व्यंग्य व्यंग्य/ रब्बा, विवाद दे खाद दे May 4, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम वे धर्म-निरपेक्ष देश में धर्म के नाम पर हुए दंगा ग्रस्त क्षेत्र का दौरा करते सिसकते धारा 144 लगे हुए चौक पर से गुजर रहे थे कि चौक पर दोनों हाथ आसमान की ओर किए किसीके दहाड़े मार मार रो कुछ मांगने की आवाज ने उनके पांव रोक दिए, ‘या रब्ब! चढ़ादे मुझे […] Read more » vyangya व्यंग्य
आर्थिकी व्यंग्य व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई! April 22, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ हम जिंदा हैं मेरे भाई! सौ चूहे खाकर शान से पास बैठी बिल्ली ने नजरें मटकाते कहा, ‘हज करने जा रही हूं। हैप्पी जरनी नहीं कहोगे?’ तो मैंने मन ही मन मुसकाते कहा, ‘एक तो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने नहीं जा सकती और जाएगी तो हज में नहीं पहुंच पाएगी। कहीं और ही पहुंचेगी।’ ‘क्यों?’ ‘उसका पेट भारी […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चल यार! जिंदगी में कुछ तो बना April 15, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ चल यार! जिंदगी में कुछ तो बना उस वक्त सुबह के सात की बजे ही सूरज घरवाली की तरह सिर पर चढ़ आया था। चारपाई पर पड़े पड़े योगा करके हटा ही था कि मोबाइल की घंटी बज उठी। पड़ोसी का ही होगा। वही बेचारा हर सुबह परेषानी में उठता है और रात को परेशानी में ही सो जाता है। मोबाइल उठाया […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ क्या बोलूं क्या बकवास करूं April 13, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment जबसे दुनियादारी को समझने लायक हुआ था थोड़ा-थोड़ा करके मरता तो रोज ही था पर माघ शुक्ल द्वितीय को, चार सवा चार के आसपास सरकारी अस्पताल की चारपाई पर पड़े-पड़े पता नहीं किस गोली का असर हुआ कि मैं रोज-रोज के मरने से छूट गया और सच्ची को मर गया। हा! हा! हा!! अब बंदा […] Read more » vyangya अशोक गौतम व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/…..उसके डेरे जा!!! March 30, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/…..उसके डेरे जा!!! ईमानदारी, सच, विश्वास की रूखी सूखी, आधी पौनी खाते हुए मर मर के जी रहा था कि उस दिन परम सौभाग्य मेरा एक सच्चा दोस्त मुझे पहुंचे हुए बाबा के पास जबरदस्ती ले गया, यह कहकर कि ये वे पहुंचे हुए बाबा हैं कि जो अपने भक्तों के दुख फूंक मार कर पल छिन में […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ तो तुम किसके बंदे हो यार? March 22, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 3 Comments on व्यंग्य/ तो तुम किसके बंदे हो यार? भाई ढाबे में टूटी बेंच पर चिंता की मुद्रा में बैठा था। बेंच के सहारे रखे डंडे में उसने अपनी टोपी पहना रखी थी। सामने टेबल पर चाय का गिलास ठंडा हो रहा था। पर वह उस सबसे बेखबर न जाने किस लोक में खोया था। मेरे देश में वर्दी वाला चिंता में? वह तो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ देश के फ्यूचर का सवाल है बाबा! March 13, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment ऐक्चुअली मैं उनका खासमखास तबसे हुआ जबसे मैंने चुनाव में उनके नाम भारी जाली मतदान सफलतापूर्वक करवाया था और वे भारी मतों से जीते थे। आज की डेट में उनको अकबर तो नहीं कह सकता पर मैं उनके लिए बीरबल की तरह हूं। जब भी वे परेशान होते हैं लाइफ लाइन में मुझे ही यूज […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य नोबल पुरस्कार और गन्दगी March 9, 2010 / December 24, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment हम घर से निकले तो देखा कि कुडे करकट के ढेर के पास दडबे नुमा मकान में रहने वाला फटेहाल चितवन जो हमेशा ही मायूस और डरावनी सी खामोसी को चेहरे पर ओढे रखता था। आज अपनी बेगम को बडे ही उत्साह के साथ बता रहा था कि बेगम तुम्हे मालूम है कि समय सब […] Read more » Nobel Prize नोबल पुरस्कार
व्यंग्य व्यंग्य/ दाल बंद, मुर्गा शुरु March 5, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment मैं उनसे पहली दफा बाजार में मदिरालय की परछाई में मिला था तो उन्होंने राम-राम कहते मदिरालय की परछाई से किनारे होने को कहा था। उन दिनों मैं तो परिस्थितियों के चलते शुद्ध वैष्णव था ही पर वे सरकारी नौकरी में होने के बाद भी इतने वैष्णव! मन उनके दर्शन कर आह्लादित हो उठा था। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/पार्टी दफ्तर के बाहर February 20, 2010 / December 24, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/पार्टी दफ्तर के बाहर पार्टी दफ्तर के बाहर बैठ नीम की कड़वी छांह। एक नेता भीगे नयनों से देख रहा है दल प्रवाह। सामने पार्टी दफ्तर रहा पर अपना वहां कोई नहीं। सबकुछ गया, गया सब कुछ पर आंख फिर भी रोई नहीं। कह रही थी मन की व्यथा छूटी हुई कहानी सी। पार्टी दफ्तर की दीवारें सुनती बन […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ एक सफल कार्यक्रम February 12, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment पहली बार हिमालय के हिमपात के मौसम और अपनी गुफा को अकेला छोड़ गौतम और भारद्वाज मुनि दिल्ली सरकार के राज्य अतिथि होकर राजभवन में हफ्ते भर से जमे हुए थे। पर ठंड थी कि उन्हें हिमालय से भी अधिक लग रही थी। सुबह के दस बजे होंगे कि भारद्वाज मुनि अपने वीवीआईपी कमरे से […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ रिश्वतऽमृतमश्नुते February 5, 2010 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ रिश्वतऽमृतमश्नुते हर क्लास के फादर को ईमानदारी के साथ यह मानकर चलना चाहिए कि जैसे कैसे उनका बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर भले ही बन जाए लेकिन उसके बाद भी उसके हाथ में रिश्वत लेने का हुनर नहीं तो वह आगे परिवार की तो छोड़िए अपने खर्चे भी पूरे नहीं कर सकता। और नतीजा…. सपने बंदे को खुदकुशी […] Read more » vyangya रिश्वत व्यंग