घर घर में शौचालय निर्माण अभियान को केंद्र्र में लाने का श्रेय केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को दिया जा सकता है। हालांकि उनके मंदिर से शौचालय की तुलना करने वाले बयान से सहमति नहीं जतार्इ जा सकती, लेकिन उन्होंने बेटियों से जिस घर में शौचालय न हो, उस परिवार की दुल्हन नहीं बनने की जो अपील की है, उसकी सराहना की जानी चाहिए। यहां वधू पक्ष भी दहेज देने के संकल्प की शर्तों में शौचालय निर्माण की बाघ्यकारी शर्त जोड़ सकता है। घर – घर में शौचालयों का निर्माण हो जाता है तो औरत की आबरू भी सुरक्षित होगी। क्योंकि ग्रामीण परिवेश में बलात्कार की सबसे ज्यादा घटनांए दिशा मैदान जाने के दौरान ही धटती हैं। इधर देश के सबसे बड़े खुले शौचालय रेल को जैविक शौचालयों में बदलने की मुहिम भी जयराम रमेश की प्रेरणा से रेलवे ने चला दी है।
जयराम रमेश सबसे पहले रेलवे को देश का सबसे बड़ा खुला शौचालय बताकर, शौचालयों को केंद्र्र में लाए। इसके बाद उन्होंने शौचालयों की तुलना मंदिर से कर डाली। इससे उनका आशय था कि मंदिर की साफ सफार्इ और पवित्रता का जितना ख्याल रखा जाता है, यदि उतना स्वच्छ और पवित्र पूरे घर को बनाना है तो घर – घर में शौचालय का होना जरूरी है। इससे स्त्री भी उस तनाव और संकट से मुक्त होगी, जो उसे शौच को जाते समय गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे बहशियों से बनी रहती है। अब राजस्थान के कोटा में उन्होंने बेटियों से कहा है कि उस परिवार में शादी न करें, जहां शौचालय न हो। यानी शौचालय नहीं, तो दुल्हन नहीं। इस मौके पर रमेश ने वघू पक्ष से अपील की कि जिस तरह आप जन्म पत्रिकाओं के मिलान के समय ग्रह मैत्री और राहू – केतू की दशा देखते हैं, उसी तर्ज पर घर में शौचालय की उपलब्घता भी देखें। उन्होंने मघ्यप्रदेश के बैतूल की अनीता नैरे की मिसाल देते हुए कहा कि ससुराल में शौचालय न होने के कारण दो दिन में उसने ससुराल छोड़ दी थी। वैसे भी स्वछता महिलाओं की मर्यादा एवं सुरक्षा से जुड़ा मुददा है और इस दिशा में ‘निर्मल भारत अभियान एक जन आंदोलन का रुप ले रहा है। इसका लक्ष्य 10 सालों में खुले में शौच करने की प्रथा का उन्मूलन करना है। बड़ी संख्या में शौचालय बन जाएंगे तो हाथ से मैला ढोने की प्रथा का भी उन्मूलन हो जाएगा।
दरअसल देश के ग्रामीण इलाकों में हालात बहुत बदत्तर हैं। करीब 67 फीसदी परिवारों के लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। यह आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा है। हालांकि बीते संसद सत्र में जयराम रमेश ने ही संसद में जानकारी दी की 60 फीसदी परिवारों को शौचालयों की सुविधा मिल गर्इ है। लेकिन 2011 की जनगणना के आंकड़ो को सही मानें तो फिलहाल 30 फीसदी ग्रामीण परिवारों को यह सुविधा हसिल हो पार्इ है। इस विंसगाती का कारण है कि कर्इ राज्य केंद्र्र से धन ऐंठने के लिए शौचालय निर्माण हो जाने के झूठे आंकडे़ पेश कर देते हंै। इसलिए इस शर्मनाक हालात से 2022 तक भी छुटकारा पाना मुश्किल है। हालांकि केंद्र्र सरकार इस योजना पर पांच साल के भीतर 45 हजार करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है और एक लाख करोड़ रूपये और अभी इस योजना पर खर्च किए जाने हैं।
