बुद्ध पूर्णिमा एवं भगवान बुद्ध का जीवन परिचय

0
198

बुद्ध पूर्णिमा को बैशाख पूर्णिमा भी कहते है क्योकि यह त्यौहार  हिंदी माह बैशाख की पूर्णिमा को मनाया जाता है | यह गौतम बुद्ध जी की जयंती भी है  और उनका निर्माण दिवस  भी है | इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की भी प्राप्ति हुई थी | आज बौद्ध धर्म को मानने वालो की संख्या लगभग 50 करोड़ से अधिक है जिसे सारे विश्व में मनाया जाता है ,विशेषकर चीन ,जापान  ,नेपाल, तिब्बत और भारत | हिन्दू धर्म के मतानुसार भगवान् बुद्ध को विष्णु भगवान् के नवे अवतार भी  माने जाते है | अत: यह हिन्दुओं के लिये भी यह दिन पवित्र माना जाता है |       गौतम बुद्ध जी का जन्म नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में 563 ई.पू.में हुआ था। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था | इनकी माता का नाम महामाया और पिता का नाम शुद्धोधन  था | इनके जन्म के सात दिन के बाद इनकी माता का देहांत हो गया था ,इसलिए सिद्धार्थ का लालन-पोषण इनकी माता प्रजापति गौतमी ने किया था |

16 वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ का विवाह शाक्य कुल की कन्या यशोधरा से हुआ । यशोधरा काबौद्ध ग्रंथोंमें अन्य नाम बिम्ब, गोपा, भद्कच्छना भी मिलता है। सिद्धार्थ से यशोधरा को एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल था|। सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया । इस त्याग को बौद्ध धर्म में महाभि-निष्क्रमण कहा गया है।

गृहत्याग के बाद सिद्धार्थ अनोमा नदी के तट पर अपने सिर को मुङवा कर भिक्षुओं का काषाय वस्त्र धारण किया। सात वर्ष तक सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में इधर उधर भटकते रहे सर्वप्रथम वैशाली के समीप अलार क़लाम (सांख्य दर्शन के आचार्य) नामक संयासी के आश्रम में आये। इसके बाद उन्होंने उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किया,जहाँ उन्हें कौडिन्य सहित 5 साधक मिले।

6 वर्ष तक अथक प्रयास के बाद तथा घोर तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात पीपल वृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ।  ज्ञान प्राप्ति के बाद ही सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुये |

उरुवेला से बुद्ध सारनाथ (ऋषि पत्तनम एवं मृगदाव) आये यहाँ पर उन्होंने पाँच ब्राह्मण संन्यासियों को अपना प्रथम उपदेश दिया, जिसे बौद्ध ग्रन्थों में धर्म – चक्र-प्रवर्तन नाम से जाना जाता है। बौद्ध संघ में प्रवेश सर्वप्रथम यहीं से प्रारंभ हुआ।

महात्मा बुद्ध ने तपस्या एवं काल्लिक नामक दो शूद्रोंको बौद्ध धर्म का सर्वप्रथम अनुयायी बनाया गया | बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश श्रावस्तीमें दिये । उन्होंने मगधको अपना प्रचार केन्द्र बनाया।बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासकों में बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन थे। बुद्ध के प्रधान शिष्य उपालि व आनंद थे। सारनाथ में बौद्धसंघ की स्थापना हुई।

महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पङाव में हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा पहुँचे। इसे बौद्ध परंपरा में महापरिनिर्वाण के नाम से भी जाता है।

मृत्यु से पूर्व कुशीनारा के परिव्राजक सुभच्छ को उन्होंने अपना अंतिम उपदेश दिया था |महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया।

Previous articleपैड वुमेन माया विश्वकर्मा महिलाओं के लिए मिसाल
Next articleक्योंकि हर बच्चा क़ुदरत की अनूठी कृति है!
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,678 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress