कविता नकली कान्हा August 17, 2025 / August 25, 2025 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment जन्माष्टमी का पर्वबड़ी धूमधाम से मनाया गया,बाज़ार से पीताम्बर मंगवाया गया।जो बच्चे डरते हैं छिपकली से,उन्होंने भी कान्हा बनाया गया।सिर पर मुकुट पहना, कर बांसुरी दी गई,इस अद्भुत छवि की खूब सेल्फ़ी ली गई। बालिकाएँ राधा बन गई थीं,बड़ी ही मोहक लग रही थीं।रूप तो नयनाभिराम था,पर सब बाज़ार का ही तो सामान था।बच्चों को […] Read more » नकली कान्हा
कविता सुदर्शनचक्रधारी श्री कृष्ण की आवश्यकता अनुभव करता देश August 16, 2025 / August 23, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment जन्माष्टमी पर्व की आप सभी के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं। श्री कृष्ण जी भारतीय सनातन के पुरोधा योद्धा महापुरुष रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें केवल राधा के संग नचाने का कार्य किया है या “छलिया का भेष बनाकर श्याम चूड़ी बेचने आया” या गोपिकाओं के वस्त्र चुराने वाला दिखाया है या माखन चोर दिखाया है, […] Read more » सुदर्शनचक्रधारी श्री कृष्ण की आवश्यकता
कविता भारत की माटी का सौ सौ बार हम करते अभिनंदन August 16, 2025 / August 16, 2025 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकवतन से प्यार करनेवाले शब्दकार को नमन!वतन से प्यार करनेवाले भारतीय संस्कार को नमन!वतन पर न्योछावर अमर दिलवर दिलदार को नमन!हम रहें ना रहें वतन सलामत रहेवतन पर मरने मिटने वाले विचार को नमन!चंद्रशेखर आजाद को नमन!भगत सिंह को श्रद्धा सुमन!अमर सेनानी सुभाषचंद्र बोस की जोश को नमन!हरिसिंह नलवा,जस्सासिंह की जवांदानी को नमन!असफाक […] Read more » We salute the soil of India a hundred times भारत की माटी का सौ सौ बार हम करते अभिनंदन
कविता तू दयानंद का वीर सिपाही …. August 13, 2025 / August 13, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment यदि रगों में तेरे लहू नहींतो जीने का क्या अर्थ हुआ ?यदि देशहित कुछ किया नहींतो जीवन तेरा व्यर्थ हुआ।है मातृभूमि का ऋण तुझ परउसको भी चुकाना है तुझको,यदि आतंकी खेती करता रहातो समझो बेड़ा गर्क हुआ।। तू राम की सेना का सैनिकआजाद हिंद का नायक है,तू दयानंद का वीर सिपाहीभगवा ध्वज का वाहक है।योगीराज […] Read more » तू दयानंद का वीर सिपाही ….
कविता भजन : प्रभु शरणम August 8, 2025 / August 8, 2025 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment तर्ज : बच्चे मन के सच्चे दोहा: ईश कृपा बिन गुरु न मिले, गुरु बिन मिले न ज्ञानज्ञान बिना आत्मा न मिले, सुन ले चतुर सुजान।।दुःख रूप संसार यह,जन्म मरण की खान।।हमे निकालो दया कर, मेरे गुरुवार जल्दी आन।। बिन हरी भजन न होगा जीव तेरा कल्याण |गुरु कृपा बिन है नहीं यह इतना आसान […] Read more » भजन : प्रभु शरणम
कविता भजन : गुरु महिमा August 1, 2025 / August 8, 2025 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment तर्ज: राधा के मन बस गए श्याम बिहारी दोहा: गुरुभक्तों के लिए, गुरु से बड़ा न कोय।गुरु सेवा से बड़ी जग में, सेवा कोई न होय।। मु: भक्तों के दिल में, रम रहे गुरुवर प्यारे।(शिष्यों के दिल में, रम रहे गुरुवर प्यारे। )गुरु का रंग चढ़ा है ऐसा -2….रंग फीके पड गए सारे।।भक्तों के दिल […] Read more » गुरु महिमा
कविता यह देश है पृथ्वीराजों का…. July 30, 2025 / July 30, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment देशभक्ति की कविता इतिहास उठा कर देखो अपना भारत सबसे न्यारा है।जितने भर भी देश विश्व में भारत सबसे प्यारा है।। बलिदानों का देश है भारत बलिदानों की भूमि है।बलिदानों की रीत यहां पर बलिदानों की धूलि है।।मत भूलो निज बलिदानों को जिनकी छाती चौड़ी है।जिनके कारण आजाद हुए हम भारत उनकी भूमि है।।हर अवसर […] Read more » यह देश है पृथ्वीराजों का….
