कोरोना व लॉकडाउन किसानों पर ना पड़ने पाये भारी करनी होगी पूरी तैयारी

दीपक कुमार त्यागी

भारत आज मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा बने कोरोना वायरस की महामारी से विश्व के सभी अन्य देशों की तरह एक बहुत लम्बी अघोषित जंग लड़ रहा है, भयावह वैश्विक महामारी की इस हालात में किसी भी देश को इस वायरस का अभी तक कोई ठोस कारगर उपचार नहीं सूझ रहा है। जिसके चलते लोगों में संक्रमण फैलने से रोकने के उद्देश्य से देश में पहले 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया, फिर 23 व 24 मार्च का लॉकडाउन चला व उसके बाद  25 मार्च से 14 अप्रैल तक 21 दिनों के लॉकडाउन का पीरियड भी लोगों के संयम व संकल्प के साथ अब समाप्त हो गया है। सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चर्चा के बाद लॉकडाउन के पीरियड़ को लेकर 14 अप्रैल की सुबह 10 बजे राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको बढ़ाकर 3 मई तक कर दिया है, जो जनता की जान की सुरक्षा करने के उद्देश्य से एक बहुत ही अच्छा निर्णय है। आपदा के समय में बेहद मुश्किल हालात में भी देश के सभी कोरोना वारियर्स के बुलंद हौसले के बलबूते ही हम सभी लोगों का जीवन घरों में बंद रहकर भी सुचारू रूप से चल रहा है। बेहद मुश्किल वक्त में हमारे सभी वीर जाबांज कोरोना वारियर्स डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, पुलिस-प्रशासन आदि के लोगों ने जगह-जगह डटकर मोर्चा संभाल कर स्थिति पर अभी तक तो अपना पूर्ण नियंत्रण बना रखा है। देश में आज हर तरफ लोगों के अनमोल जीवन बचाने में उन सभी कोरोना वारियर्स के अनमोल योगदान की बात हर देशवासी करके उनका दिल से आभार व्यक्त कर रहा है। लेकिन किसी की भी आपदा के वक्त में और आने वाले समय में सबका पेट भरने की जिम्मेदारी निभाने वाले हमारे ‘अन्नदाता’ किसान व उनके सहयोगी खेतिहर मजदूरों के अनमोल योगदान पर नजर नहीं जा रही है, आपदा के वक्त में उनकी सभी पक्षों के द्वारा अनदेखी जारी है। लोगों में आपसी संपर्क के चलते किसी भी तरह से कोरोना वायरस संक्रमण ना फैले उसके लिए विश्व के अधिकांश हिस्सों की तरह ही भारत में भी आवश्यक सेवाओं से जुड़ी फैक्ट्रियों को छोड़कर सभी कल-कारखानों में पूर्ण रूप से उत्पादन बंद है, जिसका जबरदस्त प्रभाव आने वाले समय में हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से नजर आयेगा। लेकिन हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भविष्य में कोरोना के भयंकर प्रकोप के चलते इसका प्रभाव हमारे देश के किसानों, खेतिहर मजदूरों व खाधान्न उत्पादन पर किसी तरह से पड़ने देने से रोकना है।  क्योंकि आने वाले समय में 135 करोड़ देशवासियों को पेट भरने के लिए सस्ती व सुगमता से खाधान्न वस्तुओं को उपलब्ध करवाना, हमारी सरकार के सामने बहुत बड़ी गंभीर चुनौती बन सकती है, क्योंकि भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत 81 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाली दर पर सस्ता अनाज उपलब्ध करवाया जाता है। इसलिए हालात से निपटने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों को आपसी सामंजस्य करके समय रहते ही धरातल पर ठोस प्रभावी कदम उठाने होंगे। वैसे भी समय रहते हम सभी को यह समझना होगा कि जिस तरह से प्राचीन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, ठीक उसी प्रकार आज भयंकर आपदा के समय में भी भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का बहुत महत्वपूर्ण योगदान साबित हो सकता है, क्योंकि भारत अपने खाद्यान्न के बलबूते सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि और देशों का पेट भरने में भी सक्षम है, उस स्थिति में मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को कृषि क्षेत्र से कुछ राहत अवश्य मिल सकती है। क्योंकि जिस तरह से विश्व के शीर्ष संस्थान विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ), विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और यूएन के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के प्रमुखों ने अभी हाल में संयुक्त बयान जारी करके मौजूदा समय में विश्व में धीरे-धीरे उत्पन्न हो रहे खाद्यान्न संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी देशों को आगाह किया है, उनका मानना है कि अधिकांश देशों में कोरोना आपदा के चलते खाद्यान्न का