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चिंताजनक है नदियों का मौन

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डा.वेदप्रकाश      नदियां बोलती हैं। उनका कल कल- छल छल स्वर और निरंतर प्रवाह उनकी जीवंतता का प्रमाण है। भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि ग्रंथ ऋग्वेद के 33वें सूक्त में ऋषि विश्वामित्र और नदी का संवाद है। जहां नदियों को गायों और घोड़े के सदृश शब्द करती व दौड़ती वर्णित किया गया है। वहां कहा गया है कि नदियां सबका उपकार करने वाली होती हैं और कभी जल से हीन नहीं होती। वहां ऋषि द्वारा नदी पार करने हेतु प्रार्थना भी है। इसी प्रकार 75वें सूक्त में- इमं मे गंड्गे यमुने सरस्वति…के माध्यम से विभिन्न नदियों का महत्व और शोभा वर्णित है। आदिकाव्य रामायण और रामचरितमानस में भी विभिन्न प्रसंगों में नदियों से संवाद एवं स्तुति मिलती है। सुंदरकांड में प्रभु श्रीराम समुद्र से प्रार्थना, पूजन व संवाद करते हैं।       नदियों का सतत प्रवाह अथवा गतिशीलता मानव चेतना को साहस प्रदान करता रहा है। हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, काशी,प्रयागराज और गंगासागर आदि अनेक तीर्थ नदियों से ही बने हैं। नदियों के  किनारे ही सभ्यता एवं संस्कृति विकसित हुई हैं। ध्यान रहे नदियां हैं तो प्रकृति है, संस्कृति है, संतति है, वर्तमान है और भविष्य भी इन्हीं से होगा। कहीं बीहड़ जंगलों से तो कहीं कठोर पर्वत श्रेणियों से निकलती नदियां उनकी संघर्ष यात्रा के प्रमाण हैं। गंगा,यमुना, सरस्वती, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, चंबल, बागमती, सिंधु , झेलम, चेनाब,रावी, व्यास, सतलुज, नर्मदा, ताप्ती, वैतरणी, कृष्णा,कावेरी, लूनी, माच्छू , बनास, साबरमती, काली, पेरियार आदि देश की छोटी बड़ी सैकड़ों नदियां बड़े भू भाग को सींचने के साथ-साथ जीवन की रेखाएं भी हैं। अनेक नदियां पर्वत, मैदान, हिम क्षेत्र और मरुस्थल में भी जीवनदायिनी बनकर बहती हैं। विभिन्न नदियों पर बने बड़े बांध जहां विद्युत उत्पादन के बड़े स्रोत हैं तो वहीं कृषि आवश्यकताओं हेतु नहरों से जल का फैलाव भी करते हैं। आज दर्जनों नदियां मर चुकी हैं, दर्जनों भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण बदहाली का शिकार हैं और जो बची हैं उनमें भी पानी का स्तर लगातार कम हो रहा है। कुल मिलाकर नदियां मौन होती जा रही हैं, क्या नदियों का यह मौन मनुष्य सहित समूची जीव सृष्टि के लिए चिंताजनक नहीं है?     भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। ऐसे में औद्योगिक, कृषि, पेयजल एवं खाद्यान्न हेतु जल की कमी और नदियों पर मंडराता संकट बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा है। गंगा और यमुना जैसी देश की बड़ी नदियों के किनारे अनेक औद्योगिक इकाइयां हैं। साथ ही मछली पालन के रूप में भी आजीविका के बड़े अवसर हैं लेकिन यदि नदियां मौन होती जाएगी तो इससे इन पर निर्भर लोगों को आर्थिक संकट के साथ-साथ विस्थापन भी झेलना पड़ेगा। यमुना नदी के संबंध में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की एक रिपोर्ट बताती है कि नदी के न्यूनतम बहाव के लिए जितना पानी होना चाहिए उसका आधा भी फिलहाल नहीं है। दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों एवं महानगरों में घरेलू कचरा, सीवेज और औद्योगिक दूषित जल सीधे नदियों में गिर रहा है। राजधानी दिल्ली में 28 औपचारिक औद्योगिक क्षेत्र हैं जिनमें से केवल 17 कॉमन एफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट यानी सीईटी से जुड़े हैं। 