जिस दिन भारत में साम्‍यवादी शासन होगा, उस दिन वह एशियाड और ओलंपिक में नंबर एक होगा

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-श्रीराम तिवारी

१६ वें एशियाई खेल-२०१०, चीन के ग्वांगझू नगर में निर्विघ्न सम्पन्न हुए. जिन भारतीय खिलाड़ियों ने तमाम बाधाओं, परेशानियों के भारत के लिए पदक हासिल किये -वे देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मान के हकदार हैं. नई दुनिया के खेल पृष्ठ पर ३६ देशों की पदक तालिका प्रकाशित की गई है, उसमें भारत ६ वें नंबर पर है ये अंतिम स्थिति है और सम्मानजनक है २६ नवम्बर तक मुश्किल से ८-१० स्वर्ण पदक भारत के खाते में था, जबकि चीन, जापान दक्षिण कोरिया के खाते में सैकड़ों स्वर्ण पदक कब के आ चुके थे और उनके खिलाड़ी आखिरी रोज तक पदकों कि झड़ी लगा रहे थे. किन्तु भारत के जांबाज खिलाड़ियों ने अपने देशवासियों को निराश नहीं किया और अंतिम दिन आधा दर्जन स्वर्ण झटककर देश को पदक तालिका में ६ वें स्थान पर ला दिया. इन महान सपूतों को लाल सलाम.

पिछली बार भारत ८ वें स्थान पर रहा था, इस बार दो पायदान ऊँचे चढ़ा है, उम्मीद है कि आगामी एशियाड में भारत और ऊँचे चढ़ेगा. मेरे इस आशावाद पर घड़ों पानी डालने को आतुर लोगों से निवेदन है कि नर्वस न हों अपनी तुलना चीन जापान या कोरिया से न करे. चीन से तो कतई नहीं क्योंकि पदक तालिका में उसका नंबर पहला है यह अचरज की बात नहीं वो तो हर कम्म्युनिस्ट देश की फितरत है कि हर चीज में आगे होना- चाहे जो मजबूरी हो इसीलिये उसके -४१६ पदकों के सामने हमारे ६४ पदक बेहद मायने रखते हैं क्योंकि हम एक महा भ्रष्ट व्यवस्था में, घपलों की व्यवस्था में, आरक्षण की व्यवस्था में, सिफारिश की व्यवस्था में नाकारा-मक्कार नेतृत्‍व की शैतानियत से आक्रांत व्यवस्था में बमुश्किल जीवन घसीट रहे हैं ऐसे में नंगे भूखे देश के कुछ सपूतों ने अपनी निजी हैसियत से ये ६४ पदक, बड़ी कुर्बानी से हासिल किये हैं …हम उन्हें नमन करते हैं और इन ६४ पदकों को ६४० के बराबर समझते हैं. जिस दिन भारत में साम्यवाद का शासन होगा. जिस दिन भारत में अम्बानियों, मोदियों, बिरलाओं और टाटाओं के इशारों पर चलने वाली सरकार न होकर, देश के सर्वहारा और मेहनतकशों के आदेश पर भारत की शासन व्यवस्था चलेगी उस दिन भारत भी एशियाड और ओलम्पिक में नंबर १ होगा.

चीन की बराबरी करने से पूर्व हमें- कजाकिस्तान, ईरान जापान और कोरिया जैसे छोटे देशों को मात देनी होगी. तालिका में तो ये हमसे ऊपर है ही किन्तु इनके खाते में इतने पदक हैं कि भारत उनके सामने नगण्य दिखता है. देश की जनता को और खेल जगत को जागना होगा. जानना होगा कि ईरान, ताइपे, कजाकिस्तान और उज्बेग्स्तान जैसे नव स्वाधीन देशों में ऐसा क्या है जो कि भारत जैसे विश्व की गतिशील दूसरे नंबर का अर्थ व्यवस्था वाले सवा सौ करोड़ कि आबादी वाले देश के पास नहीं है.

