व्यंग्य व्यंग्य/ कुर्सी का व्यावहारिक पक्ष October 29, 2013 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ कुर्सी का व्यावहारिक पक्ष अषोक गौतम हे स्वर्गवासियो ! मेरा देश एक कुर्सी प्रधान देश है। वैसे तो यहां पर अनादि काल से कुर्सी की जय जयकार होती रही है लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से इस देष में कुर्सी की पूजा ईश्वर से अधिक होने लगी है। कुर्सी के प्रति तुच्छ से तुच्छ जीवों के इस लगाव को […] Read more »
व्यंग्य एक और सीक्वल October 26, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment ये मेरा तीसरा सीक्वल है। सबसे पहले मैंने एक गंभीर विषय पर लेख लिखा था ‘हिन्दी किसकी है?’ उसका सीक्वल था ‘‘हिन्दी सबकी है’’।‘’कवि और कल्पना’’ व्यंग लिखने के बाद ‘’कवि और कल्पना -2’’ भी लिखा। ‘आजकल सीक्वल फिल्मों की बाढ सी आगई है इसलिये मैंने सोचा अपने व्यंग ’तुम्हारा नाम क्या है?’’, जो बहुत […] Read more » एक और सीक्वल
व्यंग्य व्यंग्य बाण : बंदर जी के तीन गांधी October 24, 2013 by विजय कुमार | 2 Comments on व्यंग्य बाण : बंदर जी के तीन गांधी विजय कुमार शर्मा जी ऊपर से चाहे जो कहें; पर सच यह है कि दिल्ली में रहने के बावजूद गांधी जी की समाधि पर जाने में उनकी कोई रुचि नहीं है। वे साफ कहते हैं कि जब मैं उनके विचारों से सहमत नहीं हूं, तो फिर दिखावा क्यों करूं ? पर इस दो अक्तूबर को […] Read more »
व्यंग्य अक्ल बड़ी या भैंस…. October 15, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment देश भर की भैंसो ने अपना संगठन मज़बूत किया है , उनका कहना है कि वो मनुष्य को गायों से कंहीं ज़्यादा दूध उपलब्ध कराती हैं इसलियें उन्हे भी गायों के बराबर दर्जा और सुविधायें चाहियें इसके लियें उन्होने अलग अलग शहरो मे आंदोलन शुरू कर दिया है। बेचारी भैंसे… आदमी की फितरत नहीं जानती […] Read more »
व्यंग्य अगर आज के समय में रामायण होती तो कैसी खबरे आती … October 15, 2013 / October 15, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 3 Comments on अगर आज के समय में रामायण होती तो कैसी खबरे आती … ● राजा दशरथ ने की श्रवण कुमार की हत्या , FIR दर्ज… ● अयोध्या के राजपाठ को लेके राजा-रानी में विवाद बढ़ा ● केवट द्वारा चरण धुलवाने से मायावती हुई नाराज़ , कहा ये हैं दलितों का अपमान सूर्पनखा की नाक कटाई के विरोध में महिला आयोग का अयोध्या में प्रदर्शन जारी ● राजा दशरथ […] Read more »
व्यंग्य मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो October 14, 2013 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन जब कृष्ण कन्हैया के मुख पर मक्खन लगा देख यशोदा पूछती है तो बाल गोपाल कहते हैं , ‘‘ मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो । ग्वाल बाल सब बैर पड़े हैं बरबस मुख लिपटायो ।’’ और मॉं यशोदा , यह मानकर कि चलो खाने पीने की चीज है , इधर उधर […] Read more »
राजनीति व्यंग्य एक पाती – लालू भाई के नाम October 10, 2013 / October 10, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on एक पाती – लालू भाई के नाम आदरणीय लालू भाई, जै राम जी की। हम इहां राजी-खुशी से हैं। उम्मीद करते हैं कि आप भी रांची जेल में ठीकेठाक होंगें। ई सी.बी.आई का जजवा बउरा गया था क्या? ई बात उसका दिमाग में काहे नहीं घुसा कि आदमी जानवर का चारा कैसे खा सकता है? जानवर आदमी का चारा हज़म कर […] Read more »
व्यंग्य दास्तान-ए-सुविधा शुल्क October 10, 2013 / October 10, 2013 by एम. अफसर खां सागर | 1 Comment on दास्तान-ए-सुविधा शुल्क एम. अफसर खां सागर शर्मा जी को हमे शा कसक रहता कि वे सरकारी मुलाजिम न हुए। जब भी हमारे यहां उनकी आमद होती, बस एक ही रट लगाते। भाई साहब… काश! मैं भी सरकारी मुलाजिम होता। मेरे पास भी आलीशान बंगला, ए.सी. कार व रूपये का भण्डार होता। चाश्नीदार पकवान, रेमण्ड के सूट ,रीबाक […] Read more » सुविधा शुल्क
राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : आगे अम्मा की मरजी October 9, 2013 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले दिनों कई साल बाद एक घरेलू कार्यक्रम में गांव जाने का अवसर मिला। बहुत दिन बाद गया था, अतः पुराने संबंध और यादें ताजा करने के लिए मैं कुछ दिन और रुक गया। एक दिन मैं अपने पुराने मित्र चंपकलाल के घर बैठा गप लड़ा रहा था, तभी वहां एक अधेड़ महिला प्रेस के […] Read more » व्यंग्य बाण : आगे अम्मा की मरजी
व्यंग्य जब सुतल तब अंधेरा – October 7, 2013 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | Leave a Comment सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” गुरू बनारस के बारे में एक बात बहुत मशहूर है कि ये मिजाज का शहर है। बेधड़क और बेबाक मिजाज ये है काशी की विशेषता । इस मिजाज में कई बार उलटबासियां भी जन्म ले लेती हैं । यथा कबीर बाबा की एक उलटबांसी लें लें — बरसे कंबल भींगे पानी […] Read more » जब सुतल तब अंधेरा -
कविता व्यंग्य खाने में कैसा शर्म September 18, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा कसमें वादे निभायेंगे न हम मिलकर खायेंगे जनम जनम जनता ने चुनकर भेजा है चुन- चुनकर खायेंगे पांच साल बाद खाने का कारण विस्तार से उन्हें बतायेंगे कसमें वादे निभायेंगे न हम मिलकर खायेंगे जनम जनम हीरा-मोती, सोना-चांदी तो है ही बस थोड़ा और रुक जाइये जंगल,जमीन के साथ साथ […] Read more » खाने में कैसा शर्म
राजनीति व्यंग्य आडवानीजी संघर्ष करो, सोनिया तुम्हारे साथ है September 18, 2013 / September 18, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | 8 Comments on आडवानीजी संघर्ष करो, सोनिया तुम्हारे साथ है आदरणीय आडवानी बाबा, सादर परनाम ! आगे समाचार इ है कि नीतिश कुमार के तरह-तरह के विरोध के बाद भी नरेन्दर मोदिया बिहार में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। बिहार के लोगबाग नरेन्दर का इन्तज़ार बड़ी बेसब्री से कर रहा है। नीतीश तो आपके ही मानस पुत्र हैं। जब जरुरत थी तो सांप्रदायिक भाजपा […] Read more »