मीडिया लेख सार्थक पहल सोशल मीडिया पर देह की नुमाइश: सशक्तिकरण या आत्मसम्मान का संकट ? May 16, 2025 / May 16, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment “लाइक्स की दौड़ में खोती पहचान: नारी सशक्तिकरण का असली मतलब” सोशल मीडिया पर नारी देह का बढ़ता प्रदर्शन क्या वाकई सशक्तिकरण है या महज़ लाइक्स और फॉलोअर्स की होड़? क्या हम सच्ची आज़ादी की ओर बढ़ रहे हैं या एक डिजिटल पिंजरे में कैद हो रहे हैं? क्या आत्मसम्मान की जगह केवल देह की […] Read more » सशक्तिकरण या आत्मसम्मान का संकट सोशल मीडिया पर देह की नुमाइश
लेख क्यों जरूरी है हर विषयों पर लिखना… May 15, 2025 / May 15, 2025 by मनोज कुमार | Leave a Comment मनोज कुमार एक दौर था जब जवानी इश्क में डूबी होती थी लेकिन एक यह दौर है जहाँ जवानी लेखन में डूबी हुई है. विषय की समझ हो या ना हो, लिखने का सऊर हो या ना हो लेकिन लिखना है, वह भी बिना तथ्य और तर्क के. ऐसे लेखकों की बड़ी फौज तैयार हो […] Read more » Why is it necessary to write on every topic
लेख संयुक्त परिवार : मात्र समझौता नहीं, आज की “जरूरत” May 15, 2025 / May 15, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 मई पर विशेष… प्रदीप कुमार वर्मा कहते हैं कि परिवार से बड़ा कोई धन नहीं। पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं। मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं। भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं। और बहन से बड़ा कोई शुभ चिंतक नहीं। यही वजह है कि परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। किसी भी देश और समाज की परिवार एक सबसे छोटी इकाई है। परिवार एक सुरक्षा कवच है और एक मानवीय संवेदना की छतरी भी। एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार से इतर व्यक्ति का बजूद नहीं है। इसलिए परिवार के बिना अस्तित्व के बिषय में कभी सोचा नहीं जा सकता। लोगों से परिवार बनता हैं और परिवार से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व बनता हैं। परिवार के इसी महत्व को जान और समझकर लोग आप संयुक्त परिवार को एक बार फिर से अपनाने लगे हैं। देश और दुनिया में परिवार के दो स्वरूप मुख्य रूप से देखने को मिलते हैं। इनमें पितृसत्तात्मक एवं मातृ सत्तात्मक परिवार शामिल है। किसी भी सशक्त देश के निर्माण में परिवार एक आधारभूत संस्था की भांति होता है, जो अपने विकास कार्यक्रमों से दिनोंदिन प्रगति के नए सोपान तय करता है। कहने को तो प्राणी जगत में परिवार एक छोटी इकाई है। लेकिन इसकी मजबूती हमें हर बड़ी से बड़ी मुसीबत से बचाने में कारगर है। बीते सालों में यह देखने में आया है कि संयुक्त परिवार की जगह अब एकल परिवारों ने ले ली है। समाज के इस नए चलन न केवल परिवारों को बिखराव दिया है, वहीं, समूचे सामाजिक ताने-बाने पर भी संकट छा गया है। हालात ऐसे हैं कि एकल परिवारों के सदस्य अब रिश्तों के नाम तक भूलने लगे हैं, निभाने की बात तो और है। एकल परिवारों में लोग एकाकी जीवन जीने को मजबूर है और इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है । इसी चिंता और देश और दुनिया में परिवार के महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1980 के दशक के दौरान परिवार से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना शुरू किया। इसके बाद वर्ष 1983 में आर्थिक और सामाजिक परिषद सामाजिक विकास आयोग ने विकास प्रक्रिया में परिवार की भूमिका पर अपने संकल्प की सिफारिश की और महासचिव से निर्णय लेने वालों और जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने का अनुरोध किया। इसके साथ ही जनता को परिवार की समस्याओं और आवश्यकताओं के साथ-साथ उनकी जरूरतों को पूरा करने के प्रभावी तरीकों से अवगत कराया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 9 दिसंबर 1989 के अपने संकल्प 44/82 में परिवार के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष की घोषणा की और 1993 में महासभा ने फैसला किया कि 15 मई को हर साल अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाया जाएगा। सामाजिक संरचना के तौर पर परिवार का विवेचन करें तो परिवार जन्म, विवाह या गोद लेने से संबंधित दो या अधिक व्यक्तियों का समूह है, जो एक साथ रहते हैं। ऐसे सभी संबंधित व्यक्तियों को एक परिवार के सदस्य माना जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक वृद्ध विवाहित जोड़ा, उनका बेटा ओर बहू,पोता-पोती और वृद्ध जोड़े