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संघर्षशील व्यक्तित्व, बेजोड़ राजनैतिज्ञ मनोहर लाल

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पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के जन्मदिन पर विशेष हरियाणा की राजनीति के चौथे बड़े लाल मनोहर लाल का आज जन्मदिन है। हरियाणा की सत्ता को दो बार संभालने वाले मनोहर लाल खट्टर वर्तमान में केंद्रीय स्तर की राजनीति में बड़ा नाम है। भाजपा के वरिष्ठ और निष्ठावान कार्यकर्ताओं में उनका नाम विशेष रूप से लिए जाता है। वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय ऊर्जा, आवास और शहरी मामलों के मंत्री के रूप में दायित्व संभाले हुए है।      मूल रूप से रोहतक जिले के निन्दाणा गांव में 5 मई 1954 जन्मे मनोहर लाल का परिवार पाकिस्तान से आकर यहां बसा था। बाद में परिवार ने पास के ही गांव बनियानी में खेती की जमीन खरीद ली और वहीं रिहायश कर ली। विस्थापित परिवारों की तरह इनके परिवार को भी शुरुआत में आजीविका के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। बताया जाता है कि उनके पिता और दादा को शुरुआती दिनों में मजदूरी तक करनी पड़ी थी। हर पिता की तरह मनोहर लाल के पिता हरबंस लाल ने भी बेटे को अच्छी शिक्षा प्रदान की। वो तो चाहते थे कि पढ़ाई के साथ साथ खेती में भी उनका सहयोग कर इसे आगे बढ़ाए। पर उनकी इच्छा चिकित्सा क्षेत्र में जाने की थी। वे एक मेधावी छात्र थे। रोहतक के नेकीराम कॉलेज से पढ़ाई सम्पन्न कर मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी के लिए एक रिश्तेदार के पास दिल्ली चले गए। उनके उन रिश्तेदार की दिल्ली के सदर बाजार में कपड़े की दुकान थी।     एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद बताया था कि – ‘रोहतक मेडिकल कॉलेज में एक नंबर से वे चूक गये थे। दाखिला नहीं होने पर उन्होंने एम्स और आर्म्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए काफी तैयारी की, लेकिन बात नहीं बन पाई। डोनेशन पर प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन पर परिवार सहमत नहीं था। पिता जी का कहना था कि इतने रुपयों में तो तुम अपना काम शुरू कर सकते हो। इसके बाद पिताजी से 15 हजार रुपए लेकर दिल्ली के सदर बाजार में कपड़े की दुकान की शुरुआत की। दिल्ली में रहते-रहते उनका आरएसएस से जुड़ाव हो गया। ऐसा नहीं है कि संघ से जुड़ाव उनका बड़ी आसानी से ही गया। एक कर्मठ स्वयंसेवक के रूप में अपने आपको साबित करने के लिए उन्होंने संघ की रीति नीति का कड़ाई से पालन किया। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई दौरान उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ 1977 में संपर्क हुआ। 1979 में विश्व हिंदू परिषद की सभा में उनकी मुलाकात संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों और परिषद के संतों से हुई। धीरे-धीरे संघ के प्रति उनका लगाव बढ़ता गया। संघ के साथ साथ अपने व्यापार में भी लगातार संघ में सक्रिय रहे। जब संघ के लिए पूरा समय देने का मन बना तो छोटे भाई को व्यापार सौंप निकल लिए। विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए पूर्णकालिक प्रचारक बने। शुरुआत में उनके परिजनों को लगता था कि दो तीन साल में वापस लौट आयेंगे। तीन साल पूरा होने के बाद पिता जी ने अक्सर कहना शुरू कर दिया कि अब घर लौट आओ, लेकिन वह हर बार मना कर देता। मनोहर लाल भाई-बहनों में बड़े थे तो शादी का दबाव भी उन पर बढ़ रहा था। पिता जी को मनाकर छोटे भाई की शादी करा दी। तब मनोहर लाल को लगा कि अब पिता जी समझ जाएंगे कि वो लौटना नहीं चाहता, लेकिन वे लगातार लौटने के लिए कहते रहे। मनोहर लाल जी ने एक बार बताया कि एक दिन उन्होंने कठोर मन से पिता जी से कह दिया कि आपके पांच बेटे हैं। आप नहीं सोच सकते कि आपके पांच नहीं चार ही बेटे हैं।    उनके जीवन का एक और बड़ा वाक्या है जो उनकी बेबाकी को दिखाता है।