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चित्रा, विशाखा, फाल्गुनी….. नक्षत्रों का शब्द गुंजन

teaherॐ–नक्षत्रों की अवधारणा भारत की देन

ॐ –विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता

ॐ –नक्षत्रों के काव्यमय सुंदर नाम

 

(एक)गुजराती विश्वकोश

गुजराती विश्वकोश कहता है, कि,”नक्षत्रों की अवधारणा भारत छोडकर किसी अन्य देश में नहीं थी। यह, अवधारणा हमारे पुरखों की अंतरिक्षी वैचारिक उडान की परिचायक है, नक्षत्रों का नामकरण भी पुरखों की कवि कल्पना का और सौंदर्य-दृष्टि का प्रमाण है।महीनों के नामकरण में, उनकी अंतरिक्ष-लक्ष्यी मानसिकता का आभास मिलता है।

(दो) अंतरिक्षी दृष्टि, या वैचारिक उडान?

तनिक अनुमान कीजिए; कि, समस्या क्या थी? आप क्या करते यदि उनकी जगह होते ?भारी अचरज है मुझे, कि पुरखों को, कहाँ, तो बोले इस धरती पर काल गणना के लिए, महीनों का नाम-करण करना था। तो उन्हों ने क्या किया? कोई सुझाव देता; कि, इस में कौनसी बडी समस्या थी ?रख देते ऐसे महीनों के नाम, किसी देवी देवता के नामपर, या किसी नेता के नामपर,जैसे आजकल गलियों के नाम दिए जाते हैं।

(तीन)विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता।

पर जिस, विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता का परिचय हमारे पुरखों ने बार बार दिया, उस पर जब, सोचता हूँ, तो विभोर हो उठता हूँ। ऐसी सर्वग्राही विशाल दृष्टि किस दिव्य प्रेरणा से ऊर्जा प्राप्त करती होगी?

जब भोर,सबेरे जग ही रहा था, तो मस्तिष्क में ऐसे ही विचार मँडरा रहे थे। और जैसे जैसे सोचता था, पँखुडियाँ खुल रही थी, सौंदर्य की छटाएँ बिखेर रही थी, जैसे किसी फूल की सुरभी मँडराती है, फैलती है। हमारे पुरखों ने इस सूर्योदय के पूर्व के समय (दो दण्ड) को ब्राह्म-मुहूर्त क्यों कहा होगा, यह भी समझ में आ रहा था।

पर एक वैज्ञानिक समस्या को सुलझाने में हमारे पुरखों ने जो विशाल अंतरिक्षी उडान का परिचय दिया, उसे जानने पर मैं दंग रह गया। और फिर ऐसे, वैज्ञानिक विषय में भी कैसा काव्यमय शब्द गुञ्जन? यह करने की क्षमता केवल देववाणी संस्कृत में ही हो सकती है। आलेख को ध्यान से पढें, आप मुझसे सहमत होंगे, ऐसी आशा करता हूँ। ऐसे आलेख को क्या नाम दिया जाए?

(चार) काव्यमय शब्द-गुंजन ?

क्या नाम दूँ, इस आलेख को। शब्द गुंजन, पुरखों की ब्रह्माण्डीय चिंतन वृत्ति, उनकी आकाशी छल्लांग, या उनकी अंतरिक्षी दृष्टि? वास्तव में इस आलेख को, इसमें से कोई भी नाम दिया जा सकता है। पर मुझे शब्द गुञ्जन ही जचता है। चित्रा, विशाखा, फल्गुनी जैसे नाम देनेवालों की काव्यप्रतिभा के विषय में मुझे कोई संदेह नहीं है।

(पाँच) नक्षत्रों के काव्यमय मनोरंजक नाम

तनिक सारे नक्षत्रों के नाम भी यदि देख लें, तो आपको इसी बात की पुष्टि मिल जाएगी।कैसे कैसे काव्य मय नाम रखे गए हैं?

