राजनीति भाषाई विवाद और सावरकर जी का हिंदी प्रेम July 9, 2025 / July 29, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment कांग्रेस के चरित्र का यदि अवलोकन किया जाए तो पता चलता है कि इस पार्टी ने प्रारंभ से ही ‘हिंदुस्थानी हिंदी’ के सामने ‘संस्कृतनिष्ठ हिंदी’ की सदा उपेक्षा की है। गांधी जी और नेहरू ‘हिंदुस्थानी’ के समर्थक थे। उन्होंने एक ऐसी काल्पनिक भाषा को हिंदुस्थानी कहकर पुकारा, जिसमें सभी भाषाओं के शब्दों को सम्मिलित कर […] Read more » Language controversy and Savarkar's love for Hindi भाषाई विवाद और सावरकर जी
राजनीति अमेरिकी कृषि उत्पाद बेचने से बचे भारत July 7, 2025 / July 7, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गवभारत और अमेरिका के बीच 9 जुलाई से पहले व्यापार समझौता होना हैं। यदि भारत अमेरिका की षर्तें नहीं माना है तो 9 जुलाई से टैरिफ यानी अंतरराष्ट्रीय व्यापार में लगाया जाने वाला कर 10 से बढ़ाकर 26 प्रतिशत हो जाएगा। भारत चाहता है कि जल्द अंतरिम व्यापार समझौता हो जाए। लेकिन अमेरिका अपने […] Read more » India refrains from selling American agricultural products
राजनीति मोदी-शाह की जोड़ी ने साकार किया डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी का अखंड सपना July 7, 2025 / July 7, 2025 by अशोक बजाज | Leave a Comment अशोक बजाज आज़ादी के साथ कश्मीर समस्या हमें विरासत में मिली थी जो भारत के लिए नासूर बन गई थी. आज़ादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी सरकार ने तुष्टीकरण की नीति के चलते जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 लगा कर उसे विशेष दर्जा प्रदान कर दिया था. धारा 370 भारतीय संविधान का एक […] Read more »
राजनीति सुशासन की सरकार पर सवालिया निशान खेमका की हत्या July 7, 2025 / July 7, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन अपने बिहार दौरे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जिस जंगलराज के बहाने महागठबंधन को घेरने की कोशिश की, वह उलट सावित हो रहा है। अब लोग सवाल कर रहे हैं कि यदि सुशासन में सरे आम अपराधी तांडव कर रहे हैं, तो फिर जंगल राज क्या है? महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव पहले […] Read more » निशान खेमका की हत्या
राजनीति 15 वें दलाई लामा की खोज के एलान पर आखिर चीन क्यों परेशान है! July 7, 2025 / July 7, 2025 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे तिब्बती बौद्ध समुदाय के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा ने ऐलान किया है कि उनका पद उनके निर्वाण के बाद भी जारी रहेगा। उन्होंने कहा है कि उनके जाने के बाद भी दलाई लामा का पद जारी रहेगा और नए दलाई लामा की खोज उनका ट्रस्ट करेगा। उन्होंने यह भी साफ़ […] Read more » 15 वें दलाई लामा की खोज 15 वें दलाई लामा की खोज के एलान पर आखिर चीन क्यों परेशान है! Why is China worried over the announcement of the search for the 15th Dalai Lama?
