चीन को देना होगा उसी की भाषा में जवाब

-डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

किसी भी देश की सरकार का पहला कर्तव्य देश की सीमाओं की रक्षा करना होता है। असुरक्षित सीमाओं के भीतर कोई देश आर्थिक क्षेत्र में, संस्कृति और कला के क्षेत्र में, वाण्ज्यि और व्यापार के क्षेत्र में जितनी चाहे उन्नति कर ले। वह उन्नति सदा अस्थाई रहती है क्योंकि असुरक्षित सीमाओं को भेद कर शत्रु कभी भी देश के भीतर आ सकता है और इस तथाकथित उन्नति को पलक झपकते ही मिटटी में मिला सकता है। महाभारत में इसे एक और तरीके से कहा गया है। उसके अनुसार सीमाएं राष्ट्रमाता के वस्त्र होते हैं और सीमाओं का अतिक्रमण मां के चीर हरण के समान होता है। भारत को सीमा रक्षा के मामले में जागृत रहना और भी आवश्यक है क्योंकि यह उत्तर पूर्व से लेकर उत्तर पश्चिम तक शत्रु देशों से घिरा हुआ है। चीन और पकिस्तान दोनों ने भारत के खिलाफ हाथ मिला लिए हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि चीन ने पाकिस्तान का प्रयोग भारत के खिलाफ हथियार के तौर पर करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान का निमार्ण ही एक बड़ी रणनीति के तहत भारत के शत्रु देश के तौर पर किया गया था। इस लिए वह अपने जन्म से ही भारत के प्रति अपना शत्रु धर्म निभा रहा है। परन्तु छोटा और कमजोर होने के कारण भारत का कुछ बिगाड़ नही पाता था। चीन ने भारत के संदर्भ में पाकिस्तान की इस ताकत और कमजोरी को ठीक ढंग से पहचान लिया और उसका प्रयोग भारत के खिलाफ करना शुरू कर दिया। पाकिस्तान भी चीन की हथेली पर बैठ कर अपनी इस नई भूमिका से संतुष्ट है। क्योंकि उसका मकसद भारत पर चोट करना है। यह चोट अमेरिका की हथेली पर बैठ कर होती है या फिर चीन की हथेली पर बैठ कर, उसे इससे कोई फर्क नही पडता।

19वीं और 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश सम्राज्यवाद अपने भारतीय सामा्रज्य की रक्षा के लिए अतिरिक्त चौक्कना था। उसे लगता था कि रूस, तिब्बत और अफगानिस्तान में घुसकर भारत के सीमांत तक आना चाहता है। अंग्रेजी कूटनीति ने इसे ग्रेट गेम का नाम दिया अर्थात शिकारी रूस है और वह तिब्बत और अफगानिस्तान में घुस कर भारत का शिकार करना चाहता है। अंग्रेजों ने रूस की इस तथा कथित गेम को असफल बना दिया फिर चाहे उन्हें तिब्बत पर चीन के अधिराज्य का काल्पनिक सिद्वान्त भी गढ़ना पड़ा। 20वीें शताब्दी के मघ्य में भारत में ब्रिटिश सम्राज्य का अंत हुआ तो ऐसा आभास होने लगा था कि ग्रेट गेम के युग का भी अंत हो गया है। लेकिन दुर्भाग्य से ग्रेट गेम के युग का अंत नही हुआ था, केवल शिकारी बदला था। भारत इस नए उभर रहे शिकारी को या तो देख नही पाया या फिर देख कर भी अनजान बनता रहा। अब शिकारी रूस की जगह चीन था। जिस ग्रेट गेम अभियान को ब्रिटिश कूटनीति ने असफल कर दिया था वह इस बार भारतीय कूटनीति की असफलता के कारण सफल होता दिखाई दे रहा है। चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान ने व्यवहारिक रूप से गिलगित और वाल्तीस्तान चीन के हवाले कर दिये हैं और जो खबरें वहां से छन-छन कर आ रही हैं उनके अनुसार वहां हजारों की संख्या में चीनी सैनिक आ पहुंचे हैं। अफगानिस्तान में भी चीन सरकार पूरा प्रयास कर रही है कि वहां से अनेक क्षेत्रों से भारतीय भागीदारी को समाप्त करके चीनी भागीदारी को सुनिश्चित किया जाए।

