धर्म-अध्यात्म मैं और मेरा आचार्य दयानन्द August 20, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment देश व संसार में अनेक मत-मतान्तर हैं फिर हमें उनमें से ही किसी एक मत को चुन कर उसका अनुयायी बन जाना चाहिये था। यह वाक्य कहने व सुनने में तो अच्छा लगता है परन्तु यह एक प्रकार से सार्थक न होकर निरर्थक है। हमें व प्रत्येक मनुष्य को यह ज्ञान मिलना आवश्यक […] Read more » मेरा आचार्य दयानन्द
धर्म-अध्यात्म वर्तमान शिक्षा में समग्र वैदिक विचारधारा को सम्मिलित करना सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास और देशोन्नति के लिए आवश्यक August 20, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment सभी नागरिकों, नेताओं व सुधी जनों का कर्तव्य हैं कि वह देश की अधिक से अधिक उन्नति पर विचार करें और अच्छे-अच्छे सुझाव समाज व देश को दें। देश में जो लोग व शक्तियां देश व सर्वहितकारी विचारों व योजनाओं का किसी भी कारण से विरोध करें, देश की शिक्षित प्रजा को मत-सम्प्रदाय-पन्थ आदि […] Read more »
धर्म-अध्यात्म विविधा दक्षिण भारत के संत (15) पेरियलवार विष्णुचित्त August 17, 2015 by बी एन गोयल | 2 Comments on दक्षिण भारत के संत (15) पेरियलवार विष्णुचित्त बी एन गोयल हे ईश्वर हमारी रक्षा करो। हमारे परिवार के सभी सदस्य, हमारे सभी पूर्वज और हमारी आगामी पीढ़ियाँ, सब आप के सेवक हैं। आपके भक्त हैं, आप के अनुचर हैं, आप ही हमारी रक्षा करें, आप ही हम पर अपनी कृपा करें।…………… पल्लाण्डु तिरुनलवेली ज़िले के श्री विल्लीपुत्तुर नमक गाँव में मुकुंद […] Read more » दक्षिण भारत के संत पेरियलवार विष्णुचित्त
धर्म-अध्यात्म धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय न करना August 17, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment अंधविश्वास को किसने जन्म दिया है? विचार करने पर ज्ञात होता है कि अविद्या और अज्ञान से अन्धविश्वास उत्पन्न होता है। अन्धविश्वास दूर करने का उपाय क्या है, इस पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि ज्ञान व विद्या से अन्धविश्वास दूर होते हैं। ज्ञान व अविद्या कहां मिलती है? इसका उत्तर है […] Read more » धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय
धर्म-अध्यात्म क्या अज्ञान, अन्धविश्वास, अन्धी श्रद्धा व आस्था का खण्डन अनुचित है? August 16, 2015 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on क्या अज्ञान, अन्धविश्वास, अन्धी श्रद्धा व आस्था का खण्डन अनुचित है? सभी मनुष्यों का धर्म एक है या अनेक? वर्तमान में सभी समय में प्रचलित अनेक मत व धर्मों में लोग किसी एक को मानते हैं। प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें धर्म व मत को जानना होगा। यथार्थ धर्म को जान लेने के बाद स्वयं उत्तर मिल जायेगा। धर्म मनुष्य जीवन में श्रेष्ठ […] Read more » अन्धविश्वास अन्धी श्रद्धा व आस्था का खण्डन अनुचित है?
धर्म-अध्यात्म ईश्वर की कृपा व वेदाध्ययन से ही नास्तिकता की समाप्ति सम्भव August 15, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment ‘खुदा के बन्दो को देखकर खुदा से मुनकिर हुई है दुनिया, कि जिसके ऐसे बन्दे हैं वो कोई अच्छा खुदा नहीं।।‘ आजकल संसार में सभी मतों के शिक्षित व धनिक मनुष्यों का आचरण प्रायः श्रेष्ठ मानवीय गुणों के विपरीत पाया जाता है जो मनुष्यों को नास्तिक बनाने में सहायक होता। इसका एक कारण ऐसे […] Read more » नास्तिकता की समाप्ति
धर्म-अध्यात्म विविधा क्या फलित हो पाया है आजादी का सपना? August 15, 2015 / August 15, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग पन्द्रह अगस्त हमारे राष्ट्र का गौरवशाली दिन है, इसी दिन स्वतंत्रता के बुनियादी पत्थर पर नव-निर्माण का सुनहला भविष्य लिखा गया था। इस लिखावट का हार्द था कि हमारा भारत एक ऐसा राष्ट्र होगा जहां न शोषक होगा, न कोई शोषित, न मालिक होगा, न कोई मजदूर, न अमीर होगा, न कोई गरीब। […] Read more » आजादी का सपना?
