विविधा

लातिनी और संस्कृत -भाषा में बदलाव की तुलना

डॉ. मधुसूदन

(एक)
भाषाएँ क्यों बदलती हैं?
संसार की सभी भाषाओं का व्याकरण धीरे धीरे बदलता रहा है. उनके उच्चारण भी बदलते रहते हैं. वर्णाक्षरों की संख्या भी बदलते रहती है.
व्याकरण, वर्णाक्षर, और उच्चारण ऐसे तीन बदलाव आप संसार की सभी भाषाओं में देख पाएँगे. इस प्रक्रिया के निरीक्षण के कारण एक सूत्र ही बन गया और “भाषा बहता नीर” के विधान से यह सूत्र जाना जाने लगा. जैसे जल प्रवाह (बदलता) है, बहता है, भाषा भी बहती बदलती है.

(दो) बदलाव का अपवाद संस्कृत:

इस बदलाव का एक अपवाद है संस्कृत. और लगता है, संस्कृत का सही ज्ञान न होने के कारण भाषावैज्ञानिकों ने यह “भाषा बहता नीर” का प्रचलन कर दिया. संस्कृत भाषा वैज्ञानिकों के चिन्तन में १७८४ के बाद आना प्रारंभ हुआ. पर उसकी पूरी जानकारी होते होते सौ देढ सौ वर्ष लगे.
संस्कृत का व्याकरण परिपूर्ण होने के कारण बदलने की आवश्यकता ही नहीं पडी. आज तक बदला नहीं है. और यह स्थिति गत २५०० वर्षॊं के इतिहास से देखी और परखी जा सकती है. न व्याकरण बदला है, न वर्णाक्षर बदले हैं, न मानक उच्चारण बदला है. 

परिपूर्णता को बदलोगे तो विकृत ही करोगे. परिपूर्णता को और अधिक परिपूर्ण कैसे किया जा सकता है?
संस्कृत का व्याकरण परिपूर्ण है. उसमें नौ काल होते हैं. इतने काल किसी भी अन्य भाषा में नहीं होते. उसके उच्चारणों की संख्या ३६+१६=५२ होती है. और यदि क का कि की कु कू इत्यादि सभी उच्चारों की गिनती करें तो संख्या ३६ गुणा १२ =३६०+७२=४३२ तक हो जाती है.
इतने सारे उच्चारणों के कारण भी शब्द समृद्धि संपादित की जाती है. इस लिए संस्कृत शब्द समृद्ध भी है.
भाषा के उच्चारणों मे, संदिग्ध उच्चारण जैसे ज़, ख़, और कॅ, मॅ इत्यादि उच्चारण उनकी संदिग्धता पर चिन्तन के बाद वर्ज्य माने गए थे. इसी कारण हमारा मानक उच्चारण विशुद्ध और निःसंदिग्ध बना है. साथ साथ उच्चारणों की परम्परा को अमर कर देने में पारम्परिक वेद शालाएँ उपयुक्त सिद्ध हुई हैं.

ऐसे उच्चारण, देवनागरी लिपि की ध्वन्यात्मक रचना के कारण अमर हो गया है. और वैदिक पाठशालाओं की अनुशासित गुरु शिष्य परम्परा ने वेदों सहित देवनागरी के उच्चारण भी अबाधित रखे हैं. वेद में आज तक एक अक्षर या उच्चारण बदला नहीं है.

यह चमत्कार है चमत्कार, यदि आप की समझमें आता है तो? जब इसाई बाइबिल की ८० तक गोस्पेल्स मिलती है, वेदों का एक अक्षर इधर का उधर नहीं हुआ है. यह भी एक स्वतंत्र आलेख का विषय है.

तुलना के लिए लातिनी का संक्षिप्त इतिहास देखते हैं. जो लोग लातिनी से संस्कृत की तुलना करना चाह्ते हैं, उनके लिए.