इस प्रकार के वातावरण में चीन भारत पर धौंस जमाने और उसे धमकाने की भूमिका में उतर आया है। वह अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा तो लम्बे समय से करता आ रहा है लेकिन अब उसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अरूणाचल प्रदेश के दौरे पर भी बकायदा आपत्तियां दर्ज करवानी शुरू कर दी हैं। उसका तर्क है कि विवादास्पद क्षेत्र में भारत के प्रधानमंत्री को जाने का कोई अधिकार नही है। अरूणाचल प्रदेश के लोगों को चीन वीजा नही देता। उसका तर्क है कि ये लोग तो चीन के ही नागरिक हैं। इनको वीजा लेने की जरूरत नहीं है। जम्मू कश्मीर के लोगों को भी अब उसने भारतीय पासपोर्ट की बजाय कागज के टुकडे़ पर वीजा देना शुरू कर दिया है। उसका तर्क है कि जम्मू कश्मीर विवादित क्षेत्र है इस लिए यहां के नागरिकों को भारतीय नागरिक कैसे माना जा सकता है। पिछले दिनों तो उसने कश्मीर में तैनात एक भारतीय सेनिक अधिकरी को भी वीजा देने से इन्कार कर दिया था। इस पर तर्क और भी विचित्र था कि यह अधिकरी विवादित संवेदनशील क्षेत्र में तैनात है।

लेकिन इस उभर रहे नए ग्रेट गेम अभियान का सामाना करने के लिए भारत सरकार की रणनीति क्या है ? वैश्वीकरण के इस तथाकथित युग में भारत और चीन के बीच पिछले कुछ दशकों से व्यापार के क्षेत्र में वृ़िद्व हुई है। भारत की अनेक कम्पनियों के हित चीन में निवेश की गई अपनी पूजीं में जुड़ गए हैं। ऐसी एक सशक्त लॉबी दिल्ली में पन्नप रही है। इसका मानना है कि भारत और चीन के बीच सीमा और सुरक्षा को लेकर इस प्रकार के छोटे मोटे मसलों को ज्यादा तूल नही दिया जाना चाहिए। दोनों देशों का हित इसी में है कि सीमा शांत रहे और आपसी व्यापार में वृद्वि हो। यह लॉबी चीन के व्यवहार और नीति को तो बदल नही सकती। इसका यह मानना है कि चीन शुरू से ही उददंड रहा है। इसलिए भारत को ही सहनशीलता सीखनी होगी। भारत को सीमा सुरक्षा के मामले को इतना तूल नही देना चाहिए अन्यथा व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। अपने सुभीते के लिए खडे किये गए थिंक टैंकों के माध्यम से अब यह भी कहा जाने लगा है कि सीमा पर कुछ ले देकर समझौता कर लेना चाहिए। जाहिर है चीन अपनी तथाकथित ताकत और इस लॉबी के सहयोग से भारत को डरा कर अपना उल्लू सीधा कारना चाहता है और भारत को घेर कर इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। भारत सरकार को भी अपनी परम्परागत यूरोपोन्मुखी विदेश नीति के साथ एशिया और खास करके दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ अपने सम्बन्धों का विस्तार करना चाहिए। दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकांश देशों की सीमा चीन से लगती है। चीन इन देशों को केवल धमकाता ही नहीं है बल्कि समय असमय उन पर सीमित आक्रमण भी करता है। वियतनाम उसकी इस दादागीरी को झेल चुका है और कम्बोडिया ने तो चीन के इन प्रयोगों की कीमत लाखों मौतों में चुकायी है। कोरिया के विभाजन में चीन का ही हाथ है। ये सभी देश चीन की इस दादागीरी का जवाब देना चाहते हैं लेकिन वे किस के बलबूते पर ऐसा करें।भारत को चीन की कूटनीति का उत्तर उसी की भाषा में देना होगा। वाजपयी के शासन काल में इसकी शुरूआत हुई थी। अब भारत की राष्ट्र्पति लाओस और कम्बोडिया की यात्रा करके आई हैं और इन दोनों देशों के साथ कुछ समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुए है। चीन के खतरे का सामना बिल में घुस कर नहीं किया जा सकता। इसका जवाब उसी की भाषा में देना होगा।

