व्यंग्य साहित्य विवादों की बाढ़ में इंसान…!! August 4, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मैं जिस शहर में रहता हूं वहां कोई नदी नहीं है इसलिए हम बाढ़ की विभीषिका को जानने – समझने से हमेशा बचे रहे। कहते हैं अंग्रेजों ने इस शहर में रेलवे का कारखाना बसाया ही इसलिए था कि यह हमेशा बाढ़ के खतरे से सुरक्षित रहेगा। हालांकि मेरे शहर से करीब […] Read more » बाढ़ बाढ़ में इंसान विवादों की बाढ़
व्यंग्य साहित्य बिना जूते ओलम्पिक पदक July 30, 2016 / July 30, 2016 by एम्.एम्.चंद्रा | 1 Comment on बिना जूते ओलम्पिक पदक एक फिल्मी गाना शादी-विवाह में आज तक चलाया जाता है “जूते दे दो पैसे ले लो” लगता था यह जूते वाला खेल बस घर तक ही सीमित है, लेकिन जब एक फिल्म आयी “भाग मिल्खा भाग” तो यह जूता घर से बहार निकल कर खेल के मैदान तक पहुँच गया. उसे देख कर लगता था […] Read more » बिना जूते ओलम्पिक पदक
व्यंग्य साहित्य प्रेमचंद की जरूरत थी July 30, 2016 by अशोक गौतम | 1 Comment on प्रेमचंद की जरूरत थी अधराता हो चुका था। पर आखों से नींद वैसे ही गायब थी जैसे यूपी में चुनाव के चलते हर नेताई आंख से नींद गायब है। जैसे तैसे सोने का नाटक कर सोने ही लगा था कि फोन आया तो चैंका। किसका फोन होगा? किसी दोस्त को कहीं कुछ हो तो नहीं गया होगा? ये दोस्त […] Read more » Featured प्रेमचंद प्रेमचंद की जरूरत
व्यंग्य साहित्य बाबा, उनकी नींद भली July 28, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment लोकजीवन में कहावतों का बड़ा महत्व है। ये होती तो छोटी हैं, पर उनमें बहुत गहरा अर्थ छिपा होता है। ‘‘जो सोता है, वो खोता है’’ और ‘‘जो जागे सो पावे’’ ऐसी ही कहावते हैं। लेकिन एक भाषा की कहावत दूसरी भाषा में कई बार अर्थ का अनर्थ भी कर देती है। एक हिन्दीभाषी संत […] Read more » उनकी नींद भली बाबा
व्यंग्य साहित्य आया सावन जल -भुन के July 25, 2016 by अशोक गौतम | Leave a Comment लीजिए साहब! जिस बेदर्दी सावन का फरवरी से ही सरकार को इंतजार था आखिर वह आ ही गया। जल -भुन के ही सही। सावन हद से अधिक झूमता- लड़खड़ाता जनता के सामने अपने को पेश करे अतैव सरकार ने उसको लड़खड़ाते हुए आने के लिए रास्ते में ही गच्च कर दिया है। हर दो कोस […] Read more » Featured आया सावन जल -भुन के सावन
व्यंग्य साहित्य राजनेता या पॉलिटिकल सेल्समैन…!! July 24, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा सचमुच मैं अवाक था। क्योंकि मंच पर अप्रत्याशित रूप से उन महानुभाव का अवतरण हुआ जो कुछ समय से परिदृश्य से गायब थे। श्रीमान कोई पेशेवर राजनेता तो नहीं लेकिन अपने क्षेत्र के एक स्थापित शख्सियत हैं। ताकतवर राजनेता की बदौलत एक बार उन्हें माननीय बनने का मौका भी मिल चुका है […] Read more » political salesman politicians पॉलिटिकल सेल्समैन राजनेता
राजनीति व्यंग्य साहित्य मानसून सत्र की गलबहियां July 20, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (व्यंग्य ) लेखक एम.एम.चन्द्रा नेता: मंत्री जी जल्द ही संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है. हम कितनी तैयारी कर के जा रहे है. तथ्य आंकड़े दुरुस्त तो है वर्ना लोग खड़े ही धुल में लट्ठ लगनने के लिए. मंत्री: हम मंत्री है, प्रत्येक संत्री को हर मोर्चे पर कैसे फिट किया जाता है […] Read more » Featured GST bill in monsoon session parliamen Monsoon session in Parliatment मानसून सत्र की गलबहियां
व्यंग्य साहित्य भूखे को भूख, खाए को खाजा…!! July 4, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा भूखे को भूख सहने की आदत धीरे – धीरे पड़ ही जाती है। वहीं पांत में बैठ जी भर कर जीमने के बाद स्वादिष्ट मिठाइयों का अपना ही मजा है। शायद सरकारें कुछ ऐसा ही सोचती है। इसीलिए तेल वाले सिरों पर और ज्यादा तेल चुपड़ते जाने का सिलसिला लगातार चलता ही […] Read more » खाए को खाजा भूख भूखे को भूख
व्यंग्य साहित्य हिंदीभाषी होने का दर्द June 27, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment भाषा वैसे तो संवाद का माध्यम मात्र है लेकिन हम चीज़ो को मल्टीपरपज बनाने में यकीन रखते है इसलिए हमारे देश में भाषा, संवाद के साथ साथ वाद -विवाद और स्टेटस सिंबल का भी माध्यम बन चुकी है। हमें बचपन में बताया गया की हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाए आपस में बहने है लेकिन सयाने […] Read more » Featured हिंदीभाषी हिंदीभाषी होने का दर्द
व्यंग्य साहित्य यह समाजसेवा, वह समाजसेवा…!! June 22, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन से मेरी बाबा भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा व भक्ति रही है। बचपन से लेकर युवावस्था तक अनेक बार कंधे में कांवर लटका कर बाबा के धाम जल चढ़ाने भी गया। कांवर में जल भर कर बाबा के मंदिर तक जाने वाले रास्ते साधारणतः वीरान हुआ करते थे। इस सन्नाटे को […] Read more » समाजसेवा
व्यंग्य साहित्य अमित्र सभा June 19, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment प्रसिद्ध होने की इच्छा अर्थात ‘लोकेषणा’ भी अजीब चीज है। इसके लिए लोग तरह-तरह के काम करते हैं, जिससे उनका नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में आ जाए। ये काम भले भी हो सकते हैं और बुरे भी। सीधे भी हो सकते हैं और उल्टे भी। जान लेने वाले भी हो सकते हैं और […] Read more » अमित्र सभा
व्यंग्य साहित्य चिंतन शिविर June 15, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment सोनिया कांग्रेस के सभी बड़े लोग सिर झुकाए बैठे थे। समझ नहीं आ रहा था कि वे चिन्ता कर रहे हैं या चिंतन; वे उदास हैं या दुखी; वे शोक से ग्रस्त हैं या विषाद से; वे निद्रा में हैं या अर्धनिद्रा में; वे जड़ हैं या चेतन; वे आदमी हैं या इन्सान ? आधा […] Read more » chintan shivir chintan shivir of congress Featured चिंतन शिविर