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सनातन संस्कृति के भाव को जगाने हेतु संघ की स्थापना विजयादशमी के दिन ही क्यों हुई

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भारतीय परंपरा में, “आश्विन शुक्ल दशमी” को, अक्षय स्फूर्ति, शक्तिपूजा एवं विजय प्राप्ति का दिवस माना जाता है। किसी भी शुभ, सात्विक एवं राष्ट्र गौरवकारी कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह मुहूर्त सर्वोत्तम माना गया है। विजयादशमी का यह उत्सव आसुरी शक्तियों पर दैवी शक्तियों की विजय का प्रतीक है।  विजयादशमी के दिन ही सतयुग में भगवती मां दुर्गा के रूप में दैवी शक्ति ने महिषासुर का मर्दन किया था। त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने वनवासियों का सहयोग लेकर, उन्हें संगठित कर तथा सेतु-निर्माण कर, दुष्ट रावण की आसुरी शक्तियों का विनाश किया था। तथा, इसी प्रकार द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में दैवी शक्तियों ने आसुरी शक्तियों का विध्वंस किया था। कलयुग में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हिंदुत्व का स्वाभिमान लेकर हिंदू पद-पादशाही की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा सीमोल्लंघन की परंपरा का प्रारंभ भी इसी पावन दिवस पर किया गया था। और, रामलीला तथा दुर्गापूजा इन दोनों उत्सवों को, इस विजयशाली दिवस की पावन स्मृति को, लोकमानस में बनाए रखने की दृष्टि से ही, मनाया जाता है।विजयादशमी के पावन दिवस पर शस्त्र-पूजन की परंपरा भी है। 12 वर्ष के वनवास तथा 1 वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात् पांडवों ने अपने शस्त्रों का पूजन इसी दिन किया था तथा उन्हें पुनः धारण किया था। विजयादशमी के दिन ही, परमपूज्य आद्य सरसंघचालक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी ने नागपुर के मोहिते के बाड़े में संवत् 1983 तदनुसार 27 सितंबर 1925 ईसवी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, अर्थात् राष्ट्र जीवन में शक्ति का निर्माण करने के लिए संकल्पित संघ का कार्य भी इसी दिन के शुभ मुहूर्त से प्रारंभ हुआ था। वर्ष 2014 में विजयादशमी दिवस का विशेष महत्व है क्योंकि संघ अपनी स्थापना के  100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, अर्थात्, संघ का यह सौवां विजयादशमी उत्सव है।  मुगलकाल एवं ब्रिटिश शासनकाल के अंतर्गत हिन्दू लोक जीवन विखंडित हो गया था। हिन्दू धर्म के मूल रहस्यों से अनभिज्ञ आक्रांताओं ने न केवल वैयक्तिक अधिकारों का हनन किया अपितु हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथों को भी नष्ट कर दिया। 1000 वर्षो तक सनातन संस्कृति विधर्मियों के प्रहार को झेलती हुई लगभग मृतप्राय बना दी गई थी। साथ ही, जिस खंडकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी वह मुस्लिम तुष्टिकरण का काल था। वर्ष 1920 में देश में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। मुसलमानों का नेतृत्व मुल्ला-मौलवियों के हाथों में था। इस खंडकाल में मुसलमानों ने देश में अनेक दंगे किए। केरल में मोपला मुसलमानों ने विद्रोह किया। उसमें हजारों हिंदू मारे गए। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण के कारण हिंदुओं में अत्यंत असुरक्षिता की भावना फैली थी। हिंदू संगठित हुए बिना मुस्लिम आक्राताओं के सामने टिक नहीं सकेंगे, यह विचार अनेक लोगों ने प्रस्तुत किया और इस प्रकार हिंदू हितों के रक्षार्थ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि ’संघ शक्ति कलौ युगे’ अर्थात् कलयुग में संगठन ही सर्वोपरि है। इस वाक्य के अनुरूप ही संघ में संगठन को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है। अब आवश्यकता है कि मूल्य परक हिन्दू जीवन पद्धति जिससे न केवल मानव अपितु प्रकृति एवं जीव-जन्तु जगत का भी उत्थान सम्भव है, उसे पुनः प्रतिष्ठित किया जाए। इस प्रकार, संघ के प्रयासों से भारत में विस्मृत राष्ट्रभाव का पुनर्जागरण प्रारम्भ हुआ है। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में शायद ही कोई ऐसा संगठन रहा होगा जो अपनी स्थापना के समय से ही निर्धारित किए गए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर लगातार सफलतापूर्वक आगे बढ़ता जा रहा है। मार्च, 2024 में संघ की नागपुर में आयोजित प्रतिनिधि सभा की बैठक में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों एवं 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं, प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं। समाज के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से 40 से अधिक विभिन्न संगठन अपना कार्य कर रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। देश में राजनैतिक कारणों के चलते संघ पर तीन बार प्रतिबंध भी लगाया गया है – वर्ष 1948, वर्ष 1975 एवं वर्ष 1992 में – परंतु तीनों ही बार संघ पहिले से भी अधिक सशक्त और मुखर होकर भारतीय समाज के बीच उभरा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ “हिंदू” शब्द की व्याख्या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में करता है जो किसी भी तरह से (पश्चिमी) धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है। इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत सम्बंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, बाल गंगाधर तिलक और बी सी पाल जैसे हिंदू विचारकों के दर्शन से हैं। विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “सही अर्थों में एक हिंदू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो हिंदुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाए”। स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर हेडगेवार ने व्यवहार में बदल दिया। उनका मानना था कि हिंदुओं को एक ऐसे कार्य दर्शन की आवश्यकता है जो इतिहास और संस्कृति पर आधारित हो, जो उनके अतीत का हिस्सा हो और जिसके बारे में उन्हें कुछ जानकारी हो। संघ की शाखाएं इस महान कार्य को आगे बढ़ाते हुए “स्व” के भाव को परिशुद्ध कर उसे एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं। संघ की शाखाओं में अनोखी पद्धति का अनुपालन करते हुए युवाओं में राष्ट्रीयता का भाव विकसित किया जाता है। शाखा की इस अनोखी पद्धति की सराहना आज पूरे विश्व में ही की जा रही है। वस्तुतः यह कह सकते हैं कि हिंदू राष्ट्र को स्वतंत्र करने व हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना की। आज संघ का केवल एक ही ध्येय है कि भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित किया जाय। संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी की दृष्टि हिंदू संस्कृति के बारे में बहुत स्पष्ट थी एवं वे इसे भारत में पुनः प्रतिष्ठित कराना चाहते थे। डॉक्टर साहब के अनुसार, “हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान का प्राण है। अतएव हिंदुस्तान का संरक्षण करना हो तो हिंदू संस्कृति का संरक्षण करना हमारा पहला कर्त्तव्य हो जाता है। हिंदुस्तान की हिंदू संस्कृति ही नष्ट होने वाली हो तो, हिंदू समाज का नामोनिशान हिंदुस्तान से मिटने वाला हो, तो फिर शेष जमीन के टुकड़े को हिंदुस्तान या हिंदू राष्ट्र कैसे कहा जा सकता है? क्योंकि राष्ट्र, जमीन के टुकड़े का नाम तो नहीं है …… यह बात एकदम सत्य है। फिर भी हिंदू धर्म तथा हिंदू संस्कृति की सुरक्षा एवं प्रतिदिन विधर्मियों द्वारा हिंदू समाज पर हो रहे विनाशकारी हमलों को कांग्रेस द्वारा दुरलक्षित किया जा रहा है, इसलिए इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता है।” वस्तुतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आज भी लक्ष्य हिंदुओं को जाति, क्षेत्र और भाषा के कृत्रिम विभाजन के चलते उत्पन्न सामाजिक सांस्कृतिक विरोधाभासों से उबारना है। इसकी आकांक्षा है कि भारत को विश्व गुरु का स्थान अपने कृतत्व, दर्शन और सांस्कृतिक प्रभाव से पुनः मिले। भारतीय समाज को संघ के इन प्रयासों से अपने आप को जोड़ना चाहिए तभी भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित किया जा सकेगा। हाल ही के समय में हिंदू समाज में दिखाई दे रही एकरसता के चलते भारत का रुतबा वैश्विक स्तर पर बढ़ा है, यह परिणाम स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगा है। भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है एवं पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। विश्व के शक्तिशाली देशों की सूची में अमेरिका, रूस, जापान, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रान्स जैसे पश्चिमी देशों के नाम ही सुनाई देते रहे हैं। यूनाइटेड नेशन्स में वीटो पावर भी इन्हीं देशों के पास रही है। भारत का इस दृष्टि से दूर दूर तक नाम दिखाई नहीं देता था। परंतु, आस्ट्रेलिया के एक संस्थान, लोवी इन्स्टिटयूट थिंक टैंक, ने हाल ही में एशिया में शक्तिशाली देशों की एक सूची जारी की है। “एशिया पावर इंडेक्स 2024” नामक इस सूची में भारत को एशिया में तीसरा सबसे बड़ा शक्तिशाली देश बताया गया है। वर्ष 2024 के इस इंडेक्स में भारत ने जापान को पीछे छोड़ा है। इस इंडेक्स में अब केवल अमेरिका एवं चीन ही भारत से आगे है। रूस तो पहिले से ही इस इंडेक्स में भारत से पीछे हो चुका है। इस प्रकार अब भारत की शक्ति का आभास वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाने लगा है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत का विकास स्पर्धा के लिए नहीं है, बल्कि पूरे विश्व में अच्छा वातावरण बनाने तथा शांति स्थापित करने के लिए है क्योंकि भारत वसुधैव कुटुंबकम की भावना में विश्वास रखता हैं।  प्रहलाद सबनानी

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राजनीति विश्ववार्ता

मध्य पूर्व में होता ‘समुद्र-मंथन ‘

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   तनवीर जाफ़री    पूरा विश्व गोया इस समय बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। सामने से तो यही नज़र आ रहा है कि एक तरफ़ कल तक सोवियत संघ के रूप में साथ रहने वाले दो देश रूस व यूक्रेन युद्धरत हैं तो दूसरी तरफ़ इस्राईल बनाम ईरान-हमास -लेबनान व हूती के बीच युद्ध चल रहा है। परन्तु दरअसल इन दोनों ही ख़ूनी संघर्षों के पीछे उसी अमेरिका की मुख्य भूमिका है जो दुनिया में सबसे अधिक अमन पसंदी,शांति,मानवाधिकार,लोकतंत्र और आतंकवाद को कुचलने जैसी बातें करता है। परन्तु जहाँ अमेरिका को अपने राजनैतिक हित साधने होते हैं वहां उसके यह सभी आदर्श धरे के धरे रह जाते हैं। इस समय अमेरिकी शह और उसी के भरोसे पर जहां यूक्रेन, रूस जैसी महाशक्ति से टकरा कर स्वयं को तबाह कर बैठा है वहीँ इस्राईल भी अमेरिका की ही सरपरस्ती में ख़ूनी खेल खेलने में लगा हुआ है। पश्चिमी देशों की शह पर ही वह इस्राईल जिसने कभी रहम की भीख मांगकर अरब की सरज़मीं पर अपने अस्तित्व को बचाया था। वह इस्राईल जिसे लेकर पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने यह निर्णय दिया है कि फ़िलिस्तीनी क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में इस्राईल की उपस्थिति “ग़ैर क़ानूनी ” है। जिसके बारे में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने कहा है कि इस्राइल ने पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में क़ब्ज़ा करने, स्थायी नियंत्रण लगाने और बस्तियां बनाने की नीतियों को लागू करके, वहां क़ब्ज़ा करने वाली शक्ति के रूप में अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने यह भी कहा है कि इस तरह की हरकतें “क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में इस्राईल की मौजूदगी को ग़ैर क़ानूनी ” बनाती हैं। इस क्षेत्र में इस्राईल की निरंतर मौजूदगी “अवैध” है और इसे “जितनी जल्दी हो सके” समाप्त किया जाना चाहिए।’ वही अवैध राष्ट्र आज उन्हीं अरब क्षेत्र के लोगों की जान का न केवल दुश्मन बना हुआ है बल्कि अमेरिकी शह और अपनी सैन्य शक्ति के बल पर इसी धरती पर ‘ग्रेटर इस्राईल ‘ के गठन का सपना भी संजोये बैठा है। इन हालात को पैदा करने के लिये अमेरिका ने दशकों से एक बड़ी साज़िश रची है। अमेरिका व इस्राईल ने शिया-सुन्नी विवाद का फ़ायदा उठाकर अरब देशों के सामने ईरान का हौव्वा खड़ा करने का एक सफल चक्रव्यूह रचा। अरब देशों के सामने ईरान को विलेन के रूप में पेश किया और अमेरिकी संरक्षण में उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया। इसके बदले में अमेरिका सऊदी अरब सहित मध्य पूर्व के और भी कई तेल उत्पादक देशों से ईरान से सुरक्षा के नाम पर अपनी मर्ज़ी की क़ीमत पर तथा मनचाही मात्रा में तेल दोहन किया करता