शख्सियत समाज साक्षात्कार यशपाल का आजादी की लड़ाई और साहित्य में योगदान December 23, 2024 / December 23, 2024 by कल्पना पांडे | Leave a Comment – कल्पना पाण्डे प्रसिद्ध हिन्दी कथाकार एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था। उनके पूर्वज हिमाचल के भूम्पल गांव, हमीरपुर के रहने वाले थे। दादा गरदुराम विभिन्न स्थानों पर व्यापार करते थे और भोरंज तहसील के टिक्कर भारिया और खरवरिया के निवासी थे। पिता हीरालाल एक दुकानदार और तहसील क्लर्क थे। वह महासू जिले […] Read more » प्रसिद्ध हिन्दी कथाकार एवं निबंधकार यशपाल
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार स्वामी सत्यानंद ने साकार किया मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न December 23, 2024 / December 23, 2024 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment (102वीं जयंती 25 दिसम्बर पर विशेष ) कुमार कृष्णन स्वामी सत्यानंद सरस्वती देश के ऐसे संत हुए, जिन्होंने न सिर्फ योग को पूरी दुनिया में फैलाया बल्कि सामाजिक चिंतन के जरिए विकास के मॉडल को पेश किया। वे विशुद्ध आत्मभाव से प्रेरित एवं ‘लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’ के दिव्य भाव से संचालित थे।उनका वेदान्त शास्त्रीय अथवा किताबी नहीं , बिल्कुल व्यवहारिक, प्रयोगात्मक, उपयोगी एवं मानवतावादी है।उनका मानवतावाद आत्मभाव पर आधारित है।इसे उन्होंने आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन की एक सशक्त विचारधारा, उत्तम साधन एवं सर्वोपयोगी उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया।स्वामी सत्यानंद का योग जहां व्यक्तित्व के शोधन-शुद्धिकरण-परिष्कार, उन्नयन- उत्थान विकास तथा ईश्वरीकरण की दिशा निश्चित करता है,उनका क्रांति दर्शन सामाजिक- आर्थिक परिवर्तन के सिद्धांत का प्रतिपादन एवं उसके क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करता है। स्वामी सत्यानंद के अनुसार-‘ योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थय की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। योग दर्शन के अनुसार- मानव तीन आधारभूत तत्त्वों- जीवनी शक्ति, या प्राण, मानसिक चित्त शक्ति या चित्त और आध्यात्मिक शक्ति या आत्मा का सम्मिश्रण है।’ स्वामी सत्यानंदजी के जीवन प्रवाह में भी हम पाते हैं कि पढ़- लिख कर भरे-पूरे परिवार से आने वाला एक 20 वर्षीय युवक अध्यात्म की राह पर चल पड़ता है। वह गुरु सेवा में लीन होने के बाद नचिकेता का वैराग्य प्राप्त कर 12 वर्षों बाद एक परिव्राजक के रूप में देश दुनिया में योग के प्रसार में लग जाते हैं। याद करें 1960 के दशक में योग के यह भ्रामक धारणा प्रचलित थी कि यह साधु सन्यासियों का विषय है,गृहस्थों और महिलाओं को योग नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में स्वामी सत्यानंद ने योग की उपयोगिता सिद्ध की।आज जहां मुंगेर में विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय है, वह स्थान कर्णचौरा के नाम से जाना जाता था। किंवदन्ती के अनुसार राजा कर्ण इसी चबूतरे पर बैठकर प्रतिदिन सवा मन सोना दान करता था।उसी चबूतरे पर कई बार शयनकर रातें काटीं थीं। उस चबूतरे पर स्वामी जी को कई दिब्य अनुभव हुए।उन्होंने यहीं पर बैठकर संकल्प लिया कि जहां राजा कर्ण बैठकर सोना दान करता था, वहां से मैं विश्व को शांति बांटूंगा और योग को भविष्य की संस्कृति के रूप में विकसित करूंगा। दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों को भारत भूमि के प्राचीन योग विद्या से परिचित कराया, जिसका परिणाम है कि आज संयुक्त राष्ट्र ने योग को आधिकारिक मान्यता दी है। मुंगेर का गंगा दर्शन, पादुका दर्शन और देवघर के रिखियापीठ को देख यक्ष भाव मन में आता होगा कि परमहंस स्वामी सत्यानंद का जीवन वैभवपूर्ण रहा होगा, लेकिन स्वामी सत्यानंद ने अभावपूर्ण, कष्ट और विपन्नता का जीवन जीते हुए पुनः मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न साकार किया। पुनः 1988 में मुंगेर त्यागने के बाद रिखियापीठ में आकार 1991 से रिखिया के स्थानीय लोगों के शैक्षिक – सामाजिक -आर्थिक उत्थान के काम का बीड़ा उठाते है। एक ऐसी आर्थिक -सामाजिक व्यवस्था जो धारित विकास के मूल्यों का मॉडल विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता हो। आत्मिक विकास के साथ -साथ आर्थिक स्बाबलंबन के उनके प्रयास को वैश्विक अर्थव्यवस्था और ग्लोबल विलेज के परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 25 दिसंबर 1923 को जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती इस शताब्दी के महानतम संतों में से एक हैं, जिन्होंने समाज के हर क्षेत्र में योग को समाविष्ट कर, सभी वर्गों, राष्ट्रों और धर्मों के लोगों का आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित कर दिया। योग का तात्पर्य होता है जोड़ना. परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग का वैज्ञानिक रूप में पुनर्जीवन किया उस योग ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में जोड़ कर रखा है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक जिस योगलहर में योगस्नान कर रहा है उसके मूल में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का कर्म और उनके गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का वह आदेश है जो उन्होंने सत्यानंद को दिया था। गुरु के आदेशानुसार उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था- योगविद्या का प्रचार-प्रसार, द्वारे-द्वारे तीरे-तीरे। दरअसल इस शताब्दी में योग की कहानी 1940 के दशक से आरंभ होती है। उस समय तक लोग योग से अनजान थे। योग का अस्तित्व तो था त्यागियों वैरागियों और साधु सन्यासियों के लिए 1943 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ने ऋषिकेश में शिवानंद आश्रम की स्थापना की।उन्होंने दिव्य जीवन का ज्ञान और अनुभव प्रदान करने के लिए दो विधियों का उपयोग किया योग और वेदांत। स्वामी शिवानंद के साथ वे निरंतर रहे। परिव्राजक के रूप में बिहार यात्रा के क्रम में छपरा के बाद 1956 में पहली बार मुंगेर आये. यहां की प्राकृतिक छटा उन्हें आकर्षित करती थी।