11 के लिए कोई ट्रीटमेंट प्लांट है ही नहीं। जब राष्ट्रीय राजधानी की यह दशा है तो देश के अन्य औद्योगिक महानगरों की स्थिति सहज ही समझी जा सकती है। नदियों के स्वतंत्र प्रवाह में अतिक्रमण और अवैध खनन भी एक बड़ी चुनौती बन चुका है। अप्रैल 2025 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देहरादून की विभिन्न नदियों, नालों और खालों से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है। समाचारों के अनुसार देहरादून में 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़ और डोईवाला में 15 एकड़ नदियों की भूमि पर अतिक्रमण है। विगत में सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली में यमुना नदी को अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश दे चुका है। देश के अन्य प्रदेशों में नदी क्षेत्र के अतिक्रमण की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। समाचार यह भी बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया की 87 प्रतिशत नदियां गर्म हो रही हैं और 70 प्रतिशत नदियों में आक्सीजन की कमी हो रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। मौसम का चक्र बदल रहा है। दुनियाभर में नदियों का आकार भी सिकुड़ रहा है। ध्यान रहे नदियों की बदहाली और उनका मौन होना नदी के अंदर और आसपास की पारिस्थितिकी को भी गहरे प्रभावित करता है। घातक रसायनों एवं प्रदूषण के कारण नदी जीवन के लिए आवश्यक मछली, कछुए और अन्य जीवों की संख्या भी लगातार घट रही है और नदी क्षेत्र के प्रकृति-पर्यावरण में भी बदलाव देखे जा सकते हैं। मार्च 2025 के वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के एक अध्ययन से यह सामने आया है कि नदियां कार्बन डाइआक्साइड को अवशोषित करने के साथ ही उसे वातावरण में वापस छोड़ने का काम भी कर रही है… नदियों के पानी में ठहराव और प्रदूषण के कारण यदि उसका तापमान बढ़ता है तो उसमें गैसों का उत्सर्जन और तेज होगा। प्रदूषण वाले भाग पर कचरे से मिथेन गैस भी निकलती है जो कार्बन डाइआक्साइड से 21 गुना अधिक खतरनाक है।     मानसून के मौसम में नदियों में जल की अधिकता होती है। यह जल नदियों को नवजीवन प्रदान करने के साथ-साथ समूचे नदी क्षेत्र को जल से भरता है। जिससे वहां भिन्न-भिन्न प्रकार की वनस्पतियां पोषित होती हैं और आसपास के क्षेत्र में भूजल का स्तर भी संतुलित रहता है। यह नदियों का रौद्र रूप नहीं है अपितु नदी क्षेत्र में मनुष्य का अनुचित हस्तक्षेप हो रहा है इसलिए दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। क्या यह हस्तक्षेप अनुचित नहीं है?      ध्यान रहे नदियां अपने उद्गम से फिर किसी संगम अथवा सागर तक की यात्रा में समूची जीव सृष्टि के लिए जल एवं खाद्यान्न पैदा करती हैं। समूचा जलचक्र नदियों एवं सागर के द्वारा ही पूरा होता है। क्या नदियों का मौन होना समूचे जलचक्र को प्रभावित नहीं करेगा? नदियों के पुनर्जीवन एवं संरक्षण-संवर्धन हेतु आज यह आवश्यक है कि समुचित रणनीति बनाते हुए नदियों की प्रकृति को समझकर प्रबंधन किया जाए। नदियों की स्थिति को गंभीर एवं प्रमुखता की श्रेणी में रखते हुए उससे संबंधित नौकरशाही की जिम्मेदारी तय की जाए। यह सत्य है कि पर्याप्त सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और औद्योगिक क्षेत्र में समुचित व्यवस्था न होने के जिम्मेदार नौकरशाह हैं। बिना सरकारी और नौकरशाही सहयोग के नदी और जल स्रोतों पर अतिक्रमण और खनन संभव नहीं है। संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्य हमें नदी, झीलों एवं जल स्रोतों के संरक्षण-संवर्धन हेतु दायित्व देते