ब्रह्मोस बनी तीनों सशस्त्र बलों का बेहद शक्तिशाली हथियार

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ब्रह्मोस: दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल

योगेश कुमार गोयल

भारत पिछले करीब तीन माह के दौरान एंटी रेडिएशन मिसाइल ‘रूद्रम-1’, परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम मिसाइल ‘शौर्य’ सहित कई मिसाइलों का सफल परीक्षण कर चुका है। दरअसल भारत अपने दुष्ट पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्षमता विकसित करने के लिए इन दोनों देशों के साथ सीमा पर जारी तनाव के बीच अपनी ताकत बढ़ाने में जोर-शोर से जुटा है और यही कारण है कि पिछले तीन महीनों से एक के बाद एक भारत द्वारा लगातार क्रूज और बैलेस्टिक मिसाइलों के सफल परीक्षण किए जा रहे हैं। भारत की इन सामरिक तैयारियों को इसी से समझा जा सकता है कि जितने मिसाइल परीक्षण विगत दो-तीन माह के अंदर किए जा चुके हैं, उतने तो इससे पहले पूरे वर्षभर में भी नहीं होते थे। भारत और रूस के संयुक्त प्रयासों से बनाई गई सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ के भी अलग-अलग संस्करणों के परीक्षण किए गए हैं तथा पहले से बनी इन शक्तिशाली मिसाइलों को अब और ज्यादा शक्तिशाली बनाते हुए भारत पूरी दुनिया को अपनी स्वदेशी ताकत का अहसास कराने का सफल प्रयास कर रहा है। ब्रह्मोस अपनी श्रेणी में दुनिया की सबसे तेज परिचालन प्रणाली है और डीआरडीओ द्वारा इस मिसाइल प्रणाली की सीमा को अब मौजूदा 290 किलोमीटर से बढ़ाकर करीब 450 किलोमीटर कर दिया गया है। ब्रह्मोस मिसाइल के नौसेना संस्करण का 18 अक्तूबर को अरब सागर में सफल परीक्षण किया गया था। परीक्षण के दौरान ब्रह्मोस ने 400 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद लक्ष्य पर अचूक प्रहार करने की अपनी क्षमता को बखूबी प्रदर्शित किया था।
24 नवम्बर को अंडमान निकोबार में सतह से सतह पर अचूक निशाना लगाने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ के ‘लैंड अटैक वर्जन’ का सफल परीक्षण किया गया। परीक्षण के दौरान एक अन्य द्वीप पर मौजूद लक्ष्य को ब्रह्मोस द्वारा सफलतापूर्वक नष्ट किया गया। इस परीक्षण की खास बात यह रही कि अब ब्रह्मोस मिसाइल के इस संस्करण की मारक क्षमता 290 से बढ़कर 400 किलोमीटर हो गई है, जिसकी रफ्तार ध्वनि की गति से तीन गुना ज्यादा है। भारत द्वारा चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच ब्रह्मोस के इस नए संस्करण को परीक्षण से पहले ही चीन के साथ लगती सीमा पर तैनात किया जा चुका है। सैन्य सूत्रों के अनुसार भारतीय वायुसेना और नौसेना अगले कुछ दिनों में ब्रह्मोस के कुछ और नए संस्करणों का भी अलग-अलग परीक्षण करेंगी। ब्रह्मोस अब न केवल भारत के तीनों सशस्त्र बलों के लिए एक बेहद शक्तिशाली हथियार बन गई है बल्कि गर्व का विषय यह है कि अभी तक जहां भारत अमेरिका, फ्रांस, रूस इत्यादि दूसरे देशों से मिसाइलें व अन्य सैन्य साजोसामान खरीदता रहा है, वहीं भारत अपनी इस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को दूसरे देशों को निर्यात करने की दिशा में अब तेजी से आगे बढ़ रहा है।
ब्रह्मोस मिसाइल को पनडुब्बियों, विमानों और जमीन से अर्थात् तीनों ही स्थानों से सफलतापूर्वक लांच किया जा सकता है, जो भारतीय वायुसेना को समुद्र अथवा जमीन के किसी भी लक्ष्य पर हर मौसम में सटीक हमला करने के लिए सक्षम बनाती है। बेहद ताकतवर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें भारतीय वायुसेना के 40 से भी अधिक सुखोई लड़ाकू विमानों पर लगाई जा चुकी हैं, जिससे सुखोई लड़ाकू विमान पहले से कई गुना ज्यादा खतरनाक हो गए हैं। हाल ही में सुखोई-30 लड़ाकू विमान ने एक ऑपरेशन के तहत पंजाब के हलवारा एयरबेस से उड़ान भरते हुुए ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल से बंगाल की खाड़ी में अपने टारगेट को निशाना बनाया था। उल्लेखनीय है कि सुखोई विमान की दूर तक पहुंच के कारण ही इस विमान को ‘हिंद महासागर क्षेत्र का शासक’ भी कहा जाता है और ब्रह्मोस से लैस सुखोई तो अब दुश्मनों के लिए बेहद घातक हो गए हैं।
