व्यंग्य साहित्य सत्ता की सांप – सीढ़ी….!! November 15, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन में कागज के गत्ते पर सांप – सीढ़ी का खेल खूब खेला। बड़ा रोमांचक और भाग्य पर निर्भर होता था यह खेल। घिसटते हुए आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन तभी नसीब की सीढ़ी मिल गई और पहुंच गए शिखर पर। वहीं लगा बस अब मंजिल पर पहुंचने ही वाले है, तभी […] Read more » Featured सत्ता की सांप – सीढ़ी....!!
व्यंग्य साहित्य अभिनंदन करो नए राजा का November 15, 2015 by अशोक गौतम | 1 Comment on अभिनंदन करो नए राजा का अभिनंदन करो नए राजा का हे मेरे जंगलवासियो ! आपको यह जानकर खुशी होगी कि असली दांत टूट जाने के बाद चार- चार बार नकली दांत लगवा आपके हिस्से का मर्यादाओं के बीच रह खा -खाकर आनंद करने वाला आज सहर्ष घोषणा करता है कि मैं, आपका राजा, बेहोशी के हालात में अपने खाने -कमाने […] Read more » Featured अभिनंदन करो नए राजा का
व्यंग्य साहित्य रिटायरमेंट की पीड़ा …!! November 6, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मि. खिलाड़ी और लक्ष्मीधर दोनों की आंखों में आंसू थे। क्योंकि दोनों संयोग से एक ही दिन रिटायर हो गए या यूं कहें कि कर दिए गए। हालांकि रिटायर दोनों ही नहीं होना चाहते थे। बल्कि रिटायरमेंट का ख्याल भी दोनों को डरा देता था। मि. खिलाड़ी पिछले तीन साल से टीम […] Read more » रिटायरमेंट
व्यंग्य साहित्य चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख! November 2, 2015 / December 7, 2015 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र जब मैं उस्ताद गुनाहगार के घर पहुंचा, तो वे भागने की तैयारी में थे। हड़बड़ी में उन्होंने शरीर पर कुर्ता डाला और उल्टी चप्पल पहनकर बाहर आ गए। संयोग से तभी मैं पहुंच गया, अभिवादन किया। उन्होंने अभिवादन का उत्तर दिए बिना मेरी बांह पकड़ी और खींचते हुए कहा, ‘चलो..सामने वाले पार्क में […] Read more » चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख!
व्यंग्य साहित्य सूट बूट का प्रस्ताव October 29, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ वेद व्यथित बच्चा जब थोड़ा सा बड़ा होने लगता है तो उस की माँ उसे स्कूल जाने से पहले थोड़ा सा अंग्रेज बनाने की तैयारी शुरू कर देती है। वह भारत के तथाकथित अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की अपेक्षा के अनुसार ‘पार्ट ऑफ़ बॉडी ‘,फाइव फ्रूटस नेम आदि रटवाना शुरू कर देती है। फिर […] Read more » सूट बूट का प्रस्ताव
व्यंग्य साहित्य न्यूज करे कन्फयूज…!! October 26, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही है… टीम इंडिया मैच हारी…। कुछ देर बाद पर्दे पर सुटेड – बुटेड कुछ जाने – पहचाने चेहरे उभरे। एक ने कहा … आफ कोर्स … कैप्टन किंग को समझना होगा…. वे अपनी मनमर्जी टीम पर नहीं थोप सकते… । आखिर उन्होंने ऐसा फैसला किया ही […] Read more » न्यूज करे कन्फयूज...!!
व्यंग्य साहित्य धीरे-धीरे बोल बाबा सुन ना ले October 25, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on धीरे-धीरे बोल बाबा सुन ना ले दाल वो भी अरहर की दाल ,इसे लेकर बाबा रामदेव ने बड़े पते की बात कही है.बाबा ने जो कुछ कहा है उसके बारे में खुद योगाचार्य पतंजलि को कुछ पता नहीं था. बाबा बोले-दाल खाने से घुटनों का दर्द पैदा होता है.सचमुच हमें भी ये ब्रम्हज्ञान ब्राम्हण होने के बावजूद आज तक नहीं था.हमारे […] Read more » धीरे-धीरे बोल
व्यंग्य साहित्य नेता जी कहिन, अबकी बार, गाय हमार, October 20, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment देश में एक मौसम सदाबहार रहता हैं. जाने का नाम ही नही लेता है. वो है चुनावी मौसम. कभी इस राज्य में तो कभी उस राज्य में. जहां भी ये मौसम शुरू होता है. वहां तो जैसे चार चांद लग जाते हैं.गली मोहल्लों में चहल-पहल बहुत बढ़ जाती है. चाय की दुकानों पर दो चुस्की […] Read more » अबकी बार गाय हमार नेता जी कहिन
व्यंग्य संघर्ष की शक्ल….!! October 14, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मैं जीवन में एक बार फिर अपमानित हुआ था। मुझे उसे फाइव स्टार होटल नुमा भवन से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया था, जहां तथाकथित संघर्षशीलों पर धारावहिक तैयार किए जाने की घोषणा की गई थी। इसे किसी चैनल पर भी दिखाया जाना था। पहली बार सुन कर मुझे लगा […] Read more » संघर्ष की शक्ल....!!
व्यंग्य साहित्य गधे ने जब मुंह खोला October 10, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment मैंने रोज की तरह लाला दयाराम की बरसों से बन रही हवेली के लिए सूरज निकलने से पहले अपने पुश्तैनी गधे के पोते के पड़पोते पर रेत ढोना शुरू कर दिया था। जहां तक मेरी नालिज है न गधे के पुरखों ने मेरे पुरखों से इस रिश्ते के बाबत कोई शिकायत की थी और न […] Read more » गधे ने जब मुंह खोला
राजनीति व्यंग्य कानून अपना – अपना ..!! October 6, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मुझे पुलिस ढूंढ रही थी। पता चला एक महिला ने मेरे खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज करा दी है। मुझे लगा जब मैने अपराध किया ही नही तो फिर डर किस बात का। लिहाजा मैने थानेदार को फोन लगाया। दूसरी ओर से कड़कते हुए जवाब मिला… तुम हो कहां … हम तुम्हारी खातिरदारी […] Read more » Featured
व्यंग्य साहित्य पी ले, पी ले, ओ मोरी जनता September 27, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 2 Comments on पी ले, पी ले, ओ मोरी जनता देश के युवाओं में नशा का दौर लगातार बढ़ता जा रहा है. किसी को शौक है तो कोई इसका आदी बन चुका है. छोटी खुशी हो या बड़ी बस बहाना चाहिए पार्टी करने का. चलो पार्टी करते है और जाम छलकाते है. गिलास को टकराकर चेयर्स करते हैं. और टल्ली होकर हंगामा. वाह क्या खूबी […] Read more » ओ मोरी जनता पी ले