यहां उन्होंने चातुर्मास भी व्यतीत किया। यहीं उन्हें दिव्य दृष्टि से यह पता चला कि यह स्थान योग का अधिष्ठान बनेगा और योग विश्व की भावी संस्कृति बनेगी। 1961 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना की तब तक योग निंद्रा और प्राणायाम विज्ञान पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। ‘लेशन आॅन योग’ का अनुवाद योग साधना भाग-एक व दो आ चुके थे। सत्यानंद पब्लिकेशन सोसायटी नंदग्राम से- सत्यम स्पीक्स, वर्डस ऑफ सत्यम, प्रैक्टिस ऑफ त्राटक, योग चूड़ामणि उपनिषद, योगाशक्ति स्पीक्स, स्पेट्स टू योगा, योगा इनिसिएशन पेपर्स, पवनमुक्त आसन (अंगरेजी)में, अमरसंगीत, सूर्य नमस्कार, योगासन मुद्रावंध आदि पुस्तकें प्रकाशित हुईं। 1963 से अंगरेजी में योगा और योगविद्या निकालना आरंभ किया। परिव्राजक जीवन की समाप्ति के बाद वसंत पंचमी के दिन 19 जनवरी 1964 को बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने पूरी दुनिया में योग को लोगों के बीच पहुंचाया। दुनिया के 48 देशों की सघन यात्राएं कीं। अमरीका के बाहर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ग्रीस, कुवैत, ईरान, इराक से लेकर केन्या और घाना जैसे देशों में योग की आधारशिला रखी। फ्रांस, इंटली, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में तो सत्यानंद योग के पर्याय ही हो गये। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा बोए गये योग बीज आज वटवृक्ष का रुप ले चुके हैं ,जिनकी छांव में समस्त विश्व का जनमानस स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है ।परमहंस जी ने योगरुपी ऐसी अनुपम भेंट दी है जिससे स्वस्थ जीवन के साथ आध्यात्मिक ऊंचाईयों तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है ।आज भारत ही नहीं समस्त विश्व में परमहंस जी की “योग-निद्रा “का डंका बज रहा है। अपने परमगुरुदेव के पदचिन्हों पर चलते हुए परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने उनकी योगविद्या को नई ऊंचाईयां प्रदान की । प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रदान किया गया योग पुरस्कार यह सिद्ध करता है कि “सत्यानंद योग” भारतवर्ष ही नहीं विश्व में सर्वश्रेष्ठ है । योग के माध्यम से विश्व विजय प्राप्त करने के बाद जब रिखिया वाले बाबा बने तो आसपास के ग्रामीणों की दयनीय दशा ने सहज ही उनका ध्यान आकृष्ट किया।उनके अंदर के पूर्णतः जाग्रत ईश्वर ने उनसे कहा, ‘सत्यानंद,जो सुविधाएं मैंने तुम्हें प्रदान की,वे अपने पडो़सियों को भी उपलब्ध कराओ।’ इसी आदेश को पूरा करने के लिए सेवा, प्रेम और दान को व्यवहारिक रूप प्रदान करने के लिए देवघर के रिखिया में रिखियापीठ की स्थापना की। झारखंड के देवघर के निकट रिखिया नाम के इस गांव में योग गुरु सत्यानंद ने जो पर्णकुटीर बनाई थी, वह उनके तपोबल से इस पूरे क्षेत्र के कल्याण का माध्यम बन गई। सितंबर, 1989 जब सत्यानंद यहां पहुंचे तब चारों ओर घनघोर जंगल था। आस-पास थे आदिवासियों के बेहद पिछड़े गांव। न कोई सड़क थी और न बिजली। सत्यानंद दरअसल तप, साधना और सेवा के लिए इस दुर्गम स्थान में आए थे। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के अनुग्रह, आशीर्वाद तथा परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती एवं स्वामी सत्यसंगानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में संस्कार और मानव सेवा की तरंगों ने आश्रम के आसपास के इलाकों में बदलाव की बयार बहा दी। कभी गरीबी के कारण गांव के बच्चे पढ़ नहीं पाते थे। आज बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा मिल रही है। परिवर्तन ऐसा हुआ कि इलाके की बच्चियां फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं। शास्त्रीय संगीत और भरतनाट्यम में पारंगत हैं। 1995 में स्वामी सत्यानंद ने रिखिया में सीता कल्याणम शंतचंडी महायज्ञ आरंभ किया। यहीं से इलाके में विकास की लौ जल उठी। आश्रम के सामने बने मिडिल स्कूल के बच्चों को किताब-कॉपी, जाड़े में गर्म कपड़े व जूते देने की शुरुआत हुई। हर पर्व पर गांव के बच्चों व महिलाओं को नये वस्त्र वितरित होते हैं। बेटियों के विवाह में आर्थिक सहयोग सहित उपहार स्वरूप गृहस्थी की जरूरतों का सामान आदि आश्रम की ओर से प्रदान किया जाता है। क्षेत्र की वृद्धाओं, विधवाओं को हर माह 1200 रुपये पेंशन आश्रम से मिलती है। उनका काम यही है कि वे आश्रम के कीर्तन में शामिल हों। पंचायत के गरीबों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आश्रम की ओर से रिक्शा, ठेला जैसे साजोसामान बांटे जाते हैं। क्षेत्र की लगभग हर बालिका के पास साइकिल है, जो आश्रम की ओर से दी जाती है जिन बच्चों, बालिकाओं को कंप्यूटर में रुचि थी, उनको कंप्यूटर व लैपटॉप दिए गए। ताकि वे बिना रुके आगे बढ़ते जाएं। सबसे बड़ी बात, यह आश्रम दान नहीं लेता बल्कि देता है। इसीलिए इसे दातव्य आश्रम कहा जाता है गरीबों के कल्याण को जो राशि खर्च की जाती है, वह योग विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं से प्राप्त होती है। 5 दिसंबर 2009 को शिष्यों की उपस्थिति में महासमाधि में लीन हो गए। भले ही वह आज नहीं हैं, लेकिन उनके योग आंदोलन का ही नतीजा है कि योग वैश्विक धरातल पर छाया हुआ है। कुमार कृष्णन Read more » लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु स्वामी सत्यानंद
