धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द ने देश व धर्म के लिए माता-पिता-बन्धु-गृह व अपने सभी सुखों का स्वेच्छा से त्याग किया September 3, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on महर्षि दयानन्द ने देश व धर्म के लिए माता-पिता-बन्धु-गृह व अपने सभी सुखों का स्वेच्छा से त्याग किया -विश्व इतिहास की अन्यतम् घटना- भारत संसार में महापुरूषों को उत्पन्न करने वाली भूमि रहा है। यहां प्राचीन काल में ही अनेक ऋषि मुनि उत्पन्न हुए जिन्होंने वेदानुसार आदर्श जीवन व्यतीत किया। इन ऋषियों में से कुछ के नाम ही विदित हैं। अनेक ऋषि मुनियों ने महान कार्यों को किया परन्तु उन्होंने न तो अपना […] Read more » Featured महर्षि दयानन्द
धर्म-अध्यात्म अंधविश्वासों का खण्डन समाज की उन्नति के लिए परम आवश्यक August 31, 2015 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on अंधविश्वासों का खण्डन समाज की उन्नति के लिए परम आवश्यक जिस प्रकार से मनुष्य शरीर में कुपथ्य के कारण समय-समय पर रोगादि हो जाया करते हैं, इसी प्रकार समाज में भी ज्ञान प्राप्ति की समुचित व्यवस्था न होने के कारण सामाजिक रोग मुख्यतः अन्धविश्वास, अपसंस्कृति एवं किंकर्तव्यविमूढ़ता आदि हो जाया करते हैं। अज्ञान, असत्य व अन्धविश्वास का पर्याय है। जहां अज्ञान होगा वहां अन्धविश्वास वर्षा […] Read more » Featured अंधविश्वासों का खण्डन
धर्म-अध्यात्म सच्चे तीर्थ माता-पिता-आचार्य व आप्त विद्वानों के सदुपदेश आदि हैं। August 31, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment आजकल कुछ स्थानों अथवा नदी व सरोवरों को तीर्थ कहा जाता है। किसी से कोई पूछे कि इन तीर्थ स्थानों से इतर देश के अन्य सभी स्थान सच्चे तीर्थ क्यों नहीं है, तो इसका उत्तर शायद कोई नहीं दे सकेगा। तीर्थ शब्द संस्कृत भाषा का है और इसका प्रयोग वेद व वैदिक साहित्य […] Read more » Featured
धर्म-अध्यात्म देश की परतन्त्रता में मूर्तिपूजा की भूमिका August 27, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on देश की परतन्त्रता में मूर्तिपूजा की भूमिका ‘देश की परतन्त्रता में मूर्तिपूजा की भूमिका पर महर्षि दयानन्द का सन् 1874 में दिया एक हृदयग्राही ऐतिहासिक उपदेश’ हमने विगत तीन लेखों में महर्षि दयानन्द के सन् 1874 में लिखित आदिम सत्यार्थ प्रकाश से हमारे देश आर्यावर्त्त में महाभारत काल के बाद अज्ञान व अन्धविश्वासों में वृद्धि, मूर्तिपूजा के प्रचलन, मन्दिरों के विध्वंश व […] Read more » देश की परतन्त्रता में मूर्तिपूजा की भूमिका
धर्म-अध्यात्म दक्षिण भारत के संत (16) शैवाचार्य नयनार August 26, 2015 by बी एन गोयल | Leave a Comment बी एन गोयल करचरणकृतं, वाक्कायजं कर्मजं वा, श्रवण नयनजं, मानसमवापराधं| विहितमविहितं सर्वमेततक्षमस्व जय जय करुणाब्धे, श्री महादेव शम्भो|| हाथों से, पैरों से, वाणी से अथवा कर्मों से, कानों से, अथवा आँखों से, अथवा मन से, जाने अथवा अनजाने में यदि कभी कोई कहीं अपराध हो गया हो तो हे करुणा के सागर […] Read more »
धर्म-अध्यात्म मूर्तिपूजा के इतिहास पर महर्षि दयानन्द का उपदेश August 24, 2015 / August 24, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment महर्षि दयानन्द के इतिहास विषयक एक उपदेश जिसमें उन्होंने महाभारत काल व उसके बाद देश में धर्म व अध्ययन अध्यापन पर प्रकाश डाला है, को हमनें अपने पूर्व लेख में प्रस्तुत किया था। उसी क्रम में उसके बाद देश में वेदाध्ययन को छोड़कर मूर्तिपूजा के प्रचलन विषयक घटी घटनाओं के इतिहास पर उनके उपदेश […] Read more »
धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द का भारत के यथार्थ इतिहास पर महत्वपूर्ण उपदेश August 22, 2015 / August 22, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य महर्षि दयानन्द (1825-1883) का सारा जीवन ईश्वर की खोज, मृत्यु पर विजय, योग, अध्ययन-अध्यापन, उपदेश, वेद-धर्म प्रचार, शास्त्रार्थ, समाज सुधार व अनुमानतः सन् 1857 के देश की आजादी के लिए संग्राम में गुप्त रूप से कार्य करने में व्यतीत हुआ था। महर्षि दयानन्द बाल ब्रह्मचारी थे। वह जन्म से ही […] Read more »
धर्म-अध्यात्म मैं और मेरा धर्म August 21, 2015 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on मैं और मेरा धर्म मैं कौन हूं और मेरा धर्म क्या है? इस विषय पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि मैं एक मुनष्य हूं और मनुष्यता ही मेरा धर्म है। मनुष्य और मनुष्यता पर विचार करें तो हम, मैं कौन हूं व मेरे धर्म मनुष्यता का परिचय जान सकते हैं। इसी पर आगे विचार करते हैं। […] Read more »
धर्म-अध्यात्म मैं और मेरा आचार्य दयानन्द August 20, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment देश व संसार में अनेक मत-मतान्तर हैं फिर हमें उनमें से ही किसी एक मत को चुन कर उसका अनुयायी बन जाना चाहिये था। यह वाक्य कहने व सुनने में तो अच्छा लगता है परन्तु यह एक प्रकार से सार्थक न होकर निरर्थक है। हमें व प्रत्येक मनुष्य को यह ज्ञान मिलना आवश्यक […] Read more » मेरा आचार्य दयानन्द
धर्म-अध्यात्म वर्तमान शिक्षा में समग्र वैदिक विचारधारा को सम्मिलित करना सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास और देशोन्नति के लिए आवश्यक August 20, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment सभी नागरिकों, नेताओं व सुधी जनों का कर्तव्य हैं कि वह देश की अधिक से अधिक उन्नति पर विचार करें और अच्छे-अच्छे सुझाव समाज व देश को दें। देश में जो लोग व शक्तियां देश व सर्वहितकारी विचारों व योजनाओं का किसी भी कारण से विरोध करें, देश की शिक्षित प्रजा को मत-सम्प्रदाय-पन्थ आदि […] Read more »
धर्म-अध्यात्म विविधा दक्षिण भारत के संत (15) पेरियलवार विष्णुचित्त August 17, 2015 by बी एन गोयल | 2 Comments on दक्षिण भारत के संत (15) पेरियलवार विष्णुचित्त बी एन गोयल हे ईश्वर हमारी रक्षा करो। हमारे परिवार के सभी सदस्य, हमारे सभी पूर्वज और हमारी आगामी पीढ़ियाँ, सब आप के सेवक हैं। आपके भक्त हैं, आप के अनुचर हैं, आप ही हमारी रक्षा करें, आप ही हम पर अपनी कृपा करें।…………… पल्लाण्डु तिरुनलवेली ज़िले के श्री विल्लीपुत्तुर नमक गाँव में मुकुंद […] Read more » दक्षिण भारत के संत पेरियलवार विष्णुचित्त
धर्म-अध्यात्म धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय न करना August 17, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment अंधविश्वास को किसने जन्म दिया है? विचार करने पर ज्ञात होता है कि अविद्या और अज्ञान से अन्धविश्वास उत्पन्न होता है। अन्धविश्वास दूर करने का उपाय क्या है, इस पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि ज्ञान व विद्या से अन्धविश्वास दूर होते हैं। ज्ञान व अविद्या कहां मिलती है? इसका उत्तर है […] Read more » धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय