कांग्रेस नेतृत्व अभी भी हिन्दू अस्मिता की गंभीरता को नही समझ पा रहा ?

सीताराम येचुरी सीपीएम के महासचिव है उनके विरुद्ध बाबा रामदेव ने हरिद्वार में साधु संतों के साथ जाकर पुलिस में हिन्दू आस्था के साथ खिलवाड़ का आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया है क्योंकि भोपाल के एक कार्यक्रम में श्री येचुरी ने हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को पुष्ट करते हुए कहा था कि हिन्दू धर्मग्रन्थ रामायण और महाभारत हिंसा से भरे पड़े है इसलिए हिन्दू हिंसक ही होते है ।अब यह कहा जाना बचकाना ही होगा कि सीताराम येचुरी को रामायण और महाभारत का ज्ञान नही है वे एक उच्च शिक्षित और अध्ययनशील नेता है और उनका यह बयान भोपाल की जमी पर आकर देना कोई इतेफाक नही है तब जबकि भोपाल सीट का लोकसभा चुनाव हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी के शोर में लड़ा जा रहा हो और उसमें उम्मीदवार भी दिग्विजयसिंह के साथ साध्वी प्रज्ञा सिंह जैसे चेहरे हो।असल में सीताराम येचुरी इस देश मे उस ताकत के प्रतिनिधि है जिसने आजादी के बाद सत्ता के सरंक्षण में हिंन्दू सांस्कृतिक मूल्यों और मानबिन्दुओं को कमतर करने का संगठित औऱ संस्थानिक प्रयास किया है सरकार पोषित वाम बुद्विजीवी वर्ग ने भारत के स्कूली पाठ्यक्रम, संगीत,कला,इतिहास, में हमेशा इस बात को स्थापित करने की कोशिश की है कि भारत का अपना कोई आत्मगौरव नही है भारत की मौलिकता पर विदेशी आक्रमणकारियों, लुटेरों,को प्राथमिकता पर रखा गया है भारत की धरती को मां नही माना उल्टे डायन कहने वालों को सरंक्षण दिया। हिन्दू धर्म की कतिपय सामाजिक कुरीतियों को इस हद दर्जे तक विकृत साबित किया है कि ये हजारों साल पुरानी प्रमाणिक सभ्यता खुद को हीन औऱ अपराधबोध से पीड़ित मानने लगे।देश के सभी सरकारी संस्थानों जिन्हें कला,साहित्य, संस्क्रति,के प्रचार प्रसार औऱ पीढ़ीगत हस्तांतरण की जिम्मेदारी दी गई उन्होंने सदैव भारत को आर्य अनार्य  वर्ण व्यवस्था महिला विभेद के दुराग्रही आधारों से कलुषित करने का काम किया है।इस कार्य को कांग्रेस की सरकारों ने वामपंथी बुद्धिजीवियों से कराया और आज भी यह सिलसिला जारी है।सीताराम येचुरी का रामायण और महाभारत को लेकर दिया गया बयान इसी स्थापित मानसिकता का एक प्रदर्शन भर है लेकिन एक बात आज तक समझ नही आई है कि जिस कांग्रेस सरंक्षण में ये वाम विषवेल इतनी हरियाई उससे आज की कांग्रेस को क्या बुनियादी फायदा हुआ है? उल्टे जिस हिडन एजेंडे के साथ यह मानमर्दन भारतीय पहचान के साथ किया गया है उसकी बड़ी राजनीतिक कीमत कांग्रेस उठा चुकी है 2014 की ऐतिहासिक हार के बाद गठित ए के एंटोनी कमेटी ने अपनी पड़ताल औऱ सिफारिश में यह पाया है कि देश के आम जनमानस की अवचेतना में यह स्थापित हो गया है कि कांग्रेस मुस्लिम परस्त पार्टी है यह हिन्दुओ के विरोधी है संभवतः इसीलिए गुजरात चुनाव के बाद से कांग्रेस में टेम्पल रन आरम्भ हुआ है ,राहुल गांधी पैदल मानसरोवर चल कर खुद को शिवभक्त साबित करते रहे है यहां तक कि उन्होंने अपना गोत्र तक दत्तात्रेय बताकर अपनी उस छवि को कम करने की कोशिशें की जो उनके इस बयान से एंटी हिन्दू बनाती है कि मन्दिरो में लड़के सिर्फ लड़कियों को छेड़ने जाते है। सपरिवार अमेठी,राय बरेली में नामंकन से पहले पूजा फिर वायनाड में पुरखो की मुक्ति के लिये बकायदा पिंड दान करना कांग्रेस पार्टी की उसी भूल सुधार की ओर इशारा करती है जिसका जिक्र ए के एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में किया था।लेकिन लगता है कांग्रेस अभी भी बड़ी उलझन में है उसे लगता है कि बगैर तुष्टिकरण के उसकी राजनीतिक सफलता की कहानी आगे नही बढ़ सकती है भोपाल के मंच पर दिग्विजयसिंह की मौजूदगी में सीताराम येचूरी का यह बयान असल मे इसी राजनीतिक उलझन का नतीजा है।