सिकल सेल के खिलाफ शंखनाद

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मनोज कुमार
मध्यप्रदेश सहित कुछ राज्यों में निकट भविष्य में चुनाव होने वाले हैं और राज्य सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए खजाने का मुंह खोले बैठी है लेकिन इससे इतर एक यज्ञ के रूप में जिस देशव्यापी अभियान की शुरूआत मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है, वह चुनाव नहीं बल्कि एक-एक आदिवासी की धडक़न बचाने से वास्ता रखता है. इसे सिकल सेल रोग के खिलाफ शंखनाद कह सकते हैं. आदिवासी समाज को आहिस्ता-आहिस्ता निगल रही सिकल सेल नाम एनीमिया के उन्मूलन का बीड़ा केन्द्र सरकार ने उठाया है और आने वाले साल 47 तक सिकल सेल बीमारी को खत्म करने का निश्चिय किया है. सिकल सेल एनीमिया एक प्रकार की अनुवांशिक बीमारी यानी जेनेटिक डिसऑर्डर है. माता और पिता दोनों में सिकल सेल के जीन्स होने पर उनके बच्चों में यह बीमारी होना स्वाभाविक है. सिकल सेल में रोगी की लाल रक्त कोशिकाएं हंसिए के आकार में परिवर्तित हो जाती हैं. हंसिए के आकार के ये कण शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंच कर रुकावट पैदा करते हैं. इस जन्मजात रोग से ग्रसित बच्चा शिशु अवस्था से बुखार, सर्दी, पेट दर्द, जोड़ों एवं घुटनों में दर्द, सूजन और कभी रक्त की कमी से परेशान रहता है. सिकलसेल-एनीमिया ऐसा रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं जल्दी टूट जाती है. इसके कारण एनीमिया और अन्य जटिलताएं जैसे कि वेसो-ओक्लुसिव क्राइसिस, फेफड़ों में संक्रमण, एनीमिया, गुर्दे और यकृत की विफलता, स्ट्रोक आदि की बीमारी और यहां तक की पीडि़त के मौत तक की आशंका रहती है।
विशेषज्ञों के अनुसार सिकल सैल एनीमिया 3 प्रकार का होता है. पहला प्रकार सिकल वाहक है, सिकल वाहक में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और ऐसे व्यक्ति को उपचार की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन ऐसे व्यक्ति को यह पता होना चाहिये कि वह सिकल वाहक है. यदि अनजाने में सिकल वाहक दूसरे सिकल रोगी से विवाह करता है, तो सिकल पीडि़त संतान पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है. दूसरे प्रकार के सिकल रोगी में सिकल सैल बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं. इन्हें उपचार की आवश्यकता होती है. सिकल बीटा थेलेसिमिया तीसरे प्रकार का सिकल सैल रोग है. बीटा थैलेसिमिया बीटा ग्लोबिन जीन में दोष के कारण होता है. सिकल सैल बीमारी अनुवांशिक बीमारी है. सिकल सैल रोगी के साथ खाना खाने, साथ रहने, हाथ मिलाने अथवा गले मिलने से यह रोग नहीं होता. यह बीमारी केवल माता.पिता से ही बच्चों में आ सकती है, जिसे बचपन में यह बीमारी नहीं हैए उसे आगे जिंदगी में कभी भी किसी भी तरीके से सिकल सैल की बीमारी नहीं हो सकती.