खान-पान लेख समाज भारतीय युवाओं में बढ़ रही व्यसन की प्रवृति को रोकना जरूरी December 19, 2024 / December 19, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment आज भारत के विभिन्न कस्बों, नगरों, विशेष रूप से महानगरों में, कम उम्र के नागरिकों के बीच व्यसन की समस्या विकराल रूप धारण करती हुई दिखाई दे रही है। देश के कुछ भागों में विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विद्यार्थी भी नशे की लत का शिकार हो रहे हैं। भारत का युवा यदि गलत दिशा में जा रहा है तो यह भारत के भविष्य के लिए अत्यधिक चिन्ता का विषय है। देश के पंजाब राज्य में तो हालात बहुत खराब स्थिति में पहुंच गए है एवं वहां ग्रामीण इलाकों में भी युवा विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लिप्त पाए जा रहे हैं। नशे के सेवन से न केवल स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि मानसिक तौर पर भी युवा वर्ग विक्षिप्त अवस्था में पहुंच जाता है। मेडिकल साइन्स के अनुसार, ड्रग्स के लंबे समय तक सेवन से लिवर, फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है। ड्रग्स का सेवन इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है, जिससे व्यक्ति आसानी से बीमार पड़ सकता है। अत्यधिक मात्रा में ड्रग्स लेने से व्यक्ति कोमा में जा सकता है या मृत्यु भी हो सकती है। इसी प्रकार ड्रग्स के सेवन से डिप्रेशन, एंग्जायटी, और सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति को चूंकि इनकी लत लग जाती है अतः वह व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से ड्रग्स पर निर्भर हो जाता है। ड्रग्स के आदी व्यक्ति का व्यवहार भी आक्रामक हो जाता है, जिसके कारण परिवार में तनाव और झगड़े बढ़ जाते हैं। ड्रग्स पर पैसा खर्च करने से व्यक्ति और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी डावांडोल होने लगती है। ड्रग्स को खरीदने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है, यदि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी हो और युवाओं को परिवार से धन की प्राप्ति नहीं होती है तो ड्रग्स की लत के कारण युवा चोरी, लूटपाट या अन्य अवैध गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। यह स्थिति भारत के लिए ठीक नहीं कही जा सकती है क्योंकि एक तो उस युवा का देश के विकास में योगदान लगभग शून्य हो जाता है, दूसरे, वह व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज पर बोझ बन जाता है। हम अक्सर मदिरापान और धूम्रपान की स्थिति में कैंसर का डर दिखाकर तम्बाकू निषेध को लक्षित करते हैं। जबकि व्यसनों के कई प्रकार हैं। ड्रग्स के विभिन्न प्रकार और उनके प्रभावों को समझना जरूरी है ताकि इसके दुरुपयोग से बचा जा सके। ड्रग्स से होने वाले शारीरिक, मानसिक और सामाजिक नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाकर ही एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज का निर्माण किया जा सकता है। आज देश में ड्रग्स की उपलब्धता बहुत आसान हो गई है। कई अंतरराष्ट्रीय गिरोह भारतीय युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेकर कई प्रकार के ड्रग्स आसानी से उपलब्ध कराते हैं और उन्हें इनका आदी बना देते हैं। ड्रग्स के भी कई प्रकार हैं। जैसे, (1) डिप्रेसेंट्स (Depressants): इस श्रेणी में अल्कोहल, बार्बिटुरेट्स, बेंजोडायजेपाइन आदि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स मस्तिष्क की गतिविधि को धीमा कर देते हैं, जिससे व्यक्ति को शांति या सुकून महसूस होता है। लेकिन, अधिक मात्रा में लेने से यह सांस की तकलीफ, बेहोशी और मृत्यु का कारण बन सकते हैं। (2) स्टिमुलेंट्स (Stimulants): इस श्रेणी में कोकीन, मेथामफेटामिन, कैफीन आदि को शामिल किया जाता है। यह ड्रग्स मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की गतिविधि को बढ़ाते हैं, जिससे चुस्ती और ऊर्जा बढ़ती है। इसके अधिक सेवन से दिल की धड़कन तेज होना, हाई ब्लड प्रेशर, और घबराहट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। (3) ओपिओइड्स (Opioids): हेरोइन, मॉर्फिन, कोडीन आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स दर्द निवारक दवाएं हैं, लेकिन नशे के रूप में इनका दुरुपयोग किया जाता है। ओपिओइड्स का अधिक सेवन श्वसन तंत्र को धीमा कर देता है, जिससे व्यक्ति कोमा या मृत्यु का शिकार हो सकता है। (4) साइकेडेलिक्स (Psychedelics): एलएसडी, साइलोसाइबिन (मशरूम), डीएमटी आदि ड्रग्स इस श्रेणी में शामिल किए जाते हैं एवं इस प्रकार के ड्रग्स व्यक्ति की धारणा, विचार और मूड को बदल देते हैं। यह मतिभ्रम (hallucinations) पैदा कर सकते हैं। (5) इनहेलेंट्स (Inhalants): पेट्रोल, गोंद, स्प्रे पेंट आदि को इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। इन पदार्थों को सूंघकर नशा किया जाता है। यह मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। (6) कैनाबिनोइड्स (Cannabinoids): गांजा, भांग, हशीश आदि को इस श्रेणी के ड्रग्स में शामिल किया जाता है। इस प्रकार के ड्रग्स सुखद अनुभव कराते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में लेने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। कुल मिलाकर देश में ड्रग्स की समस्या विकराल रूप धारण करती दिखाई दे रही है एवं इसने विशेष रूप से युवाओं को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है। दरअसल युवा, फिल्मों आदि को देखकर इसके सेवन को उचित मानने लगता है एवं इसके सेवन से समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने का प्रयास करता है। उसे लगता है कि उच्च सोसायटी में नशे का सेवन करना जैसे आम बात है। परंतु, नशे से होने वाले नुक्सान से सर्वथा अनभिज्ञ रहता है। इसलिए विशेष रूप से युवाओं को नशे की लत से छुड़ाना अति आवश्यक है। हालांकि, हाल ही के समय में नशे की समस्याओं से युवा किस प्रकार परेशानी का सामना करता है जैसे विषयों को लेकर कई फिल्में भी बनाई गई हैं, इन्हें देखकर युवाओं में जागरूकता पैदा की जा सकती है। उड़ता पंजाब (2016), इस फिल्म में पंजाब में ड्रग्स की समस्या और उससे जूझते युवाओं की कहानी है। संजू (2018), इस फिल्म में युवाओं में ड्रग्स की लत और उससे बाहर निकलने की कहानी को दिखाया गया है। फैशन (2008), इस फिल्म में एक मॉडल को दिखाया गया है, जो शोहरत की दुनिया में ड्रग्स की लत का शिकार हो जाती है। डरना जरुरी है (2006), इस फिल्म की कहानी एक विशेष ड्रग एडिक्शन पर केंद्रित है। तमाशा (2015), इस फिल्म में नशे और आत्म-खोज की चुनौती को दर्शाया गया है। इसी प्रकार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ फिल्मे बनाई गईं है। Requiem for a Dream (2000), इस फिल्म में ड्रग्स की लत और उसके विनाशकारी प्रभावों को बहुत ही गहराई से दिखाया गया है। Trainspotting (1996), इस फिल्म में हेरोइन की लत से जूझते युवाओं की कहानी दिखाई गई है और इसमें नशे की भयावहता को दिखाया गया है Beautiful Boy (2018), इस फिल्म में एक पिता और उसके बेटे की कहानी दिखाई गई है, जिसमें बेटा नशे की लत से जूझ रहा है। The Basketball Diaries (1995), इस फिल्म में एक किशोर की कहानी दिखाई गई है, जो नशे की लत में फंस जाता है और उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। A Star Is Born (2018), इस फिल्म में ड्रग्स और शराब की लत से जूझते युवा को दिखाया गया है, जिससे उसके करियर और रिश्तों पर असर पड़ता है। आज का युवा चूंकि फिल्मों की ओर अधिक आकर्षित होता है अतः व्यसनों से छुटकारा पाने के सम्बंध में बनाई गई फिल्मों का वर्णन किया गया है। परंतु, युवाओं को नशामुक्त करने की दृष्टि से विभिन्न संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान चलाना आज आवश्यक हो गया है। सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों पर व्यसन के दुष्प्रभावों पर आधारित जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। फिल्म फेस्टिवल, नुक्कड़ नाटक, सेमिनार, और सोशल मीडिया का उपयोग कर व्यसनों के नुकसान के बारे में युवाओं को जानकारी दी जा सकती है। स्कूलों और कॉलेजों में नशा विरोधी शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए जिससे छात्रों को छोटी उम्र से ही व्यसनों के खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सके। नशे से संबंधित गतिविधियों में संलिप्त लोगों पर इतनी सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए कि वह समाज के सामने उदाहरण बने। अवैध शराब और नशीले पदार्थों की बिक्री पर निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए एवं दोषियों पर कठोर दंड लागू किया जाना चाहिए। विभिन्न कस्बों एवं नगरों में स्थानीय स्तर पर कार्य कर रहे NGO और समुदाय आधारित संगठनों को नशमुक्ति अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। यह संगठन व्यसन पीड़ितों की पहचान कर उन्हें उचित सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं। परिवारों को व्यसन से बचाव और इसके लक्षणों की पहचान करने के तरीकों पर शिक्षित किया जाना चाहिए। इसके लिए माता-पिता को उनके बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देने और संवाद बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।व्यसन मुक्त भारत बनाने के लिए युवाओं को खेल, संगीत, नृत्य, और अन्य सृजनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए। इससे वे सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे और व्यसन से दूर रहेंगे। युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए ताकि उन्हें सकारात्मक दिशा मिले और वे व्यसन से दूर रहें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है एवं विजयादशमी 2025 को 100 वर्ष का महान पर्व सम्पन्न होगा। संघ के स्वयंसेवक समाज में अपने विभिन्न सेवा कार्यों को समाज को साथ लेकर ही सम्पन्न करते रहे हैं। अतः इस शुभ अवसर पर, भारत के प्रत्येक जिले को, अपने स्थानीय स्तर पर समाज को विपरीत रूप से प्रभावित करती, समस्या को चिन्हित कर उसका निदान विजयादशमी 2025 तक करने का संकल्प लेकर उस समस्या को अभी से हल करने के प्रयास प्रारम्भ किए जा सकते हैं। किसी भी बड़ी समस्या को हल करने में यदि पूरा समाज ही जुड़ जाता है तो समस्या कितनी भी बड़ी एवं गम्भीर क्यों न हो, उसका समय पर निदान सम्भव हो सकता है। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक सांस्कृतिक संगठन होने के नाते, समाज को साथ लेकर भारत को व्यसन मुक्त बनाने हेतु लगातार प्रयास कर रहा है। इसी प्रकार, अन्य धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों को भी आगे आकर विभिन्न नगरों में इस प्रकार के अभियान चलाना चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more » It is necessary to stop the increasing trend of addiction among Indian youth. भारतीय युवाओं में बढ़ रही व्यसन की प्रवृति को रोकना जरूरी
खान-पान लेख समाज कुपोषण आज भी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है December 18, 2024 / December 18, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन आए हैं और आज हमारी खान-पान की आदतों में बहुत बदलाव हो चुके हैं। खान-पान भी समय पर नहीं किया जा रहा है, आधुनिक शहरी, भागम-भाग भरी जीवनशैली के साथ देर रात को खाना आज जैसे फैशन हो चुका है। दिन में भी न ब्रेकफास्ट का कोई समय है और न ही लंच का। आजकल तो ब्रेकफास्ट और लंच दोनों के स्थान पर ब्रंच का कंसेप्ट भी भारतीय संस्कृति में जन्म ले चुका है। आज मनुष्य अपने शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन करता है और उस अनुरूप शारीरिक व्यायाम,कसरत, मेहनत आज आदमी नहीं करता। कहना ग़लत नहीं होगा कि अत्यधिक प्रसंस्कृत(डिब्बा बंद) भोजन, उच्च चीनी वाले खाद्य पदार्थ और पेय, तथा उच्च मात्रा में संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थ आज मनुष्य में अधिक वजन का कारण बन रहें हैं। आनुवंशिकी मोटापे का एक मजबूत घटक है. चीनी-मीठे, उच्च वसा वाले इंजीनियर्ड जंक फूड्स, फास्ट फूड, हमारी भोजन की असमय करने की आदतें, वेस्टर्न कल्चर(पाश्चात्य संस्कृति) के बहुत से आहार, तथा बहुत बार विभिन्न पर्यावरणीय कारक भी मोटापा लाते हैं। वास्तव में मोटापा (ओबैसिटी) वो स्थिति होती है. जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यहां तक कि यह आयु संभावना को भी घटा सकता है, मनुष्य की बीएमआई(शरीर द्रव्यमान सूचक) को प्रभावित कर सकता है। सच तो यह है कि मोटापा बहुत से रोगों से जुड़ा हुआ है, जैसे हृदय रोग(हार्टअटैक) , मधुमेह(डायबिटीज), निद्रा कालीन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर आदि आदि। सच तो यह है कि आज मोटापा दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। यह बहुत ही चिंतनीय है कि आज दुनिया में हर आठवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है। क्या यह बहुत चिंताजनक नहीं है कि तीन दशकों में मोटापे (ओबैसिटी) की समस्या में चार गुना से भी अधिक इजाफा हुआ है। आज बड़े बुजुर्गों से लेकर महिलाओं, बच्चों को शामिल करते हुए सभी उम्र के लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। आज शहरों में वज़न कंट्रोल करने के लिए अनेक जिम खुले हैं लेकिन हमारी जीवनशैली ऐसी हो चुकी है कि मोटापा कम होने का नाम तक नहीं ले रहा है। हम अपनी संस्कृति को छोड़कर वेस्टर्न कल्चर को आज अपना रहे हैं और आज हमारी भोजन पद्धति में जो बदलाव आए हैं, वे मोटापे के प्रमुख कारण हैं। आज क्रोनिक बीमारियों का कारण कुछ और नहीं बल्कि शरीर का मोटापा ही तो है। मोटापे के संदर्भ में द लैंसेट जर्नल का अध्ययन चौंकाने वाला है। जानकारी देना चाहूंगा कि द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में मोटापे से ग्रस्त बच्चों, किशोरों और वयस्कों की कुल संख्या एक बिलियन (एक अरब) से अधिक हो गई है। शोधकर्ताओं ने यह बात कही है कि, साल 1990 के बाद से कम वजन वाले लोगों की घटती व्यापकता के साथ अधिकांश देशों में मोटापा के शिकार लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अन्य सहयोगियों के साथ इस वैश्विक डेटा के विश्लेषण में अनुमान लगाया है कि दुनिया भर के बच्चों-किशोरों में साल 1990 की तुलना में 2023 में, यानी तीन दशकों में मोटापे की दर चार गुना बढ़ गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है यह चलन लगभग सभी देशों में देखा गया है। वयस्क आबादी में, महिलाओं में मोटापे की दर दोगुनी और पुरुषों में लगभग तीन गुना से अधिक हो गई। अध्ययन के अनुसार साल 2022 में 159 मिलियन (15.9 करोड़) बच्चे-किशोर और 879 मिलियन (87.9 करोड़) वयस्क मोटापे के शिकार पाए गए हैं। अध्ययन में यह पाया गया कि पिछले तीन दशकों में वयस्कों में मोटापा दोगुना से अधिक हो गया है। वहीं 5 से 19 साल के बच्चों और किशोरों में यह समस्या चार गुना बढ़ गई है। इतना ही नहीं, अध्ययन में यह भी सामने आया कि 2022-23 में 43 फीसद वयस्क अधिक वजन वाले थे। इस अध्ययन के अनुसार 1990 से 2022 तक विश्व में सामान्य से कम वजन वाले बच्चों और किशोरों की संख्या में कमी आई है। इतना ही नहीं, यह स्टडी बताती है कि दुनिया भर में समान अवधि में सामान्य से कम वजन से जूझ रहे वयस्कों का अनुपात आधे से भी कम हो गया है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि यह अध्ययन कुपोषण के विभिन्न रूपों संबंधी वैश्विक रूझानों की विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है। यहां यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दुनिया के ग़रीब इलाकों, हिस्सों में करोड़ों लोग आज भी कुपोषण से पीड़ित हैं। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि रिसर्चर ने इस अध्ययन के लिए 190 से अधिक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच वर्ष या उससे अधिक उम्र के 22 करोड़ से अधिक लोगों के वजन और लंबाई(बीएमआई) का विश्लेषण किया, जिसमें सामने आया है कि सामान्य से कम वजन वाली लड़कियों का अनुपात वर्ष 1990 में 10.3 फीसद से गिरकर 2023 में 8.2 फीसद हो गया और लड़कों का अनुपात 16.7 फीसद से गिरकर 10.8 फीसद हो गया है।अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुपोषण की दर भी कई जगहों पर विशेषकर दक्षिण- पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। Read more » malnutrition Malnutrition is still a public health challenge
लेख विधि-कानून समाज कानून और पत्नी से पीड़ित की आत्महत्या पर उठते सवाल December 13, 2024 / December 13, 2024 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी बेंगलुरू में कार्यरत एक एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया की कानूनी प्रताड़ना से तंग आकर मौत को गले लगा लिया । उसने अपनी मौत से पहले एक डेढ़ घंटे का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में जारी कर दिया । इसके अलावा उसने एक 24 पेज का सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ा है । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह व्यक्ति कितनी यातना और भावनात्मक पीड़ा से गुजरा होगा । आत्महत्या का मनोविज्ञान कहता है कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मनोदशा के सिर्फ कुछ मिनट ऐसे होते हैं जब वो मरने का फैसला करता है । अगर उन क्षणों में उसे समझा दिया जाये तो उसका फैसला बदल जाता है लेकिन यह व्यक्ति डेढ़ घंटे का वीडियो बनाता है और 24 पेज का सुसाइड नोट लिखता है । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो न्यायिक व्यवस्था से कितना निराश और हताश हो चुका था । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसकी पत्नी से उसे कितना तंग किया होगा जो उसने मजबूरी ने सोच समझ कर ऐसा कदम उठाया । सोशल मीडिया में उसका वीडियो वायरल होने के बाद लोगों ने वैवाहिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिये हैं । यह विमर्श चलाने की कोशिश की जाने लगी है कि महिलाओं द्वारा पुरूषों को जबरन फंसाया जा रहा है और उनके पैसे से महिलाएं ऐश कर रही हैं । इसे एक बिजनेस मॉडल का नाम दिया जाने लगा है । यह कहा जा रहा है कि पुरूषों की कोई सुनने वाला नहीं है इसलिए पुरूषों की आत्महत्या दर महिलाओं के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा है । मृतक अतुल सुभाष ने वीडियो में कहा है कि अगर मुझे न्याय नहीं मिलता है तो मेरी अस्थियों को गटर में बहा देना । मुझे न्याय मिलता है तो ही मेरी अस्थियों का विसर्जन गंगा में किया जाए । इसके अलावा उसने यह भी कहा है कि भारत में पुरुषों की जिन्दगी गटर बन चुकी है । उसके इस बयान को सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से प्रचारित किया गया है । बेंगलुरू में कार्यरत इस इंजीनियर की शादी जौनपुर निवासी निकिता सिंघानिया से 2019 में हुई थी । 2021 में एक बच्चे के साथ उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया और अलग रहने लगी । अलग रहते हुए पत्नी ने उससे 40 हजार प्रति माह मेंटेनेंस की मांग की थी. इसके अलावा वो अपने बच्चे के लिए भी 2-4 लाख रुपये प्रतिमाह की डिमांड कर रही थी । मृतक ने आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी ने जौनपुर से उस पर मुकदमा दायर किया था । उसने पहले उससे मामला खत्म करने के लिए एक करोड़ रुपये की मांग की और फिर बाद में तीन करोड़ रुपये मांगने लगी । इसके अलावा मामले की सुनवाई कर रही जज भी उससे मामला खत्म करने के लिए पांच लाख रुपये की मांग कर रही थी । उसे बार-बार पेशी पर बुलाया जा रहा था जिसके लिए उसे बार-बार बेंगलुरू से जौनपुर आना-जाना पड़ता था । अतुल सुभाष ने अपने पत्र में लिखा है कि एक बार उन्होंने अपनी पत्नी और सास से कहा था कि ऐसे मामलों से तंग आकर पुरूष आत्महत्या कर लेते हैं तो उन्होंने उसे कहा था कि वो कब मरने जा रहा है । सुभाष ने कहा कि वो मर गया था वो क्या करेंगी तो उन्होंने कहा कि उसके मरने के बाद उसका सारा पैसा उनको मिल जायेगा । इसके बाद सुभाष ने पूरी योजना बनाकर आत्महत्या की है । उसने यह सोचकर आत्महत्या की है कि उसके मरने के बाद उसके साथ न्याय होगा । अभी कानून उसकी बिल्कुल नहीं सुन रहा है लेकिन मरने के बाद उसकी बात सुनी जायेगी । देखा जाये तो मृतक कानून से बिल्कुल निराश हो चुका था लेकिन उसे उम्मीद थी कि उसकी मौत से कानून सुनवाई के लिए मजबूर होगा । यही सोचकर उसने अपना वीडियो और पत्र सोशल मीडिया में जारी किया है । सुभाष की आत्महत्या ने आईपीसी की धारा 498ए को हथियार बनाकर पुरूषों को प्रताड़ित करने की बात साबित कर दी है । 10 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा ही मामला खारिज कर दिया है और कहा है कि धारा 498ए पत्नी और उसके परिजनों के लिए बदला लेने का हथियार बन गई है । अब सोशल मीडिया में यह धारा खत्म करने की मांग की जा रही है । यह सच है कि भारत में पुरूषों की आत्महत्या दर महिलाओं के मुकाबले लगभग ढाई गुना है । एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2022 में 1,22,724 पुरुषों ने आत्महत्या की है जबकि आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 48,172 है । इस तरह पुरूषों की आत्महत्या दर 72 प्रतिशत है जबकि महिलाओं की आत्महत्या दर 28 प्रतिशत है । दूसरी तरफ आत्महत्या करने वाले पुरुषों में विवाहित और अविवाहित पुरूषों की बात करें तो इनका औसत लगभग बराबर है । इसके अलावा पारिवारिक समस्याओं से तंग आकर मरने वाले पुरुषों का औसत 31.7 प्रतिशत है । वैवाहिक समस्याओं से पीड़ित आत्महत्या करने वाले पुरूषों का औसत 4.8 है । इस तरह देखा जाये तो वैवाहिक संबंधों के कारण सिर्फ 4.8 प्रतिशत पुरुषों ने आत्महत्या की है जबकि परिवार से तंग आकर मरने वाले पुरुष 31.7 प्रतिशत हैं । इसलिए पुरुषों में बढ़ती आत्महत्या कर दर के लिए न तो विवाह को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और न ही पत्नियों के उत्पीड़न को दोष दिया जा सकता है । मेरा मानना है कि इस घटना की आड़ में वैवाहिक संस्था को बदनाम करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए । इस सच को हम सभी जानते हैं कि कानूनों को महिलाओं के पक्ष में बनाया गया है क्योंकि सदियों से महिलाओं का उत्पीड़न होता आ रहा है । यह सच है कि धारा 498 ए का दुरुपयोग होता है लेकिन कानून के दुरुपयोग को देखते हुए उसे खत्म करने की मांग करना उचित नहीं है । जहां इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है तो दूसरी तरफ इस कानून के होते हुए भी महिलाओं का उत्पीड़न बंद नहीं हुआ है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक यह कानून नहीं था जब तक दहेज के कारण महिलाओं का उत्पीड़न बहुत ज्यादा हो रहा था और कानून बनने के बाद भी यह पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है । इस मामले में महिला जज ने पीड़ित की बात नहीं सुनी लेकिन यह पूरा सच नहीं है । वास्तव में आज पुलिस और अदालत इस कानून के दुरुपयोग से परिचित हैं इसलिए मामला सामने आने पर पुरुष की बात भी सुनते हैं । इस कानून को लेकर अदालतों द्वारा कई बार सवाल खड़े किये गये हैं । मेरा मानना है कि इस कानून में सुधार की बहुत जरूरत है । इस कानून को खत्म नहीं किया जाना चाहिए लेकिन पुरूषों के खिलाफ कार्यवाही सिर्फ महिला की शिकायत के आधार पर नहीं होनी चाहिए । आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए और जांच के बाद ही किसी के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए । कानून के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश जरूर होनी चाहिए लेकिन महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने की कोशिश किसी भी तरह से कम नहीं होनी चाहिए । सरकार को कानून में संशोधन करके यह सुनिश्चित करना होगा कि इस कानून को पति से बदला लेने का हथियार न बनने दिया जाए जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। राजेश कुमार पासी Read more » Questions arising on law and wife's suicide
धर्म-अध्यात्म शख्सियत समाज साक्षात्कार निमाड़ की आध्यात्मिक पहचान ‘संत सियाराम बाबा’ December 13, 2024 / December 13, 2024 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ मध्यप्रदेश के खरगोन जिले की कसरावद तहसील में एक छोटा-सा गाँव है तैली भट्यांण। वैसे तो यह गाँव नर्मदा के तट पर प्राकृतिक सौंदर्य से आह्लादित है किन्तु इस गाँव की प्रसिद्धि देश-विदेश में होने का महत्त्वपूर्ण और एकमात्र कारण हैं संत सियाराम बाबा। कोई यह नहीं जानता कि बाबा आए कहाँ से और […] Read more » संत सियाराम बाबा
