कविता कविता : कुछ काम तो करो August 26, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा बातें हुई तमाम, कुछ काम तो करो दूर है मुकाम, कुछ काम तो करो। घड़ी इम्तिहान की, संघर्ष है कठिन विजय तुम्हे मिलेगी,कुछ काम तो करो। प्यार का ही दिन हो, प्यार की ही रात नफरत से न कोई वास्ता, कुछ काम तो करो। एकता में बल है, प्रेम में […] Read more » कुछ काम तो करो
कविता कविता – नेता August 23, 2013 by मोतीलाल | Leave a Comment जिनके पीछे तुम भाग रहे हो जिनके लिए तुम कुछ भी करने को तैयार हो क्या तुम्हें पता है कि वो भी भाग रहा है कि वो भी तैयार है सभी कुछ करने को तत्पर । खुश हो रहे हो तुम यही सोचकर उसका भागना और उसका त्याग तुम्हारे लिए है शायद तुम्हें नहीं दिख […] Read more »
कविता कुछ भी निश्चित नहीं है August 23, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment चाँद तुम रोज़ क्यो मुस्कुराते हो ? तुम्हारा आसमान मे निकलना, खिलना कितना सुनिश्चित है। तुम्हे कभी कोई बादल भी ढकले, तो तुम उदास हो जाते हो […] Read more » कुछ भी निश्चित नहीं है
कविता बाहें August 19, 2013 / August 19, 2013 by विजय निकोर | 1 Comment on बाहें तुम थे तो तुम्हारी बाहों के साथ मेरी बाहों का विस्तार बहुत लंबा था । मुझको लगता था मैं कुछ भी छू सकती थी.. कर सकती थी, कह सकती थी, मेरी ज़िन्दगी तब इस तरह कोई कानून नहीं थी, झूमती हवा के समान स्वच्छंद थी मैं, केवल धरती ही नहीं थी अपनी, […] Read more »
कविता कहीं से काले बादल आही जाते हैं August 17, 2013 by बीनू भटनागर | 4 Comments on कहीं से काले बादल आही जाते हैं तेज़ चमकती धूप मे कहीं से, उमड़ धुमड़ कर काले बादल, आ ही जाते हैं। जैसे शांत मन मे अचानक, नकारात्मक संवेग कभी भी, छा ही जाते हैं। अंतर्मन पर धुंध सी छाने लगती है, जो वेदना का धुंआ सा बन जाती है। ये ज़हरीला धुंआ भीतर ही भीतर फैलता है…. धुटन ही धुटन देता […] Read more » कहीं से काले बादल आही जाते हैं
कविता कैसी आजादी August 14, 2013 by चन्द्र प्रकाश शर्मा | Leave a Comment 15 अगस्त 1947 को हुआ भारत आज़ाद धरती रोई रोया अम्बर और रोया ताज। करोड़ो बेघर हुए लाखो हुए हलाल इतना खून बहा धरती पर धरती हो गई लाल घर लुटा अस्मत लुटी, लुट गए सब कारवाँ , देख दशा भारत माँ की बिलख उठा आसमां। बिछड़ गए लाखो अपने चली न कोई तदबीर याद […] Read more » कैसी आजादी
कविता व्यंग्य कविता : मौके की बात August 12, 2013 / August 12, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा आधुनिक युग कलयुग तो है ही ‘क्यू’ युग भी है जहाँ जाइए वहां क्यू नल पर नहाइए, वहां क्यू राशन लेना है, क्यू में आइए बच्चे का एडमिशन है, क्यू में आइए भाषण देना है, क्यू में आइए रोजगार दफ्तर में बेकारों के लिए क्यू श्मशान में मुर्दों के लिए क्यू एक दिन […] Read more » मौके की बात
कविता व्यंग्य नेता- अभिनेता, असरकारी August 10, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा हास्य व्यंग्य कविताएं : नेता- अभिनेता, असरकारी नेता-अभिनेता नेता और अभिनेता चुनाव मैदान में खड़े थे । मतदातागण सोच में पड़े थे । उधर, छिड़ा था विवाद, मतदाता देगा किसका साथ । एक के पास था आश्वासनों और वादों का झोला, तो दूसरे के पास था भुलावे में रखने का नायाब मसाला । […] Read more »
कविता कविता : खुद को जानो August 9, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा कोई बोले न बोले खुद से तू बोल अपने तराजू में खुद को तू तौल खुद को पहले जान तभी खुदा मिलेंगे नहीं तो तुमसे वो जुदा रहेंगे खुद से कर प्यार जमाने से प्यार हो जाएगा फिर तो जीवन तेरा खुशियों से भर जाएगा । Read more » कविता : खुद को जानो
कविता कविता : कुछ बात बने August 6, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा दुःख में भी सुख से रह सको तो कुछ बात बने। पहले खुद को पहचान सको तो कुछ बात बने। जानता हूँ , तुम वो नहीं जो तुम वाकई हो जो तुम हो, वही रह सको तो कुछ बात बने। माना की दुनिया बड़ी जालिम है फिर भी जालिम को भी […] Read more » कविता : कुछ बात बने
कविता “प्रेमपत्र नंबर : 1409” August 5, 2013 / August 5, 2013 by विजय कुमार सप्पाती | 3 Comments on “प्रेमपत्र नंबर : 1409” जानां ; तुम्हारा मिलना एक ऐसे ख्वाब की तरह है , जिसके लिए मन कहता है कि , कभी भी ख़त्म नहीं होना चाहिए … तुम जब भी मिलो , तो मैं तुम्हे कुछ देना चाहूँगा , जो कि तुम्हारे लिए बचा कर रखा है ………….. एक दिन जब तुम ; मुझसे मिलने आओंगी प्रिये, […] Read more » “प्रेमपत्र नंबर : 1409”
कविता तेरे लिए August 4, 2013 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment मै,तेरे लिए आया, इस जिंदगी में, चाहकर कर भी तेरा ना हो सका, मुरझे हुए फूलों की तरह मेरी सवेंदनाएं भी मुरझा गई, खिली हुई कलियों की खुशियों जैसे प्यार का अहसास होने लगा था, कुछ सपने थे, जो पतझड़ की तरह हो गए, बिन उसके एक पल भी एक नागवार लगने लगा राहें बनाने […] Read more » तेरे लिए