भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी और सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस आज सबसे बुरी हालत में है,विगत लोकसभा चुनाव के बाद इस विरासत का पतन निरंतर देखने को मिल रहा है,पार्टी को एक के बाद एक चुनावों में मुंह की खानी पड़ रही है, फिर भी अभी तक कांग्रेस अध्यक्षा ने पार्टी में कोई बड़ा अमूलचूल बदलाव नहीं किया है और न ही इसके संकेत अभी तक दिए हैं.130 वर्ष पुरानी पार्टी जिसने आज़ादी के आन्दोलन से लेकर देश के सतत विकास में प्रमुख भूमिका निभाई .आज वही पार्टी हर चुनावों में सबसे ज्यादा निराशाजनक प्रदर्शन कर रही है. हाल ही में हुए मध्यप्रदेश और राजस्थान नगर निकाय चुनाव में फिर सत्ताधारी दल बीजेपी को भरी बढ़त देखने को मिली तथा कांग्रेस को फिर एक मर्तबा करारी शिकस्त झेलनी पड़ी,ये बात दीगर है कि नगर निकाय चुनाव और विधानसभा चुनाव दोनों अलग –अलग मुद्दों पर लड़ा जाता है और जनता भी दोनों चुनावों को भिन्न –भिन्न नजरिये से देखती है.बीजेपी के लिए इस जीत के मायने भले ही कम हो लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि कांग्रेस के लिए ये एक बड़ी हार है क्योंकि ये उन्हीं राज्यों की जनता का मत है जिस राज्य में व्यापमं और ललित गेट हुए हैं, जिस मसले पर अभी कुछ ही दिनों पहले संसद के मानसून सत्र में कांग्रेस ने संसद में हंगामा किया और संसद को एक दिन भी सुचारू रूप से नहीं चलने दिया था. मध्यप्रदेश में व्यापमं, राजस्थान में ललित गेट इन दोनों मुद्दों को लेकर कांग्रेस इन राज्यों के मुख्यमंत्री सहित विदेश मंत्री तक के इस्तीफे की मांग कर रही है.वहीँ दूसरी तरफ उसी राज्य की जनता ने बीजेपी को अपना मत देकर कांग्रेस के सभी आरोपों को खारिज कर दिया .कांग्रेस ललित गेट,व्यापमं और चावल घोटाले को लेकर भले ही संसद से लेकर सड़क तक विरोध कर रही हो लेकिन इस विरोध को जनता से जोड़ पाने में कांग्रेस पूर्णतया विफल रही है. कांग्रेस एक नकारात्मक विपक्ष की भूमिका का निर्वहन कर रही है.जिस प्रकार से मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ा पूरा देश अपने द्वारा चुन कर भेजे गए प्रतिनिधियों को देखा की किस प्रकार से वे लोकतंत्र की मर्यादा को धूमिल कर रहे है.बहरहाल, सवाल ये उठता है कि तमाम सरकार विरोधी मुद्दे होने के बावजूद कांग्रेस को जनता स्वीकार क्यों नहीं कर रही ?अगर सवाल की तह में जाए तो एक बात तो साफ नजर आती है,वो है कांग्रेस आज भी जनता से दुरी बनाए हुए है जिसका परिणाम ये है कि जनता के बीच से अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है.कांग्रेस अभी भी जमीन से नहीं जुड़ी.आज भी पार्टी के कई नेता जनता से जुड़ने के बजाय एयर कंडीसन कमरों में रहना पसंद कर रहे हैं.कांग्रेस के इन आला नेताओं को समझना होगा कि अगर पार्टी को फिर से सफलता के रास्ते पर लाना है तो,उसे कई कड़े फैसले लेने होंगे जो पार्टी के हित में हो .कांग्रेस शुरू से ही गाँधी – नेहरु परिवारवाद से ग्रस्त रही है.अब समय आ गया है,जब पार्टी को परिवारवाद से मुक्त कर दिया जाए और कांग्रेस के किसी आला नेता को पार्टी की कमान सौप दी जाए जो जमीन से जुड़ा हुआ व्यक्ति हो ,जनता की नब्ज को टटोलना जानता हो अगर कांग्रेस ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बनाती है तो, इससे पार्टी ही नहीं वरन देश की जनता में कांग्रेस के प्रति एक सकारात्मक भाव पहुंचेगा.