हैं। क्या हम संविधान की भावना के अनुरूप काम कर रहे हैं? मार्च 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना नदियों के विषय में अपना फैसला देते हुए कहा- गंगा और यमुना नदियां अपना अस्तित्व खोने के खतरे में हैं और इसलिए उन्हें अधिकारों के साथ कानूनी इकाई घोषित किया गया है। लेकिन यह विडंबना ही है कि कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी। आज हमें यह समझना होगा कि गंगा और यमुना जैसी बड़ी नदियां भारत की बड़ी आबादी के अस्तित्व, उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनादि काल से ये नदियां मनुष्य को शारीरिक, आध्यात्मिक और भिन्न-भिन्न प्रकार का पोषण प्रदान करती रही हैं। आज जब ये जीवनदायिनी नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं, भयंकर प्रदूषण की चपेट में हैं तब यह आवश्यक है कि इन्हें कानूनी इकाई घोषित किया जाए। सरकारों के साथ-साथ समाज भी इनके संरक्षण-संवर्धन हेतु अपना दायित्व समझे,जिससे इन्हें मौन होने से बचाया जा सके क्योंकि नदियों का मौन होना समूची जीव सृष्टि के अंत की ओर बढ़ना है। डा.वेदप्रकाश

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राजनीति लेख

छांगुर बाबा के साम्राज्य का अंत लेकिन कितने बाकी

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राजेश कुमार पासी अकसर हिन्दू संगठन लव जिहाद का मुद्दा उठाते रहते हैं लेकिन सभी उनका मजाक उड़ाते हैं कि ये उनकी साम्प्रदायिक सोच है, ऐसा कुछ नहीं है ।  विडम्बना यह है कि बार-बार लव जिहाद के मामले सामने आते रहते हैं लेकिन उनकी अनदेखी कर दी जाती है । लव जैहाद कुछ और नहीं है बल्कि हिन्दू लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाने का एक तरीका है । यह भी बार-बार सुनने में आता है कि लव जैहाद के लिए मुस्लिम लड़को को पैसा दिया जाता है ताकि वो हिन्दू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उनसे शादी करें और इसके बाद उन्हें इस्लाम कबूल करवायें । यूपी के बलरामपुर के उतरौला के छांगुर बाबा के मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि इस देश में सुनियोजित तरीके से धर्म परिवर्तन का धंधा चल रहा है । मुस्लिम देशों से इसके लिए बेइंतहा पैसा आ रहा है इसलिए इस धंधे के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है । मुस्लिम लड़कों के लिए ये दोगुने फायदे का काम है । एक तो उन्हें इस काम के लिए मोटी रकम मिलती है तो दूसरी तरफ उन्हें इस काम से धर्म की सेवा का मौका भी मिलता है । मौलाना उन्हें इस काम के बदले जन्नत का लालच देते हैं । उतरौला में पैदा होने वाला छांगुर बाबा कभी भीख मांग कर गुजारा करता था और इसके बाद उसने नकली अंगूठी बेचने का धंधा शुरू किया लेकिन जब उसने धर्म परिवर्तन का धंधा शुरू किया तो वो सैकड़ों करोड़ का स्वामी बन गया । आसपास के इलाकों में उसका इतना दबदबा हो गया कि उसके खिलाफ मुंह खोलना किसी के लिए संभव नहीं था । वास्तव में उसने अपने इलाके में पुलिस-प्रशासन और अदालत में इतनी पकड़ बना रखी थी कि उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले के ऊपर फर्जी मुकदमें ठोक दिये जाते थे । हैरानी की बात है कि कई एकड़ की सरकारी भूमि पर उसने कब्जा करके बड़ी इमारत बनाकर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था लेकिन वहां का प्रशासन आँखे बंद करके बैठा रहा ।                   