टिप्पणी करें तब ध्यान रखें

डॉ. दीपक आचार्य

टिप्पणी करें तब ध्यान रखें अपने और सामने वाले के कद का

प्रतिक्रिया करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इसके पहले हमें स्वयं और दूसरे पक्षों के कद का ध्यान रखना चाहिए तभी प्रतिक्रिया को गरिमामय तथा शालीन कहा जा सकता है और ऎसी प्रतिक्रिया अपना अच्छा तथा दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ पाती है। ऎसा नहीं होने पर जो भी प्रतिक्रिया या अभिव्यक्ति होती है वह निरर्थक और बेदम होकर रह जाती है।

पर आजकल स्वेच्छाचारिता और स्वच्छन्दवादिता के माहौल में न कोई क्रिया का ध्यान रख रहा है, न प्रतिक्रिया का। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने सारे मायने खो बैठी है और इसी का ख़ामियाजा अपना समाज भुगत रहा है। हर कहीं होने वाली प्रतिक्रियाएँ अपना आपा खो रही हैं और लग रहा है जैसे इस मामले में पूरा देश सब्जीमण्डी बन गया है जहाँ शोर-गुल आम समस्या है।

आजकल अभिव्यक्ति के अधिकार को हर आदमी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगा है। हर आदमी समझता है कि उसे दुनिया के किसी भी शख़्स के बारे में बोलने और अनाप-शनाप बकने का अधिकार है और वह अपनी बकवास से किसी को भी आहत कर सकता है।

अभिव्यक्ति करना और प्रतिक्रिया व्यक्त करना आदमी के स्वभाव में तभी से रहा है जबसे उसे वाणी प्राप्त हुई। लेकिन आजकल अभिव्यक्ति और स्वेच्छाचारितापूर्ण बकवास ने सारी सीमाएँ तोड़ दी हैं। क्रिया का असर होने पर प्रतिक्रिया होनी चाहिए, यह तो ठीक है लेकिन इन दिनों एकतरफा प्रतिक्रियाओं का बवण्डर चल रहा है।

असमय धरती पर जन्म ले चुके ऎसे नाकाबिल और नुगरे लोगों की संख्या भी कोई कम नहीं है जो सिर्फ प्रतिक्रियावादी अभिव्यक्ति के लिए ही पैदा हो गए हैं। इन लोगों का किसी से कोई लेना-देना हो या नहीं, पर उसके बारे मेंं अंट-शंट प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने में तनिक भी देर नहीं लगाते।

इनमें दोनों ही प्रकार के लोगों की भीड़ शामिल है। पढ़े-लिखे भी हैं और अनपढ़ भी। लेकिन दोनों ही तरह के लोगों में एक समानता जरूर है और वह है घोर संस्कारहीनता। इस संस्कारहीनता और व्यसनों की वजह से इन दोनों ही किस्मों के लोग विवेक शून्य होते जा रहे हैं।

व्यक्ति में जिस अनुपात में अहंकार जगह बनाने लगता है उसी अनुपात में ज्ञान और विवेक पलायन करने लगते हैं। विवेक और अहंकार एक साथ कभी नहीं रह सकते। फिर अहंकार और विवेक शून्यता ऎसे घातक रसायन हैं जो जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में बनने शुरू हो जाते हैं उसकी सारी इन्सानियत धीरे-धीरे खोखली कर के ही दम लेते हैं।

अपने क्षेत्र में भी ऎसे लोगों की कहाँ कमी है जो ऎसे संस्कारहीन और बकवासी हैं और क्षेत्र भर को प्रदूषित करने में पीछे नहीं हैं। जहाँ मौका मिलता है ऎसे लोग समूहों में जमा होकर अनर्गल टिप्पणियां करनी शुरू कर देते हैं। इन लोगों का वास्तविक चेहरा उसी समय ही सामने आ पाता है। ये ही वे मौके होते हैं जब उनके उन्मादी और विक्षिप्त व्यक्तित्व का परिचय सार्वजनीन होने लगता है।

दुर्भाग्य तो यह है कि ये उन्मादी और व्यभिचारी लोग यह भी ध्यान नहीं रखते कि वे किस पर टिप्पणी कर रहे हैं और इन्हें क्या अधिकार है। लेकिन सदा-बकवासी ये लोग ज्यों-ज्यों उम्रदराज होते जाते हैं वैसे-वैसे इनकी उन्मादी टिप्पणियाँ थमने की बजाय परिपक्वता पाने लगती हैं।

दुर्भाग्य यह है कि पैशाचिक वृत्तियों वाले दुराचारी लोग ऋषि परम्पराओं में जीने वाले लोगों पर टिप्पणियां कर रहे हैं, अनपढ़ लोग उन लोगों पर टिप्पणियां कर रहे हैं जिन्होंने बड़ी मेहनत से ज्ञान पाया और मुकाम हासिल किया।

शराबी, माँसाहारी, दुराचारी, व्यसनी और धूत्र्त लोग उनके बारे में बकवास करने लगे हैं जो सच्चरित्र और ईमानदार हैं। छोटे कदों और पदों वाले लोग बडे़ कदों और पदों वालों पर टिप्पणियां कर रहे हैं। आवारा और उठाईगिरे उन लोगों पर टिप्पणी करने में भिड़े हुए हैं जो समाज में प्रतिष्ठित और सर्वस्पर्शी हैं।