का भतीजा सभी एक ही घर या अपार्टमेंट में रहते हैं। तो वे सभी एक ही परिवार के सदस्य माने जाएंगे। परिवारों की प्रकृति की व्याख्या करें तो ऐतिहासिक दृष्टि से अधिकांश संस्कृतियों में परिवार पितृसत्तात्मक यानि पुरुष-प्रधान परिवार ही देखने में आते हैं। इनमें परिवार के सबसे बड़े पुरुष द्वारा ही परिवार के सभी कार्यों का संचालन अथवा निर्णय लिए जाते हैं। इसके साथ ही आदिवासी समाज सहित कुछ अन्य समाजों में मातृ सत्तात्मक परिवारों की पृष्ठभूमि देखने को मिलती है। ऐसे परिवारों में परिवार की बुजुर्ग महिला की प्रधानता रहती है तथा परिवार एवं समाज के सभी निर्णय लेने में बुजुर्ग महिलाएं मुख्य भूमिका निभाती है। यह सभी परिवार संयुक्त परिवार का एक रूप है जहां तीन पीढ़ियां एक साथ रहती हैं। लेकिन समय के साथ संयुक्त परिवारों की यह संकल्पना अब धूमिल हो रही है। औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण ने जीवन और व्यावसायिक शैलियों में तीव्र परिवर्तन लाकर पारिवारिक संरचना में कई परिवर्तन उत्पन्न किए हैं। लोग,विशेषकर युवा,खेती छोड़कर औद्योगिक श्रमिक बनने के लिए शहरी केंद्रों में चले गए। इस प्रक्रिया के कारण कई बड़े परिवार बिखर गए। इसके साथ ही युवाओं में अपने निर्णय खुद लेने की प्रवृत्ति तथा रोजी रोजगार के चलते अपने परिवार से दूर रहने के कारण भी एकल परिवार की संख्या बढ़ रही है। परिवार नियोजन के चलते हुए परिवार के सदस्यों की संख्या कम हो रही है। जिसके चलते भी परिवारों को आकर संयुक्त परिवार के सिकुड़ कर अब एकल परिवार के रूप में सामने आया है। यही नहीं बुजुर्गों की टोका-टाकी तथा अपना निर्णय खुद लेने की चाहत के चलते भी युवाओं की चाहत अलग अपना संसार बसाने की है। जिसके चलते भी परिवारों में बिखराव है और एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है। एकल परिवार के दुखद पहलू के रूप में एकाकीपन तथा परिवार के सदस्यों की सहायता नहीं मिलने से कामकाजी महिला पुरुष अब यह सोचने पर मजबूर हो गए कि अगर वह संयुक्त परिवार का हिस्सा होते तो उनके कामकाज पर रहने के दौरान परिवार के बुजुर्ग तथा अन्य सदस्य उनके बच्चों का ध्यान रखते और बच्चों को डे-केअर सेंटर में छोड़ने की मजबूरी न सामने आती। इसके साथ ही जब एकल परिवार में रहते हैं तो बच्चों को उनके माता-पिता के अलावा और किसी रिश्ते की जानकारी होती है और ना ही अनुभव। देश की भावी पीढ़ी को ना दादा-दादी की कहानी सुनाने को मिलती हैं और ना ही चाचा और बुआ का दुलार। यही नहीं घर के कामकाज में ना तो महिला को अपनी सास और ननद की मदद मिलती है और ना ही पुरुष को अपने पिता और भाई की सहायता। इसके चलते भी एकल परिवार में रहने वाले महिला और पुरुष खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं। हालात ऐसे हैं की दादी-दादी से लेकर चाचा चाचा बुआ फूफा मामा मामी तथा भैया भाभी के रिश्तो से यह नई पीढ़ी अनजान है। यही वजह है कि देर से ही सही लोग अब फिर से संयुक्त परिवारों की ओर लौट भी लगे हैं। जिसके चलते संयुक्त परिवार की संकल्पना अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन वापस अपने मुकाम पर आने लगी है। इसके साथ ही अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि संयुक्त परिवार अपने हितों के लिए मजबूरी में किया गया समझौता भर नहीं है। संयुक्त परिवार आज की जरूरत भी है। प्रदीप कुमार वर्मा Read more » a "need" of today Joint Family: Not just a compromise अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 मई संयुक्त परिवार
लेख मानव सभ्यता का शिखर एवं रिश्तों का स्वर्ग है परिवार May 13, 2025 / May 13, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस, 15 मई 2025 ललित गर्ग वैश्विक परिवार दिवस दुनिया भर के लोगों में प्यार, सद्भाव, एकता को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित विश्व उत्सव है। संयुक्त राष्ट्र ने परिवारों के महत्व और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन की स्थापना की। परिवार हमें एकसूत्रता […] Read more »
लेख माँ का आँचल – प्रेम की छाँव, बलिदान का गीत” May 11, 2025 / May 11, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment माँ केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन की पहली गुरु, मार्गदर्शिका और सबसे करीबी मित्र है। उसकी ममता जीवनभर हमें सुरक्षा, सुकून और संस्कार देती है। माँ का आशीर्वाद किसी कवच से कम नहीं, जो हर मुश्किल में हमें संबल देता है। मदर्स डे पर उसे सम्मान देना मात्र एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उसके […] Read more » mothers day माँ का आँचल
