लेख शख्सियत समाज साहित्य मिर्जा गालिब: गहन मानवीय चेतना के चितेरे December 26, 2023 / December 26, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment मिर्जा गालिब जयन्ती- 27 दिसम्बर, 2023 -ः ललित गर्ग:- मिर्जा ग़ालिब उर्दू-फ़ारसी के प्रख्यात कवि तथा महान् शायर थे। वे सर्व-धर्म-सद्भाव एवं मानवीय चेतना के चितेरे थे। ग़ालिब का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक एवं बहुआयामी था। उनका जीवन संघर्ष से भागते या पलायन करते हुए नहीं बिता और न इनकी कविता एवं शायरी में कहीं निराशा का […] Read more » Mirza Ghalib: Portrait of the deepest human consciousness\ मिर्जा गालिब
लेख सामाजिक अलगाव और आत्महत्या December 26, 2023 / December 26, 2023 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment आत्महत्या घरेलू हिंसा पर केंद्रित है। गरीबी, बेरोज़गारी, कर्ज़ और शैक्षणिक समस्याएँ भी आत्महत्या से जुड़ी हैं। भारत में किसानों की आत्महत्या की हालिया घटनाओं ने इस बढ़ती त्रासदी से निपटने के लिए सामाजिक और सरकारी चिंता बढ़ा दी है। जाहिर है, किसी समाज की आत्महत्या के बारे में धारणा और उसकी सांस्कृतिक परंपराएं आत्महत्या […] Read more » Social isolation and suicide सामाजिक अलगाव और आत्महत्या
लेख शख्सियत समाज श्रीनर्मदा कल्पवल्ली के रचयिता तपोमूति स्वामी ओंकारानन्द जी गिरी December 26, 2023 / December 26, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment पुण्यसलिला मॉ नर्मदा जी के पावनतट होशंगाबाद में नर्मदा दर्शन कर पुण्य अर्जित करने आने वाले महात्माओं एवं संतों श्री श्रृंखला में तपोमूर्ति ब्रम्हलीन पूज्य स्वामी ओंकारानन्दजी गिरी का नाम नर्मदापरिक्रमा कर रहे सभी भक्तों को स्मरण रहता है जो इनके द्वारा रचित वृहद नर्मदा महात्म्य एवं श्रीनर्मदा कल्पवल्ली के […] Read more » author of Shri Narmada Kalpavalli Tapomuti Swami Omkaranand Ji Giri
लेख शख्सियत आंखों से बोलते अटल जी के संग हुई अद्भुत रेलयात्रा December 25, 2023 / December 26, 2023 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment वो कुछ चढ़ती-बढ़ती हुई गर्मियों के दिन थे। सामान्यतः गर्मियों में सुबहें शीघ्र ही गर्म हो जाती हैं किंतु मैं कुछ अधिक ही गर्म व उत्साही था। मेरी व्यक्तिगत गर्मी व उत्साह का कारण था कि हमारे प्रेरणास्त्रोत अटल बिहारी जी वाजपेयी उस दिन जीटी रेलगाड़ी से नागपुर जा रहे थे और हम लोग उनसे […] Read more »
लेख वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा December 23, 2023 / December 26, 2023 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment नरेन्द्र सिंह बिष्टनैनीताल, उत्तराखण्ड उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. विगत कई वर्षो से वृक्षों की आक्रामक प्रजातियों की बढ़ती संख्या को अनदेखा करता रहा, परंतु अब यही आज राज्य के लिए चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं. इन प्रजातियों से न केवल राज्य में वनों को […] Read more » Threat to humans and forests from invasive tree species
लेख विकास के लिए पक्की सड़कों का वरदान December 22, 2023 / December 26, 2023 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment आरती शांतडोडा, जम्मू भारत एक सुंदर देश होने के साथ-साथ कई छोटी बड़ी समस्याओं से भी उलझा हुआ है। इन समस्याओं में सबसे अहम सड़कों का नहीं होना है। हालांकि पिछले कुछ दशकों में देश में उन्नत सड़कों का जाल बिछाया गया है। शहर से लेकर गाँव तक सड़कों की हालत बेहतर की गई है। […] Read more » Boon of paved roads for development
