छंगाजी की नाक

वैसे तो मुझे कटिंग कराने का कतई शौक नहीं है किंतु अच्छे खासे पुरुष को बेदर्द जमाने के लोग नारी की उपाधि से विभूषित न कर दें मैं साल में दो बार कटिंग करा ही लेता हूँ|मतलब छः महिने व्यतीत होते ही मुझे अपने केश कतरवाने जाना ही पड़ता है|मजबूरी यह है कि जैसे ही खिचड़ी बाल कानों को ढकने लगते हैं,हमारी श्रीमतीजी हुकमनामा जारी कर देती हैं”जाईये कटिंग करा के आईये,शर्म नहीं आती लड़कियों के समान बड़े बड़े बाल लटकाकर बागड़बिल्ला बने घूमते रह्ते हो|”मैं कहता हूं भाग्यवान इस देश में लोग एक दूसरे की कटिंग ही तो कर रहे हैं|नेता सत्ता की कैंची से सम्पूर्ण देश को काट रहा है,अफसर गोपनीय चरित्रावली के कतरने से अपने मातहत को काट रहा है,व्यापारी एक प्याली चाय पिलाकर ग्राहक की जेब काट रहा है और महिला रिसेप्शनिस्ट एक मोहक मुस्कान से धनवान आगन्तुकों का दिल ही काट लेती है|आदमी तो इतना कटना हो गया है कि थोड़ी सी कमजोर जगह मिली कि मुँह मार देता है|फिर भी तुम कटिंग कराने की बात करती हो|जहाँ संपूर्ण हिन्दुस्तान कटिंक‌ के पोलियो

से ग्रस्त है,तुम मेरे केशों के पीछे पड़ी रहती हो|क्या इतनी सारी कटिंग परियोजनाओं से तुम्हें संतुष्टि नहीं है?एक मोहक क्रोध युक्त मुस्कान फेककर वे मुझे घर से बाहर कर देतीं हैं|”जाईये कटिंग कराके आइये मुझे आपका भाषण नहीं सुनना|”

 

नाई के उस्तरे के डर से मैं कई संडे मिस कर देता हूं|कोई साधारण समय हो तो मैं कभी झूठ नहीं बोलता किंतु आपातकालीन स्थिति में झूठ बोलना पाप नहीं माना जाता और कटिंग कराना मेरे लिये सबसे कठिन आपातकाल होता है|मैं कभी श्रीमतीजी से कह देता हूं कि आज नाई की दुकान बंद थी

अथवा दुकान में बहुत भीड़ थी और कभी कह देता हूं कि संडे को कटिंग कराना अशुभ होता है|इस प्रकार दो तीन सप्ताह मैं निकाल ही देता हूं किंतु आखिर कब तक बकरी की अम्मा खैर मनायेगी|श्रीमतीजी वार्निंग दे देती हैं”आज जब तक कटिंग कराके नहीं आयेंगे आपको खाना नहीं मिलेगा”|संसार के कई अन्य लोगों की तरह मैं भी इस असार संसार में सिर्फ खाने के लिये जी रहा हूं और खानॆ में किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न न हो कटिंग कराना अनिवार्य हो जाता है| नाई की दुकान् छंगा जी कॆ मकान के ठीक सामने हैं छंगा जी हमारे शहऱ की नाक हैं अपनी नाक कई बार कटवा चुके हैं इसलिए जब भी दूसरो की नाक कटती हैं तो उन्हें बहुत आनंद आता है ,वे परमानंद को प्राप्त हो जाते हैं संसार में अभी तक जिन महत्त्व पूर्ण‌

लोगों की नाक कटी हैं उनमे से मैं सिफ दो लोगों को व्य‌क्तिग‌त‌

तौर‌ पर जानता हू एक रावण की बहिन शूर्पणखा को और दूसरे छंगाजी को|छंगाजी शादीशुदा पत्नि हबेहद नहीं तो हद के अंदर तक तो सुंदर है ही |