सिकल सेल बीमारी को नेस्तनाबूद करने के लिए मध्यप्रदेश के गर्वनर मंगूभाई पटेल ने सर्वाधिक सक्रियता के साथ इस अभियान में जुटे हुए थे. मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से सिकल सेल एनीमिया के खात्मे के संकल्प के साथ एक जनअभियान की शुरूआत हो चुकी है. सिकल सेल किस तरह आदिवासी समाज का काल का ग्रास बना रही है, यह जानने से पहले जरूरी है कि यह जान लें कि अकेले मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि देश के करीब 17 राज्यों 7 करोड़ से अधिक आदिवासीजन इस बीमारी की चपेट में हैं. आबादी के मान से मध्यप्रदेश एक बड़ा आदिवासी प्रदेश है लिहाजा मध्यप्रदेश सर्वाधिक प्रभावित राज्य माने जा सकते हैं. वैसे इस समय देश के 17 जिलों में इस बीमारी का प्रकोप है जिनमें मुख्य रूप से ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल में यह बीमारी जड़े जमाए हुए है. आए दिन जनजातीय समुदाय की मौतें एनीमिया सिकल सेल में कारण हो रही है। मध्यप्रदेश में एनीमिया सिकलसेल आदिवासी बाहुल्य इलाकों में ज्यादा फैला हुआ है उनमें शहडोल, उमरिया, अनुपपुर, बालाघाट, डिंडोरी, मंडला, सिवनी, छिंदवाड़ा, बड़वानी, अलीराजपुर, बुरहानपुर, बैतूल, धार, शिवपुरी, होशंगाबाद, जबलपुर, खंडवा, खरगोन, रतलाम, सिंगरौली और सीधी के नाम शामिल हैं. सिकल सेल रोग (एससीडी) एक क्रोनिक एकल जीन विकार है जो क्रोनिक एनीमिया, तीव्र दर्दनाक एपिसोड, अंग रोधगलन और क्रोनिक अंग क्षति और जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण कमी की विशेषता वाले दुर्बल प्रणालीगत सिंड्रोम का कारण बनता है।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत, भारत सरकार अपने वार्षिक पीआईपी प्रस्तावों के अनुसार सिकल सेल रोग की रोकथाम और प्रबंधन के लिए राज्यों का समर्थन करती है।  वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में, 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू करने की घोषणा की गई है. इस मिशन में जागरूकता सृजन, प्रभावित क्षेत्र में 0-40 वर्ष आयु वर्ग के लगभग सात करोड़ लोगों की सार्वभौमिक जांच पर ध्यान केंद्रित किया गया है. केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों और परामर्श. सिकल सेल रोग की जांच और प्रबंधन में चुनौतियों से निपटने के लिए मध्य प्रदेश में राज्य हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन की स्थापना की गई है. प्रधानमंत्री द्वारा बीते 15 नवंबर 2021 को मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर जिले और परियोजना के दूसरे चरण में शामिल 89 आदिवासी ब्लॉकों में स्क्रीनिंग के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की गई. राज्य द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार कुल 993114 व्यक्तियों की जांच की गई है जिनमें से 18866 में एचबीएएस (सिकल ट्रेट) और 1506 (एचबीएसएस सिकल रोगग्रस्त) पाए गए हैं. इसके अलावा, राज्य सरकार ने रोगियों के उपचार और निदान के लिए 22 जनजातीय जिलों में हीमोफिलिया और हीग्लोबिनोपैथी के लिए एकीकृत केंद्र की स्थापना की है.
नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया की मीडिया फेलोशिप के तहत तैयार रिपोर्ट में राजेन्द्र जोशी लिखते हैं कि सिकल सेल एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. यह आपातकालीन स्थिति पैदा कर सकता है जैसे छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ बच्चों को बुखार होना आदि। हंसिए के आकार रक्त कोशिकाओं द्वारा रक्त–वाहिकाओं को बाधित करने के कारण तेज दर्द उठ सकता है। आमतौर पर पेट, छाती और हड्डियों के जोड़ों में तेज चुभने वाला दर्द होता है। दर्द शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। इस बीमारी में डिहाइड्रेशन, बुखार, शरीर के तापामान में उतार-चढ़ाव, तनाव आदि भी हो सकता है। बच्चों में ये सभी लक्षण कुछ दिनों से लेकर सप्ताह भर तक नजर आ सकते हैं। बच्चे में इनसे लक्षण अलग भी हो सकते हैं। सिकल सेल एनीमिया का इलाज – दुर्भाग्यवश इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है। बच्चों के लक्षणों को देखकर उसका इलाज किया जाता है। स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेन्टर (छत्तीसगढ़) के पूर्व निदेशक (2014-2020) डॉ. प्रबीर चटर्जी ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में यह सुनिश्चित करवाया कि हीमोग्लोबीन की कमी वाली प्रत्येक गर्भवती महिला की सिकल सेल एनीमिया की जांच हो। किसी महिला के सिकल सेल पाजीटिव होने पर अन्य परिजनों की भी जांच करवाई जाती थी. उन्होंने भी स्वीकार किया कि सिकल सेल एनीमिया की जांच की संख्या जितनी बढ़ाई जाएगी पीडि़तों की पहचान आसान होगी। राज्य सरकारों को यह काम करना चाहिए. मध्यप्रदेश सरकार ने सिकल सेल से पीडि़त मरीजों को विकलांग मान लिया है और जो मरीज 40 प्रतिशत से अधिक सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित है उनके विकलांगता प्रमाण पत्र बनाए जा रहे हैं। सिकल सेल एनीमिया से पीडि़त मरीज और परिजन सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली नि:शुल्क सुविधाओं के बारे में अनजान हैं. इसी कारण वे निजी जांच केन्द्रों और निजी चिकित्सकों से इलाज में हजारो रूपये खर्च कर देते हैं, जबकि सरकारी जिला अस्पतालों में सिकल सेल एनीमिया से पीडि़त मरीजों को जांच और दवाइयाँ नि:शुल्क मिलती है। मध्य प्रदेश के 45 में से 22 जिले सिकल सेल बेल्ट के अंतर्गत आते हैं और एचबीएस की व्यापकता 10 से 33 प्रतिशत के बीच है. पीडि़त व्यक्ति को प्रति माह 400 से 500 रूपये की दवाई खरीदनी पडती है। इसके अलावा सिकल सेल की तीनों तरह की जांच 200 रूपये से लगाकर 1,200 रुपयों तक की होती है। सिकल सेल के गंभीर मरीजों को ब्लड चढ़ाना पड़ता है जिसका निजी अस्पतालों में 3,000 रूपये यूनिट का खर्च पडता है. जबकि सरकारी जिला अस्पताल में यह सुविधा नि:शुल्क है. डोनर अगर निकट संबंधी हो तो उसका ब्लड इस्तेमाल किया जाता है। सिकल सेल प्रमाणीकरण के लिये एक बार जांच की जरुरत होती है जबकि नियमित रूप से हीमाग्लोबीन की जांच करवाई जाती हैं.