मिसाइलें प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती हैं, क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल। क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों में अंतर यही है कि क्रूज मिसाइल बहुत छोटी होती हैं, जिन पर ले जाने वाले बम का वजन भी ज्यादा नहीं होता और अपने छोटे आकार के कारण उन्हें छोड़े जाने से पहले बहुत आसानी से छिपाया जा सकता है जबकि बैलिस्टिक मिसाइलों का आकार काफी बड़ा होता है और वे काफी भारी वजन के बम ले जाने में सक्षम होती हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों को छिपाया नहीं जा सकता, इसलिए उन्हें छोड़े जाने से पहले दुश्मन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। क्रूज मिसाइल वे मिसाइलें होती हैं, जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरती हैं और रडार की आंख से भी आसानी से बच जाती हैं। बैलिस्टिक मिसाइल उर्ध्वाकार मार्ग से लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं जबकि क्रूज मिसाइल पृथ्वी के समानांतर अपना मार्ग चुनती हैं। छोड़े जाने के बाद बैलिस्टिक मिसाइल के लक्ष्य पर नियंत्रण नहीं रहता जबकि क्रूज मिसाइल का निशाना एकदम सटीक होता है। ब्रह्मोस मिसाइल मध्यम रेंज की रेमजेट सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बियों, युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और जमीन से दागा जा सकता है। यह दस मीटर की ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है और रडार के अलावा किसी भी अन्य मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा देने में भी सक्षम है, इसीलिए इसे मार गिराना लगभग असंभव माना जाता रहा है। इस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी तथा रूस की मस्कवा नदी को मिलाकर रखा गया है और इसका 12 जून 2001 को पहली बार सफल लांच किया गया था। यह मिसाइल दुनिया में किसी भी वायुसेना के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है।
ब्रह्मोस एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है और डीआरडीओ अब रूस के सहयोग से इस मिसाइल की मारक दूरी और भी ज्यादा बढ़ाने के साथ ही इन्हें हाइपरसोनिक गति पर उड़ाने पर भी कार्य कर रहा है। दरअसल सुपरसोनिक मिसाइलों की गति ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना अर्थात् तीन मैक तक होती है और इनके लिए रैमजेट इंजन का प्रयोग किया जाता है जबकि हाइपरसोनिक मिसाइलों की रफ्तार ध्वनि की गति से पांच गुना से भी ज्यादा होती है और इनके लिए स्क्रैमजेट यानी छह मैक स्तर के इंजन का प्रयोग किया जाता है। फिलहाल ब्रह्मोस के जो संस्करण उपलब्ध हैं, वे सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें ही हैं, जो ध्वनि के वेग से करीब तीन गुना अधिक 2.8 मैक गति से अपने लक्ष्य पर जबरदस्त प्रहार करती हैं। यह दुनिया में अपनी तरह की ऐसी एकमात्र क्रूज मिसाइल है, जिसे सुपरसॉनिक स्पीड से दागा जा सकता है। दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने से मात्र बीस किलोमीटर पहले भी अपना रास्ता बदल सकने वाली तकनीक से लैस है और यह केवल दो सैकेंड में चौदह किलोमीटर तक की ऊंचाई हासिल कर सकती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसके दागे जाने के बाद दुश्मन को संभलने का मौका नहीं मिलता और यह पलक झपकते ही दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर देती है।

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