१९५१ के प्रथम एशियाई खेलों में हम दो नंबर पर थे विगत ६० साल में हम कहाँ पहुंचे यह आकलन भी जरुरी है.मौजूदा दौर में तो कबड्डी को छोड़ बाकी सभी पदक व्यक्तिगत प्रतिभाशाली प्रतिभागियों के एकल प्रयाश का परिणाम कहना गलत नहीं होगा. देश के सत्ता प्रतिष्ठान का योगदान क्या है? यह संसद में और विधान सभों ओं में प्रश्न उठाना चाहए.

१९५१ में जापान नंबर वन था, हम दूसरे नंबर पर थे, अब तक १६ एशियाई खेलों में भारत ने कुल १२८ स्वर्ण पदक हासिल किये हैं चीन तो इससे ज्यदा स्वर्ण एक बार कि स्पर्धा में ही जीत लेता है. हम अपनी आंतरिक और बाह्य परेशानियों के लिए निसंदेह पाकिस्तान को दोष दे सकते हैं किन्तु किसी खेल प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन से रोकने कि ताकत किसी में नहीं, और इसके लिए किसी भी बाहरी ताकत को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. इसके लिए हमें अपनी खेल नीति और शासन व्यवस्था का उत्तर दायित्व सुनिश्चित करना होगा.

राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के पास १०१ पदक थे. एक महीने में ऐसा क्या घट गया कि जो राष्ट्रमंडल में अर्श पर थे वे खिलाडी ग्वांगझू में फर्श पर जा गिरे. हाकी, निशानेबाजी, तैराकी और कुश्ती इत्यादि में संतोषजनक प्रदर्शन नहीं देखने को मिला। भारत १०१ से ६४ पर आ गिरा। हम आगे बढ़े हैं या पीछे चले गए, ये फैसला आगामी ओलम्पिक में होगा.

14 COMMENTS

  1. पटेलजी चाय पर आपका लेख देखा.आपने यथार्थ का वर्णन किया है.सच्च में आम हिनुस्तानी इसी तरह चाय पीता है.यहाँ आपने हिन्दुस्तानी तरीके से चाय बनाने की विधि का वर्णन नहीं किया है उससे आपका लेख थोडा अधूरा लगता है.हमारी चाय बनाने की विधि है की हम चाय की पत्ती,दूध,शक्कर सब ठंढे पानी में डाल देते हैं ,फिर उसको उबालते हैंऔर खुब उबालते हैं.इस तरह हम सचमुच चाय को जहर बनादेते है और दूध भी वर्बाद होता है और दोष देते हैं चाय को .चाय से सचमुच में लाभ है ,अगर उसको चाय की तरह पीयें.पहले तो उसमे न दूध की आवश्यकता है न शक्कर की.ऐसे भी शक्कर यानि चीनी तो किसी भी रूप में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है.चाय अगर आप चाय के तरीके से पीजिये और पिलाइए तो उससे सच्च में लाभ होताहै.पहले तो आप चाय के साथ दूध और चीनी का इस्तेमाल भूल जाइये.इससे आपको लाभ भी होगा और बच्चों या बड़ों के लिए दूध भी बचा रहेगा.पहले पानी उबालिए.जब पानी खौलने लगे तो आंच बंद कीजिये.फिर आवश्यकतानुसार चाय की पत्ती डालकर वर्तन को ढँक दीजिये.पांच मिनट के बाद खोलकर चाय छान कर पीजिये और पिलाइए .आपको चाय में लाभ ही लाभ नजर आएगा और बच्चों के लिए दूध में भी कोई कटौती नहीं होगी. आप चाय को दोष देना भी भूल जायेंगे.
    यह तो रही चाय की बात.दूसरी बात मै यह कहना चाहता हूँ की हमारे पतन में हमारे नजरिये का हाथ है इसको अंग्रेजी .क्रिकेट या चाय से कुछ लेना देना नहीं,.