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

12 COMMENTS

  1. तीन:
    आक्रमण की किताबी नीतिके घटक ==>जो चीन प्रयोगमें लाता है।
    (१) चीनकी न्यूनतम हानि,(२)हमारा अधिकाधिक संहार,(३) उचित अवसर (मौसम) पाकर आक्रमण, (४) शत्रुको(हमें) निश्चिंत करने (भ्रमित करनेवाले) वार्तालाप करना, (५)Surprise Attack अकस्मात आक्रमण (६) भारत में आक्रमण के लिए चीनके पक्षमें सहानुभूति पैदा करने(जैसे हमारे साम्यवादी चीनकी तरफदारी करते हैं) के लिए धनबलसे खरिदना,चीनने उन्हें बुलाकर सत्कार किया, धन और awards(बंगालसे साम्यवादी बुलाए थे) इत्यादि देता है। (७)चीनके प्रदेश में सीमासे सटी सडकें बनाकर चीन की सेना को सतर्क रखता है।(८) हमारे देश में बिकाउ लेखकों को खरिदकर मिडिया द्वारा, हमें हतोत्साह करता है।(९) अनपेक्षित स्थान पर, हमारे दुर्बलातिदुर्बल क्षेत्रपर, कम सुरक्षित जगह पाकर, अनपेक्षित समय(रात) चुनकर, प्रचंड बल(हथोडेसे मच्छर मारने जैसा) प्रयोग , अधिकाधिक हमारी प्राण हानि करना। इन ९ बिंदुओं पर भारत और चीन की, सामने सामने तुलना करें। सन ६२ में चाउ एन लाय ने हमसे “हिंदी चीनी भाई भाई” का नारा लगवाया, हर नगर में उसका क्या प्रचंड स्वागत हुआ, नेहरूजी भी सीमातीत बहुत हर्षित हुए थे। हमें बेफिकर बना दिया, और जैसे वह वापस गया, प्रचंडातिप्रचंड हमला करवा दिया। मौसम भी हमारे लिए कठिन था। हमारे नेताओंने सोचा था, कि, जब हम विश्व शांति में विश्वास करते हैं, तो क्यों कर कोई हमपर आक्रमण करेगा? हमारे जवानों की कोई तैय्यारी नहीं थी। सीमापर चीनि सेनाकी ऐसी भीड, और हमारे जवानों के पास बंदूकमें पर्याप्त गोलियां भी नहीं थी। बजट ही नहीं था। हम शांतिवादी, अहिंसावादी,विश्वशांति वादी, अपने ४०,००० वर्ग मिल भूमिको गवाँ बैठे।नेहरू जी उसी के कारण हृदयाघातसे स्वर्गवासी हुए।
    प्रश्न: कभी हमने कोई चीनका प्रदेश क्लैम किया है? कुछ हमारे सैनिकोंसे घुसपैठ करवाई है? सीमापार देशोंसे रिश्ता बांधा है?
    हमारे शासक परस्पर स्वदेशी पार्टियों काही हिसाब बराबर करने में लगे हैं।
    सन ६२ ने हमें जगाया नहीं दिखता।
    कुछ स्मरण से लिखा है। पर औसत यही है। इसे आक्रमण की कूट नीति के शीर्षक से पढाया जाता है। इश्वर करें मैं गलत प्रमाणित होउं।

