Category: राजनीति

राजनीति

सरकार ने की सरकारी कर्मचारियों के मौलिक अधिकार की रक्षा

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न्यायालयों में पहले ही अपने घुटने छिलवा चुका था लोकतंत्र विरोधी प्रतिबंध – लोकेन्द्र सिंह आरएसएस संबंधी प्रतिबंध हटाने के संदर्भ में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को हटाकर नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा की है। अब कर्मचारी संघ की गतिविधियों में सामान्य नागरिकों की भाँति […]

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आर्थिकी राजनीति

भारत में तेजी से हो रहा है वित्तीय समावेशन

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भारतीय रिजर्व बैंक ने बैकिंग, निवेश, बीमा, डाक एवं पेन्शन क्षेत्र के हितधारकों को शामिल करते हुए वित्तीय समावेशन सूचकांक विकसित किया है। दरअसल, भारत में विभिन्न क्षेत्रों में हो रही अतुलनीय प्रगति को दर्शाने के लिए अब अपने सूचकांक विकसित करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है क्योंकि वैश्विक स्तर पर वित्तीय एवं आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत विदेशी संस्थानों द्वारा विकसित किए गए सूचकांकों के आधार पर किए जाने वाले सर्वे में तो विभिन्न क्षेत्रों में भारत की प्रभावशाली प्रगति की सही तस्वीर पेश नहीं की जा रही है। इन सूचकांकों के आधार पर किए गए कई सर्वे में तो आश्चर्यजनक परिणाम दिखाई देते हैं। जैसे, एक सर्वे में भुखमरी के क्षेत्र में भारत की स्थिति को अफ्रीकी देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बंगलादेश से भी बदतर बताया गया था।    भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विकसित किए गए वित्तीय समावेशन सूचकांक के आधार पर मार्च 2024 के परिणाम हाल ही में जारी किए गए हैं। इन परिणामों के अनुसार, भारत में वित्तीय समावेशन मार्च 2017 में 43.4, मार्च 2021 में 53.9 एवं मार्च 2023 में 60.1 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2024 में 64.2 प्रतिशत हो गया है। यह सूचकांक भारत में वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में हुई अतुलनीय एवं स्थिर प्रगति को दर्शाता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विकसित किया गया यह सूचकांक वित्तीय समावेशन के विभिन्न आयामों (नागरिकों की वित्तीय संस्थानों पर बढ़ती पहुंच, वित्तीय उत्पादों का बढ़ता उपयोग एवं वित्तीय सेवाओं की गुणवत्ता) पर देश में वित्तीय समावेशन के संदर्भ में जानकारी को 0 से 100 तक के मान में बताता है। यदि मान कम है तो देश में वित्तीय समावेशन भी कम है और इसके विपरीत यदि मान अधिक है तो देश में वित्तीय समावेशन भी अधिक है। भारत में यह मान मार्च 2024 में बढ़कर 64.2 प्रतिशत हो गया है। उक्त वर्णित तीन आयामों में कई पैरामीटर शामिल हैं, इनका मूल्यांकन 97 संकेतकों के आधार पर किया जाता है। इस कार्यप्रणाली के कारण ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विकसित किया गया यह सूचकांक वित्तीय समावेशन का एक व्यापक संकेतक बन गया है। वित्तीय समावेशन सूचकांक प्रत्येक वर्ष के जुलाई माह में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है।   