  2. आदरणीय सिंह साहब. धन्यवाद की अपने मेरा कमेन्ट पढ़ा. शायाद मेरी जानकारी उतनी ज्यादा नहीं है. वैसे भी मेरे कहने का मतलब यह नहीं था की पुरे चाइना में भ्रष्टाचार नहीं है बल्कि खेल के चेत्र में भ्रष्टाचार नहीं है. अगर है भी तो मैनेजमेंट, एडमिनिसट्रेसन लेवल पर होगा पर खेल के मैदान में बिलकुल नहीं है, क्योंकी वोह जानते है की अगर रिजल्ट नहीं मिले तो सरकार चोराहे पर गोली मार देगी, कोई सुनवाई नहीं होगी, कोई मानवाधिकार संगठन नहीं होगा. खिलाड़ी तो हमरे भी पसीना बहते है, ज्यादा पसीना बहते है, किन्तु हर कुर्सी पर भ्रस्ताचार, हर फाइल पर रिश्वत, हर मोड़ पर लाल फीताशाही रूकावटे. खिलाडी मानसिक रूप से भी परेशान रहता है, उसे मालूम है की आखरी वक्त में भी कोई अफसर, नेता के रिश्तेदार उसके जगह भारती हो सकता है, क्या पता जहाँ खेलते जा रहे है वोहन ठीक से खाना भी मिलेगा की नहीं, पसीना बहाने का बाद नोकरी भी मिलेगी की नहीं. (क्रिकेट खेल को छोड़कर).

    वाकई चाय, क्रिकेट और अंग्रेजी से इस विषय का कोई लेना नहीं है. क्रिकेट भारत में भगवान् की तरह पूजा जाता है, कमेन्ट करने से विवाद होगा. अंग्रेजी मजबूरी है, टूटी फूटी अंग्रेजी बोलने वाला भी संस्कृत या अन्य भारतीय भाषाओं के विद्वान से ज्यादा भारी माना जाता है. यह भले ही हमारी मानसिकता हो, किन्तु वास्तविकता है.
    वैसे चाय पर मैंने एक लेख भी लिखा है. https://tea-addition.blogspot.com/ यह लेख प्रवक्ता पर भी प्रकाशित हुआ था. मैं गलत हो सकता हूँ, आपके अमूल्य सुझाव का इन्तजार रहेगा.

  3. धन्यवाद आदरणीय तिवारी जी. आशा करते है की साम्यवाद ही आये, अगर उसमे रामराज्य के गुण हो तो. जहाँ तक सच्चे झूठे इतिहास की बात है तो नाप तो तराजू में ही हो सकता है. जब ज्योमितीय में गोलाई को खंड करके नापा जा सकता है तो इतिहास पर राष्ट्रव्यापी, विश्वयव्यापी अध्ययन क्यों नहीं हो सकता है. इससे सार्थक निष्कर्ष तो निकल कर आएगा.

    यह मानवीय व्यवहार है की हमे हमेशा अपना पक्ष ही सही लगता है. आपने बिल्ली वाला उदहारण बिलकुल सही दिया है. हमें सुशाशन की जरुरत है, सबको रोटी मिले, मकान मिले, इज्जत मिले. अगर यह साम्यवाद से आये तो हमें कहाँ परहेज है, हम तो जय श्रीराम कहकर उसे भी स्वीकार कर लेंगे.

  4. जनता को अक्ल होती तो बंगाल में ४० साल तक कम्युनिस्ट जीतते??वैसे एक दिन पता नहीं मुझे क्या हुवा मैं जनता को धुन्धने निकला चुनाव के दिनों की बात थी मुझे बामन मिला- दलित मिला- जाट मिला- राजपूत कायश्थ,मुसलमान-क्रिश्चन सिख मिले ,जनता नहीं मिली कोई कोंग्रसी मिला कोई भाजपाई मिला कोई खाती कम्युनिस्ट मिला पर जनता नहीं मिली mene socha chalo यार छोडो meri hi buddhi moTi hogI ,aapako मिले तो usaka पता मुझे भी बताना………..

  5. एक मित्र ने टिप्पणी करते वक्त “रामराज्य” की दुहाई दी है …..यह एक अंतहीन विमर्श का मेटाफर है ;
    इसी सन्दर्भ में ग़लत इतिहास पढ़ाए जाने का रोनाभी रोया गया है. क्या सच है क्या झूठ यह तय करने का अधिकार ,
    किसी व्यक्ति या समूह को नहीं जाता ..बिल्ली काली हो या सफेद यडी चूहे मारती हो तो ,अवश्य पाली जाए..रामराज्य हो या साम्यवाद
    अगर जनता खुश तो बंदा खुश …अपनी कोई ज़िद नहीं की बिल्ली सफेद न्हीं लाल ही हो .