  2. ***सुरक्षा नीति ==निकटके देश मित्र मानकर नहीं बनाई जाती==***
    Paradigm Shift हो चुका है।अर्थात भारतके आस पास की स्थिति में आमूलाग्र बदल आया है। ऐसी स्थिति में विचारप्रणाली और कूट नीति भी बदलनी पडेगी। नही बदलेंगे तो फिरसे चीन सीमा को भेदकर घुस सकता है। पहले प्रदेश क्लैम करेगा, बादमें घुसपैठ। विसा देना चालु कर चुका है। कश्श्मिरीयों को कागज पर वीसा देता ही है। एक सबेरे खबर आएगी कि, चीन अरूणाचलमें घुस चुका है।और हमारा परदेशी निर्देशित शासन झूठा आश्वासन देते रहेगा, कि खास कुछ घबराने की ज़रूरत नहीं है।
    इसके ७ बिंदू मैं आपके सामने रखता हूं। आप कृपया अपना मत और संकेत दें। (कुछ पढा है, सोचा है, निम्न )
    (१) अपने सीमांत प्रदेश में सडकोंका निर्माण सेना के शीघ्र नियुक्तिके काम आता है। हमारी अरूणाचल और J & K की सडकें कोई संतोषकारक नहीं है। (है भी नहीं)।१९६२ में चीनके आक्रमण ने भी हमें जगाया नहीं है।
    (२) सीमापार निकट के देशों पर हमारा दबाव/प्रभाव आवश्यक होता है। हमारा पाक और बंगलापर क्या प्रभाव है? नेपालपर भी खास नहीं। तिब्बतपर तो हमने चीनको मनमानी करनेकी अनुमति दे दी है। दलाई को आश्रय दिया है, बस ।
    (३) पडौसी देशोंसे संबंध। पाक बंगला आप जानते हैं।
    (४) विश्व शक्तियोंसे संबंध: चीन छिपा हुआ शत्रु है। अमरिका उदासीन, रशिया से ,कोई फर्क नहीं पडता।
    (५) अपनी विश्व शक्ति के रूपमें प्रस्थापना। { अपने मनमें मानने से कुछ नहीं होगा।} [ हम regional power भी है, क्या?]
    (६) सुदूर के प्रदेशोमें अपने अड्डे स्थापित करना। और अन्य देशोंपर निगरानी करना।{ कहीं भी हमारी धाक नहीं} हम पर चीन निगरानी कर रहा है।
    (७) समुद्री सत्ता या वर्चस्व? {कहीं भी नहीं }
    जो पाठक पुस्तकें पढते हैं, अनुरोध है=> कि पण्णीकरकी, भारतीय विद्या भवन प्रकाशित “समुद्री सत्ता “पर की पुस्तक पढे। और “Politics Among Nations” by Morganthau पढें।

  3. चेतावनी:
    अग्निहोत्री जी एक भयजनक सच्चाई को उजागर करने के धन्यवाद।
    एक अतीव महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना के कारण, और सामरिक तकनिकी अन्वेषणोंके कारण, जो परिस्थिति बदली है, उस दृष्टिसे हमारी विदेश नीति को पुनर्गठित किया जाना चाहिए था, जो नहीं हुआ है।(भयानक भूल है यह)
    कारण (१) हिमालय आज लांघना संभव हुआ है।
    कारण (२)और, हिमालय के इधरकी ओर हमने दो शत्रु अपनी (बडे भाई बन कर) उदारता से खडे कर दिए हैं।
    परिणाम था=>(३) हमारी सदियोंपुरानी वैश्विक सोच, जो अलंघ्य हिमालय, और हिमालयसे दक्षिणमें कोई विशेष शत्रु ना होनेसे हमें अत्यंत सहिष्णु बना चुकी थी।
    परंतु (४) ** आज भी हम सदियों पुरानी रट्टामार सहिष्णुता से विचार करते हैं, जब कि परिस्थिति बदली हुयी है** पहले हिमालय अलंघ्य था, पूरब, पश्चिम, दक्षिण में सागर और उत्तरमें हिमालय हमारी रक्षा करता था। इसके कारण भारत बहुतांशमें अभेद्य था। इसी कारण से हम अति उदार बन चुके थे,अब ऐसा नहीं है। इस लिए हमारी सोचमें और हमारी सुरक्षा नीति में भी आमूल चूल परिवर्तन आवश्यक है। अब शत्रु हिमालयसे इधरकी ओर है। हिमालय भी अभेद्य नहीं है।आधुनिक शस्त्रास्त्र, चीन ने बनाई हुयी सडकें, और हवाई आक्रमण की संभावनाएं, एवं देशमे ही, चीनसे सहानुभूति रखनेवाले, और पाकीस्तानकी चीनसे मिलकर बदला लेनेकी भावना, ऐसी परिस्थितिमें हम सुरक्षित नहीं है। ===पॉलिसी में आमूल चूल बदलाव की आवश्यकता है।==और रट्टामार सहिष्णुता का त्याग करना होगा।
    साधारण आदमी अच्छा हो सकता है, इसका कोई अंतर नहीं पडता। निर्णायक तो शासन होता है। आंख पर की पट्टी खोलने की आवश्यकता है।

  4. एक कविता में कहा गया है —
    कोयल की डोली जब गिद्धों के घर आ जाती है,
    तो बगुला भक्तों की टोली हंसों को खा जाती है।
    जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है,
    तो मां की अर्थी भी बेटों को भारी लगने लगती है।
    जिनके होठों पर सिग्रेट पेटों में दारू बहती है,
    वो पाखंडी पीढ़ी खुद को बुद्धिजीवी कहती है।
    जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है,
    तो केवल चुल्लूभर पानी सागर होने लगते है।
    सिंहों को म्याऊ कह दे क्या यह ताकत बिल्ली में है,
    बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है।

  5. ek roopak yad aya — ek baar ek memne ne bhi socha ki chalo sher ki kha odhkar logo ko darayen .usne aisa hi kiya lekin jangal men jb use apne snagi sathi yaad aaye to aavaj nikali or whi uski original mimyahat.so sher cheeton ne pahchaan liya or faad dala .maar dala -kha gaye .kahin aap bhi apne hi deshvashiyon ko marwane ki to planing nah i kar rahe .

