बोलो नारायण – नारायण

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owaisiपिछले हफ्ते दस दिन से सोशल मीडिया पर मेरी उपस्तिथि लगभग नगण्य थी | कलम-पेन दोनों उठाकर मैंने अलमारी में रख दिए थे | इन हफ्ते दस दिनों में बहुत से ऐसे घटनाक्रम घटित हुए जिस पर मुझे लगा कि इस मुद्दे पर मुझे लिखना चाहिए | पर मैंने खुद पर संयम रखा और नहीं लिखा | पर आज जब ओवेशी ने बोला कि “चाहे कोई गर्दन पर छुरी रख दे पर भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूँगा ” तो मैं खुद को रोक नहीं पाया | कलम खुद ब खुद हाथों में आकर कागजों पर थिरकने लगी और कुछ पन्ने काले कर गयी |

अव्वल तो मैंने ये स्पष्ट कर दूँ कि ये लोग इस लायक है नहीं कि इन दो कोडियों के आदमियों पर अनमोल शब्द खर्च किये जाए | पर जिस तरह ये अपनी बेअक्ली का मुजाहिरा वक्त –वक्त पर करते रहते हैं तो मुझे लगा कि इन ओवेशी बंधुओं की मूर्खता पर २ शब्द खर्च करने ही चाहिए | मित्रो अपनी बात समझाने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ | आपको पहले ही बता दूँ कि ये कहानी काल्पनिक है | इसका किसी भी घटना या व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है |

बहुत समय पहले की बात है (सतयुग की मान सकते हैं ) | पातळलोक में एक राक्षस का राज्य करता था | उसके राज्य में भगवान् का नाम लेना मना था | इतनी पाबन्दी थी कि उसके राज्य में लोग अपने बेटे का नाम लक्ष्मी-नारायण भी नहीं रख सकते थे | कुछ इस कदर रौला था उसका कि खुद नारद जी भी जब कभी उससे मिलने जाते तो उन्हें अपने मंजीरे पृथ्वीलोक पर छोड़ कर जाने पढ़ते थे | क्युकि न उनके हाथ में मंजीरे होंगे और न वो नारायण – नारायण कर सकेंगे |

ये बात नारद जी को बहुत अखरती थी | जिस तरह संघी लोग दिन-रात सेक्युलर नेताओ से “वन्दे मातरम” बुलवाने की कोशिश करते रहते हैं | ठीक उसी तरह नारद जी के दिमाग में खुराफाते चलती कि तरह इस मुए राक्षस के मुंह से नारायण-नारायण का जाप करवाया जाए | तो जैसा कि हर बार होता है नारद जी अपनी वीणा उठायी और जा पहुंचे भगवान् माँ लक्ष्मी की शरण में | माँ को शीश नवाया और बोले | “माँ आपने तो कहा था कि आपके पति त्रिपुर स्वामी हैं | तीन लोक में उनसा योद्धा कोई नहीं | फिर ये बित्ते भर का राक्षस दिकपति को चुनौती कैसे दे रहा है ? नारायण कुछ करते क्यों नहीं ?

माँ पहले तो हंसी फिर बोली “ये तो उनकी माया है नारद | जब उन्होंने हिरण्यकश्यपु को मार दिया तो ये राक्षस भला किस खेत की मूली है | खैर तुम्हारी समस्या ये नहीं है | तुम्हारी समस्या है कि तुम इसके राज्य में जाकर अपनी प्रिय धुन पर नारायण नारायण नहीं गा सकते | इसीलिए तुम इस पर रुष्ट हो | चलो तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं इसके मुंह से नारायण-नारायण निकलवा देती हूँ |”

नारद जी को तो जैसे वरदान ही मिल गया | ख़ुशी से चहकते हुए बोले कि “माँ ऐसा हो जाए तो बस मानो कि दिसंबर में प्रयाग नहा आऊँ |”

बस फिर क्या था माँ ने एक तोते को बुलाया और उसे समझा बुझा कर पाताललोक भेज दिया | तोता पाताललोक गया जाकर राजमहल के मुंडेर पर बैठ कर जोर जोर से नारायण-नारायण कहने लगा | उस समय राक्षस मय पत्नी वही पर टहल रहा था | तोते को नारायण नारायण कहते देख कर अपनी पत्नी से बोला “देखो मंजरी(पत्नी का काल्पनिक नाम) | मेरा राज्य पुरे पाताललोक में फैला है | पूरे राज्य में किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं कि मेरे दुश्मन “नारायण” का नाम लेने की हिम्मत कर सके | पर इस तोते हो देखो | ये दुष्ट मेरे सामने ही “नारायण-नारायण” कर रहा है | शायद इसे पता नहीं कि मेरे यहाँ “नारायण-नारायण” बोलने की क्या सजा है | अभी इसे मारकर इसे “नारायण-नारायण” कहने की सजा देता हूँ |” इतना कहकर जैसे ही उसने अपना खड्ग उठाया तोता अंतर्ध्यान हो गया |

इस नज़ारे को दूरबीन से देख कर नारद जी नारायण लोक में ही हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए | कहने लगे “कहाँ तो ये लोगो को भगवान् का नाम नहीं लेने देता और कहाँ ये मूर्ख आज खुद ही नारायण- नारायण कर रहा है |”  इतना कह नारद जी वहां से खिसक लिए | ये सोचकर कि कहीं माँ दिसंबर में प्रयाग नहाने की न कह दें |

तो प्रिय ओवेशी भाई इस कहानी से कुछ शिक्षा लो | इंसान होकर मवेशी जैसी बुद्धि मत रखो | विदेश में वकालत पढ़े हो कुछ तो मान भी रखो भाई | वैसे भी नफरत की बातें बहुत हो चुकी, बहुत खून बह चुका | अब और आग मत भड़काओ | देशहित में मिलकर कंधे से कन्धा मिलाकर साथ दो | और प्रेम से भारत-माता के जयकारे लगाओ | नहीं तो देखो बंधू नारायण बहुत चालक है आजकल | उन्हें तुम्हारी गर्दन पर चाक़ू-छुरी कुछ रखने की जरूरत नहीं है | तुम चाहो या न चाहो वो तुम्हारे मुंह से “भारत माता की जय” और “वन्दे-मातरम” तो निकलवा ही लेंगे |

बोलो नारायण-नारायण

अनुज अग्रवाल

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