किसी भी देश में वित्तीय समावेशन के बढ़ने का आश्य यह है कि उस देश के नागरिकों की उस देश के बैकिंग संस्थानों तक पहुंच बढ़ रही है और यह उस देश की अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण में मुख्य भूमिका निभाता है। वर्ष 2014 में भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को लागू किया गया था और इस योजना के अंतर्गत विभिन्न बैकों में गरीब वर्ग के जमा खाते खोलकर उन्हें वित्तीय समावेशन का हिस्सा बना लिया गया था। आज प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत लगभग 52 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके हैं एवं इन जमा खातों में लगभग 2.35 लाख करोड़ रुपए की राशि जमा है। केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा देश के गरीब वर्ग को दी जाने वाली सहायता/प्रोत्साहन राशि को भी इन खातों में आज सीधे ही जमा कर दिया जाता है, इसे प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना के रूप में भी जाना जाता है, जिससे इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार लगभग समाप्त हो गया है क्योंकि इससे अंततः लीकेज कम हुए है और यह सुनिश्चित हुआ है कि योजनाओं का लाभ अंतिम लाभार्थी तक सीधे ही पहुंचे। प्रधानमंत्री जनधन योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य भारत के दूर दराज के इलाकों में निवासरत नागरिकों को बैंकिंग, बचत और जमा खाते, राशि हस्तांतरण, ऋण, बीमा और पेंशन जैसी वित्तीय सेवाओं को उपलब्ध कराना था। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रधानमंत्री जनधन योजना पूर्ण रूप से सफल रही है और भारत में वित्तीय समावेशन को अगले स्तर पर ले जाने में भी सहायक रही है। साथ ही, प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खोले गए जमा खातों को भारत की विशिष्ट पहचान प्रणाली (आधार कार्ड) से जोड़कर, केंद्र सरकार ने देश में वित्तीय लेन देन प्रणाली को सुव्यवस्थित कर लिया है एवं बैकिंग व्यवहारों में धोखाधड़ी की सम्भावना को कम करने में भी सफलता अर्जित की है। आज भारत की प्रधानमंत्री जनधन योजना को पूरे विश्व में सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना के रूप में पहिचान मिली है।  देश में प्रधानमंत्री जनधन योजना को आज भी वित्तीय समावेशन के मुख्य उपकरण के रूप में माना जा रहा है और इस योजना के अंतर्गत देश के नागरिकों के खाते विभिन्न बैंकों में उसी उत्साह से लगातार खोले जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भी भारत के विभिन्न बैकों में प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत लगभग 3.3 करोड़ नए जमा खाते खोले गए हैं इससे इस योजना के अंतर्गत खोले गए कुल खातों की संख्या बढ़कर 51.95 करोड़ हो गई है एवं इन जमा खातों में 234,997 करोड़ रुपए की राशि जमा हो गई है। अब देश का एक गरीब नागरिक भी भारत की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान करता हुआ दिखाई दे रहा है। वित्तीय समावेशन के दायरे में लाए गए नागरिक वित्तीय क्षेत्र में साक्षर होने के पश्चात अब तो भारत के पूंजी बाजार (शेयर बाजार) में भी अपना निवेश करने लगे हैं एवं उनकी विभिन्न ऋण योजनाओं एवं बीमा उत्पादों तक पहुंच भी बढ़ गई है। वित्तीय सेवाओं तक इस पहुंच ने देश के नागरिकों को आर्थिक रूप से बहुत सशक्त बना दिया है, इससे अंततः यह नागरिक शिक्षा, स्वास्थ्य एवं छोटे व्यवसायों में निवेश करने में सक्षम हुए हैं और इस प्रकार इन नागरिकों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार हुआ है।  भारत में वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में हुई उक्त वर्णित अतुलनीय प्रगति की जानकारी हम आम नागरिकों को तभी मिल पा रही है जब भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में ही एक सूचकांक विकसित किया है। यदि वित्तीय समावेशन का सूचकांक किसी विदेशी संस्थान द्वारा तैयार किया जाता तो सम्भव है कि भारत की इस महान उपलब्धि को जानने से हम वंचित रह जाते। अब समय आ गया है कि इसी प्रकार के सूचकांक अन्य क्षेत्रों में भी भारतीय वित्तीय एवं आर्थिक संस्थानों द्वारा ही तैयार किए जाने चाहिए, ताकि हम आम नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में भारत की अतुलनीय प्रगति की वास्तविक जानकारी प्राप्त हो सके।     