राजनीति जनगणना में जाति के निहितार्थ July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल जनसंख्या दिवस पर चारों तरफ से एक जैसी ही आवाज़ें भारत में चारों तरफ़ से उठती हैं कि जैसे भी हो, सुरसा के मुख सी बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगे । बेशक, भारत में जनविस्फोट एक बड़ी समस्या है और बावजूद सारे उपाय के जनवृद्धि दर पर नियंत्रण दुष्कर सिद्ध हो रहा है । आज़ादी के बाद से ही जनसंख्या हैरतअंगेज तेजी से बढ़ी है। बेतहाशा बढ़ती हुई जनसंख्या ने अच्छी खासी विकास दर को भी बेमानी सिद्ध कर दिया है। अशिक्षा, गरीबी, रूढ़िवादिता, धार्मिक कट्टरता और अपने संप्रदाय विशेष को हावी करने की कुटिल इच्छा जैसे कितने ही कारण हैं जनसंख्या के निरंतर बढ़ते जाने के । 1947 में 36 करोड़ लोगों का देश महज 78 साल में ही 143 करोड़ जनसंख्या वाले राष्ट्र में बदल गया यानि आज़ादी के बाद भारत की जनसंख्या 3 गुना से भी ज़्यादा बढ़ी । प्रतिवर्ष न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की कुल जनसंख्या से भी ज़्यादा लोग हमारे देश की जनसंख्या में जुड़ रहे हैं । स्वाभाविक रूप से इससे खाने, पहनने और रहने की समस्याएं विकराल रूप लेती गईं। राष्ट्रीय सरकारों ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं पर ध्यान तो दिया मगर जो प्रतिबद्धता चाहिए थी वह नज़र नहीं आई। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह रही देश के एक खास वर्ग का वोट पैकेज में तब्दील हो जाना। 1911 के बाद 1921 में होने वाली जनगणना चार साल पिछड़ चुकी है लेकिन जल्दी ही भारत में एक बार फिर से जनगणना शुरू होने वाली है । विपक्ष और बिहार में नीतीश कुमार द्वारा बार-बार की जाने वाली मांग के बाद केंद्र सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है कि इस बार इस जनगणना में लोगों का जातिगत ब्यौरा भी दर्ज किया जाएगा । जातिगत ब्यौरे का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन फिलहाल आशंकाएं हैं कि यदि इस आंकड़े का उपयोग राजनीतिक लक्ष्य साधना के लिए किया गया तो फिर ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसा मुद्दा पीछे छूट जाएगा एवं जातिगत जनगणना एक राजनीतिक औजार बनकर रह जाएगी। राजनीति के एक खास वर्ग द्वारा लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि कभी धर्मग्रंथों का हवाला देकर तो कभी इस्लामिक स्टेट के सपने दिखाकर वर्ग विशेष के कट्टर धार्मिक नेता बरगलाते हैं और जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि जारी रहती है । हालांकि शिक्षा एवं जागरूकता बढ़ने के साथ जहां उच्च वर्गों में ‘हम दो हमारे दो’ के नारे से जन जागृति आई ,वहीं अब तो ‘बच्चा एक ही अच्छा’ के सिद्धांत पर एक बहुत बड़ा वर्ग चल रहा है. साफ सी बात है इस वर्ग ने जनसंख्या की वृद्धि पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया है हालांकि समाज के भी निचले तबकों में अभी वह जागृति देखने को नजर नहीं आती जो होनी चाहिए । जहां भारत क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया में सातवें नंबर पर है, वहीं जनसंख्या की दृष्टि से शिखर पर है। अब यह समय की मांग है कि सरकारों को निष्पक्ष तरीके से बिना डरे पूरी प्रतिबद्धता के साथ पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर ही देना चाहिए । बढ़ती हुई जनसंख्या के दृष्टिगत जनसंख्या नियंत्रण कानून के अंतर्गत इस प्रकार के प्रावधानों का होना आवश्यक हो कि एक सीमित संख्या तक परिवार बढ़ने पर ही लोगों को सब्सिडी, लोन या राशन आदि की सुविधा मिले। निर्धारित संख्या से ऊपर संतान उत्पत्ति पर प्रतिबंधात्मक प्रावधान हों । यह सच है कि ऐसी नीति एकदम लागू नहीं की जा सकती और इसमें धार्मिक एवं सामाजिक प्रतिरोध भी आड़े आएगा । तब जनसंख्या नियंत्रण