सवाल यह है कि पिछले 15-16 सालों से बलरामपुर में गैरकानूनी धंधे कर रहे छांगुर बाबा पर पुलिस और प्रशासन इतने मेहरबान क्यों थे । मैं सरकारी सेवा में 27 साल रहा हूं, अच्छी तरह जानता हूं कि अफसर सब कुछ देखकर अनदेखा क्यों करते हैं । इस सच को भी जानता हूं कि इस अनदेखी के लिए पैसा ऊपर से नीचे तक जाता है । मतलब साफ है कि स्थानीय प्रशासन में बैठे लोगों को सब कुछ पता था लेकिन उन्हें अनजान बने रहने के लिए छांगुर बाबा नियमित रूप से मोटा पैसा दे रहा होगा । मुख्यमंत्री योगी कितने भी सख्त प्रशासक हों लेकिन अभी भी पुराना इको सिस्टम काम कर रहा है । सच यह भी है कि अगर योगी मुख्यमंत्री नहीं होते तो यह बाबा कभी पकड़ में नहीं आता । ये योगी ही हैं जिनके कारण प्रशासन उसके खिलाफ कार्यवाही करने को मजबूर हुआ अन्यथा ये मामला दबा दिया जाता । आज ईडी भी उसके खिलाफ जांच कर रही है लेकिन सवाल यह है कि लगभग 300 करोड़ की फंडिंग जुटा लेने वाले बाबा पर किसी की नजर पहले क्यों नहीं पड़ी । मुझे ऐसा लगता है कि छांगुर पर कार्यवाही के साथ-साथ उन अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिए जो उसकी मदद कर रहे थे । मेरा तो मानना है कि बाबा के खिलाफ कार्यवाही से पहले इनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए क्योंकि उनके लालच ने ही ऐसा बाबा पैदा किया था । सरकार से वेतन लेने वाले ये लोग देश के खिलाफ जाकर बाबा का काम कर रहे थे । घर का एक छज्जा इन्हें दिखाई दे जाता है लेकिन 70 कमरों वाला महल इन्हें दिखाई नहीं दिया । बैंक खातों में इतने बड़े लेनदेन के बावजूद आरबीआई को इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई । उसने अपनी इमारत की दीवार बहुत ऊंची बनाई हुई थी और उन पर बिजली वाली कंटीली तारें लगाई हुई थी । किसी ने यह नहीं सोचा कि इतनी सुरक्षा क्यों की जा रही है और क्या छिपाया जा रहा है । पुलिस को कभी इस इमारत में आने-जाने वालों पर कोई शक नहीं हुआ और उसे किसी खबरी ने कभी नहीं बताया कि वहां क्या चल रहा है । लोकल पुलिस से उसके कारनामे कैसे छुपे रह गए ।                  छांगुर बाबा ने गरीब एवं विधवा हिन्दू लड़कियों और प्रेमजाल में फंसाकर लाई गई गैर-मुस्लिम लड़कियों के धर्मपरिवर्तन और यौन शोषण की पूरी व्यवस्था तैयार की हुई थी । इसके लिए उसने कोडवर्ड बनाए हुए थे, मतांतरण को मिट्टी पलटना कहा जाता था । लड़कियों को प्रोजेक्ट कहा जाता था और उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित करने को काजल करना कहा जाता था, दर्शन करना मतलब बाबा से मिलवाना था । बाबा आर्थिक रूप से कमजोर, विधवा और गैर-इस्लामी लड़कियों को बहला-फुसलाकर कर मतांतरण के लिए इस्तेमाल करता था । उसने मतांतरण के लिए जाति-धर्म के अनुसार एक निश्चित रकम तय की हुई थी । इसका नेटवर्क सिर्फ बलरामपुर तक नहीं था बल्कि यूपी के कई इलाकों में फैला हुआ था । यूपी से बाहर भी उसने अपना धंधा फैलाया हुआ था । शिक्षा की आड़ में उसने विदेशी फंडिंग की मदद से बड़ी संख्या में मदरसों का निर्माण किया हुआ था । वो सस्ती और सरकारी जमीनों पर मदरसों को निर्माण करवाता था और फिर उसके नाम पर विदेशी फंडिंग हासिल करता था । कितनी अजीब बात है कि गाजा में मुस्लिम बच्चे भूखे मर रहे हैं लेकिन मुस्लिम देश उनकी मदद को आगे नहीं आ रहे हैं लेकिन धर्म परिवर्तन के लिए ये देश पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं । ये मुस्लिम देश गरीब मुस्लिमों की मदद करने की जगह गैर-मुस्लिमों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए खुले दिल से पैसा बांट रहे हैं । गरीब अफ्रीकी देशों में मुस्लिम समाज के लोग भूखे मर रहे हैं और उनकी मदद केवल यूरोपीय देशों द्वारा की जा रही है । अरबी मुस्लिम अपने सोने के महलों में अय्याशी कर रहे हैं लेकिन उनकी तरफ देखने को तैयार नहीं हैं । कितनी अजीब बात है कि जो पहले से मुस्लिम हैं, उनकी चिंता नहीं है लेकिन जो गैर-मुस्लिम हैं, उनको मुस्लिम बनाने के लिए ये लोग अरबों रुपये लुटाने के लिए तैयार हैं । ये सोचना गलत होगा कि इन लोगों के पास केवल एक छांगुर बाबा होगा बल्कि मेरा मानना है कि इन्होंने ऐसे बाबाओं की एक फौज तैयार कर रखी होगी ।                