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आर्थिकी राजनीति

भारत में प्रतिवर्ष सृजित हो रहे हैं रोजगार के 2 करोड़ नए अवसर

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आजकल विदेशी वित्तीय एवं आर्थिक संस्थान भारत के आर्थिक मामलों में अक्सर अपनी राय देने से चूकते नहीं हैं। अभी हाल ही में सिटीग्रुप इंडिया ने भारत की अपने बढ़ते कार्यबल के लिए पर्याप्त मात्रा में नौकरियां सृजित करने की क्षमता के मामले में चिंता जताई थी और एक प्रतिवेदन में कहा था कि भारत को आगामी दशक में प्रतिवर्ष 1.2 करोड़ नौकरियां सृजित करने की आवश्यकता है, जबकि वह प्रतिवर्ष केवल 80-90 लाख नौकरियां ही सृजित करने की राह पर आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। यह विदेशी वित्तीय एवं आर्थिक संस्थान अपनी आधी अधूरी जानकारी के आधार पर भारतीय अर्थतंत्र के बारे अपनी राय जारी करते दिखाई देते हैं क्योंकि हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी एक प्रतिवेदन जारी किया गया है जिसके के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत में रोजगार के नए अवसर सृजित होने के मामले में 6 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है और इस दौरान लगभग 4.7 करोड़ रोजगार के नए अवसर सृजित हुए हैं और देश में कार्य करने वाले नागरिकों की संख्या अब 64.33 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत की रही थी। अब कहां सिटीग्रुप इंडिया की भारत में केवल 80-90 लाख नौकरियों के अवसर सृजित होने की राह पर की बात की है और कहां भारतीय रिजर्व बैंक की भारत में 4.7 करोड़ रोजगार के अवसर सृजित होने की बात है, दोनों संस्थानों के आंकलन में भारी अंतर दिखाई देता है। सिटीग्रुप इंडिया के भारत में रोजगार सृजित होने के संदर्भ में जारी उक्त प्रतिवेदन के जवाब में भारत सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा भी पिरीआडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) एवं भारतीय रिजर्व बैंक के KLEMS डाटाबेस के  आंकड़ों का प्रयोग करते हुए बताया गया है कि भारत में वर्ष 2017-18 से 2021-22 के बीच 8 करोड़ रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं, जो कि वर्ष 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण होने वाले वैश्विक आर्थिक व्यवधानों के बावजूद प्रतिवर्ष औसतन 2 करोड़ से अधिक नौकरियां बनती है। इस जानकारी के उपयुक्त होने को PLFS डाटा से भी बल मिलता है जिसके अनुसार भारत में पिछले पांच वर्षों में रोजगार के अवसरों की संख्या, श्रमबल में नए प्रवेशकों की संख्या से अधिक रही है, जिससे देश में बेरोजगारी दर में लगातार कमी आ रही है। इन आंकड़ों के अनुसार, भारत में बेरोजगारी की दर वर्ष 2017-18 में 6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 3.2 प्रतिशत पर नीचे आ गई है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में 466,59,221 रोजगार के अवसर निर्मित हुए एवं वित्त वर्ष 2023-24 में देश में कुल रोजगार बढ़कर 64.33 करोड़ के स्तर को पार कर गया जो वर्ष 2022-23 में 59.66 करोड़ के स्तर पर था एवं वर्ष 2019-20 में 53.44 करोड़ के स्तर पर था। उक्त आंकड़ों की सत्यता एवं विश्वसनीयता को और भी अधिक बल मिलता है जब इस संदर्भ में विभिन्न अनुपातों पर नजर डालते हैं। इससे ध्यान में आता है कि भारत में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio) वर्ष 2017-18 के 46.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 56 प्रतिशत हो गया है। इसी प्रकार भारत में श्रमिक सहभागिता दर (Labour Force Participation Rate) भी वर्ष 2017-18 के 49.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 57.9 प्रतिशत हो गई है। जिसके चलते देश में बेरोजगारी की दर (Unemployment Rate) भी वर्ष 2017-18 में 6 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2022-23 में 3.2 प्रतिशत तक नीचे आ गई है। कृषि, आखेट, वानिकी, मछली पालन के क्षेत्र में वर्ष 2022-23 में 25.3 करोड़ व्यक्ति रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, जबकि वर्ष 2021-22 में 24.82 करोड़ व्यक्ति इन क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त कर रहे थे। इसी प्रकार वर्ष 2022-23 में निर्माण, व्यापार, यातायात एवं भंडारण के क्षेत्र मुख्य रोजगार प्रदाता क्षेत्रों में गिने जा रहे थे।  ASUSE के सर्वे में भी भारत में 56.8 करोड़ नागरिकों को रोजगार प्राप्तकर्ता बताया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2004 से वर्ष 2014 के दशक के बीच में केवल 2.9 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराए जा सके थे जबकि वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के दशक के बीच 12.5 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराए गए हैं। विनिर्माण एवं सेवा के क्षेत्रों में वर्ष 2004-2014 के दशक में 6.6 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराए गए थे जो वर्ष 2014 से 2023 के दशक में बढ़कर 8.9 करोड़ हो गए हैं। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के क्षेत्र में भी कुल 20 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराए जा रहे हैं।  विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर सृजित हो रहे हैं और यह संख्या 60 से 70 प्रतिशत प्रतिवर्ष तक पहुंच रही है, क्योंकि पुरुष वर्ग अब रोजगार के लिए शहरी क्षेत्रों की ओर आकर्षित हो रहा है जहां उन्हें विनिर्माण एवं सेवा जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। दूसरे, कृषि के क्षेत्र में हो रही लगभग 4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की औसत विकास दर के कारण भी कृषि के क्षेत्र में रोजगार के अधिक अवसर सृजित हो रहे हैं।    भारत के लिए एक अच्छी खबर यह भी है कि केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय एवं आर्थिक क्षेत्रों में लिए गए कई महत्वपूर्ण निर्णयों के चलते अब देश में धीरे धीरे अनऔपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार कम होकर, औपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ रहा है जिसके चलते अब भारत में औपचारिक क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर अधिक मात्रा में निर्मित हो रहे हैं। EPFO द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में 1.3 करोड़ कामगारों ने EPFO की सदस्यता ग्रहण की है जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में केवल 61.12 लाख कामगारों ने ही EPFO की सदस्यता ग्रहण की थी। पिछले लगभग साढ़े छह वर्षों में, सितंबर 2017 से मार्च 2024 के बीच, 6.2 करोड़ कामगारों ने EPFO की सदस्यता ग्रहण की है। EPFO के आंकड़ों में लगातार होने वाली वृद्धि से आश्य यह है कि देश में कम आय वाले रोजगार की तुलना में अधिक आय वाले रोजगार अब तेजी से बढ़ रहे हैं और यह अब अधिकतम औपचारिक क्षेत्र में ही सृजित हो रहे हैं। अनऔपचारिक क्षेत्र के कम आय के रोजगार ही अधिक संख्या में सृजित होते हैं। ASUSE सर्वे के अनुसार अब देश की अर्थव्यवस्था में औपचारिक श्रमिकों की संख्या 55 प्रतिशत तक पहुंच गई है जबकि PLFS सर्वे के अनुसार यह 61 प्रतिशत पर पहुंच गई है। केंद्र सरकार द्वारा कौशल विकास के क्षेत्र में लगातार किए जा रहे प्रयासों एवं निजी एवं सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित करने के लिए दिए जाने वाले विभिन्न प्रोत्साहनों का असर भी अब धरातल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। अब तो कई अन्य देश भी भारत से डाक्टरों, इंजीनियरों, आदि की मांग करने लगे हैं। जापान ने 2 लाख भारतीय इंजीनियरों की मांग की है तो इजराईल एवं ताईवान ने भी एक-एक लाख भारतीय इंजीनियरों की मांग की हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी आदि विकसित देशों में तो पहिले से ही भारतीय डॉक्टर, इंजीनियर एवं एमबीए के क्षेत्र में कौशल हासिल भारतीयों की भारी मांग है। अब तो अरब देश भी भारतीय डॉक्टर, इंजीनियर एवं एमबीए के क्षेत्र में पारंगत भारतीयों पर अपनी नजर गढ़ाए हुए हैं। कई निजी संस्थान दरअसल भारत में रोजगार से सम्बंधित आकड़ें प्रस्तुत करने में प्रामाणिक एवं विश्वसनीय सूत्रों का उपयोग नहीं करते हैं एवं अपने निजी हित साधने के उद्देश्य से उपलब्ध आंकड़ों से अपना निजी निष्कर्ष निकालकर जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं, जो कई बार वस्तुस्थिति से भिन्न निष्कर्ष देते हुए दिखाई देता हैं। जबकि कुछ विश्वसनीय सूत्र जहां प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध हैं, में शामिल हैं, भारतीय रिजर्व बैंक, EPFO एवं PLFS आदि, इन संस्थानों द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार भारत में पिछले पांच वर्षों से बेरोजगारी की दर लगातार कम हो रही है। इसका आश्य यह भी है कि देश में प्रतिवर्ष रोजगार की मांग से रोजगार के अधिक अवसर सृजित हो रहे हैं, इसी के चलते ही तो बेरोजगारी की दर में कमी आ रही है।   भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत में ही उपलब्ध डाटा/जानकारी का उपयोग करके वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए देश में उत्पादकता का एक अनुमान लगाने का प्रयास किया गया है और जो 27 उद्योगों में उत्पादकता एवं रोजगार के आकलन पर आधारित है। इन उद्योगों को छह व्यापक क्षेत्रों में बांटा गया है, कृषि, माइनिंग और मछली पकड़ना,  खनन और उत्खनन, विनिर्माण, बिजली, गैस और जल आपूर्ति, निर्माण और सेवाएं। इस विश्लेषण के लिए नैशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस (NSO), नैशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (NSSO) एवं ऐन्यूअल सर्वे ओफ इंडुस्ट्रीज (ASI) सहित विभिन्न स्त्रोतों से आकड़ों को संकलित किया गया है, जो पूंजी (Capital-K), श्रम (Labour-L), ऊर्जा (Energy-E), सामग्री (Material-M) एवं सेवा (Services-S)   KLEMS डाटाबेस का निर्माण करता है।  प्रहलाद सबनानी

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आर्थिकी राजनीति

भारतीय परम्पराओं के अनुपालन से देश बढ़ रहा आगे

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भारत जो किसी वक्त में सोने की चिड़िया रहा है जिसका किसी वक्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान रहा है, उस भारत के गुलाम होने के बाद उसकी अर्थव्यवस्था को मुगलों ने एवं अंग्रेजों ने तहस-नहस किया है। भारत का सनातन चिंतन जितना अधिक शक्तिशाली था गुलामी के उस दौर में उस पर किए गए आक्रमण उसे कमजोर बनाने में कामयाब रहे। परंतु, अब समय आ गया है कि भारत के प्राचीन आर्थिक चिंतन को गंभीरता के साथ देखते हुए वर्तमान आर्थिक विकास की दृष्टि को उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए तभी जाकर आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत के वैभवकाल को पुनः प्राप्त किया जा सकेगा। भारत में प्राचीन ऋषियों और मनीषियों की परंपरा एक गृहस्थ परंपरा रही है और उस गृहस्थ परंपरा में आध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक,राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन भी जुड़ा रहा है। अपने राज्य के ऋषियों के जीवन यापन की चिंता जहां राजा की प्राथमिकता में रहता था वहीं राजा को राज्य चलाने के लिए उचित मार्गदर्शन देने का सांस्कृतिक कार्य उन ऋषि-मुनियों द्वारा किया जाता था। इसलिए उन मनीषियों का चिंतन आर्थिक दिशा में भी सदैव बना रहता था। राजा अपने राज्य का विस्तार करने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से और अधिक समृद्ध कैसे बनाएं इसके बारे में ऋषि-मुनियों के साथ बैठकर ही राज दरबार में चिंतन होता था और राज्य आर्थिक रूप से सशक्त बन जाते थे। इसलिए भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों एवं धार्मिक पर्यटन का भारत के आर्थिक विकास पर पूर्ण प्रभाव रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों से अर्थव्यवस्था को बल मिलता रहा है इसलिए उस कालखंड में धार्मिक आयोजन निरंतर होते रहे हैं। भारत की ऋषि परंपरा ने जन सामान्य को उन सबके साथ जोड़ कर रखा था। त्यौहारों की निरंतरता और उन्हें मनाए जाने का उत्साह भारत की तत्कालीन अर्थव्यवस्था को गति देता रहा है। आज के वक्त में भी धार्मिक पर्यटन के चलते भारतीय पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा भी पिछले 10 वर्षों में भारत में विभिन्न तीर्थस्थलों को विकसित किया जा रहा है। अभी तक जो तीर्थस्थल विकसित हो चुके हैं,वहां का पर्यटन एकदम से कई गुना बढ़ गया है। वहां की आर्थिक समृद्धि बढ़ गई है। वहां के लोगों का जीवन स्तर बढ़ गया है। वहां संपत्तियों के दाम बढ़ गए हैं। इसलिए इस दिशा में सरकार अब आगे और कार्य करने जा रही है तथा कई नवीन धार्मिक कारीडोर बनाने जा रही है,क्योंकि इससे रोजगार के लाखों नए अवसर  उत्पन्न होंगे। भारत की कुटुंब व्यवस्था अपने आप में एक अनूठी कुटुंब व्यवस्था है। भारत के संयुक्त परिवार विश्व के लिए आश्चर्य का विषय रहे हैं। इन दिनों संयुक्त परिवार विघटित अवश्य होते जा रहे हैं,लेकिन बावजूद