हौआ अधिक है.इसकी अनुमानतः मात्रा समयानुसार घटती बढ़ती रहती है. मेरे विचारानुसार विदेशों में जमा कालाधन उतना भी नहीं है,जितना देश के अंदर एक सप्ताह या हो सकता है एक महीने में उत्पादित हो जाता है.इस देश में कालाधन एक सामानांतर अर्थव्यवस्था है.उसपर तो किसी का ध्यान जाता नहीं ,क्योंकि उसमे सब भागीदार हैं. मेरे विचार से समय समय पर विदेशों में जमा कालेधन का हौआ लोगों का ध्यान इस देशी काले धन से हटाने के लिए उठाया जाता है.

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