हालांकि शौचालयों के निर्माण में तेजी आर्इ है। सिकिकम ऐसा राज्य बन चुका है, जहां अब खुले में शौच करने कोर्इ नहीं जाता है। नवंबर 2012 तक केरल भी इस समस्या से छुटटी पा लेगा। इसके बाद मार्च 2013 तक हिमाचल और मार्च 2014 तक हरियाणा शौचालय निर्माण के लक्ष्य को पूरा कर लेंगे। लेकिन अन्य राज्यों में समस्या का अंत होता दिखार्इ नहीं दे रहा है। इसीलिए भारत सरकार निर्मल भारत अभियान चला रही है। इसके तहत शौचालय निर्माण के लिए अब तक जो 3500 रूपय दिए जाते थे, उन्हें बढ़ाकर 10 हजार रूपये प्रति शौचालय कर दिया गया है। हालांकि पंजाब सरकार इस धन राशि को कम बता रही है। उसका तर्क है कि पंजाब के गांवों में निर्माण सामग्री की लगत ज्यादा है, जिसके चलते 10 हजार में शौचालय बनाना मुमकिन नहीं है। लेकिन भारत सरकार पंजाब सरकार को अतिरिक्त धन राशि नहीं दे रही, क्योंकि फिर लागत सामग्री महंगी हो जाने का बहाना जताकर सभी राज्य सरकारें अतिरिक्त धन राशि मांगने लग जाएंगी।
बाहर शौच के लिए जाने में सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को उठानी पड़ती है। सरकारी आंकड़ों को ही सही मानें तो प्रत्येक 10 में से 6 महिलाओं विभिन्न रूपों में परेशानी भुगतनी होती है। इस परेशानी से मुकित के लिए ही मघ्यप्रदेश के बैतूल जिले के गांव झीतूढाना की अनीता नैरे ने विद्रोही तेवर दिखाए और आंदोलन की राह पकड़ ली शादी के दो दिन बाद ही वह यह कहकर मायके चली गर्इ कि जब तक घर में शौचालय नहीं बन जाता, वह ससुराल नहीं आएगी। उसके इस विरोध का असर यह हुआ कि अनिता के धर में तो शौचालय बना ही, गांव के हर एक घर में शौचालय बना दिए गए, जिससे कोर्इ और नर्इ दुल्हन शौचालय के कारण ससुराल से पलायन न करने पाए। अब अनीता भारत सारकार के गा्रमीण विकास मंत्रालय की ‘आर्दश है और निर्मल भारत अभियान में उसी की कहानी दोहारर्इ जा रही है। सुलभ इंटरनेशनल ने अनीता को पांच लांख का नगद पुरूस्कार भी दिया है। महारज नगर की प्रियंका ने और संत कबीर नगर की ज्योती ने भी ससुलाल छोड़कर शौचालय बनवा लिए। जाहिर है दुल्हनों की पहल छोटी जरूर है, लेकिन सामाजिक बदलाव की दिशा में महत्पूर्ण है।
इधर रेलवे ने भी डिब्बों में जैव शौचालय लगाने में तेजी दखार्इ है। ग्वालियर से वरणासी चलने वाली बुंदेलखण्ड एक्सप्रेस के सभी डिब्बों में जैव शौचालय लगा दिए गए हैं। जल्दी ही रेलवे कपूरथला में एक जीवाणु उत्पादन संयंत्र लगाने जा रहा है। इन जीवाणुओं का इस्तेमाल जैव शौचालयओं में किया जाएगा। हवा के अभाव में पनपने वाले इन जीवाणुओं को ‘एनरोबिक बैक्टीरिया कहते हैं। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने जैव शौचालयों की सरंचना तैयार की है और 2500 डिब्बों मे शौचालयों लगाने का लक्ष्य रखा है। कपूरथला के बाद चेन्नर्इ और नागपुर में भी संयंत्र लगाए जाएंगे। इन अवायवीय जीवाणुओं की विषेशता होती है कि ये मल को पानी और गैस में बदल देते हैं। क्लोरीन टंकी से होकर गुजारने वाला पानी साफ होकर निकलता है और गैस वायुमण्डल में चली जाती है। यह संयंत्र 10 दिनों में लगभग 10 हजार लीटर जीवाणुओं का उत्पादन करता है। एक शौचालय को 10 दिन के लिए 150 लीटर जीवाणुओं की जरूरत पड़ती है। जैव शौचालयों की कीमत करीब एक लाख रूपये बैठेगी। इसके इस्तेमाल से बदवू तो दूर होगी ही रेल पटरियों की जंग और क्षरण को भी रोका जा सकेगा। जो अपषिश्ठ पदार्थों के पटरी पर गिरने से होता है। रेलवे को इस लिहाज से तकरीबन एक साल में 350 करोड़ का घाटा होता है। जाहिर है जयराम रमेश की मुहिम चहुंओर मार कर रही है और शौचालय निर्माण की दिशा में गति आ रही है। यदि घर-घर शौचालयों का निर्माण हो जाता है तो सिर पर मैला प्रथा ढोने की प्रथा भी आप से आप समाप्त हो जाएगी।