लेख मां धरती पर विधाता की प्रतिनिधि यानी देवतुल्य है May 8, 2025 / May 8, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व मातृ दिवस- 11 मई, 2025 -ललित गर्ग-‘मदर्स डे’ या मातृ दिवस एक ऐसा महत्वपूर्ण एवं संवेदनात्मक दिन है जो हमें अपनी माताओं के प्यार और बलिदान के लिए धन्यवाद देने और उन्हें सम्मान देने का अवसर देता है। जननी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का तथा मातृशक्ति की अभिवंदना का यह एक स्वर्णिम अवसर है। माँ […] Read more » International Mother's Day - 11 May विश्व मातृ दिवस- 11 मई
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर May 6, 2025 / May 6, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल ‘गुरुदेव’ के नाम से विख्यात कवि लेखक संगीतकार एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी तथा राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता और भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने साहित्य, शिक्षा, संगीत, कला, रंगमंच और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा से वह स्थान प्राप्त किया है जो विरले ही […] Read more » Timeless creator Rabindranath Tagore कालजयी सृजक रवींद्रनाथ टैगोर
लेख ये कैसा ट्रोल, जिसका नहीं है कोई मोल ? May 6, 2025 / May 6, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment जम्मू-कश्मीर के पहलगाम हमले में (22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में) अपने पति, भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल को खोने वाली हिमांशी नरवाल को हाल ही में ट्रोल्स ने निशाना बनाया। दरअसल, वह लगातार शांति की अपील कर रही थी और उन्होंने पत्रकारों के सामने यह बात कही थी कि-‘हम नहीं चाहते कि […] Read more »
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार रवीन्द्रनाथ टैगोर: रोशनी जिनके साथ चलती थी May 6, 2025 / May 6, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती – 7 मई, 2025 – ललित गर्ग – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांङ्ला’ के रचयिता एवं भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर की जन्म जयंती हर साल 7 मई को मनाई जाती है। वे एक महान एवं विश्वविख्यात कवि, लेखक, साहित्यकार, दार्शनिक, […] Read more » रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती - 7 मई
लेख सत्ता से सड़क तक का सफर: पाकिस्तान का पूर्व सांसद आज हरियाणा में बेच रहे आइसक्रीम May 5, 2025 / May 5, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अशोक कुमार झा भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते हमेशा से नाजुक रहे हैं लेकिन हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से तनाव एक बार फिर चरम पर है। हमले के बाद केंद्र सरकार ने भारत में वीजा पर रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश जारी […] Read more » Former Pakistani MP is selling ice cream in Haryana today
राजनीति लेख अव्वल आने की होड़ में छात्रों की आत्महत्याएं चिन्ताजनक May 5, 2025 / May 5, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग टॉपर संस्कृति के दबाव एवं अव्वल आने की होड़ में छात्रों के द्वारा तनाव, अवसाद, कुंठा में आत्महत्या कर लेना एक गंभीर समस्या है। यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण है कि हमारी छात्र प्रतिभाएं आसमानी उम्मीदों, टॉपर संस्कृति के दबाव व शिक्षा तंत्र की विसंगतियों के चलते आत्मघात की शिकार हो रही हैं। हाल […] Read more » Suicides by students in the race to get top marks are a matter of concern छात्रों की आत्महत्याएं चिन्ताजनक
लेख प्रेस का स्वतंत्र, निडर और पारदर्शी होना आवश्यक है May 1, 2025 / May 1, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment प्रत्येक वर्ष 3 मई को अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। लोकतंत्र में प्रेस का बहुत महत्व है। जैसा कि प्रेस के बारे में यह कहा गया है कि ‘प्रेस की स्वतंत्रता के बिना न तो लोकतंत्र है, न पारदर्शिता है और न ही न्याय है।’ प्रेस की स्वतंत्रता किसी देश के नागरिकों […] Read more » अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस