कल आ जाइये

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एक सौ बीस करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश मे अगर कमी है तो बस आदमी की। विचित्र विडम्बना है, कि जिस देश की जनसंख्या इतनी अधिक है, लाखों लोग बेरोज़गार इधर उधर भटक रहे है वहाँ हर जगह यही सुनने को मिलता है आदमी नहीं हैं.. आपका काम हो जायेगा..बस कल आ जाइये या आज काम बहुत ज्यादा है आदमी कम हैं कल आजाइये। सच तो ये है कि आदमी भी हैं और समय भी बस उसका सदुपयोग करने वाले कम हैं।

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब,

पल मे परलय होयगी, बहुरि करैगो कब।

अब यदि परलय होनी ही है,तो आज या अब करने ही ज़रूरत ही कया है.. करते रहेगे धीरे धीरे.. इसलियें किसी बुद्धिजीवी ने इस दोहे को ही बदल डाला-

अभी करै सो कल कर,कल करै सो परसों,

जल्दी जल्दी क्यों करै, जीना है जब बरसों।

अब किसे कितना जीना है ये तो नहीं पता पर ये दोहा हमारे राष्ट्रीय चरित्र के सब से महत्वपूर्ण गुण टरकाते रहने का पूरी तरह बयान करता है।कोई काम तुरन्त मत करिये ,जितना टाल सकें टालये, सबके बीच मे बैठकर कहते रहिये कि आप बहुत व्यस्त हैं आपके अहम् को बहुत संतुष्टि मिलेगी। आपने तुरन्त कोई काम कर दिया तो लोग समझेंगे कि आपके पास कुछ काम ही नहीं है। आप कुर्सी पर बैठे हैं,सामने खड़े व्यक्ति को इधर उधर नचाने का लुत्फ़ लीजिये ,चाय पीते पीते फ़ोन पर बतियायिये, व्यस्तता का रो ना रोइये, सामने वाले को अनसुना अनदेखा करिये.. बड़ा मज़ा आयेगा ..बहुत ख़ुश रहेंगे आप।

स्कूल हो या कौलिज अस्पताल हो या दफ़्तर चांहें बाजा़र ही क्यों न हो ,टरकाते रहने के उदाहरण हर जगह देखने को मिल जायेंगे। दर्ज़ी को कपड़े सिलने दीजिये ,चार चक्कर कटवायेंगे फिर कहेंगे कि आदमी छुट्टी पर था, कल आजाइये पक्का, आपका काम हो जायेगा। कोई उपकरण ख़राब हो जाय तो उसको ठीक कराने मे तो पता नहीं कितने कल जायेंगे, कभी पुर्ज़ा नहीं होगा, कभी आदमी नहीं होगा, फिर उपकरण ठीक होकर कितने दिन चलेगा ये भी कहना मुश्किल है।

आपको ड्राइविंग लाइसैंस का नवीनीकरण कराना हो, टैलीफोन या बिजली का बिल जमा कराना हो और आपका काम बिना कल पर टरकाये एक बार मे हो जाय तो समझिये पिछले जन्म के अच्छे कर्मों का फल मिल रहा है। किसी दफ़्तर मे जाइये हरेक आदमी आपको किसी दूसरे के पास भेजेगा। शाम कहेंगे कि आपका काम राम करेंगे, राम कहेंगे कि उन्होने आपकी फ़इल मिसेज़ वर्मा के पास भेज दी है ,मिसेज वर्मा चौथी मंज़िल पर बैठती हैं, लिफ्ट भी काम नहीं कर रही, आप सीढ़ियाँ चढकर उनके सामने पहुँचे गे,वे किसी सहेली से गप्प लड़ा रही होंगी, आपकी ओर ध्यान क्यों देने लगीं, वो मेज़ के पीछे वाली कुर्सी पर हैं और आप याचक की तरह सामने खड़े है, उनको फ़ुर्सत मिलने का इंतज़ार तो करना ही पडेगा ,उन्हें जब फ़ुर्सत मिलेगी तब आपको अपनी राम कहानी एक बार फिर सुनानी पड़ेगी, काश आप पूरी कहानी टेप कर लाते तो इतना गला तो ना सूखता।अब आपके काग़ज़ात देखे जायेंगे ,फिर उनमे कोई कमी ढ़ूँढ़ी जायगी, आप किसी सर्टिफिकेट की फोटो कौपी दिखायेंगे तो असली सर्टिफिकेट माँगा जायेगा यदि वह आपके पास होगा तो भी कोई और नुख़्ता निकाल कर कहा जायेगा कल आजाइये आपका काम हो जायेगा। अगले दिन आप पहुंचेंगे तो मिसेज़ वर्मा छुट्टी पर होंगी, अब आपको मिसज़ शर्मा से काम करवाना पड़ेगा अब फ़िर वही सब दोहराना पड़ेगा, आपका कल कब आयेगा कहना कठिन है, पर हिम्मत रखिये आपका काम हो जायेगा।