मैंने जयराम रमेश के पूर्ण भाषण का अवलोकन तो नहीं किया ,पर मैंने यह अवश्य पढ़ा कि उनके अनुसार आज देश में मंदिरों से ज्यादा शौचालयों की आवश्यकता है।जो मंदिर का नाम लिए जाने पर इतना भावुक हो रहे हैं ,उन्होंने क्या कभी इस कथन की गंभीरता को समझा?मैं नहीं समझता कि जयराम रमेश नास्तिक हैं हैं या हिन्दू नहीं है।आलोग इस बात पर तो गौर कीजिये की जब ऐसा वचन किसी हिन्दू के मुख से निकलता है तो क्या उससे यह पता नहीं चलता कि वह हमारी इस दुरावस्था और निर्लिप्तता से कितना पीड़ित है? कोई जब इस तरह की बात कहता है तो उसके मन में सच पूछिए तो मंदिर मस्जिद नहीं रहता,बल्कि उसे ध्यान आता है कि cleanness is next to godliness..क्या आपलोगों नहीं लगता कि हमारी ये गंदी आदतें मंदिरों के निर्माण के बाद भी हमें ईश्वर से दूर लेती जा रही है।यह कौन सी ईश्वर भक्ति है,जो मंदिर निर्माण और उसमे मूर्ति प्रतिष्ठान को तो महत्त्व पूर्ण मानती है,पर उसके इर्द गिर्द फैले गन्दगी और मल मूत्र पर ध्यान नहीं देती।यह सचमुच सर्वथा उचित है कि हम शौचालय अभियान में लगे।अगर ईश्वर है तो वह इससे ज्यादा प्रसन्न होगा,बनिस्पत इसके कि गंदगियों के बीच एक मन्दिर बनाकर उसमे मूर्ति प्रतिष्ठापित कर दी जाए।इस मंदिर मस्जिद के तर्क में न पड़ कर अगर हम जयराम रमेश के कथन कीमूल भावना को समझ कर शौचालय निर्माण को उच्च प्राथमिकता दे तो मानव कल्याण तो होगा ही ,शायद ईश्वर भी ज्यादा प्रसन्न हो जाएँ.
मैंने जयराम रमेश के पूर्ण भाषण का अवलोकन तो नहीं किया ,पर मैंने यह अवश्य पढ़ा कि उनके अनुसार आज देश में मंदिरों से ज्यादा शौचालयों की आवश्यकता है।जो मंदिर का नाम लिए जाने पर इतना भावुक हो रहे हैं ,उन्होंने क्या कभी इस कथन की गंभीरता को समझा?मैं नहीं समझता कि जयराम रमेश नास्तिक हैं हैं या हिन्दू नहीं है।आलोग इस बात पर तो गौर कीजिये की जब ऐसा वचन किसी हिन्दू के मुख से निकलता है तो क्या उससे यह पता नहीं चलता कि वह हमारी इस दुरावस्था और निर्लिप्तता से कितना पीड़ित है? कोई जब इस तरह की बात कहता है तो उसके मन में सच पूछिए तो मंदिर मस्जिद नहीं रहता,बल्कि उसे ध्यान आता है कि cleanness is next to godliness..क्या आपलोगों नहीं लगता कि हमारी ये गंदी आदतें मंदिरों के निर्माण के बाद भी हमें ईश्वर से दूर लेती जा रही है।यह कौन सी ईश्वर भक्ति है,जो मंदिर निर्माण और उसमे मूर्ति प्रतिष्ठान को तो महत्त्व पूर्ण मानती है,पर उसके इर्द गिर्द फैले गन्दगी और मल मूत्र पर ध्यान नहीं देती।यह सचमुच सर्वथा उचित है कि हम शौचालय अभियान में लगे।अगर ईश्वर है तो वह इससे ज्यादा प्रसन्न होगा,बनिस्पत इसके कि गंदगियों के बीच एक मन्दिर बनाकर उसमे मूर्ति प्रतिष्ठापित कर दी जाए।इस मंदिर मस्जिद के तर्क में न पड़ कर अगर हम जयराम रमेश के कथन कीमूल भावना को समझ कर शौचालय निर्माण को उच्च प्राथमिकता दे तो मानव कल्याण तो होगा ही ,शायद ईश्वर भी ज्यादा प्रसन्न हो जाएँ .