    • आदरणीय तिवारी जी, धन्यवाद. आपने बहुत अच्छा रूपक दिया है. धन्यवाद. अगर आप रोमन हिंदी की जगह हिंदी में या अंग्रेजी में लिखते तो कुछ ज्यादा लोग पढ़ते और टिपण्णी करते. Download EPIC explorer, it is 10 mb सॉफ्टवेर (inbuilt IME), very useful in writing in Hindi and regional languages.

      माफ़ी चाहता हूँ की आपकी बात का मतलब समझ नहीं आया, या यह कहे की समझने में दिक्कत हो रही है. आप कह रहे है की **kahin aap bhi apne hi deshvashiyon ko marwane ki to planing nah i kar rahe **. महोदय क्या इसका मतलब विस्तार से समझाने का कष्ट करेंगे. क्योंकि यहाँ डॉ. श्री अग्निहोत्री जी पर ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान पर आपने प्रशन चिन्ह लगा दिया है.

      इसका मतलब है की हम चीते को देख कर शुतुरमुर्ग की तरह अपने सर रेत में छुपा ले. क्या इससे हम बच जायेंगे. क्या चाइना अपनी कूटनीति, चालाकी, अपना कपटीपन छोड़ देगा. क्या लाखो जवान जो सीमाओं पर तैनात हैं और अपनी जान की बाजी लगा कर देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे है सब बेकार है. क्या वे वहां से हट जाय तो भी हम चाइना से सुरक्षित रह पाएंगे.

      हर व्यक्ति अपना अपना कर्म करता है. सेना अपना काम कर रही है. जवान अपना फर्ज निभा रहे है. नीतिकार अपना कार्य कर रहे है. वैचारिक लेखक अपने जज्वात व्यक्त कर रहे है, लोगो को जगा रहे है. यह कार्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सीमा पर तैनात जवान का, जवान के लिए खाना बनाने वाले जवान का कार्य, जवान तक रसद, राशन, दवाई पहुचना वाले का कार्य, जवान को आदेश देने वाले अधिकारी का कार्य, देश में चिठ्ठी बाटने वाले का कार्य आदि. हर व्यक्ति का कार्य बंटा हुआ है. जरुरत है हर व्यक्ति को अपना अपना कर्तव्य इमानदार से पूरा करने की.

      आज सभी देश जानते है की सभी के पास आवनिक हतियार है. कोई भी जो शीशे के घर में रहता है दुसरो के घर पर पत्थर नहीं मारता है. न पाकिस्तान, न चीन, किसी देश में इतनी हिम्मत नहीं की हम पर प्रत्यक्ष हमला करे, क्योंकि जवावी हमला तीसरा विश्वयुद्ध (अंतिम युद्ध) भी बन सकता है. चीन परिक्ष युद्ध कर रहा है. उसने सस्ता से सस्ता सामान पूरी दुनिया में बेच कर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है और अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत कर ली है. हमारे देश का बहतु व्यापार ख़त्म कर दिया है अपने सस्ते सामान से. हर जगह अपनी पैठ बनाते जा रहा है. हर देश येही करता है. हम नहीं करते है, हमारे सिद्धान्त है.

      अगर ऐसे में हम उससे सतर्क नहीं हुए तो हमारे बहतु बड़ा नुक्सान हो जायेगा. रस्ते में साप दीखता है तो जरुरी नहीं की वोह हमें डसेगा. हम रस्ते में रुक जाते है, रास्ता बदल लेते है. बलशाली हाथी भी रास्ता बदल लेते है. कारन हम कमजोर नहीं बल्कि सतर्कता है. आज हम चाइना से मुकाबले के लिए अपने देशवासियों को आगाह कर रहे है तो क्या गलत है. वोह परोक्ष युद्ध कर रहा है तो हमे भी अपने को मजबूत बनाना चाइये. कम से कम लोग जागरूक तो हो. लोगो को पता तो चले. १९६२ की शर्मनाक हार का कारण क्या था. क्या हमारी सेना कमजोर थी, बिलकुल नहीं. क्या हमारे सैनिक उन चार फूटे चीनियों से कमजोर थे, बिलकुल नहीं. गलती थी तो राजनैतिक जिससे हमारी भयानक पराजय हुई. सेना को सरकार से कोई स्पस्ट निर्देश नहीं थे. जवान मर रहे थे, सरकार वोट का खेल रही थी.