1994 में जगाधरी में संघ शिक्षा वर्ग चल रहा था। अंतिम दिन उस समय के सरसंघचालक रज्जू भैया का सम्बोधन था। इसी दौरान तत्कालीन प्रांत प्रचारक जी मनोहर लाल के पास से गुजरे। उन्होंने मनोहर लाल से कहा, हम सोच रहे हैं कि आपको भाजपा में संगठन मंत्री के रूप में भेजा जाए। उन्होंने साधारण रूप में कहा तो तो मनोहर लाल भी बोल पड़े कि सीटी आपको दे दूं या प्रार्थना करा लूं। उन्होंने कहा कि इतनी भी क्या जल्दी है। तब मनोहर लाल ने कहा कि जल्दी नहीं है, पर आपको भी ये बात बताने के लिए अभी ही समय मिला था क्या।’ जब मनोहर लाल को भाजपा का संगठन महामंत्री बनाया गया। पार्टी पर डेढ़ लाख रुपए का कर्जा था। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी का थैली भेंट कार्यक्रम करवाया। कार्यक्रम से प्रदेश भाजपा को करीब साढे तीन लाख रुपए मिले और लोन चुकता हो गया। 1999 में हरियाणा में ‌भाजपा और हरियाणा विकास पार्टी के गठबंधन की सरकार थी। बंसीलाल मुख्यमंत्री थे। मुलाकात न करने पर उन्हें बात बात चुभ गई। उन्होंने कसम खाई कि जब तक सरकार नहीं गिरेगी, तब तक दाढ़ी नहीं कटाएंगे। सरकार गिरने के बाद ही उन्होंने दाढ़ी कटवाई। हरियाणा 2014 में लोकसभा चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम करते हुए हरियाणा में भाजपा को 10 में से सात लोकसभा सीटों पर जीत दिलवाने का काम किया। इस जीत के बाद वह हरियाणा में सक्रिय हुए और इसी साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को सत्ता में लाने का काम किया। पहली बार विधायक बने मनोहर लाल लगातार 10 साल मुख्यमंत्री रहे। नरेंद्र मोदी से भी उनका संपर्क काफी पुराना है। 1996 में नरेंद्र मोदी हरियाणा के प्रभारी बनाए गए। इसी दौरान उनकी मुलाकात खट्‌टर से हुई। खुद मोदी ने एक सभा में बताया था कि वे जब हरियाणा के प्रभारी थे तो मनोहर लाल की बाइक पर पीछे बैठकर घूमते थे। विभिन्न राज्यों के प्रभारी के रूप में भी दायित्व का निर्वहन किया। दस वर्ष तक मुख्यमंत्री रहकर 12 मार्च 2024 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अगले ही दिन 13 मार्च को मनोहर लाल को करनाल से उम्मीदवार घोषित किया गया। चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार 3.0 में उन्हें ऊर्जा, आवास और शहरी मामलों का मंत्री बनाया गया। वे अपने पैतृक आवास को दान कर चुके हैं। पारदर्शी और डिजिटल प्रशासन (ई-गवर्नेंस), कृषि और किसान कल्याण,शिक्षा और कौशल विकास, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा,मुख्यमंत्री अंत्योदय परिवार उत्थान योजना, बिना पर्ची- बिना खर्ची नौकरी के लिए उनके कार्य चर्चा में रहे हैं। स्वस्थ रहें। राष्ट्रकार्य करते रहे। यहीं शुभकामनाएं हैं। त्वं जीव शतं वर्धमानः। जीवनं तव भवतु सार्थकम्।। सुशील कुमार ‘नवीन‘, हिसार

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बलात्कार, ब्लैकमेल और ‘सबाब’

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गजेन्द्र सिंह अभी मई 2025 में भोपाल की घटनाएं, जहाँ मुस्लिम युवकों द्वारा संगठित रूप से हिन्दू लड़कियों को फंसाकर बलात्कार किया गया, वीडियो बनाकर ब्लैकमेल किया, रोजे रखवाए, बुर्का पहना कर फोटो खिंचवाया, इस तरह के घृणित कृत्य समाज को झकझोरने वाले  हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मो फरमान ने इकबाले बयान में कहा कि मुझे कोई पछतावा नहीं है, मुझे “सबाब” मिला। ये घृणित कृत्य तब और भी कठोर हो जाते है जब युवा अपराधों को धर्म के आयतो से न्ययोचित ठहराते है।  क्या सच में मुस्लिम युवाओं को हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार करने पर सबाब मिलता है ? क्या किसी  भारतीय मौलवी, धर्मगुरु और इस्लामिक स्कॉलर ने इस युवा की बात का तथ्यात्मक खंडन  किया ? 