उत्पादन ठप होने के कारण हालात धीरे-धीरे खाधान्न संकट की तरफ बढ़ रहे हैं, कुछ देशों ने तो अपने खाद्यान्न के रिर्जव भंडार का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। ऐसे हालात में इसलिए बेहद आवश्यक है कि भारत सरकार को भी किसानों व खेतिहर मजदूरों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, समय रहते उनकी सभी समस्याओं का समाधान करना चाहिए। वैसे हमारे देश इस स्थिति से फिलहाल अछूता है और अनुमानित आकड़ों के अनुसार कृषि मंत्रालय ने वर्ष 2019-20 में गेहूं, चावल, मोटे अनाज और दलहन आदि सहित कुल खाद्यान्न के उत्पादन रिकॉर्ड 29 करोड़ 19.5 लाख टन होने का अनुमान लगाया है, जो कि पिछले वर्ष 2018-19 से 28 करोड़ 52.1 लाख टन हुए उत्पादन से अधिक होगा। वैसे भारत में सर्दियों के मौसम में रबी के सीजन की प्रमुख फसल गेहूँ  होती है। सरकार की रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में गेहूँ के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद है। वर्ष 2020 जनवरी के अंत तक 3 करोड़ 36.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूँ की बुआई हुई थी जबकि पिछले साल इसी दौरान गेहूँ का यह रकबा 2 करोड़ 99.3 लाख हेक्टेयर था। कृषि मंत्रालय की फरवरी में आई रिपोर्ट में बताया गया था कि अच्छी बरसात और ज्यादा रकबे में बुआई से देश में गेहूँ की पैदावार 2019-20 में 10 करोड़ 62.1 लाख टन तक पहुंच सकती है। यह देश में गेहूँ का अब तक का सबसे ज्यादा रिकॉर्ड उत्पादन होगा, वर्ष 2018-19 में 10 करोड़ 36 लाख टन गेहूँ का उत्पादन हुआ था जो उस समय रिकॉर्ड था। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके सामने आने वाली हर चुनौतियों का तुरंत समाधान करना होगा। वैसे आपको बता दें कि वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने स्टॉक में 711 लाख टन खाद्यान्न रखा था और वास्तव में हम भारतवासियों को वर्ष भर के लिए जरूरत 307 लाख टन खाधान्न की आवश्यकता है, जो बेहतर स्थिति है। कभी हमारे देश में किसानों का बहुत अधिक सम्मान होता था, लेकिन पिछले कुछ समय से लोगों के बहुत ज्यादा व्यवसायिक होने के चलते व किसानों कि समस्याओं का निदान समय रहते ना होने से किसान बहुत परेशान है। हमारे देश में खेती व किसानों के सम्मान के बारे बहुत समय से तरह-तरह की सकारात्मक कहावत प्रचलित है, जैसे कि
“खेती उत्तम काज है,इहि सम और न होय। खाबे कों सबकों मिलै,खेती कीजे सोय॥”
भावार्थ – कृषि उत्तम कार्य है, इसके बराबर और कोई कार्य नहीं है। यह सबको भोजन देती है इसलिये खेती करनी चाहिये।
भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है और देश में खेती ही वह सेक्टर है जो सर्वाधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाता है। वैसे असली भारत अभी भी हमारे देश के गांवों में ही निवास करता है और वहीं पर खेती करके या उससे संबंधित काम करके अपना व अपने परिवार का जीवनयापन करता है, हमारे यहां हमेशा बहुत ही उन्नत ढंग से खेती की जाती रही है और कृषि हमारी संस्कृति का हमेशा अभिन्न अंग रहा है। तभी तो हमारे देश में 
“उत्तम खेती मध्यम बान।निषिद चाकरी भीख निदान।।”
भावार्थ-  खेती सबसे अच्छा कार्य है। व्यापार मध्यम है, नौकरी निषिद्ध है और भीख माँगना सबसे बुरा कार्य है। 
जैसी लोकोक्ति हमारे समाज में हमेशा प्रचलित रही है, जिसमें कृषि कार्य को सर्वोत्तम बताया गया और किसानों को बेहद सम्मानपूर्वक ‘अन्नदाता’ कहा गया है।
इन कहावतों को चरितार्थ करने के लिए व देश के 135 करोड़ लोगों के पेट भरने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभाने के लिए ही ‘अन्नदाता’ किसान आपदा के समय में भी सुबह-सवेरे ही अपने खेतों में काम करने चला जाता है और वह दिन भर खेतों में खेतिहर मजदूरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतीबाड़ी के काम में जुटा रहता है। वह भी उस आपदा के समय जब लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए अपने घरों में बद रहकर सुरक्षित रहना चाहते है। उस लॉकडाउन के समय में लोगों को दूध, सब्जी व अनाज आदि समय से मिलता रहे, इसके लिए किसान दिन रात परिश्रम करता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि लॉकडाउन के चलते दूध व सब्जियों की मांग बहुत कम हो गयी है, जिसके चलते किसान के पास इन वस्तुओं की भंडारण क्षमता ना होने के कारण बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, उसको भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है। जबकि अपने प्यारे देशवासियों का पेट भरने के लिए वह न तो दिन देख रहा है ना रात और सदैव अपनी मेहनत से अपनी फसलों को समय से उगाकर हमारे घरों तक खाने के लिए पहुंचाता है। हमारे ‘अन्नदाता’ किसान के लिए चाहे कड़ाके की ठंड हो, चिलचिलाती धूप हो, तेज बिजली की कड़कड़ाहट हो, भयंकर वर्षा हो, भयंकर ओलावृष्टि हो या फिर सूखे के कहर का सामना करना पड़े वो अपनी हिम्मत से सभी दुश्वारियों पर हमेशा विजय हासिल कर लेता है। हमारे देश भारत की पहचान हमेशा कृषि प्रधान देश के रूप में रही है, देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी किसी ना किसी रूप में कृषि से जुड़ी हुई है।  लेकिन पिछ़ले कुछ वर्षों से देश का किसान बहुत ज्यादा परेशान हैं। हाल के दिनों में अपनी गेहूँ, जो, सरसों, चने, सब्जियों, फलों, दलहन, तिलहन और अन्य सभी रबी सीजन की अधिकतर फसलों के मौसम की मार से खराब होने के चलते किसानों को बहुत ज्यादा परेशानी उठानी पड़ी थी, अब ऊपर से देश में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते महामारी के हालात उत्पन्न हो गये है। किसानों के सामने यह हालात ऐसे समय पर उत्पन्न हुए है जब एक तरफ तो मौसम की मार से बची हुई गेहूँ की फसल खेतों में कटाई के लिए तैयार खड़ी है, वहीं दूसरी तरफ कोरोना वायरस संक्रमण के भय के चलते मजदूरों के ना मिलने के कारण समय से फसल को खेतों से काटकर घर लाना, मंडी व सरकारी सेंटरों तक पहुंचाना बहुत बड़ी चुनौती बन गया है, उसी तरह से मजदूरों में व्याप्त भय के चलते आलू व अन्य सब्जियों को कोल्ड स्टोरेज तक पहुंचाना बहुत बड़ी समस्या बन गया है, साथ ही आना वालें समय में चीनी की खपत बेहद कम होने के चलते किसानों के सामने गन्ने की फसल के लिए भी बहुत ही चुनौती पूर्ण हालात बन सकते है सरकार को इस पर लगाम लगाने के लिए अभी से काम करना शुरू कर देना चाहिए। हमेशा से सबका पेट भरने की जिम्मेदारी निभाने वाले ‘अन्नदाता’ किसानों के कंधों पर लॉकडाउन के समय में घरों में बंद लोगों के लिए समय से फल, सब्जी, अनाज, दूध आदि उपलब्ध करवाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है, इतनी विकट भयावह परिस्थितियों में भी किसान अन्य जाबांज कोरोना वारियर्स की तरह सजगतापूर्वक अपनी जिम्मेदारी का पालन दिन-रात मेहनत करके कर रहा है। ऐसी आपदा के समय में सरकार के द्वारा किसानों की किसी भी समस्याओं की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। ऐसे में हमारी सरकारों को किसानों की खुशहाली का विशेष ध्यान रखना चाहिए और कोरोना संक्रमण से गांवों की आबादी को बचाने के लिए सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। आपदा के समय में हालात पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार को कोरोना से प्रभावित होने वाले किसानों व खेतिहर मजदूर के तुरंत अच्छे उपचार की व्यवस्था और अन्य कोरोना वारियर्स की तरह ही किसानों का  50 लाख व खेतिहर मजदूरों का 30 लाख रुपये का बीमा सरकार की तरफ से करवाना चाहिए, जिससे वो बेखौफ होकर लॉकडाउन के पीरियड में भी खेतों में जाकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन अच्छे ढंग से करते रहें। सरकार को कुछ समय पूर्व ही मौसम की मार से बेहाल किसानों के लिए मुआवजा व विशेष आर्थिक पैकेज की समय रहते तुरंत घोषणा करके धरातल पर उसका वितरण करना चाहिए, जिससे की वो समय से अगली फसल की बुआई के लिए जुताई, खाद, बीज व कीटनाशक दवाओं आदि की तैयारी करके, फसल की बुआई समय से कर सकें और आने वाले समय में धन अभाव के चलते उत्पन्न होने वाले संकट को टालकर देश के व विश्व के कुछ देशों के खाधान्न की जरूरत को पूरा कर सकें। वैसे आज जो हमारे देश में कोरोना आपदा के चलते भयावह हालात है उसमें हम सभी को सुरक्षित रखने में देश के कोरोना वारियर्स के साथ ‘अन्नदाता’ किसानों का अनमोल योगदान है। इसलिए कोरोना आपदा के समय में सरकार के द्वारा किसानों के हितों व समस्याओं की अनदेखी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह स्थिति देश व देशवासियों के हित में बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
भगवान।।

।। जय हिन्द जय भारत ।।।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।

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