आदिवासी जिलों में सरकारी स्वास्थ सेवाओं के हाल में पहले की तुलना में सुधार तो हुआ है लेकिन सिकल सेल एनीमीया को उतनी गम्भीर बीमारी नहीं माना जा रहा है जितनी यह गम्भीर है। मध्यप्रदेश के  आदिवासी जिले धार के के सुदूर विकासखंड डही में स्थित सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में सिकल सेल एनीमिया की प्रारम्भिक जांच सुविधा उपलब्ध तो है लेकिन लम्बे समय से सिकल सेल टेस्ट किट नहीं है। आश्चर्यजनक है कि यहां मरीजों के गाँव तथा संपर्क नंबर तक से संबंधित कोई डाटा संधारित नहीं किया जाता है। केवल इतना ही नहीं, सामुदायिक केन्द्र होने के बावजूद ऑन रिकार्ड कोई भी बात करने को तैयार नहीं है। यही हाल सिविल अस्पताल कुक्षी के हैं जहाँ पर मरीजों की सूची और सम्पर्क नम्बर तो है लेकिन सिकल सेल जांच की एचपीएलसी मशीन नहीं है। लम्बे समय से यहां जांच किट भी उपलब्ध नहीं है नहीं है। उपलब्ध सुविधाओं और कमियों के बारे में जिम्मेदार ऑन रेकार्ड बात करने को तैयार नहीं है। 17 दिसम्बर 2021 को प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार खरगोन जिले में सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित मरीजों को आंकडा 6,492 है तो बडवानी जिले में यह आंकडा 5,794 है आलीराजुपर में 5,055 खंडवा में 133 छिंदवाडा में 88 तो बालाघाट 702 मरीज, बैतूल में 290 छिन्दवाडा में 90 खंडवा में 133, झाबुआ में 800, शहडोल में 75 मरीज दर्ज है। जिलों से प्राप्त जानकारी अनुसार कुल मरीजों की संख्या 19,519 है। प्रदेश के इन्हीं जिलो में निजी चिकित्सकों से इलाज करवाने वाले मरीजों के आंकड़े इनमें शामिल नही है, जिनकी संख्या सरकारी आंकडो से कई गुना ज्यादा हो सकती है।  जबकि मप्र के स्वास्थ विभाग के 2020-21 के वार्षिक प्रतिवेदन में सम्पर्ण मप्र में सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित मरीजों की संख्या मात्र 6,649 बताई गई है। वहीं दूसरी और इन्हीं जिलों में विकासखंड स्तर के सामुदायिक स्वास्थ केन्द्रों पर लेबोरेटरी की सुविधा जरूर है लेकिन वहां पर सिकल सेल एनीमिया की जांच किट न होने से मरीजों को पहचान नहीं हो पा रही है।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2023 में सिकल सेल एनीमिया बीमारी को लेकर एक ऐलान किया था। इस दौरान उन्होंने बताया था कि हमारी सरकार का लक्ष्य है कि साल 2047 तक इस रोग को भारत से जड़ से खत्म कर दिया जाए। इसी कड़ी में पीएम मोदी ने शहडोल में सिकल सेल कार्ड वितरण कर बीमारी की स्क्रीनिंग के लिए लोगों को जागरूक करने का संदेश दिया.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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