(तीन)
लातिनी विकास का संक्षिप्त इतिहास:
(७०० ई. पू. -४०० ई. पू.) एट्रुस्कन लिपि के २१ वर्णाक्षर ग्रहण किए गए.
(१ +/- ई. पू. ) वाय और झेड स्वीकारे गए और कुल २३ अक्षर हुए.
(१०० ई. पू.-१४ ईसवी तक ) भाषा का विकास होता रहा, शब्द भण्डार, व्याकरण, और उच्चारण सभी बदलता गया.
(३०० ईसवी ) सामान्य बोलचाल की (वल्गर) लातिनी फैली, और सुधारित साहित्यिक लातिनी साथ साथ प्रचलित हुई.
(३०० ईसवी के आगे) साहित्यिक लातिनी के शब्द, वर्तनी, और स्वरों के उच्चारण बदलते गए. और बोलचाल की लातिनी भी सुधरती गई.
(१५०० ईसवी ) १५०० के आसपास पूर्ण विकसित हुयी.
(१६०० ईसवी से आगे ) उसका प्रयोग और लोकप्रियता घटने लगी.
और १९०० ईसवी तक प्रायः मृत (डेड लॅन्गवेज ) हो गई.
अंग्रेज़ी ने भी अपना आल्फाबेट लातिनी से ही स्वीकारा है.

(चार) लातिनी पर लेखक मधुसूदन की टिप्पणी:–और चिन्तकों को आवाहन:
१५०० ईसवी में जो पूर्ण विकसित हुयी थी, जिसकी लिपि के वर्णाक्षर कभी २१, फिर २३, रहे. जो भाषा १५०० ईसवी तक पूर्ण विकसित होती ही रही और १९०० ईसवी तक मृत भाषा भी घोषित हुयी. जिसका उच्चारण बार बार बदला, वर्तनी भी बार बार बदली. उससे संस्कृत निकली मानना असंभव और अतर्क्य था.

(१) उसे संस्कृत के ( ५००-७०० ईसा पूर्व ) से भी पुरानी घोषित करना तो बिलकुल असंभव था. करते तो कौन-सा भाषाविद स्वीकार करता?
(२) लातिनी भाषा भी २३ अक्षरों की लिपिवाली ही थी. सामने, संस्कृत के ३६+ १६=५२ वर्णाक्षर और प्रत्येक वर्ण के १२ उच्चार (क, का. कि. की. ..इत्यादि). जो स्थूल रूप से अगणित शब्द रच लेती थी. (जो ऊपर कहा जा चुका है)
साथ उच्चारण ब्राह्मी और देवनागरी ने त्रुटिरहित और अक्षुण्ण कर दिए थे.

(पाँच)
लातिनी भाषा बदलाव के कारण:
संस्कृत के सामने लातिनी भाषा में बदलाव के कारण और विवशता बिलकुल पारदर्शक प्रतीत होती है.

क्या थे वे कारण?
कारण (१) स्पष्ट सुदृढ व्याकरण का अभाव.
कारण (२) उच्चारण आधारित लिपि न होने के कारण मानक उच्चारण का अभाव. इसके कारण शब्दों का उच्चारण बार बार बदलता रहा है.
कारण (३) हमारे जैसी, वेदोच्चारण की परम्परा प्रस्थापित कर उच्चारण त्रुटिरहित और अमर करनेवाली, गुरुकुल जैसी परम्परा का ना होना
कारण (४) देवनागरी जैसी उच्चारों को विशुद्ध रखनेवाली लिपि भी लातिनी के पास नहीं थी.
इस लिए, नियम बिना की लातिनी – उच्चारण शुद्धि में योगदान करवा कर परम्परा को अबाधित नहीं रख सकती थी.
कारण (५) वर्णाक्षरों की मर्यादित संख्या के कारण नवीन संक्षिप्त और सुगठित शब्द नहीं बना सकती थी.

(छः) अंग्रेज़ी और संस्कृत के शब्दों की समानता:
विषय पर इसी प्रवक्ता में शब्द वृक्ष नामक अनेक आलेख डाले गए हैं. साथ ढेर सारे, शब्द संस्कृत धातुओं पर अंग्रेज़ी में फैले मिलते हैं.
एक धातु से कैसे भारतीय हिन्दी शब्द और अंग्रेज़ी शब्द व्युत्पत्ति के नियमानुसार (व्युत्पत्ति के तीन नियम–निरुक्त)
अंग्रेज़ी में काफी शब्द संस्कृत मूल के दिखाए गए हैं. इसका कारण स्पष्ट है.
मर्यादित समय के कारण कुछ शीघ्रता से यह आलेख लिखा गया है.
विद्वान पाठक टिप्पणी से उपकृत करें. शायद शीघ्रता के कारण कुछ त्रुटियाँ रह गई हैं. क्षमा कीजिएगा.
संदर्भ:(१) एन्सायक्लोपेडिया ऑफ हिन्दुइज़्म.(२) मॅक्स मूलर के आय. सी. एस. प्रशिक्षार्थी व्याख्यान