(१) अश्विनी,(२) भरणी, (३) कृत्तिका, (४) रोहिणी, (५) मृगशीर्ष (६) आर्द्रा, (७) पुनर्वसु (८) पुष्य, (९) अश्लेषा (१०) मघा, (११)पूर्वाफल्गुनी, (१२) उत्तराफल्गुनी, (१३)हस्त, (१४) चित्रा,(१५) स्वाति, (१६) विशाखा, (१७)अनुराधा, (१८) ज्येष्ठा,(१९) मूल, (२०) पूर्वाषाढा,(२१)उत्तराषाढा, (२२) श्रवण, (२३) घनिष्ठा, (२४) शततारा, (२५) पूर्वाभाद्रपदा,(२६) उत्तराभाद्रपदा, (२७) रेवती, और वास्तव में (२८) अभिजित नामक एक नक्षत्र और भी होता है।

इन नक्षत्रों के सुन्दर नामों का उपयोग भारतीय बाल बालिकाओं के नामकरण के लिए होना भी, इसी सच्चाई का प्रमाण ही है।

विशेषतः अश्विनी, कृत्तिका, रोहिणी, वसु, फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, घनिष्ठा, रेवती ऐसे बालाओं के नाम आपने सुने होंगे।और अश्विन, कार्तिक, श्रवण, अभिजित इत्यादि बालकों के नाम भी जानते होंगे।

ऐसे शुद्ध संस्कृत नक्षत्रों के नामों को और उनपर आधारित महीनों के नामों को पढता हूँ, तो, निम्नांकित द्रष्टा योगी अरविंद का कथन शत प्रतिशत सटीक लगता है।

(छः) योगी अरविंद :

“संस्कृत अकेली ही, उज्ज्वलाति-उज्ज्वल है, पूर्णाति-पूर्ण है, आश्चर्यकारक है, पर्याप्त है, अनुपम है, साहित्यिक है, मानव का अद्भुत आविष्कार है; साथ साथ गौरवदायिनी है, माधुर्य से छलकती भाषा है, लचिली है, बलवती है, असंदिग्ध रचना क्षमता वाली है,पूर्ण गुंजन युक्त उच्चारण वाली है, और सूक्ष्म भाव व्यक्त करने की क्षमता रखती है।”

 

क्या क्या विशेषणों का, प्रयोग, किया है महर्षि नें?माधुर्य से छलकती, और पूर्ण गुंजन युक्त? कह लेने दीजिए मुझे, कोई माने या न माने, पर मैं मानता हूँ, कि सारे विश्व में आज तक ऐसी कोई और भाषा मुझे नहीं मिली।

दंभी उदारता, ओढकर अपने मस्तिष्क को खुला छोडना नहीं चाहता कि संसार फिर उसमें कचरा कूडा फेंक कर दूषित कर दे। हमारे मस्तिष्कों को बहुत दूषित और भ्रमित करके चला गया है, अंग्रेज़।

मूढः पर प्रत्ययनेय बुद्धिः, सारे, भारत में भरे पडे हैं। एक ढूंढो हज़ार मिलेंगे।

 

(सात) नक्षत्र’ शब्द की व्युत्पत्ति।

’नक्षत्र’ शब्द को तोड कर देखिए ।यह “न”+”क्षत्र” = “नक्षत्र” ऐसा जुडा हुआ संयुक्त शब्द है। “न” का अर्थ (नहीं) + क्षत्र का अर्थ “(नाश हो ऐसा) तो, नक्षत्र शब्द का, अर्थ हुआ “जिसका नाश न हो” ऐसा। वाह ! वाह ! क्या बात है? अब सोचिए (१) हमारे पुरखों को पता था, कि, इन तारकपुंजों का जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है, नाश नहीं होता। वास्तव में यह विधान (Relative) सापेक्ष है, फिर भी सत्य है।

(आँठ)भगवान कृष्ण

मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ।।१०-३५।(गीता)

भगवान कृष्ण -गीता में कहते हैं, कि, महीनों में मैं मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसन्त हूँ।

तो मार्गशीर्ष यह शब्द शुद्ध संस्कृत है। इसका संबंध कहीं लातिनी या ग्रीक से नहीं है। न तब लातिनी थी, न ग्रीक। कृष्ण जन्म ईसापूर्व कम से कम, ३२२८ में १८ जुलाई को ३२२८ खगोल गणित से प्रमाणित हुआ है। इन ग्रह-तारों की गति भी घडी की भाँति ही होती है। बार बार ग्रह उसी प्रकार की स्थिति पुनः पुनः आती रहती है। अंग्रेज़ी में इसे सायक्लिक कहते हैं, हिंदी में पुनरावर्ती या चक्रीय गति कहा जा सकता है।भगवद्गीता में इस शब्द का होना बतलाता है, कि महाभारत के पहले भी मार्गशीर्ष शब्द का प्रयोग रहा होगा। कहा जा सकता है, कि,महीनों के नाम उस के पहले भी, चलन में होने चाहिए।