भार्गव साहेब कहीं दाल में काला है, कोई बड़ा घपला है। जो सरकार अरबों, खरबों के घपले पूरी बेशर्मी से किये जा रही है, देश को बर्बाद करने वाले निर्णय पूरी दुष्टाता और बेशर्मी से ले रही है ; वह जब भी कुछ करती है तो उसपर संदेह करना ही पड़ता है। पहले तो शुरुआत ही दुष्टतापूर्ण हुई। शौचालय की तुलना किसी चर्च, गुरुद्वारे, मस्जिद से नहीं ; मंदिर से की गयी। वही वैटिकन, संकीर्ण सोच की अभिव्यक्ती। हिन्दू को निशाने पर रखना, अपमानित करना ; प्रताड़ित करना और सन्देश देना की कर लो जो कर सकते हो, हिन्दुओं के मनोबल को तोड़ने की पूर्व परिचित साजिश। अगर नीयत सही होती तो मंदिरों को गंदा कहने की क्या ज़रूरत थी ? अनेक मंदिर हैं जो अत्यंत साफ़-सुथरे हैं, गंदे भी मिल जायेंगे। इसी प्रकार अनेक मस्जिदें हैं जहां सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। अनेक गिरजे हैं जो खंडहर बन चुने हैं, कोई वहाँ जाता नहीं। अनेक गिरजे और मस्जिद हैं जो बड़े सुन्दर हैं। यानी मंदिर को एक सरकारी अभियान में घसीटना सोची समझी शरारत हो सकती है। कहीं ये सज्जन भी सोनिया जी की चौकड़ी के क्रिप्टो (गुप्त) क्रिश्चन नहीं ? अधिकाश ऐसे की लोग हैं उनके साथियों में।
# अगली बात , यह एक ऐतिहासिक सच है कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत संसार का सबसे सभ्य, सबसे समृद्ध देश माना जाता था। अविश्वास न करें, प्रमाण मैं अनेक दे दूंगा। अरब वासियों के 500-600 साल के आक्रमणों व संघर्ष के बाद भी भारत बहुत समृद्ध और अत्यंत सुसंस्कृत देश था। अर्थात इस्लामी आक्रमणों व इस्लामी शासन ने भारत को विशेष बरबाद नहीं किया। वे भारत के बनकर, भारत में रहने लगे थे और भारत की समृधि में सहस्योगी बनाने लगे थे। अंग्रेजों ने मुस्लिमों की मानसिकता को भारत विरोधी बनाने के अनेक कुटिल प्रयास किये (इसके भी अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं).
# वास्तव में यूरोपियों और अंग्रेजों के आगमन व अमानवीय लूट व हत्याकांडों के बाद भारत में आकाल पड़े, महामारियां फैलीं, शिक्षा व समाज व्यवस्था नष्ट हुई। तब से जारी निरंतर लूट ( पहले विदेशी लुटेरे और फिर उनके गुलाम भारतीय काले अँगरेज़ जो की सता पर काबिज हो गए) से निर्धन हुए करोड़ों देशवासियों को रोटी ही हासिल नहीं, फिर शौचालय की क्या कहे। अरे दम हो, नीयत सही है तो देशी, विदेशी लूट को रोको और सबको रोटी, मकान, कपड़ा, दवा उपलब्ध करवाओ ; फिर उपदेश देना शौचालय बनाने का। तुम्हारे कहे बिना ही वे बना लेंगे, पर पहले सम्मान से जीन योग्य रोज़ी-रोटी तो उन्हें दो। ज़रा बतलाओ तो कि कई कोई लखपति, करोड़ पति जो सड़क के किनारे, रेल लाईन के किनारे मल- त्याग करता हो ? जिन्हें रोटी हासिल नहीं, उन्हें उपदेश दे रहे हो ? असलियत तो यह है कि विदेशियों की चारागाह बनाने के लिए तुम्हें उनके अनुकूल सबकुछ चाहिए। बाहर जाकर वे तुम्हें ताने जो देते हैं। असल में तुम्हें उन भारतीयों की लेशमात्र भी परवाह नहीं है जो भूखे मर रहे हैं और पशुओं से भी बदतर जीवन जी रहे हैं। थोड़ी भी इमानदारी और देशभक्ती बची है तो अरबों रुपये की लूट को बंद करो, विदेशी शक्तियों के हाथों में देश की संपदा बेचना बंद करो, भारत को विदेशी कार्पोरेशनों की चारागाह बनाने के देश्द्रोहिता पूर्ण निर्णयों को रोको और इन निर्धनों को भुखमरी से बचाने के उपाय करो। पर जानता हूँ की ये सब ये लोग नहीं करेंगे, जनता ही इन्हें इनकी करनी का दंड समय आने पर देगी। वंदेमातरम !
घरों मे,सार्वजनिक स्थानों मे, हाईवे पर स्वच्छ शौचालय महिलाऔं,पुरुषों और विकलांगो के लियें बनाना बुनियादी
आवश्कता है। बनाने के बाद सफाई का भी समुचित प्रबऩ्ध होना चाहिये भले ही एक छोटी सी रकम उपयोग
करने वाले को देने का प्रावधान रक्खा जा सकता है।इससे पुरुषों की भी कहीं भी सड़क के किनारे … की
आदत शायद छुट सके।