पहला तो उनके कार्यकर्ताओं में एक नई उर्जा का संचार होगा जो लगातार मिल रही पराजयों से शिथिल पड़ गई है तथा सबसे बड़ा आरोप जो पार्टी पर लगता रहा है वो है वंशवाद, इससे कहीं न कहीं पार्टी इन आरोपों से भी बच सकती है.कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के बाद ही कुछ बड़े बदलाव करने चाहिए थे लेकिन कांग्रेस ने अभी तक नहीं किया इसका एक कारण ये भी है की कांग्रेस के अदद कुछ नेताओं को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस का एक बड़ा तबका एक परिवार की चापलूसी कर अपना काम निकाल लेना चाहता है और पार्टी में बने रहना चाहता है.वहीँ दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी को मिल रहें जनसमर्थन और मोदी की लोकप्रियता के आगे कांग्रेस की लोकप्रियता बहुत ही कम है. अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो कांग्रेस को खोई हुई लोकप्रियता तथा खोई हुई जमीन को हासिल करने में अभी कितना वक्त लगेगा ये कहना बेमानी होगी.क्योकि अभी भी मोदी की लोकप्रियता जनता के बीच बनी हुई है.कांग्रेस को अगर अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाना है तो एक नया चेहरा ढूढने की कवायद शुरू कर देनी चाहिए, जिसकी पार्टी को दरकार है. कांग्रेस के कई बड़े नेता राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहें हैं,पर उन्हें ये भी गौर करना चाहिए कि लोकसभा तथा उसके बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में राहुल ही पार्टी का मुख्य चेहरा थे.जिसे जनता ने सिरे से खारिज कर दिया.ये कांग्रेस का वही तबका है जो चापलूसी कर पार्टी में अपने ओहदे पर बना रहना चाहता है.अगर बात कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की करें तो वो किसानों से मिलना ,गरीबों से मिलना तथा जनता से जुड़ने में अपना समय तो दे रहे है.परन्तु जनता के दिल में अपनी पार्टी की छवि सुधारने में विफल साबित हो रहे हैं.जो पार्टी देश में सबसे ज्यादा सत्ता पर काबिज़ रही हो, आज उसी पार्टी की लोकप्रियता हासिए पर है, गौरतलब है कि उस खोए हुए जनाधार को वापस पाने की बड़ी चुनौती आज राहुल गाँधी के सामने खड़ी है.कांग्रेस की सियासी जमीन खिसक रही है, उस खिसकती हुई जमीन को बचाने का प्रयास राहुल गाँधी कर रहें हैं.पार्टी को ये समझना होगा कि अब समय संगठन को सुदृढ़ करने का है, राहुल गाँधी हर मसले पर आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए सीधा निशाना प्रधानमंत्री पर साधते है समय आने पर प्रधानमंत्री उन्ही सवालों से ही उनको जबाब दे देते है. यहाँ राहुल गाँधी की राजनीतिक नासमझी देखने को मिलती है एक बात तो स्पष्ट है कि राहुल गाँधी अभी भी राजनीति में पूरी तरह से परिपक्व नहीं है उन्हें कांग्रेस के इतिहास से ही बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.जिस प्रकार से 1977 में कांग्रेस को दुबारा खड़ा करने के लिए इंदिरा गाँधी ने संघर्ष किया और पार्टी को पुनर्जीवित किया था. इंदिरा गाँधी की उस रणनीति को कांग्रेस को समझना होगा जिससे पार्टी को नई दिशा मिली थी,अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो आगामी कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं तथा कांग्रेस जनता के दिल में फिर से जगह बना सकती है.
कांग्रेस में बड़े बदलाव की जरूरत क्यों है? क्यों न, देर आए दुरुस्त आए, महात्मा गांधी अनुसार कांग्रेस को समाप्त कर कांग्रेस-मुक्त भारत की संरचना की जाए?