हमारे देश में मानसून या यूं कहें कि बारिश का मौसम लगभग जून से सितंबर तक रहता है और इस अवधि के दौरान देश के ज्यादातर हिस्सों में बारिश होती है।यह आलेख लिखे जाने तक अभी भी मई माह का ही लगभग एक सप्ताह शेष बचा है। मतलब मानसून की देश में अभी शुरुआत भी नहीं हुई है।उत्तर भारत समेत देशभर के इलाकों में इन दिनों भीषण गर्मी का कहर जारी है।भीषण गर्मी में लोगों को मॉनसून(बारिश) का बेसब्री से इंतजार है और वर्तमान में हमारे यहां जल्द ही मॉनसून की दस्तक होने जा रही है। मौसम विभाग ने खुशखबरी दी है कि तीन से चार दिनों में मॉनसून केरल में एंट्री दे देगा। पाठकों को बताता चलूं कि आमतौर पर मॉनसून की केरल में आने की तारीख एक जून होती है, लेकिन इस बार समय से काफी पहले ही मॉनसून की झमाझम बारिश देखने को मिलने की संभावनाएं जताई जा रहीं हैं। देश में मानसून की ढंग से शुरूआत भी नहीं हुई कि देश के महानगरों का अभी से बारिश से बुरा हाल होने लगा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि महज़ कुछ घंटों की बारिश से महानगरों का हाल बुरा होने लगा है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार हाल ही में
20 मई को ही प्री-मानसून बारिश के बाद बेंगलुरु की सड़कें जलमग्न हो गईं और ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा हो गई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 19 मई और 20 मई को सुबह 8.30 बजे के बीच, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के बेंगलुरु सिटी स्टेशन पर 37.2 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि बेंगलुरु एचएएल एयरपोर्ट स्टेशन पर 46.5 मिमी बारिश दर्ज की गई। भारत की सिलिकॉन वैली कहलाने वाला बेंगलुरु फिलहाल भीषण गर्मी नहीं, बल्कि बारिश से त्रस्त है। बारिश से शहर जलमग्न हो गया और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। जानकारी के अनुसार वहां 5 लोगों की मौत हो गई और घर व निचले इलाके जलमग्न हो गए। जानकारी के अनुसार शहर की 20 से अधिक झीलें पानी से लबालब भरी हुई हैं। अंडरपास और फ्लाईओवरों पर पानी भर गया है, जिससे पूरे शहर का ट्रैफिक कई घंटों के लिए बाधित रहा। गाड़ियों की आवाजाही रुकी रही और कई इलाकों में सार्वजनिक बस सेवाएं ठप्प रहीं। न केवल सिलिकॉन वैली बेंगलुरु बल्कि मॉनसून से पहले ही मई में होने वाली बारिश ने महाराष्ट्र में भी हर तरफ पानी ही पानी कर दिया है। मुंबई और उसके आसपास के इलाके जैसे तालाब में तब्दील हो गए। पाठकों को बताता चलूं कि बारिश ने मुंबई की ड्रेनेज सिस्टम की एक बार फिर से पोल खोलकर रख दी है। मुंबई, पुणे और ठाणे का लगातार हुई बारिश से बुरा हाल हो गया। नवी मुंबई और ठाणे से कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिनमें सड़कों पर भरा पानी देखा जा सकता है।लोग गंदे पानी में घुसकर रास्ता पार करने को मजबूर हैं और कई इलाकों में लोग अपने घरों से पंप के सहारे पानी निकालते दिखे। पाठकों को बताता चलूं कि बेंगलुरु भारत का आइटी हब कहलाता है। यदि वहां पर ऐसे हालात हैं तो यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत के अन्य शहरों के हालात कैसे होने वाले हैं, जबकि अभी तो यह प्री-मानसून का ही सीजन है। असली मानसून आएगा तो कैसे हालात होंगे ? अगर हम यहां बेंगलुरु की ही बात करें तो आंकड़ों के मुताबिक यहां करीब 204 झीलें हैं, जिनमें से करीब 180 झीलें अतिक्रमण का दंश झेल रही हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि अतिक्रमण कहीं न कहीं बाढ़ जैसे हालातों को जन्म देता है। आज हमारे देश के लगभग लगभग शहरों में पानी की निकासी की सही व माकूल व्यवस्थाएं नहीं हैं। थोड़ा सा पानी बरसता है तो हमारी सड़कें, गलियां और मोहल्ले जलमग्न होने लगते हैं। आखिर हमारे देश के बड़े महानगरों और शहरों में जलभराव की समस्या क्यों जन्म लेतीं हैं? इसके पीछे कारण क्या हैं? तो यहां पाठकों को बताता चलूं कि आज देश की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है और पेड़-पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं। हमारे देश के बड़े महानगरों और शहरों में नित नई-नई इमारतों का निर्माण हो रहा है, लेकिन जल निकासी की नई व मजबूत व्यवस्था पर काम नहीं किया जा रहा है। आज जगह-जगह कंक्रीट की दीवारें खड़ी होने के चलते जमीन पानी नहीं सोख पा रही है। हमारे ड्रेनेज सिस्टम अक्सर ब्लॉक होते हैं। उनकी नियमित साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।पानी की प्रॉपर निकासी नहीं है। ज्यादातर छोटे-बड़े शहरों में बरसात के पानी की निकासी के लिए स्टॉर्म वॉटर ड्रेन (बरसाती नाले) बने हुए हैं। लेकिन जब ये बनाए जाते हैं, तब ये ठीक होते हैं और बाद में उनमें मिट्टी और कचरा भर जाता है।
कहना ग़लत नहीं होगा कि बारिश में सीवर ओवरफ्लो होते हैं, जिससे दूषित पानी गलियों और सड़कों में भर जाता है। यह विडंबना ही है कि आज टाउनशिप डेपलवमेट प्लानिंग में हम भविष्य और डेंसिटी दोनों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। सच तो यह है कि आज ठोस कचरे को बरसाती नालों में डाल दिया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज अवैध निर्माणों से बुनियादी ढांचे पर असर पड़ रहा है। हमारे यहां जल नियोजन व्यवस्थाएं ठीक नहीं हैं। हमारे यहां भूजल को रिचार्ज करने की व्यवस्थाएं भी ठीक नहीं हैं। क्रंकीट की दीवारें बारिश जल को सोख नहीं पातीं हैं। सच तो यह है कि कंक्रीट की लगातार फैलती परत (अनियंत्रित ऊंची इमारतों का निर्माण) प्राकृतिक बारिश को नहीं सोख पाता है और शहर जलमग्न होते हैं। अनियमित शहरीकरण के कारण और औधोगिकीकरण के कारण समस्याएं पैदा हो रहीं हैं। पहले के जमाने में नगर नियोजन बहुत बेहतर था, आज नहीं है। पाठकों को बताता चलूं कि सिंधु घाटी सभ्यता में, लोथल और धोलावीरा जैसे शहरों में व्यवस्थित शहरी नियोजन था। रोमवासियों ने भी अपने साम्राज्य में शहरों को समकोण पर सड़कों के साथ डिजाइन किया था, आज वैसी व्यवस्थाओं का नितांत अभाव सा हो गया है। शहर अव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ रहें हैं। इसके अलावा आज वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण भी बेमौसम बारिश हो रही है। वनों की अंधाधुंध और अनियोजित कटाई, शहरीकरण और प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियों से बेमौसम बारिश हो रही है। समय के साथ आज बारिश का पैटर्न भी पूरी तरह से बदल गया है। संक्षेप में कहें तो आज जलवायु परिवर्तन, गर्म महासागर, और हवा में नमी की मात्रा में वृद्धि अधिक बारिश के प्रमुख कारण बनकर सामने आ रहें हैं। इन कारणों से, वायुमंडल में अधिक पानी की वाष्प होती है, जिससे मूसलाधार बारिश और बाढ़ जैसी घटनाएं बढ़ जाती हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण और अनियोजित मानवीय गतिविधियों के कारण प्रकृति का संतुलन हमने बिगाड़ कर रख दिया है। शायद यही कारण भी है कि आज भारत के प्रमुख शहर- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता धीरे-धीरे बारिश में डूब रहे हैं। हमारा बुनियादी ढांचा आज अपंग सा हो चुका है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज मानसून आपदाओं की मूल समस्या अनियंत्रित शहरी जनसंख्या वृद्धि है। जलवायु परिवर्तन के कारण आज ग्लेशियर भी पिघलने लगे हैं।जल संसाधनों की इष्टतम उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए आज जल नियोजन बहुत जरूरी हो गया है, हमें चाहिए कि हम इस ओर ध्यान दें। आज जरूरत इस बात की है कि हम अनियमित, अनियोजित शहरीकरण और औधोगिकीकरण पर अंकुश लगाने की दिशा में जागरूक होकर काम करें। मानसून सीजन में बाढ़ के ख़तरों से निपटने के लिए एक प्रभावी और मजबूत रणनीति के साथ ही साथ बुनियादी ढांचे और समुदाय की भागीदारी की नितांत आवश्यकता है। योजनाओं का सही व सुचारू कार्यान्वयन होना चाहिए। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि जल नियोजन जल प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सुनील कुमार महला