है। इतना ही नहीं बल्कि अमेरिका के इन पिछलग्गू अरब देशों को अपने अपने देश में लोकतंत्र का गला घोंटने,किसी भी तरह का दमन चक्र चलाने,मानवाधिकारों का हनन करने अपनी बादशाहत चलाने व तानाशाही की भी खुली छूट है। मध्य पूर्व के अनेक देश ऐसे भी हैं जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था अमेरिका के हाथों गोया गिरवी रखी हुई। अब इस क्षेत्र में कोई बड़ी ताक़त सर न उठा सके अपने इसी षड्यंत्र के तहत अमेरिका ने पहले तो इराक़ को तबाह किया फिर ईरान को आतंकी देश और  शैतान की धुरी तथा इसे समूचे अरब जगत के लिये ख़तरा बताना शुरू कर दिया। पूरी दुनिया के विभिन्न देशों में आतंक की इबारत लिखने व करोड़ों बेगुनाहों की मौत का ज़िम्मेदार अमेरिका ही अब ख़ुद यह तय करता है कि कौन सा देश आतंकी है, कहाँ की सेना आतंकी है, और कहाँ का शासक आतंकवाद का संरक्षक है। तेल ख़रीदने, हथियार बेचने और वर्चस्व के इसी घिनौने खेल में इस समय इस्राईल, अमेरिका का मोहरा बनकर ग़ाज़ा से लेकर लेबनान तक क़हर बरसा रहा है। क्या अस्पताल क्या स्कूल क्या रिहायशी इलाक़े तो क्या शरणार्थी कैम्प, बाज़ार, बच्चे, बूढ़े महिलायें कोई भी कहीं भी अमेरिकी शह पर होने वाली इस्राईली सैन्य कार्रवाई ख़ासकर हवाई बमबारी से सुरक्षित नहीं है। इसके बावजूद ईरान ने  अपने जनरल क़ासिम सुलेमानी हमास प्रमुख इस्माईल हनिया व हिज़्बुल्ला सुप्रीमो हसन नसरुल्लाह की हत्या के बाद पिछले दिनों इस्राईल पर रॉकेट की बौछार कर यह जता दिया कि ईरान की पृष्ठभूमि व इनकी नस्ल वह नहीं जो सांसारिक शक्तियों के आगे घुटने झुका दे। हज़रत मुहम्मद,व उनके घराने के हज़रत अली व हुसैन को मानने वाली ईरानी नस्ल का रिश्ता उस हुसैन के घराने से है जिसने 1450 वर्ष पूर्व अपने समय की महाशक्ति सीरयाई यज़ीदी सेना के आगे अपना सिर नहीं झुकाया था। जबकि निश्चित रूप से अमेरिका व इस्राईल की गोदी में खेलने वाले वही अरब शासक हैं जिनके पूर्वज जैसे आज अमेरिका की ग़ुलामी में लगे हैं उसी तरह 1450 वर्ष पूर्व भी यही लोग यज़ीदी सेना के हिमायती थे और हुसैन के क़त्ल व करबला की घटना के ज़िम्मेदार थे। यही ईरान उस समय तक अमेरिका की आँखों का तारा था जब तक यहाँ का शाह पहलवी अमेरिका की गोद में बैठा रहता था परन्तु इस्लामी क्रांति के बाद जब से ईरान ने अमेरिका नहीं बल्कि ‘ईश्वर महान है ‘ की नीति पर चलना शुरू किया तब से ईरान, अमेरिका को शैतान व आतंकी नज़र आने लगा ? अलक़ायदा हो या आई एस आई एस,पूरी दुनिया जानती है कि आतंक के पर्याय समझे जाने वाले यह दोनों ही आतंकी संगठन अमेरिका की ही सरपरस्ती में खड़े किये गए। ओसामा बिन लाडेन व तालिबानी प्रमुख मुल्ला उम्र को तो सऊदी अरब का भी संरक्षण हासिल था। याद कीजिये इन आतंकी संगठनों की कैसे कैसी दिल दहलाने वाली विडिओ बाक़ायदा एक बड़ी साज़िश के तहत टी वे पर दिखाई जाती थी जिसमें यह दुर्दांत आतंकी लोगों को लाइन में खड़ाकर कभी गोली मारते तो कभी सर क़लम करते तो कभी ज़िंदा दफ़्न करते दिखाई देते थे। आतंकियों को यह छूट इसीलिये मिली थी ताकि उनकी इन वहशियाना हरकतों के चलते इस्लाम को बदनाम किया जा सके व इसे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले धर्म के रूप में प्रचारित किया जा सके। काफ़ी हद तक अपने इस मिशन में अमेरिका व इस्राईल को सफलता भी मिली। दूसरी तरफ़ जनरल क़ासिम सुलेमानी व हिज़्बुल्लाह सुप्रीमो हसन नसरुल्लाह जैसे निडर रहबर ही थे जिन्होंने अमेरिका व इस्राईल द्वारा पोषित आई एस आई एस की कमर तोड़ कर रख दी। इनके विरुद्ध जिहाद बोलकर सीरिया,इराक़ व आसपास के क्षेत्रों से इन्हें खदेड़ कर इनका वजूद ही समाप्त कर दिया। इन परिस्थितियों में अरब जगत इस समय एक बड़े ‘समुद्र मंथन’ के दौर गुज़र रहा है। अरब के चाटुकार शासक भले ही अवैध राष्ट्र इज़राईल व अमेरिका की गोद में बैठकर अपनी बुज़दिली का सुबूत क्यों न दे रहे हों परन्तु अरब की अवाम ईरान द्वारा फिलिस्तीनियों के हक़ में इस्राईल पर किये गये मिसाईल हमलों को बड़ी ही उम्मीद व हसरत भरी नज़रों से देख रही है। इस ‘समुद्र मंथन’ के परिणाम स्वरूप अरब जगत में आने वाले दिनों में कोई बड़ी उथल पुथल भी दिखाई दे सकती है। 

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