…….लौट के राहुल घर को आये!

rahulइक़बाल हिंदुस्तानी

कांग्रेस को नेता नहीं हिंदू विरोधीछवि बदलने की ज़रूरत है ?

     कांग्रेस के भावी प्रेसीडेंट राहुल गांधी अचानक 56 दिन को गायब होकर अब घर लौट आये हैं। सत्ताधारी भाजपा को भी इसपर कोई एतराज़ नहीं होना चाहिये क्योंकि उसके नेता पहले से ही घर वापसीके अभियान पर काम करते रहे हैं। अब सवाल यह है कि कांग्रेस में अगर सोनिया की जगह राहुल गांधी नेता बन जाते हैं तो देश की सियासत पर क्या असर पड़ने वाला है? 2014 के आम चुनाव के बाद बुरी तरह हारने से आज कांग्रेस को इस बात पर चिंतन करने पर मजबूर होना पड़ा है कि आखि़र ऐसा क्यों हुआ? कांग्रेस के वरिष्ठ और ईमानदार छवि के नेता ए के एंटोनी को चुनाव में हुयी हार की समीक्षा का काम सौंपा गया था।

     एंटोनी ने पार्टी को आगाह किया था कि उसकी छवि वर्ग विशेष का हित साधने वाली बन रही है जबकि ऐसा नहीं है। अभी एंटोनी की इस बात पर ठीक से चर्चा भी नहीं शुरू हुयी थी कि कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता जाफ़र शरीफ़ ने इस बात पर असहमति जता दी कि कांग्रेस की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति के बावजूद मुसलमानों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ जबकि हिंदू उससे छिटक कर भाजपा की तरफ तेज़ी से जाने से नहीं रोका जा सका। इसके बाद गुलाम नबी आज़ाद ने भी यह बात दोहराई कि संघ परिवार के इस मिथ्या प्रचार से हिंदुओं के बड़े वर्ग को यह लगने लगा है कि कांग्रेस हिंदू हित की विरोधी है। इस के बाद इस बड़े और अहम मुद्दे पर बहस के बजाये चर्चा इस बात पर होने लगी कि कांग्रेस के प्रेसीडेंट राहुल गांधी बनाये जायें तो कांग्रेस का भला हो सकता है?

   कुछ कांग्रेसी जीहजूरों का सुझाव था कि राहुल की जगह प्रियंका को नेता बनाने से पार्टी का जादू तेज़ी से चल सकता है। अगर कांग्रेस का आज़ादी के बाद का इतिहास भी देखें तो पंडित नेहरू ने समान नागरिक संहिता की बजाये जब मुस्लिम पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की हिम्मत न करके समानांतर हिंदू कोड बिल संसद में पेश किया तो हिंदुओं को तभी यह लगने लगा कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चल रही है। इसी तरह की राजनीति जनता पार्टी जनता दल वामपंथी सपा बसपा से लेकर सेकुलर समझे जाने वाले क्षेत्रीय दल भी करने लगे। कांग्रेस ने तब ऐसा करने का कारण अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना को ख़त्म करना बताते हुए कश्मीर में भी धारा 370 ख़त्म न कर उसके मुस्लिम बहुल होने से वहां भी तुष्टिकरण की नीति अपनानी शुरू की जिससे जनसंघ को हिंदुओं में यह संदेश देने का अवसर मिला कि कांग्रेस उनसे अधिक मुस्लिमों का हित साध रही है।

     संघ ने हिंदुओं से कहा कि कश्मीर के मुसलमान भारत के साथ रहने की कांग्रेस से कीमत वसूल रहे हैं। 1967 में जब गौरक्षा का मुद्दा उठा तो कांग्रेस ने हिंदू भावनाओं को कोई खास भाव नहीं दिया जिससे उनमें यह धरणा और मज़बूत होने लगी कि कांग्रेस केवल अल्पसंख्यकों और विशेषरूप से मुस्लिमों को खुश रखने में रूचि लेती है। बंग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर जब कांग्रेस ने उनके मुस्लिम अधिक तादाद में होने की वजह से उनको सुप्रीम कोर्ट के बार बार निर्देश के बाद भी देश से बाहर निकालने की बजाये वोट बैंक बनाकर देश की सुरक्षा से समझौता करने की घिनौनी कोशिश मानवीय संवेदना और धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर की तो हिंदुओं में उसकी छवि और भी ख़राब होती चली गयी।