      श्री अग्निहोत्री जी का मतलब यह कटाई नहीं की हम उससे सीधी लड़ाई करे बल्कि हमें उसी की भाषा में जवाब देना होगा. पहले हमें उसे चेताना होगा की वोह अपनी हद में रहे. अरुणाचल हमारा अभिन्न अंग है और भारत कश्मीर वाली भूल भविष्य में नहीं दोहराएगा. हमरी सेना को अत्याधुनिक हतियार देना होगा. सभी जगह फैला भ्रष्टाचार हर मोर्चे से ख़त्म करना होगा. सरकार में लाल फीताशाही ख़त्म करनी होगा. तकनीक पर ज्यादा ज्यादा ध्यान देना होगा ताकि यह घरेलु उद्योग बन सके न की पूंजीपति घरानों की मिलियत ही बना रहे. ……….

      आदरणीय तिवारी जी इसे अन्यथा न लीजिये. आप ज्ञानी है, विद्वान है, पितृ तुल्य है. इस लेख में या लेख की टिपण्णी में हिंसा का समर्थन नहीं किया गया है. देश के सन्दर्भ में नकारात्मक टिपण्णी ने मुझे लिखने के लिए बाध्य किया है. छमाप्रार्थी हूँ.

    • आदरणीय तिवारी जी, धन्यवाद. आपने बहुत अच्छा रूपक दिया है. धन्यवाद. अगर आप रोमन हिंदी की जगह हिंदी में या अंग्रेजी में लिखते तो कुछ ज्यादा लोग पढ़ते और टिपण्णी करते. Download EPIC explorer, it is 10 mb सॉफ्टवेर (inbuilt IME), very useful in writing in Hindi and regional languages.

      माफ़ी चाहता हूँ की आपकी बात का मतलब समझ नहीं आया, या यह कहे की समझने में दिक्कत हो रही है. आप कह रहे है की **kahin aap bhi apne hi deshvashiyon ko marwane ki to planing nah i kar rahe **. महोदय क्या इसका मतलब विस्तार से समझाने का कष्ट करेंगे. क्योंकि यहाँ डॉ. श्री अग्निहोत्री जी पर ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान पर आपने प्रशन चिन्ह लगा दिया है.

      इसका मतलब है की हम चीते को देख कर शुतुरमुर्ग की तरह अपने सर रेत में छुपा ले. क्या इससे हम बच जायेंगे. क्या चाइना अपनी कूटनीति, चालाकी, अपना कपटीपन छोड़ देगा. क्या लाखो जवान जो सीमाओं पर तैनात हैं और अपनी जान की बाजी लगा कर देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे है सब बेकार है. क्या वे वहां से हट जाय तो भी हम चाइना से सुरक्षित रह पाएंगे.

      हर व्यक्ति अपना अपना कर्म करता है. सेना अपना काम कर रही है. जवान अपना फर्ज निभा रहे है. नीतिकार अपना कार्य कर रहे है. वैचारिक लेखक अपने जज्वात व्यक्त कर रहे है, लोगो को जगा रहे है. यह कार्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सीमा पर तैनात जवान का, जवान के लिए खाना बनाने वाले जवान का कार्य, जवान तक रसद, राशन, दवाई पहुचना वाले का कार्य, जवान को आदेश देने वाले अधिकारी का कार्य, देश में चिठ्ठी बाटने वाले का कार्य आदि. हर व्यक्ति का कार्य बंटा हुआ है. जरुरत है हर व्यक्ति को अपना अपना कर्तव्य इमानदार से पूरा करने की.

