पंडित सुरेश नीरव
हमें गर्व है कि हमारे देश की सरकारी घोषणाएं और सरकारी मौसमविभाग की गैरसरकारी भविष्यवाणियां आजतक कभी सही नहीं निकलीं। जिसने भी इनकी बातों को सीरियसली लिया वही अर्जेटली दुखी हुआ। कल एक माननीय सब्जीवाले को जब हमने बताया कि वित्तमंत्री ने संसद में बयान दिया है कि महंगाई पिछले वित्तवर्ष के मुकाबले इस साल 1.7 प्रतिशत कम हो गई है फिर तुम सब्जियां मंहगी क्यों बेच रहे हो तो वह एकदम वैसे ही उखड़ गया जैसे अन्ना के लोकपाल मसौदे पर सरकार उखड़-उखड़ जाती है। वो जबान तरेर कर बोला- ठीक है सरकार जब देश में एफ.डी.आई ले आए आप खरीदारी तभी करना। तब हर चीज़ हाफ रेट पर मिला करेगी। थोड़ा इंतजार कर लो बाबूजी। इंतजार का फल हमेशा मीठा होता है। सरकार हर चीज़ के दाम कम करने जा रही है। अभी पेट्रोल सस्ता किया है हो सकता है कल अनार भी आलू के भाव बिकने लगे। मेरी निजी नाक को उसकी बातों में प्रतिपक्षी सासंद के बयानों-जैसी तीक्ष्ण बू आई। मैंने नाक पर रूमाल रक्खा और सामने सरकार की उपलब्धियां उघाड़ते पोस्टर को बांचकर अपनी जनरल नॉलेज अपडेट करने लगा। दिक्कत ये है कि सरकार करोड़ों रुपए पानी में बहाकर जिन पोस्टरों को उसके हित के लिए छापती है आम आदमी उन पोस्टरों को पढ़ता ही नहीं है। इसलिए वह पैर पटकता रहता है और उसे इस बात का पता ही नहीं चलता कि दबे पांव उसका स्तर कब का बढ़ चुका है। अब मौसम को ही लीजिए कि उसे मौसम विभाग की भविष्यवाणियों के बारे में कुछ अता-पता ही नहीं रहता। और फिर उसके आचरण से उसकी उड़ती है,हर साल-मज़ाक।
हर बार मज़ाक। कल की ही बात लीजिए. मौसम विभाग ने कहा था कि कि आसमान साफ रहेगा और पारा उचककर दो डिग्री ऊपर पहुंच जाएगा। गगनबिहारी-स्वेच्छाचारी मौसम को मौसम विभाग की भविष्वाणी की खबर ही नहीं थी। और उसने रात से ही थोक में इतना कोहरा बिखेरना शुरु कर दिया कि कॉलोनी में बाहर खड़ी उदात्त कारों के उन्मत्त जिस्मों पर बर्फ जम गई। निकृष्ट मौसम द्वारा मौसम विभाग के साथ की गई इस उत्कृष्ट हरकत से गुस्साए लोगों के मुंह और नाक से भाप निकलने लगी। गुस्से से उनके पांव थरथराने और दांत किटकिटाने लगे।
जड़-चेतन सभी आततायी मौसम के खिलाफ सविनय अवज्ञा पर उतर आए। रेलों ने 12 से 14 घंटे लेट होकर जहां मौसम के खिलाफ अपना सांकेतिक विरोध दर्ज कराया वहीं कभी-कभार टाइम पर उड़नेवाले हमारे हवाई जहाज मक्खियों की तरह भिनभिनाकर भुनभुनाते हुए बाकायदा धरतीपकड़ बने रहे और कसम खाने तक को एक इंच ऊपर नहीं उड़े। क्या जरूरत थी मौसम को मौसम विभाग की बेइज्जती खराब करने की। मौसम विभाग के जघन्य अपमान का सर्वसम्मति से सर्वसंभव विरोध यत्र-तत्र-सर्वत्र डेंगू बुखार की तरह फैल गया। हर कोई मौसम की भूरी-भूरी निंदा कर रहा था। और-तो-और नर्सिंगहोम के आई.सी.यू. और वेंटीलेटरों पर पिकनिक मनाते उत्साही वरिष्ठ नागरिकों ने मुर्दाघर जाने से पहले जर्नी ब्रेक कर कुटिल-खल-कामी मौसम की लानत-मनालत करने का धार्मिक कार्य पूरे सदभाव के साथ किया। एक 80 वर्षीय नौजवान ने रोमांटिक अंदाज़ में कहा-मौसम तो हमारी कॉलेज लाइफ के दिनों में भी बेईमान हुआ करता था मगर एक सलीके के साथ। अब तो मौसम 2-जी स्पेक्ट्रम की हद तक बेईमान होने लगा है। ग्लोबल वॉर्मिंग की जितनी चिंताएं बढ़ रही हैं मौसम का मिजाज़ उतना ही ठंडा होता जा रहा है। तभी एक 70 साला कन्या बड़े कूल-कूल अंदाज़ में कुलबुलाईं- मेरे एक हाथ की उंगलियों में आइसक्रीम और दूसरे हाथ की उंगलियों में कुल्फी जम गई है। रीयली इट इज वेरी-वेरी कूल..। मौसम पर बौखलए लोग बाहर फुटपाथ पर अंग्रेजों के उतरे-फेंके ओवरकोटों और स्वेटरों को छांटने और जल्दी-जल्दी उन्हें पॉलीथिन में पैक करने-कराने में जुटे हुए थे। फिरंगियों की ये उतरनें कुछ ही देर बाद कभी नहीं की गई विदेश यात्राओं की यादगार खरीदारी का सबूत बनकर विदेशी तीर्थयात्रा के पुण्य-प्रताप से इन पैदाइशी लोकलों को खानदानी ग्लोबल बना देगीं। मौसम की मनमानी और मौसम विभाग की मनमानी भविष्यवाणियों के प्रहारों को रोकने के लिए ड्यूटी-फ्री ये इंपोर्टेड फुटपाथी लिबास खादीभंडार के कंबलों से लाख गुना ज्यादा कारगर और प्रतिष्ठित हैं। भारतीय आत्मा ने कान में फुसफुसाकर रहस्योदघाटन किया। और तभी मुझे ठंड लग रही है मुझसे दूर तू ना जा के महामंत्रपाठ के साथ स्वदेशी जागरण के कर्मठ कार्यकर्ता ने उतरनी विदेशी ओवरकोट को स्वदेशी नश्वर शरीर पर धारण किया और भक्ति भाव से अपने घर को सिधार गए। जब मौसम बेईमान हो तो आदमी की महज़ पांच ग्राम बेईमानी तो द ग्रेट खली जैसे सख्त लोकपाल को भी गुलगुली मचा देगी। कसम भगवान की बेईमान मौसम में इत्ती-सी बेईमानी तो जायज है।