व्यंग्य साहित्य चने के पेड़ पे…!! April 28, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा दुनिया में कई चीजें दिखाई पहले पड़ती है , लेकिन समझ बाद में आती है। बचपन में गांव जाने पर चने के पेड़ तो खूब देखे। लेकिन इस पर चढ़ने या चढ़ाने का मतलब बड़ी देर से समझ आया।इसी तरह हेलीकाप्टर से घूम – घूम कर जनसभा को संबोधित करने , राजप्रसाद […] Read more » चने के पेड़
व्यंग्य साहित्य ईमानदार राजनीती पर भारी बेईमान मौसम April 23, 2016 by अमित शर्मा (CA) | 3 Comments on ईमानदार राजनीती पर भारी बेईमान मौसम आजकल गर्मी और आईपीएल के साथ साथ “सम-विषम” (ऑड-इवन) और पुतले लगाए जाने का भी मौसम हैं ताकि कलेजे से बीड़ी जला सकने वाले इस मौसम में चौके-छक्के , सुनी सड़के और अपने पंसदीदा पुतले देखकर आपकी रूह को बिना “रूह -अफजा” पिए ही ठंडक पहुँचे। इसी मौसम में “गतिमान एक्सप्रेस” भी लांच हो चुकी हैं लेकिन […] Read more » ईमानदार राजनीती बेईमान मौसम
व्यंग्य साहित्य किसी की सफलता , किसी की सजा…!! April 22, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा उस दिन मैं दोपहर के भोजन के दौरान टेलीविजन पर चैनल सर्च कर रहा था। अचानक सिर पर हथौड़ा मारने की तरह एक एंकर का कानफाड़ू आवाज सुनाई दिया। देखिए … मुंबई का छोरा – कैसे बना क्रिकेट का भगवान। फलां कैसे पहुंचा जमीन से आसमान पर। और वह उम्दा खिलाड़ी कैसे […] Read more »
व्यंग्य साहित्य बाबा हँस रहे थे… April 18, 2016 by अमित राजपूत | Leave a Comment ∙ अमित राजपूत बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के पैदाईश की 125वीं सालगिरह पर मैं दिल्ली में ही था। अन्य लोगों की तरह मेरे लिए भी आज यह एक भरपूर छुट्टी का ही दिन है। लेकिन आज भी मुझे आकाशवाणी की शक्ल देखनी ही पड़ी। ख़ुदा का ख़ैर है कि आज रिपोर्ट बनाने से बचा […] Read more » Featured अंबेडकर जयंती बाबा हँस रहे थे...
व्यंग्य साहित्य खा “ना” खजाना April 16, 2016 / April 16, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment खाली दिमाग शैतान का घर होता हैं और खाली पेट चूहों का. जब दिमाग और पेट दोनों भर जाते हैं तो शैतान और चूहे, रोहित शर्मा के टैलेंट की तरह अदृश्य हो जाते हैं. लेकिन जब ज़्यादा खाकर दिमाग और पेट दोनों पर चर्बी चढ़ जाये तो इंसान “विजय माल्या” गति को प्राप्त होता हैं. […] Read more » खजाना
व्यंग्य साहित्य चिंतन बढ़े तो चिंता घटे …!! April 14, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा चिंता और चिंतन की दुनिया भी अजीब है। हर इंसान की चिंता अलग – अलग होती है। जैसे कुछ लोगों की चिंता का विषय होता है कि फलां अभिनेता या अभिनेत्री अभी तक शादी क्यों नहीं कर रहा या रही। या फिर अमुक जोड़े के बीच अब पहले जैसा कुछ है या […] Read more » चिंतन बढ़े तो चिंता घटे ...!!
व्यंग्य साहित्य पानी नहीं है तो क्या हुआ कोका कोला पियो April 10, 2016 by आरिफा एविस | 2 Comments on पानी नहीं है तो क्या हुआ कोका कोला पियो देखो भाई बात एकदम साफ है, क्रिकेट ज्यादा जरूरी है या खेती-किसानी? जाहिर है क्रिकेट ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि ये तो राष्ट्रीय महत्व का खेल बन चुका है जो हमारे देश की आन बान शान है. यह सिर्फ देशभक्ति पैदा करने के लिए खेला जाता है. महानायक से लेकर नायक तक सिर्फ देश के […] Read more »
व्यंग्य साहित्य पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं April 7, 2016 by आरिफा एविस | 1 Comment on पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं पुल गिरा है कोई पहाड़ नहीं गिरा जो इतनी आफत कर रखी है. रोज ही तो दुर्घटनाएं होती हैं. अब सबका रोना रोने लगे तो हो गया देश का विकास.और विकास तो कुरबानी मांगता है खेती का विकास बोले तो किसानों की आत्महत्या. उद्योगों का विकास बोले तो मजदूरों की छटनी, तालाबंदी. सामाजिक विकास […] Read more » पहाड़ पुल गिरा है
व्यंग्य साहित्य शादी के लड्डू और राजनीति के रसगुल्ले…!! April 7, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on शादी के लड्डू और राजनीति के रसगुल्ले…!! तारकेश कुमार ओझा यदि कोई आपसे पूछे कि देश में हो रहे विधानसभा चुनावों की खास बात क्या है तो आपका जवाब कुछ भी हो सकता है। लेकिन मेरी नजरों से देखा जाए तो चुनाव दर चुनाव अब काफी परिवर्तन स्पष्ट नजर आने लगा है। सबसे बड़ी बात यह कि चुनाव में अब वोटबैंक जैसी […] Read more » राजनीति राजनीति के रसगुल्ले शादी के लड्डू
व्यंग्य साहित्य हरेक बात पर कहते हो घर छोड़ो April 7, 2016 / April 7, 2016 by आरिफा एविस | Leave a Comment (व्यंग्य आलेख) घर के मुखिया ने कहा यह वक्त छोटी-छोटी बातों को दिमाग से सोचने का नहीं है. यह वक्त दिल से सोचने का समय है, क्योंकि छोटी-छोटी बातें ही आगे चलकर बड़ी हो जाती हैं. मैंने घर में सफाई अभियान चला रखा है और यह किसी भी स्तर पर भारत छोड़ो आन्दोलन से कम […] Read more » घर छोड़ो
व्यंग्य साहित्य सही हैं बॉस April 2, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment विज्ञानियों ने पेट्रोल को सबसे ज्वलनशील पदार्थ माना हैं लेकिन अगर प्राणीमात्र की बात करे तो “बॉस” नाम का प्राणी सबसे ज़्यादा ज्वलनशील माना जाता हैं । “दूध के जले” , भले छाछ फूंक-फूंक कर पीते हैं लेकिन “बॉस के जले” तो ऑफिस की कैंटीन में “कोल्ड -कॉफी” भी फूंक- फूंक कर पीते हुए […] Read more » boss is always right सही हैं बॉस
व्यंग्य साहित्य सचमुच निराली है महिमा चुनाव की …!! March 30, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा वाकई हमारे देश में होने वाले तरह – तरह के चुनाव की बात ही कुछ औऱ है। इन दिनों देश के कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इस दौरान तरह – तरह के विरोधाभास देखने को मिल रहे हैं। पता नहीं दूसरे देशों में होने वाले चुनावों में एेसी […] Read more » चुनाव