आजादी के बाद भारत शुरू से ही एक कृषि प्रधान देश के रूप विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा है | तभी तो शुरू से ही भारतीय अर्थव्यवस्था हमेशा कृषि पर केंद्रित रही है | आज भी भारत की कुल जनसंख्या की72.2 प्रतिशत आबादी गाँवो में निवास करती है | इसी कारण से आजादी के बाद से ही किसानों का महत्व भारतीय राजनीति में हमेशा रहा है | भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व० लाल बहादुर शास्त्री जी के द्वारा दिया गया नारा – जय जवान ,जय किसान ,इस बात का परिचायक है कि भारतीय राजनीति शुरू से ही किसानों के इर्दगिर्द घुमती आ रही हैं | अन्नदाता के रूप में बिख्यात किसान जब बदहाली के कारण आत्म –हत्या कर रहे है तों विभिन्न पार्टियों के द्वारा राजनितिक रोटी सेकना लाज़मी हैं |इस समय भूमि अधिग्रहण बिल 2014 इस राजनीतिक स्वार्थ रूपी आग में घी डालने के लिए काफी है | इसी भूमि अधिग्रहण बिल 2014 रूपी घी को ध्यान में रख कर ही कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी इस समय किसानों के सबसे बड़े हितैषी के रूप में अपने आप को प्रदर्शित कर रही हैं | शायद कांग्रेस को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ये किसान ही उसकी खोई हुई जमीन को वापस दिला सकते है | यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस किसानों को अपनी डूबती हुई नैया का खेवनहार मान रही है ,इससे पहले भी लोकसभा चुनाव 2009 में भी कांग्रेस इन किसानों पर अपना दाव लगा चुकी है और कामयाब भी हुई है | अब जब बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है तो इस समय भी कांग्रेस को इन किसानों में अपना भविष्य नजर आ रहा हैं | अगर इस पूरे घटनाक्रम पर ध्यान दिया जाय तो कांग्रेस की रजनीतिक मंशा उसकी बेचैनी कों साफ प्रदर्शित कर रही है|
यह पहला ऐसा मौका नहीं है जब कांग्रेस अपने आप को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी के रूप में प्रदर्शित कर रही है | इससे पहले भी चुनावों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्व० इंदिरा गाँधी ने भी किसानों को अपनी तरफ आकर्षित करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ा था तभी तो उनके द्वारा दिया गया नारा आज भी लोगों कों याद है | नारा था – वों कहते है इंदिरा हटाओं , मै कहती हूं गरीबी मिटाओ | यह एक ऐसा नारा था जो रातोंरात इंदिरा जी को गरीबोँ व किसानों का मसीहा बना दिया | इसके बाद कांग्रेस फिर एक बार किसानों की पसंदीदा पार्टी के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई |यह दौर यही नहीं थमा जब एनडीए सरकार केंद्र में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में अपना कार्यकाल पूरा कर रही थी तथा अपने कार्यों के कारण सुर्खियों में थी तभी महाराष्ट्र में हुई बेमौसम बरसात ने कांग्रेस के लिए संजीवनी का कार्य किया |उस समय महाराष्ट्र में किसानों को काफी परेशानीयों का सामना करना पड़ा जिसे कांग्रेस ने अच्छी तरह भुनाया ,हालाँकि महाराष्ट्र में कांग्रेस की ही सरकार थी | इस बारिश ने एनडीए सरकार के सामने दो चुनौतियाँ खड़ी कर दी |पहली चुनौती थी किसानों की सहायता करना तो दूसरी बर्बाद प्याज की फसल के कारण देश में प्याज के बढ़ते भाव को नियंत्रित करना |इस घटना के पश्चात लाख प्रयास के बाद भी कांग्रेस को रजनीतिक लाभ लेने से एनडीए सरकार नहीं रोक पाई |इसका परिणाम लोकसभा चुनाव 2004 में देखने को मिला और कांग्रेस को फिर खोई हुई सत्ता वापस मिल गई | कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इसी फ़ार्मूले का प्रयोग लोकसभा चुनाव 2009 में किया और चुनाव से ठीक पहले भारतीय किसानों को कर्ज़माफी योजना के रूप में नायाब तोहफा दिया | इस नायाब तोहफ़े ने ऐसा धमाल मचाया कि कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता प्राप्त करने में कामयाब हुई |