     साम्प्रदायिकता को लेकर कांग्रेस का दोगलापन हिंदुओं को इसलिये भी खलने लगा कि वह हिंदू साम्प्रदायिकता के नाम पर संघ और भाजपा को तो अछूत मानती है जबकि केरल में मुस्लिम लीग और ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस के साथ गठबंधन करके साझा सरकार बनाने में उसे कोई हिचक नहीं थी। शाहबानो मामले से कांग्रेस के सेकुलर ताबूत में अंतिम कील ठुक गयी। सुप्रीम कोर्ट ने एक मानवीय और न्यायसंगत फैसला किया था कि अगर कोई मुस्लिम अपनी पत्नी को बिना किसी वाजिब वजह के तलाक देता है तो उसको अपनी पत्नी को दूसरी शादी करने तक गुज़ारा भत्ता देना होगा। यह एक सामाजिक सुधारवादी निर्णय था लेकिन कांग्रेस मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में संविधान संशोधन कर इस फैसले को पलटने पर उतर आई जिससे हिंदुओं को एक बार फिर यह एहसास हुआ कि मुस्लिम वोटबैंक की वजह से कांग्रेस उनकी बहुसंख्यक होने के बावजूद उपेक्षा कर रही है।

     ऐसे ही हिंदुओं की श्रध््दा से जुड़ा रामजन्म भूमि का मुद्दा कांग्रेस ने जब कानूनी दांवपेंच में उलझाकर हल करना चाहा तो हिंदू समुदाय भाजपा की तरफ मुड़ गया। कम्युनिस्टों के सहयोग से बनी यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक परस्ती की सारी सीमायें तोड़कर जब सच्चर कमैटी की रिपोर्ट लागू करने के लिये मुस्लिमों को धर्म के आधार पर आरक्षण देने सेना में उनकी तादाद पता कराने और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह द्वारा सरकारी संसाधनों पर अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिमों का पहला अधिकार बताया तो हिंदू बड़ी तादाद में कांग्रेस चिढ़ गया लेकिन विडंबना यह थी कि जिस मुस्लिम वोट के लिये कांग्रेस यह सब नाटक कर रही थी वह भी कांग्रेस से खुश नहीं हो सका क्योंकि उसका विकास भी वास्तव में नहीं हो पाया था।

     उनका अपना मज़हबी कट्टरपन और अंधी आस्था भी हालांकि इसके लिये ज़िम्मेदार रही है लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह संविधान विरोधी होने के बाद भी महाराष्ट्र में मुस्लिमों को आरक्षण देने की जल्दबाज़ी की उससे हिंदू फिर उसे अपने खिलाफ मान बैठा। आतंकवाद को लेकर कांग्रेस पर ये आरोप लगते रहे कि वह मुस्लिम आतंकवादियों के प्रति नरम है जबकि हिंदू और भगवा आतंकवाद का झूठा प्रचार करके उदार और सहिष्णु हिंदुओं को बदनाम कर रही है। राहुल गांधी ने तो एक बार यहां तक कह दिया कि देश के लिये सबसे बड़ा ख़तरा केसरिया आतंकवाद है। हालांकि उनकी यह आशंका इसलिये ठीक थी कि अल्पसंख्यक से अधिक बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता ख़तरनाक मानी जाती है क्योंकि वह सत्ता में आकर तानाशाही और फासिज़्म में बदल सकती है।

     साम्प्रदायिक हिंसा विध्यक पास करने के बारे में भी हिंदुओं में यह संदेश गया कि वह बहुसंख्यक होने की वजह से उनको उन दंगों की सज़ा देने का कानून बनाना चाहती है जो वे न करके खुद अल्पसंख्यक शुरू करते हैं। इतना ही नहीं संघ परिवार के घर वापसीअभियान का कांग्रेस ने जब विरोध किया तो हिंदुओं को लगा कि जब मुस्लिम और ईसाई हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा सकते हैं तो केवल घर वापसी का विरोध कांग्रेस अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता की वजह से ही कर रही है। उधर कांग्रेस का यह दांव भी उल्टा पड़ गया कि मुस्लिम, दलित और ईसाई केवल उसके राज मंे ही सुरक्षित हैं अगर भाजपा किसी तरह से किसी दिन सत्ता में आ गयी तो वह देश को हिंदू राष्ट्र बनाकर इन वर्गों के नागरिक अधिकार ख़त्म कर देगी।

     ऐसा कुछ नहीं हुआ और उधर क्षेत्रीय दलों के साथ आप और बसपा जैसी पार्टियां जब विकल्प के तौर सामने आईं तो कांग्रेस के हिंदू भाजपा में और दलित व मुस्लिम क्षेत्रीय दलों में चले गये। आज राहुल गांधी चाहे जो करलें जब तक कांग्रेस यह विश्वास हासिल नहीं कर लेती कि वह भ्रष्टाचार और झूठे वादे करने की बजाये सबका निष्पक्ष और समान वास्तविक विकास करेगी तब तक उसकी केंद्र में सत्ता में वापसी होना कठिन ही नहीं लगभग असंभव है यह अलग बात है कि खुद मोदी सरकार ही भूमि अधिग्रहण विध्ेायक जैसे किसान विरोधी कानून बनाने पर आमादा रहती है तो कांग्रेस बिना नीति बदले ही सत्ता में मोदी की तरह विकल्पहीनता की वजह से लौट सकती है।

मुझे क्या ग़रज़ पड़ी है तेरी हस्ती मिटाने की,

तेरे आमाल काफी हैं तेरी बरबादियों के लिये।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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