कानून को चरण दर चरण लागू करने की नीति अपनाई जा सकती है । जिस प्रकार से कई दूसरे देशों में संतान उत्पत्ति के नियम हैं उसी प्रकार से देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकारों को भी ऐसे प्रावधान अस्तित्व में लाने ही चाहिएं। तार्किक तो यह होगा कि जबरदस्ती कानून थोपने के बजाय प्रेरक तरीके से जन जागरण अभियान चलाए जाएं खास तौर पर कम शिक्षित या अशिक्षित एवं धार्मिक अंधविश्वास से अधिक प्रभावित लोगों के लिए ऐसे धार्मिक संस्थानों की सहायता ली जा सकती है जो उन्हें बताएं कि संतान केवल ईश्वर की देन नहीं है अपितु यह एक शारीरिक प्रजनन क्षमता का परिणाम है। उन्हें यह समझाया जाए कि जितने अधिक बच्चे होंगे उसी अनुपात में उन्हें उतना ही कम खाना-पीना, पहनना एवं रहने का स्थान उपलब्ध हो पाएगा जिसके परिणाम स्वरूप उनका जीवन स्तर भी निम्न श्रेणी का ही रहेगा। स्कूलों एवं कॉलेजों तथा दूसरे प्रशिक्षण संस्थानों में भी विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से जन वृद्धि के दुष्परिणाम एवं उन्हें रोकने की व्यवहारिक उपायों की जानकारी दी जानी जरूरी है । यह कार्य केवल सरकारी स्कूलों वह कॉलेजों में ही नहीं अपितु धार्मिक स्कूलों व महाविद्यालय में भी लागू किया जाए । साथ ही साथ कम बच्चे पैदा करने वाले लोगों के लिए मुफ्त शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए इससे भी एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यदि सरकारों में प्रतिबद्धता हो तो बिजली, पानी जैसी आवश्यक आपूर्ति वाली वस्तुओं की दरें भी एकल परिवारों के सदस्यों की संख्या के आधार पर तय करने में भी कोई बुराई नहीं है । यदि जनसंख्या नियंत्रण पर ढुलमुल नीति जारी रही और प्रतिबंधात्मक व नकारात्मक प्रेरणा देते उपाय नहीं किए गए तो देश में प्रति व्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति उपलब्ध संसाधन, रोटी, कपड़ा, मकान और क्रय क्षमता जैसी चीजों में हम नीचे की ओर खिसकते चले जाएंगे । यदि हमें गर्त में जाने से बचना है तो जनसंख्या पर नियंत्रण करना ही होगा, कैसे भी और किसी भी तकनीक से, उसके लिए चाहे जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना पड़े या लोगों में जन जागरण करके एक चेतना लानी पड़े अथवा कुछ और करना पड़े । आज हम उस स्थिति में खड़े हैं जहां एक ओर देश को जहां जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना पड़ेगा, वहीं ऐसी नीतियां भी बनानी पड़ेगी जिसमें जनसंख्या एक बोझ नहीं बल्कि ताकत बनकर सामने आए. चीन का उदाहरण हमारे सामने है. हम इस प्रकार की योजनाएं चलाएं जिसमें देश का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी तरह से दक्षता पूर्वक देश के विकास एवं उन्नयन में निरंतर सहयोग दे सके तो जनसंख्या एक बोझ नहीं, ताकत बन जाएगी। बुद्धिमता इसी में है कि जो अभी दुनिया में हैं, उन्हें संभाला जाए, उनके जीवन स्तर को उच्च किया जाए, लोगों में नव चेतना एवं जागृति पैदा की जाए और जिन्हें दुनिया में आना है उनके आने को नियंत्रित करके उनके लिए एक बेहतर संसार और बेहतर देश बनाने की ओर कदम बढ़ाया जाए। साथ ही साथ सह भी तय करना होगा कि जहां जनगणना के आंकड़े यथार्थपरक हों, वहीं उसमें जाति का ब्यौरा जोड़ने के बाद इस बात की भी पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए कि इन आंकड़ों का उपयोग राजनीतिक स्वार्थसिद्धि के लिए नहीं किया जाएगा अन्यथा राजनीतिक दलों के हाथ में यह एक ऐसा हथियार लग जाएगा जो देश में विभेदीकरण को और अधिक बल देगा तथा इससे जाति संप्रदाय एवं धर्म तथा क्षेत्र के नाम पर जनसंघर्ष बढ़ने की संभावनाएं भी बलवती होंगी। डॉ घनश्याम बादल Read more » Implications of caste in census जनगणना में जाति