लेख समाज सार्थक पहल कंप्यूटर साक्षरता से जोड़ना होगा ग्रामीण किशोरियों को December 21, 2023 / December 21, 2023 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment हरीश कुमार पुंछ, जम्मू जब से टेक्नोलॉजी का विकास हुआ है, पूरी दुनिया एक गाँव के रूप में सिमट गई है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका कंप्यूटर की है। आज के समय में कंप्यूटर का ज्ञान होना पहली प्राथमिकता हो गई है। टेक्नोलॉजी के इस दौर में बिना कंप्यूटर के आज किसी भी फील्ड में आगे बढ़ना […] Read more »
लेख भाषाओं की विलुप्ति से होती है सांस्कृतिक क्षति December 21, 2023 / December 21, 2023 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment भाषाओं की विलुप्ति, भाषाओं का खत्म होना या यूं कहें कि किसी भाषा विशेष की हानि हमेशा न केवल किसी देश की विरासत के लिए बल्कि पूरे मानव इतिहास के लिए एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक क्षति या नुकसान होती है। भारत में लंबे समय तक(लगभग 200 सालों तक) औपनिवेशिक शासन रहा है। यही कारण है […] Read more » Extinction of languages causes cultural loss
लेख प्रसिद्ध भजनोपदेशकपं. ओम्प्रकाशवर्माजी का सम्पूर्ण ऋग्वेद कण्ठस्थ किए हुए एक सनातनी विद्वान विषयक महत्वपूर्ण संस्मरण December 21, 2023 / December 21, 2023 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य, पं. ओम्प्रकाश वर्मा जी आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक थे। विगत वर्ष उनका देहावसान हुआ है। उनकी धर्मपत्नी एवं परिवार के सदस्य हरयाणा के यमुनानगर में निवास करते हैं। वर्मा जी ने यमुनानगर के प्रसिद्ध विद्वान पं. इन्द्रजित् देव जी को अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण संस्मरण सुनाये व लिखाये थे। उन […] Read more » a Sanatani scholar who had memorized the entire Rigveda. Famous hymn preacher Pt. Important memoir of Omprakashvarmaji
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे December 20, 2023 / December 20, 2023 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment यह एक एतिहासिक तथ्य है कि प्रभु श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने के उद्देश्य से अपनी सेना वनवासियों एवं वानरों की सहायता से ही बनाई थी। केवट, छबरी, आदि के उद्धार सम्बंधी कहानियां तो हम सब जानते हैं। परंतु, जब वे 14 वर्षों के वनवास पर थे तो इतने लम्बे अर्से तक वनवास करते करते वे स्वयं भी एक तरह से वनवासी बन गए थे। इन 14 वर्षों के दौरान, वनवासियों ने ही प्रभु श्री राम की सेवा सुषुर्शा की थी एवं प्रभु श्री राम भी इनके स्नेह, प्रेम एवं श्रद्धा से बहुत अभिभूत थे। इसी तरह की कई कहानियां इतिहास के गर्भ में छिपी हैं। यह भी एक कटु सत्य है एवं इतिहास इसका गवाह है कि हमारे ऋषि मुनि भी वनवासियों के बीच रहकर ही तपस्या करते रहे हैं। अतः भारत में ऋषि, मुनि, अवतार पुरुष, आदि वनवासियों, जनजातीय समाज के अधिक निकट रहते आए हैं। इस प्रकार, हमारी परम्पराएं, मान्यताएं एवं सोच एक ही है। जनजातीय समाज भी भारत का अभिन्न एवं अति महत्वपूर्ण अंग है। आज भी भारत में वनवासी मूल रूप में प्रभु श्री राम की प्रतिमूर्ति ही नजर आते हैं। दिल से एकदम सच्चे, धीर गम्भीर, भोले भाले होते हैं। यह प्रभु श्री राम की उन पर कृपा ही है कि वे आज भी सतयुग में कही गई बातों का पालन करते हैं। परंतु, कई बार ईसाई मशीनरियों एवं कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों द्वारा वनवासियों को उनके मूल स्वभाव से भटकाकर लोभी, लालची एवं रावण का वंशज बताया जाता है। रावण स्वयं तो वनवासी कभी रहे ही नहीं थे एवं वे श्री लंका के एक बुद्धिमान राजा थे। इस बात का वर्णन जैन रामायण में भी मिलता है। अब प्रशन्न यह उठता है कि जब रावण स्वयं एक ब्राह्मण था तो वह वंचित वर्ग का मसीहा या पूर्वज कैसे हो सकता है? जैन रामायण की तरह गोंडी रामायण भी रावण को पुलत्स वंशी ब्राह्मण मानती है, न कि आदिवासियों का पूर्वज, कुछ गोंड पुजारी रावण को अपना गुरु भाई भी मानते हैं, चूंकि पुलत्स ऋषि ने उनके पूर्वजों को भी दीक्षा दी थी। इस तरह के तथ्य भी इतिहास में मिलते हैं कि रावण अपने समय का एक बहुत बड़ा शिव भक्त एवं प्रकांड विद्वान था। रावण जब मृत्यु शैया पर लेटा था तब प्रभु श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था कि रावण अब मृत्यु के निकट है एवं प्रकांड विद्वान है अतः उनसे उनके इस अंतिम समय में कुछ शिक्षा ले लो। तब लक्ष्मण रावण के सिर की तरफ खड़े होकर शिक्षा लेने पहुंचे थे तो लक्ष्मण को कहा गया था कि शिक्षा लेना है तो रावण के पैरों की तरफ आना होगा। तब लक्ष्मण, रावण के पैरों के पास आकर खड़े हुए तब जाकर रावण ने लक्ष्मण को अपने अंतिम समय में शिक्षा प्रदान की थी। अतः रावण अपने समय का एक प्रकांड पंडित था। भारतीय संस्कृति पर पूर्व में भी इस प्रकार के हमले किए जाते रहे हैं। भारत में समाज को आपस में बांटने के कुत्सित प्रयास कोई नया नहीं हैं। एक बार तो रामायण एवं महाभारत आदि एतिहासिक ग्रंथों को भी अप्रामाणिक बनाने के कुत्सित प्रयास हो चुके हैं। वर्ष 2007 में तो केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के मातहत भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने एक हलफनामा (शपथ पत्र) दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वाल्मीकीय रामायण और गोस्वामी तुलसीदासजी कृत श्रीरामचरितमानस प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं, लेकिन इनके पात्रों को एतिहासिक रूप से रिकार्ड नहीं माना जा सकता है, जो कि निर्विवाद रूप से इनके पात्रों का अस्तित्व सिद्ध करता हो या फिर घटनाओं का होना सिद्ध करता हो। ये बातें कितनी दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह कहना कि प्रभु श्री राम और रामायण के पात्र (राम, भरत, लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण, सुग्रीव और रावण, आदि) एतिहासिक रूप से प्रामाणिक सिद्ध नहीं होते, एक प्रकार से भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात ही था। हालांकि भारतीय जनमानस के आंदोलित होने पर उस समय की भारत सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ था और उसने अपने शपथ पत्र (हलफनामे) को न्यायालय से वापस मांग लिया था। विभिन्न देशों में वहां की स्थानीय भाषाओं में पाए जाने वाले ग्रंथों एवं विदेशों तक में किए गए कई शोध पत्रों के माध्यम से भी यह सिद्ध होता है कि प्रभु श्री राम 14 वर्ष तक वनवासी बनकर ही वनों में निवास किए थे। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रभु श्रीराम भी अपने वनवास के दौरान वनवासियों के बीच रहते हुए एक तरह से वनवासी ही बन गए थे। साथ ही, वनों में निवासरत समुदायों ने सहज ही उन्हें अपने से जुड़ा माना और प्रभु श्री राम उनके लिए देव तुल्य होकर उनमें एक तरह से रच बस गए थे। कई वनवासी एवं जनजाति समाजों ने तो अपनी रामायण ही रच डाली है। जिस प्रकार, गोंडी रामायण, जो रामायण को अपने दृष्टिकोण से देखती है, हजारों सालों से गोंडी व पंडवानी वनों में रहने वाले जनजाति समाजों की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रही है। गुजरात के आदिवासियों में “डांगी रामायण” तथा वहां के भीलों में “भलोडी रामायण” का प्रचलन है। साथ ही, हृदय स्पर्शी लोक गीतों पर आधारित लोक रामायण भी गुजरात में राम कथा की पावन परम्परा को दर्शाती है। इसके साथ ही, विदेशों में भी वहां की भाषाओं में लिखी गई रामायण बहुत प्रसिद्ध है। आज प्रभु श्री राम की कथा भारतीय सीमाओं को लांघकर विश्व पटल पर पहुंच गई है और निरंतर वहां अपनी उपयोगिता, महत्ता और गरिमा की दस्तक देती आ रही है। आज यह कथा विश्व की विभिन्न भाषाओं में स्थान, विचार, काल, परिस्थिति आदि में अंतर होने के बावजूद भी अनेक रूपों में, विधाओं में और प्रकारों में लिखी हुई मिलती है। यथा, थाईलेंड