वरन क्या बजह है कि इस बयान की किसी कांग्रेस नेता ने अभी तक निंदा नही की है न ही इससे असहमति व्यक्त की कारण हिंदू अस्मिता को नीचा दिखाकर मुस्लिम समाज को वोटों के आधार पर धुर्वीकरत करना है जिनकी उपयोगिता चुनावी हार जीत में अहम है। काँग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व ओर सीताराम येचुरी से याराना कोई युक्तसंगत युग्म का निर्माण नही करता है क्योंकिं आज के सूचना प्रधान युग मे आम आदमी किसी भी थोपे गए विचार और प्रोपेगैंडा से जल्दी प्रभावित नही होता है।आम भारतीय को यह बताने की जरूरत नही है कि भारत के अवचेतन में विराजे रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ अगर हिंसा का संदेश दे रहे होते तो क्या ये संभव था इस मुल्क पर हूण, मंगोल,शक,अफगान ,मुगल,अंग्रेज, डच,पुर्तगाल,के लोग आकर शासन कर पाते ?क्या हजारो साल बाद भी भारत के लोकजीवन में वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा जीवित रहती जो रामायण महाभारत से पहले के कालक्रम की है।क्या जिओ औऱ जीने दो का संदेश बुद्ध के मुखारबिंद से निकल कर चीन,जापान, वियतनाम से लेकर कोरिया तक जा पाता?क्या यह सच्चाई नही की इस जम्बूदीपे मे मौजूद सभी धर्मों के अनुयायियों का मूल धर्म पहले हिन्दू ही नही था? क्या रामायण महाभारत की सिखाई हिंसा के बाबजूद एक लुटेरा सोमनाथ के मंदिर को लूट कर ले जाता?क्या इस हिंसक हिन्दू समाज के सामने ही  आताताई बाबर आकर राम की जन्मभूमि पर मन्दिर के ऊपर मस्जिद तान देता?क्या महाभारत के पात्र श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर भी कोई आतताई आकर मस्जिद खड़ी कर सकता था?क्या जिस काशी का वर्णन पुराणों में मिलता है जो आदि गुरु शंकर के ब्रह्म ज्ञान से आलोकित हो उस पवित्र धरती पर विराजे बाबा विश्वनाथ को कोई मस्जिद की छाया में लाने की हिम्मत कर सकता था? रामायण की हिंसा से हिंसक हुए हिन्दू समाज ने अपने आँचल में लाखों मस्जिद,गिरिजाघर कैसे बनने दिए?आज भारत मे 25 करोड़ आबादी मुस्लिम वर्ग की हो गई हिंसक हिन्दू समाज की हिंसा के बाबजूद औऱ पाकिस्तान की 2 करोड़ हिन्दू आबादी 12 लाख पर आ गई सहिष्णु मुस्लिम समाज के सरंक्षण में शायद यही बताना भी भूल गए सीताराम येचुरी।हकीकत तो यही है कि अल्पसंख्यकबाद की देशविरोधी राजनीति ने भारत के प्राचीनतम वैभव और हिन्दू सांस्कृतिक मूल्यों को सदैव अपमानित करने का काम किया है पिछले 70 साल में वामपंथी विचारधारा ने सरकारों के सरंक्षण में जिस कलुष कथा का सृजन हमारे आसपास किया है उसने हमारे आत्मगौरव को कतिपय विस्म्रत सा करने में सफलता ही हांसिल की।राजनीतिक रूप से एक दौर में कांग्रेस को भले इससे फायदा हुआ हो लेकिन आज यही कांग्रेस का संकट भी बना है भोपाल की जमी पर लोकसभा का चुनाव इस अन्तर्दन्द की ही अभिव्यक्ति है जहां एक ओर सीताराम येचुरी रामायण ,महाभारत को निशाना बनाते है दूसरी तरफ दिग्विजयसिंह 5 हजार हिन्दू संतो को प्रचार के लिये उतारते है वे खुद पौराणिक नदी नर्मदा की पैदल परिक्रमा करते है और राममंदिर के लिये जमीन दान देते है।लेकिन देश की सियासत में अब अल्पसंख्यकवाद इस नकली आवरण में चल नही पायेगा क्योंकि आम आदमी की चेतना का स्तर उसे राजनीतिक रूप से निर्णयन की स्वाधीनता दे रहा है वह थोपे गए विचारों को अंतर्मन में धारण नही करता है जम्हूरियत की बारीकियां उसे भी उतनी ही समझ आने लगी है जितनी घाघ नेताओ को।तुष्टीकरण ऒर पुष्टिकरण दोनो की छिपी हकीकत अब बेपर्दा हो चुकी है।कांग्रेस इस देश की सबसे  पुरानी औऱ व्यापक सियासी पार्टी है उसका लगातार कमजोर होना संसदीय प्रणाली के लिये भी खतरा है क्योंकि क्षेत्रीय दलों के पास राष्ट्रीय सोच का अभाव है।जिन सीताराम येचूरी ने भोपाल में आकर यह बयान दिया है उनका शोक गीत तो भारत की राजनीति से बज ही गया है इसलिये कांग्रेस को समझना होगा कि वह अपनी नीतियों को नेहरुयुगीन दौर से बाहर निकालकर नए भारत के साथ सुमेल करे जहां हिंदू अब अपने इतिहास पर शर्मिंदा नही है वह आत्मगौरव से देखता है अपने सनातन मान बिंदुओं को।

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