आर्थिकी राजनीति ब्रिक्स में भारत का बढ़ता वर्चस्व संतुलित दुनिया का आधार July 7, 2025 / July 7, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग –ब्राजील के रियो डी जनेरियो में रविवार को हुए 17वें ब्रिक्स सम्मेलन में सदस्य देशों ने 31 पेज और 126 पॉइंट वाला एक जॉइंट घोषणा पत्र जारी किया। इसमें पहलगाम आतंकी हमले और ईरान पर इजराइली हमले की निंदा की गई। इससे पहले 1 जुलाई को भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मेंबरशिप […] Read more »
राजनीति क्या भारत ग्लोबल साउथ में अपनी खोई विरासत फिर हासिल कर पाएगा? July 3, 2025 / July 3, 2025 by ओंकारेश्वर पांडेय | Leave a Comment मोदी का घाना दौरा -: कूटनीति का वही ढोल या साख लौटाने की ठोस कवायद? ओंकारेश्वर पांडेय ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद तमाम सवालों से घिरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब घाना की धरती पर उतरे, तो उनके कदमों में 75 साल की उम्र की थकान और हार न मानने की जिद एकसाथ झलक रही थी। अक्रा के हवाई अड्डे पर, हल्के नीले नेहरू जैकेट में सजे मोदी का चेहरा […] Read more » Modi's visit to Ghana मोदी का घाना दौरा
राजनीति एससीओ में आतंकवाद पर चले पारस्परिक दांवपेंच के मायने July 2, 2025 / July 2, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय जब इजरायल जैसा छोटा-सा यहूदी देश अपने शौर्य, पराक्रम और कूटनीति जनित तकनीकी विकास के बल पर ईरान जैसे कट्टर शिया इस्लामिक देश का मुकाबला कर सकता है तो भारत जैसा विशाल हिन्दू राष्ट्र अपने शौर्य, पराक्रम और कूटनीति जनित तकनीकी विकास के बल पर पाकिस्तान / पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) जैसे कट्टर सुन्नी […] Read more » The meaning of the mutual negotiations on terrorism in SCO एससीओ में आतंकवाद
राजनीति संयुक्त राष्ट्र: दंतहीन, विषरहित July 2, 2025 / July 2, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment सचिन त्रिपाठी दुनिया जब जलती है तो कोई ऐसा मंच चाहिए जो केवल आग बुझाने की अपील न करे बल्कि पानी लेकर पहुंचे लेकिन 21वीं सदी के तीसरे दशक में जब-जब युद्धों की चिंगारियां उठीं, तब-तब संयुक्त राष्ट्र केवल बयानों और प्रस्तावों की राख उड़ाता नजर आया। क्या यह वही संस्था है जिसे 1945 में […] Read more » United Nations: Toothless संयुक्त राष्ट्र
राजनीति संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी ‘और ‘धर्मनिरपेक्ष ‘पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। July 2, 2025 / July 2, 2025 by डॉ.बालमुकुंद पांडेय | Leave a Comment डॉ. बालमुकुंद पांडेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्रीमान दत्तात्रेय होसवाले जी ने’ इमरजेंसी के 50 साल ‘ के कार्यक्रम में कहा कि ‘ समाजवादी’ और’ धर्मनिरपेक्ष ‘ शब्दों को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था । इन शब्दों को सत्ता की सुरक्षा के लिए शामिल किया गया था । […] Read more » समाजवादी और 'धर्मनिरपेक्ष संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी 'और 'धर्मनिरपेक्ष 'पर पुनर्विचार
राजनीति ‘सुपर जासूस’ की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख पद पर नियुक्ति July 2, 2025 / July 2, 2025 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे पराग जैन का नाम खुफिया हलकों में ‘सुपर जासूस’ के तौर पर गूँजता है चाहे वह ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ में आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करना हो, जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर खुफिया नेटवर्क बनाना हो या फिर कनाडा और श्रीलंका में भारत-विरोधी साजिशों को नाकाम करना हो। आईपीएस पराग जैन ने हर मोर्चे पर अपनी […] Read more » पराग जैन