कविता मेरे ख्यालो में आते हो तुम July 17, 2018 / July 17, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मेरे ख्यालो में आते हो तुम मेरे ख्वाबो में आते हो तुम वो कौन सी जगह है नहीं जहा आते नहीं हो तुम मेरे दिल में बसे हो तुम मेरे प्राणों में बसे हो तुम वो कौन सा अंग है नहीं जहा बसे नहीं हो तुम हर बात है जहन में उनकी हर रात है […] Read more » न दिन कटता है न रात कटती पता नहीं वे कौन से राज है मेरे ख्यालो में आते हो तुम
कविता जो पल तेरे साथ बिताये,वे पल आज भी याद है July 16, 2018 / July 16, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी जो पल तेरे साथ बिताये,वे पल आज भी याद है बसर कर लूंगी जिन्दगी अब कोई नहीं फरियाद है भले ही तुम मेरे पास नहीं,वो पल यादो के तो मेरे पास है अब कोई गिला शिकवा न होगा अब कोई नहीं फरियाद है धीरे से आना,बदन पर हाथ फिराना सब कुछ मुझे […] Read more » आंखों आज भी मुझे सब कुछ याद है जो पल तेरे साथ बिताये तुम्हारे हाथो से खाना खिलाना वे पल आज भी याद है शहर
कविता सावन का महीना है,फिर भी मै प्यासी July 14, 2018 / July 14, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी सावन का महीना है फिर भी मै प्यासी हूँ मिलने की चाहत है,फिर भी मै उदासी हूँ नन्नी नानी बूंदे चारो तरफ बरस रही है उनके दीदार के लिए आँखे तरस रही है बिजली भी आसमान में कडक रही है उनसे मिलने की उम्मीदे भडक रही है बादल गरज गरज कर कुछ […] Read more » आसमान फिर भी मै प्यासी बादल गरज सावन का महीना है
कविता सन 19 का चुनाव July 14, 2018 / July 14, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी जो कर सके देश का विकास उनको 19 का चुनाव जिताना है अगली बार फिर से मोदी जी को भारत का प्रधान मंत्री बनाना है जो करते है जोड़ तोड़ की राजनीती उनको अगली बार चुनाव हराना है जो लड़ते प्रधानमंत्री पद के लिये उनको किसी को नहीं बनाना है जो एक […] Read more » देश का विकास प्रधानमंत्री मोदी सन 19 का चुनाव
कविता मेरे बाबा तो भोलेनाथ… July 14, 2018 / July 14, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बाबा का संबोधन मेरे लिए अब भी है उतना ही पवित्र और आकर्षक जितना था पहले अपने बेटे और भोलेनाथ को मैं अब भी बाबा पुकारता हूं अंतरात्मा की गहराईयों से क्योंकि दुनियावी बाबाओं के भयंकर प्रदूषण से दूषित नहीं हुई दुनिया मेरे आस्था और विश्वास की अद्भुत आत्मीय लगता है मुझे […] Read more » दुनियावी बाबाओं भयंकर प्रदूषण भोलेनाथ मेरे बाबा तो भोलेनाथ... सनसनीखेज
कविता उर की तरन में घूर्ण दिए ! July 12, 2018 / July 12, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment गोपाल बघेल ‘मधु (मधुगीति १८०७०३ द) उर की तरन में घूर्ण दिए, वे ही तो रहे; सम-रस बनाना वे थे चहे, हम को विलोये ! हर तान में उड़ा के, तर्ज़ हर पे नचा के; तब्दील किए हमरा अहं, ‘सो’ से मिला के ! सुर दे के स्वर बदल के, कभी रौद्र दिखा के; पोंछे भी कभी अश्रु रहे, गोद बिठा के ! फेंके थे प्रचुर दूर कभी, निकट बुलाए; ढ़िंग पाए कभी रास, कभी रास न आए ! जो भी थे किए मन को लिये, हिय में वे भाए; ‘मधु’ समझे लीला प्रभु की, चरण उनके ज्यों गहे !’ Read more » ‘सो’ से मिला के ! उर की तरन में घूर्ण दिए ! गोद बिठा के ! तब्दील किए हमरा अहं निकट बुलाए; पोंछे भी कभी अश्रु रहे फेंके थे प्रचुर दूर कभी
कविता वे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं ! July 12, 2018 / July 12, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८०७१२) गोपाल बघेल ‘मधु’ वे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं, सत्ताएँ उनके संकल्प से सृजित व समन्वित हैं; संस्थिति प्रलय लय उनके भाव से बहती हैं, आनन्द की अजस्र धारा के वे प्रणेता हैं ! अहंकार उनके जागतिक खेत की फ़सल है, उसका बीज बो खाद दे बढ़ाना उनका काम है; उसी को देखते परखते व समय पर काटते हैं, वही उनके भोजन भजन व व्यापार की बस्तु है ! विश्व में सभी उनके अपने ही संजोये सपने हैं, उन्हीं के वात्सल्य रस प्रवाह से विहँसे सिहरे हैं; उन्हीं का अनन्त आशीष पा सृष्टि में बिखरे हैं, अस्तित्व हीन होते हुए भी मोह माया में अटके हैं ! जितने अधिक अपरिपक्व हैं उतने ही अकड़े हैं, सिकुड़े अध-खुले अन-खिले संकुचित चेतन हैं; स्वयं को कर्त्ता निदेशक नियंत्रक समझते हैं, आत्म-सारथी गोपाल का खेल कहाँ समझे हैं ! वे चाहते हैं कि हर कोई उन्हें समझे उनका कार्य करे, पर स्वयं को समझने में ही जीव की उम्र बीत जाती है; ‘मधु’ के बताने पर भी बात कहाँ समझ आती है, प्रभु जगत से लड़ते २ भी कभी उनसे प्रीति हो जाती है ! Read more » Featured अस्तित्व आशीष पा सृष्टि बीज बो खाद वे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं !
कविता गोरी की सुन्दरता पर उपमाये July 12, 2018 / July 12, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी लाल टमाटर से गाल है गोरी,सब्जी मंडी क्यों जाऊ आज दफतर से छुट्टी लेकर,क्यों न मै मौज मनाऊ हिरणी जैसी आंखे तेरी,क्यों शिकार करने मै जाऊ आज शिकार घर में करेगे,क्यों जंगल अब मै जाऊ सुराही सी गर्दन गोरी तेरी,क्यों कुम्हार के घर जाऊ जब सुराही अपने घर में,क्यों बाहर का पानी […] Read more » गोरी गोरी की सुन्दरता पर उपमाये चांदी जैसा बदन लाल टमाटर सब्जी मंडी सुनहरे बाल
कविता प्रतिध्वनि 2- कलेवर July 12, 2018 / July 12, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अनुपम सक्सेना बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो अनकही रह जाती हैं कई प्रश्न ऐसे होते हैं जो अनुत्तरित रह जाते हैं बहुत कुछ पकड़ने की कोशिश में कुछ चीजें छूट जातीं हैं कुछ सच ऐसे होतें हैं जिन पर पर्दा डाल दिया जाता है इन्ही अनकहे अनुत्तरित छूटे हुए सच की मैं प्रतिध्वनि […] Read more » आत्म गौरव आत्मसम्मान और स्वाभिमान प्रतिध्वनि 2- कलेवर फटे कपड़ों बहुत सी बातें
कविता पिया की प्रतीक्षा में जगती रही July 10, 2018 / July 10, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment पिया की प्रतीक्षा में जगती रही रात भर करवटे बदलती रही स्वप्न भी हो गये अब स्वप्न जैसे कोई हो गया हो दफन कब आओगे मेरे प्यारे सजन ? पूछ रहे है ये मेरे भीगे नयन मन मेरा रात भर मचलता रहा तन मेरा अग्न से जलता रहा ये अग्न कैसे बुझेगी सनम ? ये […] Read more » अब तो दिन में पिया की प्रतीक्षा में जगती रही बैचेन होने लगी हूँ रोते रोते सूज
कविता आए रहे थे कोई यहाँ ! July 10, 2018 / July 10, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 2 Comments on आए रहे थे कोई यहाँ ! (मधुगीति १८०७०३ स) आए रहे थे कोई यहाँ, पथिक अजाने; गाए रहे थे वे ही जहान, अजब तराने ! बूझे थे कुछ न समझे, भाव उनके जो रहे; त्रैलोक्य की तरज़ के, नज़ारे थे वे रहे ! हर हिय को हूक दिए हुए, प्राय वे रहे; थे खुले चक्र जिनके रहे, वे ही पर सुने ! टेरे वे हेरे सबको रहे, बुलाना चहे; सब आन पाए मिल न पाए, परेखे रहे ! जो भाए पाए भव्य हुए, भव को वे जाने; ‘मधु’ उनसे मिल के जाने रहे, कैसे अजाने ! रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ Read more » आए रहे थे कोई यहाँ ! टेरे वे हेरे सबको रहे मधु वे ही पर सुने
कविता एक हास्य व व्यंग कविता July 9, 2018 / July 9, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment पेट्रोल के दाम बढ़ रहे फिर भी वाहन चल रहे महंगाई भी रोजना बढ़ रही फिर भी लोग होटल में खा रहे सत्ता के सब लालची हो रहे देश को भाड में झोक रहे नेता आपस में लड़ रहे जनता को एकता का सबक दे रहे जो कभी आपस में दुश्मन थे आज वे आपस […] Read more » एक हास्य व व्यंग कविता पेट्रोल के दाम बढ़ रहे फिर भी लोग होटल में खा रहे महंगाई भी रोजना बढ़ रही