कविता ये मोबाइल रिश्ते का हो गया है भस्मासुर July 28, 2025 / July 28, 2025 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकमैं ढूँढ रहा हूँ अपनों में अपनापनइंसान में इंसानियत आदमी में आदमियतकि आज मानव से मानवता हो गई लापता! मैं सोच नहीं पाता हूँ कि किसने की खतामैं रहता हूँ मौन मैं करता नहीं किसी को फोनमैं खोजता हूँ अपनों के बीच वैसा ही रिश्ताजो बगैर फोन का बन जाया करता था फरिश्ता! […] Read more » This mobile has become the Bhasmasur of relationships मोबाइल रिश्ते का हो गया है भस्मासुर
कविता सावन July 16, 2025 / August 25, 2025 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment नील गगन घनश्यामाच्छादित,तेज तड़ित की दमक उठे।जो संग पवन के द्रुत गति वो,अगले बादल चमक उठे। मेघ उच्च जो श्यामवर्ण हैं,मंद चाल विचरण करते।जीत समर को निकले हों ज्यों,गहरे गर्जन स्वर भरते। ऐसी श्यामल पृष्ठभूमि में,हर एक दृश्य अति सुंदर।हरे-भरे तरु, ताल, सरोवरमानव-रचित ये श्वेत घर। अहा! जल की नन्हीं सी बूँदें,धरती पर इठलाई हैं।अल्हड़-सी […] Read more » सावन
कविता गुरुर्ब्रह्मा – एक स्तुति July 10, 2025 / July 10, 2025 by आलोक कौशिक | Leave a Comment गुरुर्ब्रह्मा जगत्पिता सदा,गुरुर्विष्णुः पथदर्शिता व्रता।गुरुर्देवो हरिः शिवो यथा,नमस्तस्मै गुरोः नमः सदा॥ ज्ञानदीपः तमोहरः प्रभुः,मौनवाणी रसाश्रु जलभरः।शिष्यजीवन दिगंतविस्तरः,प्रेमपाथेय धर्मचिन्मयः॥ शब्दसूत्रविवेचनैकधा,वेदमूलं समस्तशास्त्रधा।चित्तनिर्मल बनाय जो भला,वहै गुरुवर, समस्तभावला॥ न सखा, न पिता, न मातरः,गुरुवर्यं समं न चापरः।सत्पथं जो दिखाय संसृते,पूर्णिमा पर प्रणाम भावभरे॥ :- आलोक कौशिक Read more » गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्ब्रह्मा - एक स्तुति
कविता सावन की पहली बूँद July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment बादल की पहली दस्तक, मन के आँगन आई,भीग गया हर कोना, हर साँस मुस्काई।पीपल की टहनी बोली, झूले की है बारी,छत की बूँदों ने फिर, गाई प्रेम पिचकारी। मिट्टी ने भी मुँह खोला, सौंधी-सौंधी भाषा,मन में उठे भावों की, भीनी-भीनी आशा।चुनरी उड़ती दिशा-दिशा, लहराए सावन,पलकों पर ठहरी जैसे, बरखा में जीवन। बिरहा के गीतों में, […] Read more » "First drop of Sawan"
कविता झूले वाले दिन आए July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment झूले वाले दिन आए, पायल की छनकार,घूँघट में लजाए सावन, रंग भरे हज़ार।काजल भीगे नैना, मेंहदी रचती हाथ,सखियाँ गाएं गीत वो, जिसकी हो तलाश। पलाश और आम की, डालें हुईं जवाँ,झूले संग लहराए, मन की हर दुआ।बरखा की चूनर ओढ़े, धरती की ये माँ,हरियाली की चिट्ठियाँ, लेकर आई हवा। पथिक रुके हैं थमकर, सुनने बादल […] Read more » The swing days have arrived