धर्म-अध्यात्म कलयुग के यह स्वयंभू भगवान August 14, 2015 by निर्मल रानी | 2 Comments on कलयुग के यह स्वयंभू भगवान निर्मल रानी भारतवर्ष को पूरे विश्व में विभिन्न प्रकार के धर्मों,आस्थाओं,नाना प्रकार के विश्वास तथा अध्यात्मवाद के लिए जाना जाता है। इस देश की धरती ने जितने महान संत,फ़क़ीर तथा अध्यात्मिक गुरू पैदा किए उतने संभवत: किसी अन्य देश में नहीं हुए। यही वजह है कि भारतवर्ष को राम-रहीम,बुद्ध और नानक की धरती के रूप […] Read more » कलयुग के यह स्वयंभू भगवान
धर्म-अध्यात्म मनुष्य का परम कर्तव्य ईश्वर के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान व उसकी उपासना August 14, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment प्रत्येक व्यक्ति के मन में इस सृष्टि को देखकर इसके बनाने वाले कर्त्ता का ध्यान आता है परन्तु वह ज्ञान की अल्पता में निर्णय नहीं कर पाता कि इसका बनाने वाला वस्तुतः कौन है? सृष्टि को देखकर शिक्षित व विवेकवान मनुष्य की बुद्धि कहती है कि वह एक महान, चेतन, सर्वव्यापक, निराकार, सूक्ष्मातिसूक्ष्म, अदृश्य, […] Read more » ईश्वर के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान मनुष्य का परम कर्तव्य
धर्म-अध्यात्म श्रद्धा की हो काँवड़ August 12, 2015 by विमलेश बंसल 'आर्या' | 1 Comment on श्रद्धा की हो काँवड़ विमलेश बंसल क्या आप जानते हो श्रावण मास में काँवड़ का क्या महत्व है? यह कांवड़ गंगोत्तरी से जल लाकर महादेव पर चढ़ाई जाती है आइये जानें – वर्षा ऋतु के 4 महीने चातुर्मास्य कहलाते हैं श्रावण मास मैं घनघोर बारिश के चलते आवाजाही ठप्प रहती है चारों और तालाब और गड्ढे पानी से […] Read more » काँवड़
धर्म-अध्यात्म मोक्ष मार्ग का प्रथम सोपान है स्वाध्याय August 7, 2015 / August 7, 2015 by कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री | 1 Comment on मोक्ष मार्ग का प्रथम सोपान है स्वाध्याय कृष्ण कान्त वैदिक शास्त्री सु$आङ् अधिपूर्वक इड्-अध्ययने धातु से स्वाध्याय शब्द बनता है। स्वाध्याय शब्द में सु, आ और अधि तीन उपसर्ग हैं। ‘सु’ का अर्थ है उत्तम रीति से ‘आ’ का अर्थ है आद्योपान्त और ‘अधि’ का अर्थ है अधिकृत रूप से। किसी ग्रन्थ का आरम्भ से अन्त तक अधिकारपूर्वक सर्वतः प्रवेश स्वाध्याय कहलाता […] Read more »
धर्म-अध्यात्म अविद्या दूर करने का एकमात्र उपाय वैदिक साहित्य का स्वाध्याय August 7, 2015 by मनमोहन आर्य | 3 Comments on अविद्या दूर करने का एकमात्र उपाय वैदिक साहित्य का स्वाध्याय मनुष्य की आत्मा के अल्पज्ञ होने के कारण इसके साथ अविद्या अनादि काल से जुड़ी हुई है। इसका एक कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, राग-द्वेष व जन्म-मरणधर्मा आदि होना भी है। ईश्वर सर्वव्यापक, निराकार, सर्वान्तर्यामी एवं सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का तात्पर्य है कि वह जानने योग्य सब कुछ जानता है। वह जीवों के कर्मों की […] Read more » अविद्या वैदिक साहित्य का स्वाध्याय