लेख जब पत्रकारिता ने चलाया गो-संरक्षण का सफल आंदोलन April 3, 2025 / April 3, 2025 by लोकेन्द्र सिंह राजपूत | Leave a Comment पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती प्रसंग पर विशेष – लोकेन्द्र सिंह पंडित माखनलाल चतुर्वेदी उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा को राष्ट्रीयता के जागरण एवं स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। अपने लंबे पत्रकारीय जीवन के माध्यम से माखनलाल जी ने रचना, संघर्ष और आदर्श का जो पाठ पढ़ाया वह आज भी हतप्रभ […] Read more » गो-संरक्षण का सफल आंदोलन पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती
लेख समाज स्वास्थ्य-योग ‘ऑटिज्म’ से बच्चों को बचाने की गंभीर चुनौती? April 2, 2025 / April 2, 2025 by रमेश ठाकुर | Leave a Comment डा0 रमेश ठाकुर ‘ऑटिज्म बीमारी’ को हल्के में लेने की भूल कतई न की जाए, ये नवजात बच्चों के संग जन्म से ही उत्पन्न होती है। ऑटिज्म से बचा कैसे जाए, जिसके संबंध में प्रत्येक वर्ष 2 अप्रैल को पूरे संसार में ‘विश्व ऑटिज्म दिवस’ जागरूकता के मकसद से मनाया जाता है। मौजूदा वक्त में […] Read more » A serious challenge to save children from 'autism'?
लेख एक तराशा मां ने हीरा April 1, 2025 / April 1, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment बोल उठी – बलिदानी की,एक समाधि बोल उठी।बड़े प्रेम से बलिदानी की,सारी बातें – बोल उठी ।। एक तराशा मां ने हीरा,किया देश को अर्पित।आओ बैठो, बातें कर लो ,कर लो पुष्प समर्पित ।। वरमाला नहीं पड़ी गले में ,पड़ी थी रस्सी फांसी की ।चूमा बड़े प्रेम से उसको,जब शत्रु ने फांसी दी ।। अर्पित […] Read more » एक तराशा मां ने हीरा
लेख 1930 की चेतावनी और पकते कान: साइबर सतर्कता या शोरगुल? April 1, 2025 / April 1, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment एक ज़रूरी बचाव, लेकिन क्या लोग ऊब गए हैं? साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 और ऑनलाइन ठगी से बचाव की चेतावनियाँ इतनी बार सुनाई देने लगी हैं कि लोग अब इनसे ऊबने लगे हैं। बैंक, फोन कंपनियाँ, न्यूज़ चैनल्स, और सोशल मीडिया हर जगह साइबर फ्रॉड के अलर्ट्स छाए हुए हैं, जिससे लोग ठगी से कम […] Read more » साइबर सतर्कता
कला-संस्कृति मनोरंजन लेख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में घोष का इतिहास April 1, 2025 / April 1, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानंद मिश्रा संघ की स्थापना 1925 के मात्र 2 वर्ष बाद 1927 में संघ में घोष को शामिल किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसे आरएसएस या संघ परिवार के नाम से भी जाना जाता है, उसकी स्थापना सन 1925 में हुई। संघ के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अधिकांश लोग संघ के स्वयंसेवकों के सेवाकार्यों और शाखा पर होने वाले दंड प्रदर्शन से ही परिचित हैं किंतु संघ के ऐसे अनेकों रचनात्मक और सृजनात्मक कार्य हैं जो उसके स्वयंसेवकों की कठोर साधना से सिद्ध हुए हैं। ऐसा ही एक काम है संघ का घोष-वादन। जैसा कहा जाता है कि संघ कार्य का विस्तार देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप समाजोपयोगी और प्रासंगिकता के अनुरूप बड़ी सहजता से हुआ है। आरंभिक समय में शाखा पर केवल व्यायाम और सामान्य चर्चा हुआ करती थी. फिर धीरे-धीरे शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रम होने लगे। इसी क्रम में शारीरिक अर्थात फिजिकल एक्सरसाइज में भी समता और संचलन का अभ्यास आरंभ हुआ। संचलन के समय शारीरिक विभाग ने इस बात पर विचार किया कि यदि संचलन के साथ घोष वाद्य का प्रयोग किया जाए तो इसकी रोचकता, एकरूपता और उत्साह में चमत्कारिक परिवर्तन हो सकता है। स्वयंसेवकों की इच्छा शक्ति का ही परिणाम था कि संघ स्थापना के केवल