फोकट का माल उड़ाने वाले, हराम का चाय-नाश्ता, भोजन और खाने-पीने में लगे हुए, झूठन पर थूँथन लगाकर चाटने वाले सूअरों की जमात वाले लोग उन लोगों के खिलाफ जहर उगलने लगे हैं जो ईमानदारी की खा रहे हैं।

मजे की बात यह है कि जिसे जिसके बारे में मौका मिले, उसके लिए बकवास करने में लगा हुआ है। दलाल अपने अन्नदाताओं के बारे में बक रहे हैं, चूहे-बिल्लियाँ शेरों के बारे में, कुत्ते और गीदड़ हाथियों के बारे में और गधे-खच्चर घोड़ों के बारे में कुछ भी कहने लगे हैंं। हालात इतने विड़म्बनाजनक होते जा रहे हैं कि कुछ लोग तो बेपरवाह होकर किसी के भी बारे में भी रोजाना कुछ न कुछ बकने लगे हैं।

यह सब कुछ देखना और सुनन वर्तमान की विवशता हो चला हैं क्योंकि बकवासी लोग अपनी बकवास से तमाशा करने के आदी हैं और ऎसे में ये चाहे जहां तमाशा खड़ा कर सकते हैं। यह दिगर बात है कि इस तमाशे में वे भी तमाशे से ज्यादा कुछ नहीं होते और इनकी असलियत जमाना अच्छी तरह जानता है।

जब भी अभिव्यक्ति करें, संयत रहें और जब किसी के बारे में किसी भी प्रकार की टिप्पणी करें, सामने वाले के कद का ध्यान रखें। अपने से बराबरी वाले या इससे कम श्रेणी वालों के लिए टिप्पणी करना उपयुक्त हो सकता है लेकिन वह भी सोच-समझ कर और सत्य का भान रखते हुए।

अपने से ज्यादा काबिल और उच्च कदों व पदों वाले लोगों के बारे में टिप्पणियों से बचें अन्यथा न आपकी बात का कोई वजूद रहेगा, न आपके व्यक्तित्व का। हम कितनी ही टिप्पणियां करें, आरोप दागें, मगर हमारी क्या हैसियत और कद है, इस बारे में किसी को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है।

हास्यास्पद हम ही बनते हैं, ये अलग बात है कि हमारे पास ऎसे-ऎसे धारदार और हिंसक काम-काज हैं कि लोग भय के मारे कुछ कह नहीं पाते। मगर जानते सभी हैं और जो ऎसे लोगों को एक बार जान जाता है, पूरी जिन्दगी मानने को तैयार नहीं होता।

3 COMMENTS

  1. (१)
    सकारात्मक टिपण्णी सच्चाई को प्रकट करने के उद्देश्यसे सीढियाँ चढ़ती चढ़ाती है| सत्यका साक्षात्कार करवाने,संवाद को, उकसाती है| संकेत देकर विवादी को सोचने के लिए भी दिशाएं सुझाती है|
    (२)
    नकारात्मक टिपण्णी विषयांतर करती है, लेख के बिन्दुओं से अलग ही बिंदुओं को उठा उठा कर संवाद को “वकालत” की दृष्टी से देखती है| सामने वाले से वाग्युद्ध में परिणत हो जाती है, शत्रुता जगाती है, तमस जगाती है|
    (३)
    मेरे अनुभव में (यह आपका अनुभव शायद ना हो)
    मैं ने छद्म वादी, कट्टर पंथी आतंक समर्थक इस्लामिक, वामवादी, हिंसक नक्षलवादी, और मतांतरण वादी ईसाईयों में इसप्रकार की शत्रुता जगानेवाली, आसुरी वृत्ति का अनुभव किया हुआ है|
    (४)
    भारत के मनीषियों ने तो “वादे वादे जायते शास्त्र बोधः” कहा था| पर इनके लिए “वादे वादे जायते शत्रुत्व बोधः” ही सार्थक है| क्यों, ऐसा होता है?
    (५)
    उत्तर:==> करना धरना कुछ नहीं| वाग्युद्ध ही तो जीतना है| कार्य करनेवाला ही गलती भी कभी कभी कर सकता है| कुछ काम, ना करने वाला गलती कैसे करेगा?
    (६)
    तो महाराज जान लो, की अपनी जबान को कृति से बोलने की आदत डालो|
    ==> शब्द को ही कृति समझ कर आतुर होने के बदले अपनी कृति से कुछ बोलके दिखाओ|

  2. इसका मतलब तो ये हुआ बड़े पद पर बैठा आदमी चाहे जो करे लेकिन आम आदमी उसके कम पर टिप्पणी न करे ये कैसे हो सकता है? हाँ शालीन और गरिमा के साथ कमेन्ट करने की बात ठीक हो सकती है.

  3. दीपक आचार्य जी,आपने लिखा है कि,
    “अपने से ज्यादा काबिल और उच्च कदों व पदों वाले लोगों के बारे में टिप्पणियों से बचें अन्यथा न आपकी बात का कोई वजूद रहेगा, न आपके व्यक्तित्व का”
    मेरी समझ में नहीं आया कि कोई उच्च पदासीन होने से ही ज्यादा काबिल कैसे हो गया?आगे यह भी प्रश्न उठता है कि टिप्पणीकार की योग्यता या काबलियत जिस पर टिप्पणी की जा रही है,उससे कम है या अधिक ,इसका निर्णय कौन करेगा?पद की गरीमा हो सकती है,पर उस पद पर आसीन उस गरीमा का हकदार है या नहीं ,इसका निर्णय कैसे होगा?

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