एक हिन्दू लड़की, जिसका मतांतरण के बाद आयत खान नाम रख दिया गया था, उसने बताया है कि ये लोग कहते थे कि 2047 में भारत को इस्लामिक मुल्क बना देंगे । उसे बताया गया कि तुम मुस्लिम बन गई हो, अब तुम्हें भी जन्नत मिल जाएगी । अभी इस मामले की बहुत पर्ते खुलनी है, लगता है कि ये मामला बहुत बड़ा है । छांगुर बाबा के कई माफिया गिरोह के साथ मिलीभगत सामने आ रही है । वैसे भी इतनी बड़ी मात्रा में सरकारी जमीनों पर कब्जा बिना माफिया की मदद के संभव नहीं लगता । हिन्दू समाज को इस मामले पर नजर रखनी होगी क्योंकि उसे धर्मनिरपेक्षता की भांग पिलाकर मूर्ख बनाया जा रहा है । कई मुस्लिम संगठन भारत को सुनियोजित तरीके से इस्लामिक देश बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं । छांगुर बाबा अकेला नहीं हो सकता और न जाने कितने छांगुर बाबा हमारे देश में छुप कर इस काम में लगे हुए होंगे । केन्द्र सरकार को विपक्ष शासित राज्यों पर विशेष नजर रखने की जरूरत है क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण विपक्षी दलों की सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही कभी नहीं करेंगी । हमें समझना होगा कि लव जिहाद हमारे देश की सच्चाई है, इसे अनदेखा करना घातक साबित होगा । सब कुछ सरकार नहीं कर सकती, एक समाज के तौर पर हमें भी सतर्क रहना होगा । हिन्दू संगठनों को भी उन महिलाओं पर नजर रखने की जरूरत है, जो किसी कारण बेसहारा या गरीब हैं क्योंकि छांगुर जैसे गिद्ध मौके की तलाश में घूम रहे हैं । एक सच यह भी सामने आया है कि धर्म परिवर्तन के काम में छांगुर बाबा की मदद वो मुस्लिम कर रहे थे, जिनका धर्म परिवर्तन करवाया गया था । सरकार को उन लोगों पर नजर रखने की जरूरत है जिन्होंने नया-नया धर्म परिवर्तन किया हो । देखा गया है कि धर्म परिवर्तन के काम में ये लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं । यही लोग हैं जो अपना धर्म बदलने के बाद अन्य लोगों को धर्म बदलवाने की कोशिश ज्यादा करते हैं और कामयाब भी हो जाते हैं । वास्तव में उनकी हिन्दू समाज में रिश्तेदारी होती है तो ये दूसरों को आसानी से बहला लेते हैं । सवाल यह है कि यह तरीका सिर्फ मुस्लिम संगठनों द्वारा ही इस्तेमाल किया जा रहा है, जवाब नहीं है क्योंकि कुछ ऐसा तरीका ईसाई बनाने के लिए भी अपनाया जाता है। जब रेटलिस्ट बनाकर धर्मपरिवर्तन करवाया जा रहा हो तो बहुत सतर्क रहने की जरूरत है । हिन्दू समाज को खुद से सवाल करना होगा कि वो कब तक धर्मनिरपेक्षता के नशे में डूबा रहेगा । धर्मनिरपेक्षता का ये मतलब नहीं होता कि अपना धर्म बर्बाद होते चुपचाप देखते रहो । छांगुर बाबा मामले से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है । एक समाज के रूप में हमें अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है क्योंकि इस देश में पैसे के लिए बिकने वाले लोग शासन-प्रशासन में बैठे हुए हैं । अंत में एक भूतपूर्व कर्मचारी होने के नाते कहना चाहूंगा कि पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, उसके सहारे सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता ।  राजेश कुमार पासी

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