      आज सभी देश जानते है की सभी के पास आवनिक हतियार है. कोई भी जो शीशे के घर में रहता है दुसरो के घर पर पत्थर नहीं मारता है. न पाकिस्तान, न चीन, किसी देश में इतनी हिम्मत नहीं की हम पर प्रत्यक्ष हमला करे, क्योंकि जवावी हमला तीसरा विश्वयुद्ध (अंतिम युद्ध) भी बन सकता है. चीन परिक्ष युद्ध कर रहा है. उसने सस्ता से सस्ता सामान पूरी दुनिया में बेच कर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है और अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत कर ली है. हमारे देश का बहतु व्यापार ख़त्म कर दिया है अपने सस्ते सामान से. हर जगह अपनी पैठ बनाते जा रहा है. हर देश येही करता है. हम नहीं करते है, हमारे सिद्धान्त है.

      अगर ऐसे में हम उससे सतर्क नहीं हुए तो हमारे बहतु बड़ा नुक्सान हो जायेगा. रस्ते में साप दीखता है तो जरुरी नहीं की वोह हमें डसेगा. हम रस्ते में रुक जाते है, रास्ता बदल लेते है. बलशाली हाथी भी रास्ता बदल लेते है. कारन हम कमजोर नहीं बल्कि सतर्कता है. आज हम चाइना से मुकाबले के लिए अपने देशवासियों को आगाह कर रहे है तो क्या गलत है. वोह परोक्ष युद्ध कर रहा है तो हमे भी अपने को मजबूत बनाना चाइये. कम से कम लोग जागरूक तो हो. लोगो को पता तो चले. १९६२ की शर्मनाक हार का कारण क्या था. क्या हमारी सेना कमजोर थी, बिलकुल नहीं. क्या हमारे सैनिक उन चार फूटे चीनियों से कमजोर थे, बिलकुल नहीं. गलती थी तो राजनैतिक जिससे हमारी भयानक पराजय हुई. सेना को सरकार से कोई स्पस्ट निर्देश नहीं थे. जवान मर रहे थे, सरकार वोट का खेल रही थी.

      श्री अग्निहोत्री जी का मतलब यह कटाई नहीं की हम उससे सीधी लड़ाई करे बल्कि हमें उसी की भाषा में जवाब देना होगा. पहले हमें उसे चेताना होगा की वोह अपनी हद में रहे. अरुणाचल हमारा अभिन्न अंग है और भारत कश्मीर वाली भूल भविष्य में नहीं दोहराएगा. हमरी सेना को अत्याधुनिक हतियार देना होगा. सभी जगह फैला भ्रष्टाचार हर मोर्चे से ख़त्म करना होगा. सरकार में लाल फीताशाही ख़त्म करनी होगा. तकनीक पर ज्यादा ज्यादा ध्यान देना होगा ताकि यह घरेलु उद्योग बन सके न की पूंजीपति घरानों की मिलियत ही बना रहे. ……….

      आदरणीय तिवारी जी इसे अन्यथा न लीजिये. आप ज्ञानी है, विद्वान है, पितृ तुल्य है. आपकी टिपण्णी पढता हूँ, सारगर्भारित होती है. ज्ञान मिलता है. इस लेख में या लेख की टिपण्णी में हिंसा का समर्थन नहीं किया गया है. देश के सन्दर्भ में नकारात्मक टिपण्णी ने मुझे लिखने के लिए बाध्य किया है. छमाप्रार्थी हूँ.

    • AP Jeise Chin Parast log hi Bharatiyon ke man mein bhay ka vatabaran paida kar Apne aka Chin ko khush rakhna chahte hain. Prasidh Chintak Dr Ram manohar Lohia se kisine prashn puchha tha ki kya Bharat Chin se apni jamin chhuda paega aut Kya kabhi Tibet azad ho paega to Unhone kaha tha ji Delihi ki raj singhasan par hamesha napunshkon ka raj nahin rahega > Aur Us din Bharat apni jamin chhudwa lega. Halanki ap nahin chahte hain . Ap Yah chahte hain ki apka ghar par bhi chinion ka kabza ho jae. Ismein mujhe koi tazub nahin hain . Kyonki Chin dwara hamle ke samay kolkata ke sadkon par chiner chairman , amader chairman yani CHIN KA CHAIRMAN- HAMARA CHAIRMAN ke nare lagate hue Communiston ko pure desh ne dekha hai . Isliye mujhe ismein koi ascharya nahin hai .