दो वर्षों बाद 1927 में शारीरिक विभाग में घोष भी शामिल हो गया। यह इतना आसान कार्य नहीं था। उस समय दो चुनौतियाँ थीं, एक तो यह कि घोष वाद्य जो संचलन में काम आ सकें, वे महँगे थे और सेना के पास हुआ करते थे। दूसरा यह कि उसके कुशल प्रशिक्षक भी सैन्य अधिकारी ही होते थे। चूँकि संघ के पास न तो इतना धन था कि वाद्य यंत्र खरीदे जा सकें और उस पर भी यह राष्ट्रभक्तों का ऐसा संगठन था जिसके संस्थापक कांग्रेस के आंदोलनों से लेकर बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ काम कर चुके थे, इसलिए किसी सैन्य अधिकारी से स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित कराना बड़ा कठिन कार्य था। उस समय सैन्य अधिकारियों को केवल सेना के घोष-वादकों को ही प्रशिक्षित करने की अनुमति थी। इस चुनौती से निबटने के लिए संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी के परिचित बैरिस्टर श्री गोविन्द राव देशमुख जी के सहयोग से सेना के एक सेवानिवृत बैंड मास्टर के सहयोग से स्वयंसेवकों को घोष वाद्यों का प्रशिक्षण दिलाया गया। शंख वादन के लिए मार्तंड राव तो वंशी के लिए पुणे के हरिविनायक दात्ये जी आदि स्वयंसेवकों ने शंख, वंशी,आनक जैसे वाद्य यंत्रों पर अभ्यास आरंभ किया। इस प्रकार संघ में घोष का एक आरंभिक स्वरूप खड़ा हुआ। पाश्चात्य शैली के बैंड पर उनके ही संगीत पर आधारित रचनाएँ बजाने में भारतीय मन को वैसा आनंद नहीं आया जैसा कि आना चाहिए था। तब स्वयंसेवकों का ध्यान इस बात पर गया कि हमारे देश में हजारों वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य और धनुर्धारी अर्जुन ने देवदत्त बजाकर विरोधी दल को विचलित कर दिया था। भगवान कृष्ण के समान वंशी वादक संसार में कोई हुआ नहीं, अतः हमें इन वाद्यों पर ऐसी रचनाएँ तैयार करनी चाहिए जिनमें अपने देश की नाद परंपरा की सुगंध हो। स्वर्गीय बापूराव व उनके साथियों ने इस दिशा में कार्य आरंभ किया। इस प्रकार राग केदार, भूप, आशावरी में पगी हुई रचनाओं का जन्म हुआ। स्वयंसेवकों ने घोष वाद्यों को भी स्वदेशी नाम प्रदान कर उन्हें अपनी संगीत परंपरा के अनुकूल बनाकर उनका भारतीय करण किया। इस क्रम में साइड ड्रम को आनक, बॉस ड्रम को पणव, ट्रायंगल को त्रिभुज, बिगुल को शंख आदि नाम दिए गए जो कि ढोल, मृदंग आदि नामों की परंपरा में ही समाहित होते हैं। घोष की विकास यात्रा में प्रथम अखिल भारतीय घोष प्रमुख श्री सुब्बू श्रीनिवास का नामोल्लेख भी अत्यंत समीचीन होगा। अनेक वर्षों तक सतत प्रवास करके घोष वर्ग और घोष शिविरों के माध्यम से पूरे देश में हजारों कुशल घोष वादक तैयार किये। घोष वादकों में निपुणता और दक्षता की दृष्टि से अखिल भारतीय घोष शिविर आयोजित किये जाने लगे। श्री सुब्बू जी घोष के प्रति इतने समर्पित रहे कि सतत प्रवास के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा किन्तु अंतिम साँस तक बिना रुके, बिना थके वे ध्येय मार्ग पर बढ़ते रहे। परंपरागत वाद्य शंख, आनक और वंशी से आरंभ हुई घोष यात्रा आज नागांग, स्वरद आदि अत्याधुनिक वाद्यों पर मौलिक रचनाओं के मधुर वादन तक पहुँच गई है। घोष वादन में मौलिक और भारतीय नाद परंपरा को समृद्ध करने की यात्रा प्रथम रचना गणेश से आरंभ होकर लगभग अर्ध शतक पूर्ण कर निरंतर बढ़ती जा रही है। शिवानंद मिश्रा Read more » History of Ghosh in RSS
लेख समाज नैतिक पतन के चलते खतरे में इंसानी रिश्ते March 31, 2025 / March 31, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment समाज में कितना पतन बाकी है? यह सुनकर दिल दहल जाता है कि कोई बेटा अपने ही माता-पिता की इतनी निर्ममता से हत्या कर सकता है? महिला ने जेठ के साथ मिलकर अपने दो वर्ष के बेटे को मरवा दिया। पत्नी ने प्रेमी सँग मिलकर मर्चेंट नेवी मे अफसर पति के टुकड़े-टुकड़े किये। पिता ने […] Read more » खतरे में इंसानी रिश्ते नैतिक पतन के चलते खतरे में इंसानी रिश्ते