इन सब के बावजूद आज भी भारतीय किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है |भारतीय किसान आज भी वहीं है जहा पहले थे |यह स्थिति केवल कांग्रेस की ही नहीं है , हर विपक्षी दल आज मोदी मैजिक को रोकने के लिए भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर किसानों के साथ है |केवल रजनीतिक स्वार्थ को ध्यान में रखकर वोटो के लिये बयान बाजी करने वाले इन नेताओ को सोचना चाहिए कि लगातार किसानो की दिहाड़ी घटती जा रही है | एक रिपोर्ट के मुताबिक 2008 – 09 में किसानो की दिहाड़ी 267 रूपये थी जो घट कर 2013 – 14 में 254 रुपये पर आ गई है | यह रिपोर्ट भारतीय किसानो की वास्तविकता को बयां करने के लिये काफी है | इस समय अगर फसल उत्पादन की कुल लागत को देखा जाय तो इसमे काफी बढ़ोतरी हुई है और खेती एक महंगा उद्योग का रूप ले रही है लेकिन छोटे किसानो के लिये यह काफी मुश्किल का दौर है | यह राजनीति पिछले 67 सालों से किसानो को कंगाल बनाने पर तुली है | इसी के कारण किसानो की दिहाड़ी में लगातार गिरावट दर्ज किया जा रहा है | यह बहुत बड़ी बिडम्बना है की इन राजनेताओं को कभी यह नहीं याद आता कि यूरिया व उर्वरक के दाम को कम करने के लिये हंगामा करे |इसी भारतीय राजनीति के कारण ही आज 17 वर्षो में तीन लाख किसानो ने आत्महत्या की ,यह दौर यही नहीं थमा लगभग 42 फीसद किसान अभी भी विकल्प उपलब्ध होने पर खेती छोड़ने के लिये तैयार है | किसानो के लिए राहत की एक मात्र बात किसानो को दिया जाने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी है | यह भी गौर करने वाली बात है कि पिछले तीन वर्षो में गेहूं व चावल के समर्थन मूल्य में केवल 50 रुपए प्रति क्विंटल की बृद्धि हुई है लेकिन उर्वरको के दामो में लगभग 40 फीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई | इन सब बातो को ध्यान में रख कर कांग्रेस के साथ – साथ अन्य विपक्षी दलों को भी विचार करना चाहिए कि किसानों कों सुदृढ़ बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण बिल 2014 के अतिरिक्त कई ऐसे बिन्दू है जिनमे सुधार की जरुरत है |
किसानों की इन सब समस्यायों के बावजूद सबसे ज्यादा दिनों तक स्वतंत्र भारत के राज सुख का उपभोग करने वाली कांग्रेस पार्टी फिर एक बार किसानों पर अपना रजनीतिक दाव लगाने को तैयार हैं | इस क्रम में इस समय कांग्रेस अध्यक्षा विभिन्न राज्यों का ताबड़तोड़ दौरा कर रही है | इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इस मुद्दे को लेकर भाजपा भी अपने आप कों कुछ असहज महसूस कर रही है |तभी तो पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने खुद आगे आकर रेडियों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम मन की बात के माध्यम से किसानों से रूबरू हुए |अब तो भाजपा इस मुद्दे पर विपक्ष से दो – दो हाथ करने को तैयार नजर आ रही है तभी तो पिछले दिनों समपन्न भाजपा कार्यकारणी की बैठक में यह पास किया गया कि भाजपा इस बिल को लेकर हर परिणाम भुगतने को तैयार है |कांग्रेस भी इस मुद्दे कों लेकर काफी आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है और 19 अप्रैल को दिल्ली में एक जन आन्दोलन करने की घोषणा कर चुकी हैं | हालाँकि आज भी उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल की घटना कांग्रेस को भूलना नहीं चाहिए |कांग्रेस के लाख विरोध व धरना – प्रदर्शन के बाद भी हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2012 में मुह की खानी पड़ी थी | कांग्रेस के इस प्रयास का परिणाम तो आने वाला समय ही बताएगा कि इसका असर भारतीय राजनीति पर कितना पड़ेगा |
–नीतेश राय ( स्वतंत्र टिप्पणीकार)