1992, अजमेर में 11 से 20 साल की उम्र की 250 हिंदू छात्राएं फारूक और नफीस चिश्ती के नेतृत्व में  सामूहिक बलात्कार और ब्लैकमेलिंग की शिकार हुईं । ब्यावर जिले में मुस्लिम युवकों द्वारा हिंदू नाबालिग लड़कियों का शोषण और ब्लैकमेल किया गया, जिसका बिजयनगर पुलिस थाने में मामले दर्ज किया गया। हाल ही में उत्तराखंड में 74 वर्षीय मौलवी द्वारा एक 12  वर्षीय हिन्दू बच्ची के साथ बलात्कार करना,  1992 के अजमेर कांड से लेकर उत्तराखंड में एक मौलवी द्वारा नाबालिग बच्ची से बलात्कार तक, कई ऐसे मामले रहे हैं जहाँ पीड़ित पक्ष ने धार्मिक कट्टरता,  सामूहिक और व्यवस्थागत शोषण की पीड़ा झेली है। यह न केवल पीड़ितों के लिए अमानवीय है बल्कि  समाज की उस चुप्पी को भी उजागर करता है जो इन अपराधों के प्रति केवल “धार्मिक तुष्टिकरण” या “राजनीतिक सुविधा” के कारण खामोश रहती है। बेशक, अपराध कानून के दायरे में आते हैं और हर दोषी को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से सज़ा मिलनी चाहिए लेकिन जब अपराध के पीछे धार्मिक पहचान, धार्मिक शिक्षा या धार्मिक ग्रंथों की विकृत व्याख्या एक कारक बन जाती है, तब यह केवल कानून का विषय नहीं रह जाता  बल्कि सामाजिक, धार्मिक और वैचारिक नेतृत्व की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे सामने आएं और स्पष्ट प्रतिक्रिया दें। जिस तरह की महिलाओं और बच्चियों के साथ लगातार हो रहे अपराध पर सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लामिक स्कॉलर, मौलवी और अन्य धर्म उपदेशकों द्वारा इसे 72 हूरो और इस्लाम और कुरान की आयतों के नाम पर जायज और इस्लाम परस्त ठहराया जा रहा है। क्या सच में ये  इस्लाम के नाम पर पाखंड नहीं है ? क्या ये  युवाओं के मन में घृणा और भ्रम  पैदा नहीं करता है? वहीं, कुछ चिंतकों का यह भी मत है कि जिन अपराधों को इस्लाम और कुरान के नाम पर वैध ठहराया जाता है, उनके मूल में इस्लामिक  शिक्षा की कुछ व्याख्याएं, मदरसों में दी जा रही कट्टर शिक्षा, सोशल मीडिया पर प्रसारित इस्लामिक स्कॉलर्स के भाषण, 72 हूरों की अवधारणा और बहुविवाह जैसी परंपराएं हैं जो लगातार नई पीढ़ी को भ्रमित  और उग्र बना रही हैं। जहाँ सोशल मीडिया पर इस्लामिक स्कॉलर्स या कुछ मौलवियों द्वारा अपराधों का समर्थन, कुछ प्रगतिशील विचारधारा के लोगो द्वारा तुष्टिकरण किया जाता है, वहीं समाज के प्रभावशाली वर्ग की चुप्पी और सोशल मीडिया के माध्यम से दोहरे मापदंड  क्या  आत्मघाती नहीं है ? हर बार जब कोई अपराध धर्म के नाम पर होता है, अथवा धर्म से उसे न्ययोचित किया जाता है तो सम्पूर्ण समुदाय और धर्म के अनुयायी क्या कटघरे में खड़े नहीं होते? क्या सामूहिक दोषारोपण से सामाजिक समरसता को क्षति अनुयायी नहीं पहुँचती ?  क्या  धार्मिक, सामाजिक और वैचारिक नेतृत्व को सामने आकर स्पष्ट और सशक्त प्रतिक्रिया देने की जरुरत नहीं है ?  क्या धर्मगुरुओं को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वे न केवल देशविरोधी कृत्यों का स्पष्ट रूप से विरोध करें बल्कि धर्म की सही व्याख्या करें और देश के प्रति सम्मान को भी उजागर करें, ताकि नई पीढ़ी उसका अनुसरण कर सके और धार्मिक मूल्यों की सच्ची भावना बनी रहे। अपराध को व्यक्ति की ज़िम्मेदारी मानकर देखा जाता रहा है किन्तु जब अपराध सामूहिक रूप से संगठित हों, और उनमें धार्मिक पहचान या विचारधारा की भूमिका दिखे, तब पूरे समुदाय के बुद्धिजीवी वर्ग और धार्मिक नेतृत्व को सामने आकर यह कहना होगा — “यह हमारे धर्म की आत्मा नहीं है।” मदरसों, धार्मिक संस्थानों  की जिम्मेदारी केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि उस शिक्षा की मानवीय व्याख्या, संवेदनशीलता और नैतिकता का प्रशिक्षण भी होना चाहिए। धर्म को डर या भ्रम का उपकरण न बनाकर करुणा, समानता और सह-अस्तित्व का आधार बनाया जाना चाहिए। जब समाज का प्रभावशाली वर्ग — चाहे वह मीडिया हो, बुद्धिजीवी हों या राजनेता — इन घटनाओं पर केवल राजनीतिक लाभ-हानि के चश्मे से प्रतिक्रिया देता है या चुप रहता है, तब यह चुप्पी ही सबसे बड़ा अपराध बन जाती है। यह न केवल युवाओं को भ्रमित करती है, बल्कि अपराधियों को यह संदेश भी देती है कि उनके पास धार्मिक तुष्टिकरण का कवच है। गजेंद्र सिंह

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