लेख समाज साक्षात्कार सार्थक पहल रोज़गार के कम अवसरों से भी एकल परिवारों को मिल रही है गति ! December 13, 2024 / December 13, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला किसी भी व्यक्ति के विकास के लिए परिवार व समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है। व्यक्ति समाज में रहता है और आज भारत में दो प्रकार के परिवार हैं -संयुक्त परिवार और एकल परिवार। आंकड़ों की बात करें तो 2021 के डेटा के अनुसार भारत में 30.24 करोड़ परिवार निवास करते हैं। इसके अनुसार भारत में 58.2 फीसदी एकल परिवार हैं तथा 41.8 फीसदी परिवार संयुक्त परिवार हैं। मतलब यह है इस डेटा के अनुसार भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या एकल परिवारों की तुलना में कहीं कम है।आज भारतीय समाज में आज एकल परिवार(न्यूक्लियर फैमिली) का कंसेप्ट लगातार बढ़ता चला जा रहा है और संयुक्त परिवारों(जॉइंट फैमिलीज)की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। कारण बहुत से हैं।आज पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति, बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या के गहरे प्रभाव के कारण आज भारतीय समाज का परिवेश, वातावरण लगातार बदल रहा है। सबसे पहला कारण तो बढ़ती जनसंख्या ही है क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे ही रोजगार के अवसरों में कमी होती चली जाती है और एकल परिवार का कंसेप्ट जन्म लेने लगता है। जब जनसंख्या में वृद्धि होती है तो लोगों को काम के संदर्भ में अपने घर से दूर दूसरे स्थानों , दूसरे राज्यों में यहां तक कि दूसरे देशों में जाकर काम करने के लिए विवश होना पड़ता है और इसका असर यह होता है कि समाज में एकल परिवार बढ़ने लगते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, आज भी यह देश कृषि प्रधान ही है। पहले के जमाने में मतलब कि आज से तीस-पैंतीस या चालीस बरस पहले लोगों की जीविका का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन हुआ करता था। मतलब यह है कि पहले के जमाने में कृषि और पशुपालन पर निर्भरता ज्यादा थी, इसलिए लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे। आज कृषि और पशुपालन के अतिरिक्त लोगों की आजीविका के अनेक साधन उपलब्ध हैं, इसलिए लोग आज गांवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं और एकल परिवार का कंसेप्ट समाज में बढ़ने लगा है। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव के कारण आज बुजुर्गों का परिवार में वह सम्मान नहीं रहा है जो बरसों पहले हुआ करता था। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव के कारण आज हमारे समाज में नैतिक मूल्यों, संस्कारों, संस्कृति में निरंतर गिरावट आई है। बुजुर्गों की टोका-टाकी आज के युवा सहन नहीं कर पाते। आज की युवा पीढ़ी में सहनशक्ति का अभाव हो गया है और सहनशक्ति के अभाव के कारण भी कहीं न कहीं संयुक्त परिवार आज टूटकर एकल परिवार का रूप धारण कर रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी पर स्वार्थ, लालच, अहम् की भावना,अहंकार, क्रोध हावी हो रहा है जो संयुक्त परिवारों को लगातार तोड़ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि संयुक्त परिवार को जोड़ कर रखने के लिए सेवा, त्याग, धैर्य, अनुशासन, सहनशीलता, प्यार, सम्मान, समझदारी, न्यायपूर्ण व्यवहार आदि की आवश्यकता होती है। समर्पण और त्याग की भावना बहुत ही जरूरी है। बिना समर्पण और त्याग की भावना के परिवार को जोड़ कर नहीं रखा जा सकता है। आपसी विश्वास, सहनशक्ति भी परिवार को जोड़ कर रखने के लिए एक आवश्यक शर्त है। बड़े बुजुर्ग यदि किसी बात पर दो बातें युवा पीढ़ी को कह भी दें तो युवा पीढ़ी को यह चाहिए कि वह अपने बुजुर्गों की बात को मान लें. बुजुर्गों का कहना मान लेने से युवा पीढ़ी का कुछ बिगड़ नहीं जाएगा क्योंकि कोई भी बुजुर्ग/परिवार का मुखिया कभी भी अपने बच्चों के बारे में, अपने परिवार के बारे में कभी भी बुरा नहीं सोच सकता है। युवा पीढ़ी को यह बात याद रखनी चाहिए कि बच्चे चाहे जितने बड़े हो जाएं, बड़ों के सामने वे हमेशा बच्चे ही होते हैं। संयुक्त परिवार के अपने फायदे हैं। मसलन, एक संयुक्त परिवार में बच्चों को सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रिक विकास के अवसर प्राप्त होते हैं। परिवार के मुखिया या सदस्यों द्वारा बच्चों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। उसे परिवार के अन्य बच्चों के साथ खेलने, घुलने-मिलने के अवसर प्राप्त होते हैं। संयुक्त परिवार में माता-पिता के साथ-साथ ही अन्य परिवारजनों (परिजनों) विशेष तौर पर दादा-दादी, चाचा-चाची का प्यार भी मिलता है। आज की युवा पीढ़ी को यह लगता है कि लगता है कि जॉइंट फैमिली में उन्हें कई तरह की रोक-टोक का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आजादी छिन जाती है। लेकिन यह विडंबना ही है कि हमारी युवा पीढ़ी यह भूल जाती है कि जॉइंट फैमिली में रहना अकेले रहने से कहीं ज्यादा सिक्योर होता है। एक व्यक्ति संयुक्त परिवार में जितना खुश रह सकता है, उतना शायद एकल परिवार में नहीं। एकल परिवार में व्यक्ति को अक्सर तनाव और अवसाद का सामना करना पड़ता है क्योंकि किसी परेशानी और मुसीबत के समय उनके पास सहायता करने वाला, उनका दुःख, परेशानी, तकलीफ़ सुनने वाला, दुःख को बांटने वाला कोई नहीं होता है। संयुक्त परिवार में रहने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी परेशानी या मुसीबत, दुःख और तकलीफ़ का सामना हमें अकेले नहीं करना पड़ता है। हमारे साथ हर कठिन व नाजुक परिस्थितियों में हमारे घर -परिवार के लोग हमेशा हमारी सपोर्ट के लिए हमारे साथ होते हैं। घर में अनेक लोग हमारे मार्गदर्शक होते हैं, जो हमें कठिनाइयों से आसानी से बाहर निकाल ले जाते हैं। संयुक्त परिवार में हमें फाइनेंशियल सपोर्ट भी अच्छी मिलती है क्योंकि वहां कमाने वाले अधिक होते हैं। संयुक्त परिवार में बच्चों को दादा-दादी, चाचा-चाची और अन्य सदस्यों के कारण अच्छी परवरिश मिलती है और बच्चे एकल परिवार की तुलना में कहीं अधिक संस्कारी बनते हैं, कारण यह है कि संयुक्त परिवार में बच्चों को