उसके आपातकाल में एक दूसरे के लिए सबके एकत्र होने की जो जिजीविषा उन सबके भीतर है वह भारत में कुटुंब व्यवस्था का अनूठा स्वरूप है, तथा यह स्वरूप देश की अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने का काम करता है। एक परिवार में दो हाथ कमाने जाते हों और वहीं दस हाथ कमाने जाते हों, दोनों बातों का फर्क होता है। इसलिए कुटुंब व्यवस्था में एक दूसरे के लिए आपस में खड़े होने का जो व्यवहार होता है,वह व्यवहार आर्थिक चिंतन के साथ भी जुड़ कर परिवार को आगे बढ़ाने का काम करता है। भारत में प्राचीन काल से पर्यावरण को पर्याप्त महत्व दिया जाता रहा है। देश में नदियां शुद्ध रहती थी वृक्ष घने जंगलों के रूप में रहते थे और पूरा पर्यावरण शुद्ध रहता था। पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर नदियों को,वृक्षों को,धरती को पूजा जाता है। पूरे पर्यावरण से परिवार का जुड़ाव धार्मिक रूप से रहता है। बहुत सारे व्रत और त्यौहार पर्यावरण से जुड़े हुए रहते हैं। इसलिए सनातन काल से भारत में पर्यावरण की चिंता रही है। जैविक विविधता ने भी भारत के सनातन काल को समृद्ध किया। पर्यावरण संरक्षण को उस समय में नैतिक कर्तव्य माना गया है। बाद में जब मुगलों ने भारत में शासन किया और हिंदुओं का धर्मांतरण किया तो बहुत सारी परंपराएं भी खंडित होने लगी। सनातन काल में जिस गौ माता को पूजा जाता था मुस्लिम उस गौ माता को खाने लगे। मुस्लिम शासन काल भारत के पतन और विखंडन का समय था। उनके बाद जब इस देश में अंग्रेज आ गए तो उनकी निगाह में भारतीय अपरिपक्व और मूर्ख रहे इन दोनों के समय में, मुगलों ने और अंग्रेजों न भारत को दोनों हाथों से लूटकर खाली कर दिया। जो भारतीय अर्थव्यवस्था कभी विश्व की अर्थव्यवस्था का 33 प्रतिशत हिस्सा थी वह बहुत नीचे जा चुकी थी। पर्यावरण बिखरने लगा। नालंदा जैसे विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाया गया। उसकी लाइब्रेरी को जला दिया गया। इस सब के पीछे भारत को ज्ञान के स्तर पर समाप्त करने की साजिश काम कर रही थी। मुस्लिम शासक हिंदुओं के धर्मांतरण पर, हिंदुओं को मारने पर और उनकी संपत्ति हड़पने पर काम कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ब्राह्मणों को मारकर रोज सवा मन जनेऊ जलाता था। मंदिरों को नष्ट कर उन पर मस्जिदें बना दी गई। दक्षिण ने अपने आपको इस मुस्लिम आक्रमण से बहुत बचाया और इसीलिए भारत के दक्षिण भाग में आज भी समृद्ध मंदिर हैं,जो उस कालखंड के गौरव की प्रस्तुति के रूप में हमारे सामने खड़े हुए हैं। इसी कालखंड में भारत का भक्ति काल जरूर समृद्ध हुआ और उसने भारत के निवासियों को मानसिक ताकत प्रदान की। तुलसीदास की भक्ति के सामने अकबर जैसा आदमी डर गया और झुक गया। भारत की आजादी की लड़ाई तो सफलतापूर्वक लड़ी गई परंतु एक दुष्परिणाम भारत विभाजन के रूप में भी सामने आया,जिसमे लाखों हिंदुओं का नरसंहार हुआ। आजादी के 70 वर्ष में भारत की वह आर्थिक उन्नति नहीं हो पाई जैसी कि अपेक्षा की गई थी। वर्ष 2014 में केंद्र में एक मजबूत सरकार ने शासन को संभाला। कठोर आर्थिक निर्णय लिए। जनता का भी उन्हें साथ मिला तथा लगभग 10 वर्ष के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो गई। वर्तमान सरकार के समक्ष बहुत बड़ी बड़ी चुनौतियां हैं और आज भारत, बहुत सी विदेशी ताकतों एवं उनके षड्यंत्रों के साथ जूझ रहा है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जो संकल्प लेकर भारतीय परम्पराओं के अनुरूप सरकार काम कर रही है, उसमें भारत की अर्थव्यवस्था शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। यह इस अर्थव्यवस्था की ताकत है कि कोरोना खंडकाल में भारत ने अपने 80 करोड़ गरीब लोगों को निशुल्क अन्न उपलब्ध कराया तथा कोरोना की वैक्सीन भी समस्त नागरिकों को निशुल्क उपलब्ध कराई गई। भारत अब न सिर्फ सड़क निर्माण के क्षेत्र में बड़ा काम कर रहा है, अपितु वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। साफ सफाई, गरीबों के लिए मकान, गरीबों के लिए शौचालय जैसे छोटे-छोटे विषय भी सरकार की प्राथमिकता में हैं। सरकार किसानों का ध्यान रख रही है, किसानों को समृद्ध बना रही है और उद्योगों को भी नई दिशा प्रदान कर रही है, नए संसाधन प्रदान कर रही है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत है कि जब विश्व के अन्य देशों में मंदी की स्थिति बन रही है और वहां की अर्थव्यवस्था नीचे की ओर जा रही है तब भारत की अर्थव्यवस्था दिन-ब-दिन समृद्ध होती जा रही है। देश में कुटीर एवं लघु उद्योग के गौरवशाली दिन वापिस लाने हेतु निरंतर कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार ने सहकारिता मंत्रालय का गठन कर देश में सहकारिता आंदोलन को सफल होने का रास्ता खोला है। भारत के आर्थिक विकास में विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संस्थानों का भी बहुत बड़ा योगदान होने लगा है। बहुत सारे धार्मिक संस्थान बड़े-बड़े अस्पताल खोलकर सेवा का कार्य कर रहे हैं। समाज के विभिन्न वर्गों के द्वारा इलाज की बहुत सारी सुविधाएं देश में कई अस्पतालों में मुफ्त में प्रदान की जा रही है। सरकार ने भी एम्स के माध्यम से चिकित्सा सुविधाएं सारे देश में उपलब्ध करवाने का काम किया है। विभिन्न सामाजिक संगठन भी अपना योगदान समाज की सेवा के साथ देश की अर्थव्यवस्था के विकास में प्रदान कर रहे हैं। भारत का योग सारे विश्व के लिए मार्गदर्शक हो गया है और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत के साथ अन्य राष्ट्र भी उन्नति करते जा रहे हैं। भारतीय नागरिक विदेशों में जाकर झंडे गाड़ रहे हैं। अमेरिका की अर्थव्यवस्था में भारतीयों का बहुत बड़ा योगदान है। प्रवासी भारतीय कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारतीयों का डंका आज पूरे विश्व में बज रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में प्रवासी भारतीय भी अपना योगदान कर रहे हैं। विश्व के कई देशों में भारतीय मूल के नागरिकों की बढ़ती संख्या एवं भारतीय सनातन दर्शन का प्रसार विदेशों में हो रहा है। भारत की तरह वहां पर भी मंदिरों का निर्माण हो रहा है। भारत की साधना पद्धति वहां स्वीकार की जाने लगी है।

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