अच्छी और सुंदर बीवी मिलना सौभाग्य की निशानी है किंतु यदि बीवी एकाध बच्चे को दहेज के तौर पर साथ लेकर आये तो भाग्य कई गुना चमक जाता है|श्रीमती छंगाजी हीरोइन बनने के अरमान लेकर किसी तबलची के साथ वालीवुड चलीं गयीं थीं|परिश्रम के पटे पर जुगाड़् के खूब पापड़ बेले किंतु हायरी किस्मत,वे हीरोइन तो नहीं बन सकीं हां एक बच्चे की माँ जरूर बन गयीं|तबलची न जाने कहां गायब हो गया|इसी बीच उन्हें जनसेवी छंगाजी मिल गये जिन्होंनें अपनी नाक कटाकर श्रीमती छंगाजी की नाक बचाली |छंगाजी मेरे लिये प्रॆरणा स्त्रोत्र हैं| उन प्रात:स्मरणीय पूज्यपाद का स्मरण करते ही मेरे ठंडे जिस्म में जान आ जाती है|छंगाजी जब बिना हिचक एवं झिझक के अपनी नाक कटा लेते हैं तो मैं अपने बाल क्यों नहीं कटा सकता|छंगाजी शहर के गणमान्य हिंदुस्तानी हैं|शहर के तमाम सामाजिक,साहित्यिक राजनैतिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैं एवं अपनी कटी हुई नाक के कारण अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों में शुमार किये जाते हैं|हाँ तो बात नाई की हो रही थी|मैं उसकी दुकान मे जाता हूं तो वह बड़ी ही गर्म जोशी से मेरा स्वागत करता है|उस्तरा हाथ मे लेकर दुकान के बाहर तक मुझे लेने आता है,क‌टिंग चेयर पर मुझे बिठाता है,फिर

हथेली पर उस्तरा रगड़कर मेरी ओर देखकर मानो कहता है”बच्चू बचकर कहां जाओगे कटिंग करके ही छोड़ूगा |जागरूक नागरिकों ने तो देश के बंदरों के हाथ में ही उस्तरे दे रखे हैं और इन बंदरों को सामाजिक

बौद्धिक एवं संस्कारित लोगों के मुंडन के संपूर्ण अधिकार दे रखे हैं,मैं तो देश का सम्मानीय नाई हूं|

 

और मुझे कटिंग करने का उतना ही अधिकार है जितना कि स्वतंत्र भारत के नेताओं को देश के गरीब और निरीह जनता की|

नाई की मुख मुद्रा देखकर मै कांप जाता हू किन्तु छंगा जी के नाक कटाने का जीवन वृतांत स्मरण आते ही मैं कटिंग कुर्सी पर अपने छ: माह से संचित केश कुंतलो ‍‍‍‍‍‍को कतरवाने के लिए बैठ जाता हू और संपूर्ण रूप से अपने आप को उस्तराधिपति के हवाले कर देता हूं|

उस्तरा चमकाता हुआ,कैंची चलाता हुआ वह महाबली मेरे श्वेत श्याम केशों को ऐसे कतरने लगता है,जैसे

देश के राज नेता सत्य ईमान और नैतिकता के पर कतर रहे हो|नाई के चेहरे पर मुझे संपूर्ण हिंदुस्तान का अस्तित्व नज़र आने लगता है|कटिंग के बाद वह चंपी करता है और् राजनीति की बातें करते करते मेरी गर्दन को ऐसे झटका देता है कि मुझे दिन में ही तारे नज़र आने लगते हैं इतना बड़ा झटका तो चारा घुटालिस्टों ने बिहार की जनता को भी नहीं दिया होगा जितना कि मेरा केश कर्तनेश मुझे देता रहता है|मेरी ही लिखीं और अब तक अप्रकाशित एवं सम्पादक के अभिवादन एवं खेद सहित वापस प्राप्त पंक्तियाँ याद आ जाती हैं”लोग पागल और दीवाने इस तरह होने लगे,बंदरों के हाथ में ही उस्तरे देने लगॆ|

खैर नाई जब तक मेरे मुख मंडल से अठखेलियाँ करता रहता है,मैं छगा चालीसा पढ़ता रहता हूं|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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