में प्रचलित रामायण का नाम “रामकिचेन” है। जिसका अर्थ है राम की कीर्ति। कम्बोडिया की रामायण “रामकेर” नाम से प्रसिद्ध है। लाओस में “फालक फालाम” और “फोमचक्र” नाम से दो रामायण प्रचलित हैं। मलेशिया यद्यपि मुस्लिम राष्ट्र है, परंतु वहां भी “हिकायत सिरीरामा” नामक रामायण प्रचलित है, जिसका तात्पर्य है श्री राम की कथा। इंडोनेशिया की रामायण का नाम “ककविन रामायण” है, जिसके रचनाकार महाकवि ककविन हैं। नेपाल में “भानुभक्त रामायण” और फिलीपीन में “महरादिया लावना” नामक रामायण प्रचलित है। इतना ही नहीं, प्रभु श्री राम को मिस्र (संयुक्त अरब गणराज्य) जैसे मुस्लिम राष्ट्र और रूस जैसे कम्युनिस्ट राष्ट्र में भी लोकनायक के रूप में स्वीकार किया गया है। इन सभी रामायण में भी प्रभु श्री राम के वनवास में बिताए गए 14 वर्षों के वनवास का विस्तार से वर्णन किया गया है। भारतीय साहित्य की विशिष्टताओं और गहनता से प्रभावित होकर तथा भारतीय धर्म की व्यापकता एवं व्यावहारिकता से प्रेरित होकर समय समय पर चीन, जापान आदि एशिया के विभिन्न देशों से ही नहीं, यूरोप में पुर्तगाल, स्पेन, इटली, फ्रान्स, ब्रिटेन आदि देशों से भी अनेक यात्री, धर्म प्रचारक, व्यापारी, साहित्यकार आदि यहां आते रहे हैं। इन लोगों ने भारत की विभिन्न विशिष्टताओं और विशेषताओं के उल्लेख के साथ साथ भारत की बहुप्रचलित श्रीराम कथा के सम्बंध में भी बहुत कुछ लिखा है। यही नहीं, विदेशों से आए कई विद्वानों जहां इस संदर्भ में स्वतंत्र रूप से मौलिक ग्रंथ लिखे हैं, वहीं कई ने इस कथा से सम्बंधित “रामचरितमानस” आदि विभिन्न ग्रंथों के अनुवाद भी अपनी भाषाओं में किए हैं और कई ने तो इस विषय में शोध ग्रंथ भी तैयार किए हैं। भारत के वनवासियों के तो रोम रोम में प्रभु श्री राम बसे हैं। उन्हें प्रभु श्रीराम से अलग ही नहीं किया जा सकता है। यह सोचना भी हास्यास्पद लगता है। प्रभु श्री राम की जड़ें आदिवासियों में बहुत गहरे तक जुड़ी हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि विदेशी मशीनरियों के कुत्सित प्रयासों को विफल करते हुए भारतीय संस्कृति पर हमें गर्व करना होगा। धर्मप्राण भारत सारे विश्व में एक अद्भुत दिव्य देश है। इसकी बराबरी का कोई देश नहीं है क्योंकि भारत में ही प्रभु श्रीराम एवं श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। हमारे भारतवर्ष में भगवान स्वयं आए हैं एवं एक बार नहीं अनेक बार आए हैं। हमारे यहां गंगा जैसी पावन नदी है एवं हिमालय जैसा दिव्य पर्वत है। ऐसे भाग्यशाली कहां हैं अन्य देशों के लोग। प्रहलाद सबनानी Read more » प्रभु श्रीराम वनवासियों एवं वंचितों के अधिक करीब थे
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लेख भगवत गीता कोरा ग्रंथ, शास्त्र ही नहीं, जीवन-दर्शन है December 20, 2023 / December 20, 2023 by ललित गर्ग | Leave a Comment गीता जयंती 22 दिसम्बर 2023-ः ललित गर्ग:- श्रीमद् भगवद गीता या गीता, कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध की शुरुआत से पहले भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच होने वाला संवाद है। मान्यता के अनुसार, जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, उस दिन को ही गीता की जन्मतिथि मानते हुए गीता जयंती मनाई जाती […] Read more » Geeta Jayanti गीता जयंती
लेख राधाकृष्ण की ललित लीलाओं ने दिया आधुनिक चित्रकारी को जन्म December 20, 2023 / December 20, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment ग्यारहवीं ईसवी शताब्दी के आसपास के समय पहली बार मंचों से खेला गया रंगमंच या नाट्य के महाअभिनेता के रूप में श्रीकृष्ण और नायिका राधा का अवदान पा जगत उनकी ऋणी हो गया है। आचार्य रामानुजाचार्य ने कृष्ण राधा को लेकर अनेक रूपक लिखे है जिसमें रुक्मिणी स्वयंवर लिखने के बाद कंस वध लिखा […] Read more » राधाकृष्ण की ललित लीला