कविता पर्यावरण पर पाँच कविताएँ June 4, 2011 / December 11, 2011 by सतीश सिंह | 5 Comments on पर्यावरण पर पाँच कविताएँ 1. पेड़ फूलों को मत तोड़ो छिन जायेगी मेरी ममता हरियाली को मत हरो हो जायेंगे मेरे चेहरे स्याह मेरी बाहों को मत काटो बन जाऊँगा मैं अपंग कहने दो बाबा को नीम तले कथा-कहानी झूलने दो अमराई में बच्चों को झूला मत छांटो मेरे सपने मेरी खुशियाँ लुट जायेंगी। 2. नदियाँ हजार-हजार दु:ख उठाकर […] Read more » Atmosphere पर्यावरण
कविता कविता/ आचमन June 1, 2011 / December 12, 2011 by गंगानन्द झा | 1 Comment on कविता/ आचमन क्लास के बाद क्लास बीतता जाता है जिन्दगी के ग़ैरमामूली ब्लैकबोर्ड पर तीन अँगुलियों से पकड़े गए चॉक के जरिये केवल लफ़्जों की गिनती उसके बाद ढंग-ढंग घंटे का बज जाना उन तजुर्बेकार लिखावटों को नया डस्टर पोंछ लेता है । कुछ निशान रह जाते हैं, उस्ताद जिन्दगी गुजर जाती है । लम्बी से […] Read more »
कविता धारा के विरुद्ध May 27, 2011 / December 12, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment धारा के विरुद्ध यह कैसा मजाक है यार? तुम कहते हो मुझे, धारा के विरुद्ध तैरने को. वंधु, मुझे तो लगता है,दिमाग खराब है तुम्हारा. पर मैं तो पागल नहीं. मैं कहता हूँ, बहो तुम भी बहाव के के साथ, देखो कितनी हसीन है यह जिंदगी, कितना आनंद है इसमें? क्या कहा? बहना बहाव के […] Read more »
कविता बहुत याद आती है माँ…… May 23, 2011 / December 12, 2011 by तरुण राज गोस्वामी | Leave a Comment पथरीलेँ रास्तोँ पर जीवन के, घाव जलते हैँ जब तन मन के, बहुत याद आती है माँ।। याद आती है मेरे लिये आँखोँ मेँ कटती उसकी रातेँ, याद आती है हर कदम पर मुझे समझाती उसकी बातेँ, मेरी गलतियोँ पर मुझको डाँटती फिर दुलारती, मेरी बिखरी फैली चीजोँ को ध्यान से संभालती, अपने हाथोँ […] Read more » Maa
कविता मैं उजला ललित उजाला हूँ! May 23, 2011 / December 12, 2011 by ललित कुमार कुचालिया | Leave a Comment मैं उजला ललित उजाला हूँ! मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है! तेरे मन के तम से लड़ता हूँ तेरी राहें उजागर करता हूँ आओ मुझे बाहों में भर लो! मुझ सा कोई प्यार नहीं है मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है! तेरे रोम-रोम में भर जाता हूँ तेरे दर्द को […] Read more » Lalit उजला उजाला ललित
कविता कविता/ माँ…तेरी ऊँगली पकड़ के चला… May 19, 2011 / December 13, 2011 by ललित कुमार कुचालिया | 1 Comment on कविता/ माँ…तेरी ऊँगली पकड़ के चला… माँ…तेरी ऊँगली पकड़ कर चला… ममता के आँचल में पला… हँसने से रोने तक तेरे ही पीछे चला बचपन में माँ जब भी मुझे डाटती… में सिसक–सिसक कर घर के किसी कोने में जाकर रोने लगता फिर बड़े ही प्रेम से मुझे बुलाती… कहती, बेटा में तेरे ही फायदे के लिए तुझे […] Read more »
कविता आर. सिंह की कविता/दान वीर May 12, 2011 / December 13, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment मर रहा था वह भूख से, आ गया तुम्हारे सामने. तुमको दया आ गयी.(सचमुच?) तुमने फेंका एक टुकड़ा रोटी का. रोटी का एक टुकड़ा? फेंकते ही तुम अपने को महान समझने लगे. तुमको लगा तुम तो विधाता हो गये. मरणासन्न को जिन्दगी जो दे दी. मैं कहूं यह भूल है तुम्हारी, तुम्हारे पास इतना समय […] Read more »
कविता आर. सिंह की कविता/स्वप्न भंग May 11, 2011 / December 13, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment मत कहो मुझे बोलने को. मेरे मुख से फूल तो कभी झड़े नहीं, पर एक समय था जब निकलते थे अंगारे. एक आग थी, जो धधकती थी सीने के अंदर. एक स्वप्न था, जो करता था उद्वेलित मष्तिष्क को. एक लगन थी, कुछ कर गुजरने की. लगता था, क्यों पनपे वह सब जो नहीं है […] Read more »
कविता कविता/ माँ की मुस्कान … May 10, 2011 / December 13, 2011 by हितेश शुक्ला | 5 Comments on कविता/ माँ की मुस्कान … { माँ को समर्पित… हितेश शुक्ला } आप खुश हो तो मुझे ख़ुशी मिलती है ! जैसे मरुस्थल में नदी मिलती है !! आपकी ख़ुशी मेरा मनोबल बढाती है ! आपकी ख़ुशी मंजिल पाने की चाह जगाती है !! आपकी मुस्कान दुःख मे सुख का आभास करवाती है !! आपकी ख़ुशी जीत की […] Read more » मां
कविता वह May 1, 2011 / December 13, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment जब मैं सोकर उठता हूँ प्रातः तडके. अलार्म की आवाज सुनकर. पहला ध्यान जाता है इस ओर. वह आयेगी या नही? मैं जल्दी जल्दी तैयार होता हूँ, नित्य क्रिया से निपट कर. दाढी बनाकर,चेहरे का साबुन पोंछ कर, देखता हूँ आइने में. पर ध्यान तो वही लगा रहता है, वह आयेगी या नहीं. इसके बाद […] Read more »
कविता प्रिय अपनी बाहों में भर लो। May 1, 2011 / December 13, 2011 by जगदम्बा प्रसाद गुप्ता ”जगत” | 1 Comment on प्रिय अपनी बाहों में भर लो। विप्रलम्ब तन शीतल मन शीतल कर दो, प्रिय अपनी बाहों में भर लो। ————————————— मंद हवाओं का ये झौंका, आंचल को सहलाता हैं। ————————————— पुष्पों की सुरभित मादकता, तन में आग लगाता है। ————————————— मिलने की उत्कंठा दिल में, धड़कन और ब़ाता है। ————————————— तेरे आने की हर आहट, मन में आस जगाता है। […] Read more »
कविता कविता/ हाथी का दांत April 23, 2011 / December 13, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment एक दिन वो मिली रास्ते में अपनी भतीजी के साथ जिसे मैंने पढाई छोड़ते वक्त ‘कृष्णकली’ भेंट की थी. मेरा परिचय उससे उसने दिया ”बेटा ये मेरे साथ पढ़ें हैं”. भतीजी तीन-चार साल की समझ ना पाई कि साथ पढ़े होना कौन सा रिश्ता है. वो पूछ बैठी उससे […] Read more »