अपने बच्चे को स्कूल मे प्रवेश दिलवाना हो तो आपके कई जूते प्रधानाचार्या घिसवा डालेंगी ,साल का यही समय है, जब उनका ओहदा बहुत बड़ा हो जाता है, शायद प्रधानमंत्री से भी बड़ा, तो क्यों न पूरा मज़ा लें। वह कुर्सी पर हैं और आप कतार मे.. लम्बी कतार मे, सब कुर्सी का कमाल है। इस समय तो उनके चपरासी का स्टूल भी बड़ी कुर्सी जैसा ही बन जाता है।

अगर बीमार हो गये, अस्पताल जाना पड़ा, फ़िज़ीशयन को दिखायेंगे पहले, वो कुछ जाँच लिखेंगे और कहेंगे कि सर्जन को भी दिखालें। कुछ और जाँच पड़ताल करके वह आवश्यकतानुसार शायद किसी सुपर स्पेशलिस्ट के पास भेज दें। अब रिपोर्ट इकट्ठी करते करते कितने कल और निकल जायें पता नहीं। इस बीच हो सकता है कि या तो आप ठीक हो जांये या परलोक सिधार जायें। यदि आप सरकारी अस्पताल के चक्कर काट रहे थे तो पूरी संभावना है कि वहाँ की गंदगी के कारण कोई नया रोग लेकर ही आय़ेगे। अगर प्राइवेट अस्पताल के चक्कर मे फंसे तो हो सकता है अगले कुछ महीनो तक दूध ,सब्जी और फल वगैरह के ख़र्च मे बड़ी कटौती करनी पड़े ,ऐसे मे कमज़ोरी और कुपोषण की वजह से कोई और बीमारी न आपको पकड़ले।

इन सब समस्याओं का एक ही हल है ,कि जब आप मेज़ के पीछे वाली कुर्सी पर बैठे हों तो सामने वाले का काम तुरन्त निबटाने की कोशिश करें। यह भी इतना आसान नहीं होगा, ऐसा करने से आपके सहयोगी भी अपना काम आप पर छोड़ने लगेंगे। अतः जैसे चल रहा है चलने दीजिये ,आख़िर राष्ट्रीय चरित्र का बहुत बड़ा गुण है यह टरकाना या टालना इसको बनाये रखना सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है।

हमारे राष्ट्रीय चरित्र के इस विशिष्ठ गुण पर इंटरनैट का बहुत दुष्प्रभाव पड़ रहा है। कुछ लोग अब घर बैठे बैठे ही माउस से क्लिक करके दो चार बटन दबा कर प्रौपर्टी टैक्स ,इनकम टैक्स और न जाने कौन कौन से काम कर लेते हैं। अब तो स्कूल और कौलिज के फार्म भी डाउनलोड हो जाते है, ई-मेल से भेजे भी जाने लगे हैं ,यह हमारे टालने वाले राष्ट्रीय चरित्र के लिंये अच्छे संकेत नहीं हैं। सरकार को इस पर जल्द ही एक प्रस्ताव लाना चाहिये, ,एक समिति का गठन करके छः महीने के अन्दर ही रिपोर्ट मांगनी चाहये कि किन किन क्षेत्रों मे इंटरनट पर पाबन्दी लगाने की आवशयकता है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर कोई आँच नहीं आनी चाहिये।

 

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

5 COMMENTS

  1. जो हो रहा है, बीनू जी ने इस सच्चाई को अच्छा स्पष्ट किया है ।
    विजय निकोर

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