बच्चों का पन्ना किंतु पिताजी June 29, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 4 Comments on किंतु पिताजी लालता प्रसाद जी ने कार रुकते ही गेट का दरवाजा खोला और अपना ब्रीफ केस लेकर बाहर निकल् आये| रोज के विपरीत आज उनके घर के ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला था और बाहर तीन चार जोड़ी फटे पुराने चप्पल जूते पड़े थे|उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि ये गंदे चप्पल जूते किसके हो […] Read more » किंतु पिताजी
बच्चों का पन्ना राम वापिस आ गया है June 28, 2013 / June 28, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on राम वापिस आ गया है ” मालूम है ,राम वापिस आ गया है?” “क्या? कब आया है? उसके मां बाप, क्या वह भी आ गये हैं? क्या वह भी जीवित हैं?” “नहीं, केवल राम ही वापिस आया है, मां बाप तो चट्टानों में दब गये या नदी के तेज प्रवाह में बह गये, अभी तक पता नहीं है|” सारे गांव […] Read more » राम वापिस आ गया है
बच्चों का पन्ना राखी का त्यौहार June 19, 2013 / June 20, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment राखियों से गुलजार बजार, आ गया राखी का त्यौहार| मिठाई सजी दुकानों में शॊरगुल गूंजे कानों में रेशमी धागों की भरमार राखियों के ढेरों अंबार कहीं पर बेसन की बरफी कहीं पर काजू की कतली कहीं पर रसगुल्लॆ झक झक कहीं पर लड्डू हुये शुमार| आ गया राखी का त्यौहार| कमलिया रखी लाई है थाल […] Read more » राखी का त्यौहार
बच्चों का पन्ना आम की चटनी June 16, 2013 / June 16, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आवाज़ आ रही खटर पटर, पिस रहे आम सिलबट्टे पर| अमियों के टुकड़े टुकड़े कर , मां ने सिल के ऊपर डाले| धनियां मिरची भी कूद पड़े, इस घोर युद्ध में, मतवाले| फिर हरे पुदेने के पत्ते, भी मां ने रण में झोंक दिये| […] Read more » आम की चटनी
बच्चों का पन्ना दिन और रात June 16, 2013 / June 16, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment रोज रोज हो जाता है दिन, रोज रोज हो जाती रात| बोलो बापू क्या है कारण, बोलो बापू क्या है बात| बापू बोले बात जरासी, बात ठीक से सोचा कर| धरती माता रोज लगाती, सूरज बाबा के चक्कर| पेट सामने जब धरती का, सूरज बाबा के होता| उसी समय धरती के ऊपर, सोनॆ जैसा दिन […] Read more » दिन और रात
बच्चों का पन्ना आम June 14, 2013 / June 14, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment दोपहर में जब मम्मी सोई, दादी करती थीं आराम| लगा जोर से टेर लगाने, ठेले वाला ले लो आम| उठे दौड़कर चुन्नू आये, छोड़े सभी हाथ के काम| मुन्नू भी चिल्लाकर बोले, ले लो मम्मी ले लो आम| ठेले वाला फिर चिल्लाया, बड़े रसीले मीठे आम| एक बार बस खाकर देखो, मिट जायेंगे कष्ट तमाम| […] Read more » poem for kids आम
जन-जागरण बच्चों का पन्ना सिकाडा [Cicada] June 3, 2013 / June 3, 2013 by बीनू भटनागर | 2 Comments on सिकाडा [Cicada] एक कीड़ा जो आमतौर पर सत्रह साल बाद ज़मीन से बाहर आता है यह कीड़ा संयुक्त राज्य अमरीका के पूर्वी तट के आसपास के इलाकों मे सत्रह साल बाद ज़मीन के बाहर आता है।इस साल इसका आना शुरू हो चुका है वाशिंगटन के आस पास के इलाकों मे ये मई के अंत मे आ चुका […] Read more » सिकाडा
बच्चों का पन्ना बस्ता May 25, 2013 / May 25, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बस्ता कित्तो भारी दद्दा, बस्ता कित्तो भारी| लाद लाद कें कंधा थके, भई बस्ता की बीमारी| बस्ता कित्तो भारी दद्दा, बस्ता कित्तो भारी| इत्ती सारीं ढेर किताबें, लाद लाद ले जायें| अपनो दु:ख हमईं जानत हैं, का तुमखों समझायें| पे पढ़बो मज़बूरी अपनी, बस्ता है लाचारी| बस्ता कित्तो भारी दद्दा, बस्ता कित्तो भारी| बब्बा के […] Read more » बस्ता
बच्चों का पन्ना बेसन की मिठाई May 25, 2013 / May 25, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बेसन की मिठाई है आई रे, मोरे मम्मा ने भेजी| मम्मा ने भेजी और माईं ने भेजी| बेसन की मिठाई है आई रे, मोरे मम्मा ने भेजी| देखो मिठाई है कितनी गुरीरी| घी की बनी है और रंग की है पीरी| माईं ने ममता मिलाई रे, मोरे मम्मा ने भेजी| काजू डरे हैं और किसमिस […] Read more » बेसन की मिठाई
बच्चों का पन्ना सूरज ऊंगत से उठबो May 25, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सूरज निकर परो पूरब सें, परे परे तुम अब लौ सो रये| कुनर मुनर अब काये करत हो, काये नें उठकें ठाँड़ॆ हो रये| ढोर ढील दये हैं दद्दा ने, और चराबे तुमखों जाने| चना चबेना गुड़ के संगे, बांध दओ है बौ अम्मा ने| अब तो उठ जा मोरे पुतरा, कक्का बेजा गुस्सा हो […] Read more » सूरज ऊंगत से उठबो
बच्चों का पन्ना धन्य धरा बुंदेली May 23, 2013 / May 23, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on धन्य धरा बुंदेली धन्य धरा बुंदेली है जा, धन्य धरा बुंदेली| रामलला कौ नगर ओरछा, कित्तो लोक लुवावन| कलकल,हरहर बहत बेतवा, कित्ती नौनी पावन| बीच पहारन में इतरा रई, जैसें दुल्हन नवेली| धन्य धरा बुंदेली है जा, धन्य धरा बुंदेली| वीर नारियां ई धरती की, रईं दुस्मन पे भारी| जान लगाकें […] Read more » धन्य धरा बुंदेली
बच्चों का पन्ना मधु मक्खी May 18, 2013 / May 18, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on मधु मक्खी हे मधु मक्खी कुछ तो बोलो, कला कहाँ यह तुमने सीखी| कैसा जादू कर देती हो, मधु बन जाती मीठी मीठी| बूंद बूंद मधु की आशा में, तुम मीलों उड़ती जाती हो| अपनी सूंड़ गड़ा फूलों पर, मधुरिम मधुर खींच लाती हो| फिर छत्तों में वह मीठा रस, बूंद बूंद एकत्रित करना| किसी वीर सैनिक […] Read more »