  6. एक बात की गलतफहमी बहुत लोगों को है और श्री सुनील पटेल भी उसी गलतफहमी के शिकार लगते हैं की चीन में भ्रष्टाचार नहीं है.मैं मानता हूँ की चीन हमलोगों से इस मामले में बहुत पीछे है,पर भ्रष्टाचार वहां भी है.एक बात याद रखिये. भ्रष्टाचार केवल पारदर्शिता से ख़त्म होता है कंट्रोल से नहीं.इमानदार देश वे ही हैं जहाँ पूर्ण पारदर्शिता है.ऐसे भ्रष्टाचार के मामले में हम बहुत आगे हैं और इस क्षेत्र में हम लगभग अतुलनीय हैं.सच्च पूछिये तो इसका क्रिकेट,चाय और अंगरेजी से कोई सम्बन्ध नहीं है.अगर ऐसा होता तो न्यूजीलैंड,आस्ट्रलिया,इंग्लैण्ड आदि देश सबसे भ्रष्ट होते,पर वास्तविक रूप में ऐसा है नहीं.

  7. आदरणीय .
    मेने कब कहा की आलेख ओर आपके द्वारा रेखांकित पंक्तियाँ मेरी नही हैं .शीर्षक भी बहुत बढ़िया है यडी मेने उसका श्रेय प्रवक्ता .कॉम को दिया तो आपको आपत्ति क्यों ?मेने तो सुरेश जी से यही निवेदन किया था की आलेख की सार वस्तु पर अर्थात कंटेंट्स पर अपना पक्ष रखें ,आपसे भी यही उम्मीद करता हूँ की विशय पर स्वस्थ चर्चा ज़रूर करें किंतु अनावश्यक वितंडवाद से बचें .धन्यवाद.

  8. श्रीराम तिवारी जी: आपके पहले परिच्छेदका अंतिम भाग है==>” जिस दिन भारत में साम्यवाद का शासन होगा. जिस दिन भारत में अम्बानियों, मोदियों, बिरलाओं और टाटाओं के इशारों पर चलने वाली सरकार न होकर, देश के सर्वहारा और मेहनतकशों के आदेश पर भारत की शासन व्यवस्था चलेगी उस दिन भारत भी एशियाड और ओलम्पिक में नंबर १ होगा.”
    क्या यह आपका लिखा नहीं है?
    फिर शीर्षकपर यदि आपकी असहमति थी, तो संपादक से आपने पूछना-सुधार करवाना चाहिए था।
    पर आपका तो सलाम भी लाल रंगका है।

  9. श्रीमान तिवारी जी सही लिख रहे है. बस रामराज्य की जगह साम्यवाद कह रहे है. भ्रष्टाचार ख़त्म कर दीजिये फिर देखिये हम कैसे नंबर एक पर नहीं होते है.

    * अंग्रजो के तिन वायरुस १- क्रिकेट, २- चाय और ३ अंग्रेजी ख़त्म कर / अंकुश लगा दियिये – परिणाम अपने आप सामने आ जायेगा.
    * हरित क्रांति के नाम पर परंपरागत फसले ख़त्म कर दी गई है. परंपरागत ज्वर, बाजरा, मक्का आदि फसले की जगह सप्ताह में सात दिन गेहू, सोयाबीन ने ले ली है.
    * चाय ने देश में दूध का अकाल बना दिया है, कई बार की चाय ने पेट ख़राब कर दिया है…..
    * ताकत सिर्फ शारीर में ही नहीं निहित होती है, काफी कुछ दिमाग में भी होती है. ६० सालो से गलत इतिहास ने हमारा स्वाभिमान भी डिगा डिगा दिया है.
    * बात चीन से मुकाबले की है तो एक बात मालुम होनी चाइये की हर चीनी इतना ताकतवर, नहीं होता है. वोह आम हिन्दुस्तानियो के मुकाबले काफी कमजोर होते है. चार फूटे चीनी हम हिन्दुस्तानियो के मुकाबले काफी पीछे होते है. जो ओल्य्म्पिक या अन्य मुकाबले में मेडल जीतते है वोह सिर्फ जितने के लिए ही खिलाये जाते है. या यह कहते की एक तरह की सरकारी नौकरी करते है. सबसे बड़ी बात यह होती है की वोह इसे राष्ट्रीय महत्त्व का मानता है, वहां भ्रष्टाचार लगभग नहीं के बराबर होता है या यह कहे की किसी की हिम्मत नहीं होती की भ्रष्टाचार करे, कारण की सकत कानून, उन्हें मालुम है की पकडे जाने पर बिना मुकदमा के बीच चोराहे में गोली मार दी जाएगी. अगर हमारे देश में केवेल खेल मंत्रायल में ही भ्रस्ताचार ख़त्म हो जाए तो विश्वाश मानिए की अगले ओल्य्म्पिक में एक नहीं बल्कि २५ स्वर्ण पदक आयेंगे.

    शुक्र है स्वामी रामदेवजी एक अच्छा प्रयास कर रहे है, परिणाम कुछ सालो में सामने आ जायेगा.

  10. तिवारीजी आपने सपना तो अच्छा देखा,पर आपका यह सपना सच्च कब होगा?ऐसे भी सब बातों को साम्यवाद से जोड़ कर देखना शायद आपकी मजबूरी है.हो सकता है की लाल चश्मे से ऐसा ही दीखता हो.मैंने तो ऐसा चश्मा कभी पहना नहीं,अतः मुझे तो ऐसा कुछ नहीं दीखता और न भविष्य में दिखने की संभावना है.मैं मानता हूँ की चीन आज तथाकथित साम्यवाद से अलग हट गया है पर उसका खेल के क्षेत्र में यह वर्चस्व उन्ही दिनों की देन है. पर आपको यह कैसे लगा की साम्यवाद ही हमको भी इस क्षेत्र में आगे ले जाएगा क्या गैर साम्यवादी देश इस क्षेत्र में किसी से पीछे हैं?पूजीवादी देशों का नेता अमेरिका ओलिम्पिक खेलों में हमेशा सबसे आगे रहा है. उसके बारे में आपका क्या कहना है?तिवारीजी,आपको यह बात क्यों नहीं समझ में आती की हमारी भ्रष्टता ही इनके सबके मूल में है.यह न पूंजीवाद है न साम्यवाद,यह तो केवल भ्रष्ट वाद है.ईमानदारी की कसौटी पर भी पूंजी वादी देश ही सबसे ऊपर हैं.उसके बारे में आपकी क्या राय है?

  11. अरे महाराज तिवारी जी, इंडिया में जहाँ जहाँ कम्युनिस्ट हैं वहाँ काहे नहीं सुविधा बढ़वाते हो आप. वहाँ के लोग भी तो फिसड्डी हैं, सुधार हो रहा है और कोई भी वाद प्रतिभा को दबा नहीं पायेगा. सादर.

  12. सुरेश जी आप ने आलेख की सार वस्तु पर कुच्छ नहीं कहा ,शीर्षक पर हा ..हा हा ही ..ही ..जैसी हलकट टिप्पणी ,अमानवीयता के दायरे में आती है ,आपको
    मालूम हो की शीर्षक का चयन सम्पादक महोदय ने किया है ,जिस पर आपने ज़रा ज़्यादा ही तवज्जो डी है , मेरी अरज है की आलेख अवश्य पढ़ें….

  13. वैरी गुड ,किन्तु ओलम्पिक में तो पूंजीवादी अमेरिका भी नंबर one हो जाता है तब आप क्या करेंगे ?

  14. “….चीन से तो कतई नहीं क्योंकि पदक तालिका में उसका नंबर पहला है यह अचरज की बात नहीं वो तो हर कम्म्युनिस्ट देश की फितरत है कि हर चीज में आगे होना- चाहे जो मजबूरी हो…”

    हा हा हा हा हा हा हा… यानी आप अब भी चीन को कम्युनिस्ट मानते हैं?

    ये बात भी आपने सही कही कि कम्युनिस्ट हर चीज़ में आगे होते हैं – गिरावट में भी… 🙂
    वैसे एक बात तो बताईये, दुनिया में बचे कितने हैं अब?

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