सही-गलत,अच्छे-बुरे, नैतिक-अनैतिक, सकारात्मक-नकारात्मक की पहचान कराने के लिए कोई न कोई सदस्य अवश्य ही मौजूद होते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि संयुक्त परिवार अंतर-पीढ़ीगत अंतःक्रियाओं के माध्यम से सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित करने के लिए उत्कृष्ट हैं। उत्कृष्ट इसलिए क्यों कि बुजुर्ग लोग हमारे देश के विभिन्न सांस्कृतिक रीति-रिवाजों, प्रेरक नैतिक कहानियों और मूल्यों और संस्कृति -संस्कारों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। ज्ञान का यह हस्तांतरण सांस्कृतिक विरासत की निरंतरता सुनिश्चित करता है। संयुक्त परिवार में बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होता है और परिवार का कोई भी सदस्य बेखौफ कहीं भी इधर उधर जा सकता है। संयुक्त परिवार में भावनात्मक समर्थन और साहचर्य बच्चों को मिलता है जो एकल परिवार में उस रूप में नहीं मिल पाता है। संयुक्त परिवार में जिम्मेदारियां (घरेलू काम-काज, बच्चों की देखभाल और वित्तीय-प्रबंधन) साझा होने के कारण परिवार के समक्ष जल्दी से कोई परेशानियां नहीं आ पातीं हैं। संयुक्त परिवार से बच्चों में सामाजिकता का भरपूर विकास होता है और संबंध घनिष्ठ और मजबूत बनते हैं।संयुक्त परिवारों में अक्सर बच्चों की देखभाल और शिक्षा के लिए एक अंतर्निहित व्यवस्था होती है, जिसमें दादा-दादी और परिवार के अन्य सदस्य बच्चे के पालन-पोषण में योगदान देते हैं। संयुक्त परिवार का एक फायदा यह भी है कि इसमें विभिन्न संसाधनों को आपस में साझा किया जा सकता है। सोशल नेटवर्क का भी निर्माण होता है। हालांकि कुछ लोग संयुक्त परिवार के नुकसान भी मानते हैं जैसे कि ऐसे परिवार अनेक बार भावनात्मक और वित्तीय सहायता के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भरता की भावना को बढ़ावा देते हैं। संयुक्त परिवार से जनरेशन गैप को बढ़ावा मिलता है क्योंकि युवा सदस्यों के विचार बुजुर्गों के विचारों(पारंपरिक मान्यताओं और मूल्यों) से मेल नहीं खाते हैं। संयुक्त परिवार में निर्णय लेने की स्वतंत्रता सीमित होती है क्योंकि परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही ऐसे परिवारों में निर्णय लेता है। पारिवारिक सदस्यों की अधिक निकटता के कारण पारिवारिक सदस्यों में अनेक बार संघर्ष और मतभेद की स्थितियां पैदा हो सकतीं हैं। संयुक्त परिवार में गोपनीयता का भी अभाव होता है और इससे तनाव पैदा हो सकता है।कभी-कभी, परिवार के कुछ सदस्यों को पक्षपात या असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप असंतोष और विभाजन पैदा होता है। संचार संबंधी चुनौतियां भी संयुक्त परिवार में देखने को मिल सकतीं हैं। सुनील कुमार महला Read more » एकल परिवार
लेख विविधा विश्ववार्ता समाज अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और अधिकार: साझा मानवता और मूलभूत मूल्यों की रक्षा December 12, 2024 / December 12, 2024 by गजेंद्र सिंह | Leave a Comment गजेंद्र सिंह कापीसा प्रांत में महिला मेडिकल छात्रों के आंसू तालिबान शासन के इस्लामी फ़रमान के तहत अफगान महिलाओं की गंभीर वास्तविकता को दर्शाते हैं। तालिबान शासन के एक के बाद एक महिलाओं के लिए आ रहे फरमान न केवल उन्हें चिकित्सा शिक्षा से वंचित करने वाले है अपितु महिला के सपनों और आशाओं को […] Read more » अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और अधिकार
लेख समाज कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रतिबंध December 11, 2024 / December 11, 2024 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment पहुँच को प्रतिबंधित करने से माता-पिता और अभिभावकों को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों को बेहतर ढंग से निर्देशित करने और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि वे पर्यवेक्षित तरीके से तकनीक से जुड़ें। हमें बच्चों और युवाओं को ऑनलाइन स्पेस को बेहतर तरीके से नेविगेट करने में मदद करने की भी आवश्यकता […] Read more » सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रतिबंध
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल बोझ नहीं; समाज और देश के लिए अमूल्य निधि और धरोहर हैं बुजुर्ग December 10, 2024 / December 10, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण भारतीय सामाजिक परिवेश में अनेक आमूलचूल परिवर्तन आए हैं। आज हमारे सामाजिक, नैतिक मूल्य बदल गये हैं। हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार आज शनै:शनै: पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के रंग में रंग रहे हैं। आधुनिकता का रंग हम सभी पर आज हावी हो गया है। समय,काल और परिस्थितियों के अनुसार आज […] Read more » अमूल्य निधि और धरोहर हैं बुजुर्ग
लेख समाज बैन ड्रग्स के लिए युवाओं में बढ़ती तलब December 10, 2024 / December 10, 2024 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment हाल ही में, एक जांच से पता चला है कि नशीली दवाओं की लत की महामारी, जो ज्यादातर युवा पुरुषों को प्रभावित कर रही है, पूरे भारत में फैल रही है। नशीली दवाओं का दुरुपयोग भारत में एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक और स्वास्थ्य मुद्दा है। भारत की विविध आबादी, बड़ी युवा जनसांख्यिकी और आर्थिक असमानताएँ देश […] Read more »
लेख समाज साक्षात्कार मानव के संरक्षण एवं अधिकारों के लिए कौन लड़ेगा? December 10, 2024 / December 9, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment मानव अधिकार दिवस-10 दिसम्बर, 2024– ललित गर्ग- संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा घोषित दिवसों में एक महत्वपूर्ण दिवस है विश्व मानवाधिकार दिवस। प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को यह दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है। इस महत्त्वपूर्ण दिवस की नींव विश्व युद्ध की विभीषिका से झुलस रहे लोगों के दर्द को समझ कर और उसको […] Read more » मानव अधिकार दिवस-10 दिसम्बर