    • तिवारी जी शर्म आती है मुझे इस बात पर कि आप जैसे व्यक्ति हमारे देश में हैं. क्षमा करें आप उम्र में बहुत बड़े हैं किन्तु दिमाग से उतने ही छोटे भी. आप एक काम कीजिए चीन में जा कर बस जाइए हमारे देश को बरबाद करना छोड़ दीजिये. अपनी विदेशी सोच को अपने तक ही सीमित रखें हम पर थोपने की कोशिश न करें.
      आप क्या चाहते हैं की भारत नपुंसकों और नामर्दों का देश बन जाए. एक भला व्यक्ति अगर सोये हुए समाज को जगाना चाहता है तो आप जैसे लोग अपने घटिया कुतर्कों से उसे निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं. चीन के विरोध में कोई एक शब्द भी अपने लेख में लिखे तो आप बौखला उठते हैं ऐसा मैंने आपकी टिप्पणियों को पढ़ कर देखा है.

      अब आप मुझे एक बात बताइये अगर कोई साधे छ: फुट लम्बा,हष्ट पुष्ट तगड़ा पहलवान मुझ जैसे शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति माँ पर बुरी नज़र डाले तो क्या मुझे चुप बैठना चाहिए. भले में उससे कमज़ोर हूँ? किन्तु अपनी पूरी ताकत लगा दूंगा उसे मारने में. किन्तु आप की राय है कि उस समय हम चुप चाप बैठे रहें कि आओ लूट लो हमारी माँ बहन की इज्जत. मार दो हमारे बाप और भाइयों को,लूट लो हमारे घर को. शर्म आणि चाहिए आप को तिवारी जी अपनी घटिया सोच पर विचार करें. मूंह खोलने से पहले दस बार सोच लिया करें. हम नामर्द नहीं हैं, चीन को जवाब देना हमें आता है. आप जैसे बुजुर्गों के बस में न हो तो देश का जवान अभी मारा नहीं है.अपना खून बहाने को वह तैयार है.

  6. dushman ko parast karna hai jarur karenge .usne jo jameen hathiyai hai lekar rahenge .seemaon par jb sipahi ladne jaye to use haath men dhang ki bandook bhi nahi dete .cheen shaandar olampik karaya saaree dunia aaj tk chakit hai .kyon?hm coomon welth karane men desh ki ijjat neelam kar rahe hain khelgaon ka pul kal toota parso dilli men bisfot ho gaye akele netaon ko gali dene ya pravakta .com par gyan bagharkar cheen ka kya ukhad loge ?wo hame 60 saal se beijjat kar raha hai kyon ?uske pass itni taakat kahan se aai ?jbki wo hmse baad men aajaad hua tha ?aap to itne nadan nahin jo sachaai ka bayan na karen .cheen ko parast karne ke liye bharat men bhrushtachar -rishwat karne par goli maarne ka kaanoon jis din ban jaayega bharat saree dunia men number -1 ho jayega ,cheen ki okat nahin ki bharat se lad sake .kintu desh ke andar ki baat par kuchh nalayk kahten hain ye baat mat karo .bombey men hamare darjno javanon ko taj hotel or shivaji terminal par paakistani aatankwadiyon ne maar dala tha kyon ?kyonki sabhi jaket nakli thi .haramjade thekedaron .kameeshankhoron ne nakli bulet proof jeket sarv ki thi .isi trh jb bhi hmari senaye cheen ya pakistan se ladtee hain to satoriye .munafakhor milavatiye jamakhor ekjut hokar desh ko parajit kara dete hain kyoki hamare desh men rishwat bhrshtachar ko sajaye mout se nahin joda gaya .jbki cheen men yh kanoon hai .

  7. आदरणीय श्री अग्निहोत्री जी. आप समय समय पर चीन की कुटिल चाल से हम सभी को सचेत करते रहते है. आप की चिंता बिलकुल जायज है. काश हमारी सरकार, हमारे नेता भी आपकी तरह इस इस चिंता को गंभीरता से लेते तो वाकई कोई ठोस उठाय जा सकते थे.

    वाकई चीन लोमड़ी की तरह चालक है, सियार की तरह कुटिल और लकड़बग्गा की तरह शातिर है. वोह हर तरह की नीतियाँ अपना रहा है और हमारी सरकार है की उसने १९६२ के युद्ध के दस्तावेज अभी तक सार्वजानिक नहीं किये. लोगो को चीन के bare me नहीं bataya, aakhir हमारा खून में कहाँ से उबाल आएगा.

    फिर भी hameri sena puri तरह से taiyaar है. हमारे देश का हर नौजवान इन चार फूटे चीनियों को पटक पटक कर मरेगा अगर इस बार उन्होंने १९६२ की हरकत दुहराने की गलती की.

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