अब मार्गशीर्ष शब्द मृग-शीर्ष से निकला हुआ है। मृग-शीर्ष का अर्थ होता है, मृग का शिर या हिरन का सिर।

तो मृग-शीर्ष: एक नक्षत्र है। पर वह, मृग की बडी आकृति का एक भाग है।

(नौ) मृग नक्षत्र

एक मृग (हिरन) नक्षत्र है, और इस नक्षत्र में कुल १३ ताराओं का पुंज है।मृग नक्षत्र में चार ताराओं का चतुष्कोण बनता है, जो मृग (हिरन)के चार पैर समझे जाते हैं। इन चार ताराओं के उत्तर में तीन धुंधले तारे हैं, जो (हिरन) मृग का सिर है। दक्षिण की ओर के दो पैरों के बीच, तीन ताराओं की पूंछ है।पेट में, व्याध(शिकारी) ने सरल रेखा में, मारा हुआ एक तीर है। इस तीर के पीछे प्रायः सीधी रेखामें एक चमकिला व्याध (शिकारी) का तारा है।इस नक्षत्र का सिर हिरन के सिर जैसा होने के कारण इसे मृग शीर्ष कहा गया।

 

(दस)मार्गशीर्ष

पूनम का चंद्र इस नक्षत्र से युक्त होने के कारण उस महीने का नाम मार्गशीर्ष हुआ।

बालकों को चित्र बनाते आपने देखा होगा। वें क्रमानुसार बिंदुओं को रेखा ओं से, जोड जोडकर देखते देखते चित्र उभर आता है, यह आपने अवश्य देखा होगा। हाथी, घोडा, हिरन, इत्यादि चित्र बालक ऐसे क्रमानुसार बिंदुओं को जोडकर बना लेते हैं। कुछ उसी प्रकार से तारा बिन्दुओं को जोडकर जो आकृतियाँ बनती हैं, उनके नामसे नक्षत्रों की पहचान होती है।

(ग्यारह) महीनों के नाम

पूनम की रात को चंद्र जिस नक्षत्र से युक्त हो, उस नक्षत्र के नाम से उस महीने का नाम रखा गया है।

चित्रा में चंद्र हो तो चैत्र, विशाखामें चंद्र हो तो वैशाख, ज्येष्ठा में चंद्र हो तो ज्येष्ठ, पूर्वाषाढा में चंद्र हो तो अषाढ, श्रवण में चंद्र हो तो श्रावण, पूर्वाभाद्रपद में चंद्र हो तो भाद्रपद, अश्विनी में चंद्र हो तो अश्विन ऐसे नाम दिए गए। कृत्तिका में चंद्र हो तो कार्तिक, मृगशीर्ष में चंद्र हो तो मार्गशीर्ष, पुष्य में चंद्र हो तो पौष,मघा में चंद्र हो तो माघ, पूर्वा फाल्गुनी में चंद्र हो तो फाल्गुन ऐसे बारह महीनों के नाम रखे गए हैं।

प्रत्येक माह में विशेष नक्षत्र संध्या के समय ऊगते हैं। और भोर में अस्त हुआ करते हैं।

(बारह) महीनों के नक्षत्र और आकृतियाँ:

चित्रा –मोती के समान, विशाखा –तोरण के समान, ज्येष्ठा -कुंडल के समान, पूर्वाषाढा – -हाथी के दाँत के समान, श्रवण —वामन के ३ चरण के समान, पूर्वाभाद्रपद -मंच के समान, अश्वनी — अश्वमुख के समान, कृत्तिका —छुरे के समान, मृगशिरा–हिरन सिर , पुष्य —वन के समान , मघा —भवन, पूर्व-फाल्गुनी -चारपाई के समान

 

—-ऐसे पुरखों का ऋण हम परम्परा टिका कर ही चुका सकते हैं।