लेख भूकंप के लिए अनियोजित मानवीय गतिविधियां भी हैं जिम्मेदार ! March 30, 2025 / March 31, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment 28 मार्च का दिन म्यांमार और थाइलैंड के लिए एक बहुत ही बुरा दिन था। इस दिन यहां आए जोरदार व शक्तिशाली भूकंप ने दोनों देशों को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार रिक्टर स्केल पर 7.7 की तीव्रता वाले इस भूकंप ने म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र से लेकर थाइलैंड […] Read more » Unplanned human activities are also responsible for earthquakes! म्यांमार और थाइलैंड में भूकंप
लेख समाज वृद्धों के लिये उजाला बना सुप्रीम कोर्ट का फैसला March 29, 2025 / March 31, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- देश ही नहीं, दुनिया में वृद्धों के साथ उपेक्षा, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, हिंसा तो बढ़ती ही जा रही है, लेकिन अब बुजुर्ग माता-पिता से प्रॉपर्टी अपने नाम कराने या फिर उनसे गिफ्ट हासिल करने के बाद उन्हें यूं ही छोड़ देने, वृद्धाश्रम के हवाले कर देने, उनके जीवनयापन में सहयोगी न बनने की बढ़ती […] Read more » The Supreme Court's decision brought light for the elderly वृद्धों के लिये उजाला बना सुप्रीम कोर्ट
कला-संस्कृति लेख क्या सचमुच सिमट रही है दामन की प्रतिष्ठा? March 28, 2025 / March 28, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment समय के साथ परिधान और समाज की सोच में बदलाव आया है। पहले “दामन” केवल वस्त्र का टुकड़ा नहीं, बल्कि मर्यादा और संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। पारंपरिक वस्त्रों—साड़ी, घाघरा, अनारकली—को महिलाओं की गरिमा से जोड़ा जाता था। “दामन की प्रतिष्ठा” अब भी बनी हुई है, परंतु उसकी परिभाषा बदल चुकी है। परंपरा और […] Read more » Is Daman's reputation really shrinking? सिमट रही है दामन की प्रतिष्ठा
लेख “कुआँ सूखने पर ही पता चलता है पानी की कीमत” March 27, 2025 / March 27, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment कहावत “जब तक कुआँ सूख नहीं जाता, हमें पानी की कीमत का पता नहीं चलता” हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमें अपने जीवन और संसाधनों के प्रति जागरूक और कृतज्ञ रहना चाहिए। चाहे वह जल हो, प्रेम हो, स्वतंत्रता हो या स्वास्थ्य, हमें इनका सम्मान और संरक्षण करना चाहिए ताकि आने वाली […] Read more » “The value of water is known only when the well dries up” पानी की कीमत
लेख समाज डिजिटल भारत में विचारों की बेड़ियां March 26, 2025 / March 26, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment सरकार द्वारा ओटीटी प्लेटफार्मों की निगरानी, सोशल मीडिया पर टेकडाउन आदेश और आईटी नियम 2021 ने डिजिटल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित किया है। सेंसरशिप और आत्म-नियमन से प्लेटफार्म अधिक सामग्री हटाने लगे हैं, जिससे विचारों की विविधता प्रभावित होती है। झूठी सूचनाओं और साइबर अपराधों को रोकने के लिए कुछ हद तक नियमन आवश्यक […] Read more »
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार समाज की उन्नति और विकास की आधारशिला रखता है साहित्य March 26, 2025 / March 26, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment कहते हैं कि साहित्य ही समाज का असली दर्पण होता है। समाज में जो भी घटित होता है, मतलब कि समाज में जो भी गतिविधियां होतीं हैं, लेखक उनसे कहीं न कहीं प्रभावित होता है और वह अक्सर उन्हीं चीजों, घटनाओं, गतिविधियों को अपने साहित्य में अपनी कलम के माध्यम से काग़ज़ के कैनवास पर […] Read more » प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल विनोद कुमार शुक्ल