क्या ‘खान्स ‘ ही शेष बचे हैं जो हिन्दुओं को ये समझाये कि उनका धर्म कैसा है ?

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इन दिनों  कोई ‘पी के’ नाम की फिल्म आई है। मुझे अभी तक इस फिल्म को  देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है । वैसे भी में केवल ‘कला’ फिल्मे ही देखना पसंद करता हूँ।  बीस -पच्चीस साल से किसी सिनेमाँ घर गया ही नहीं ।  किन्तु मनोरंजन चेलंस पर कभी -कभार  कोई आधी -अधूरी  फिल्म  अवश्य देख लिया करता हूँ ।  इस फिल्म के  लगने के शुरूआती हफ्ते में तो केवल उसके  मुनाफा कमाने  के रिकार्ड और सिनेमा घरों में उमड़ी  दर्शकों की भारी  भीड़  ही चर्चा का विषय रही। किन्तु अब उसकी समीक्षा के बरक्स  दूसरा  पहलु भी  धीरे -धीरे सामने आने लगा है। मेरे प्रगतिशील मित्र और प्रबुद्ध पाठक गण  कह  सकते हैं इससे हमें क्या लेना-देना।  हम तो धर्मनिरपेक्ष हैं। सभी  धर्म -मजहब को समान आदर देते हैं। सभी की बुराइओं का समान रूप से विरोध भी करते हैं। मेरा निवेदन ये है कि वैज्ञानिक समझ और प्रगतिशील चेतना के निहतार्थ यह  भी जरुरी है कि जान आंदोलन तभी खड़ा हो सकता है जब  देश की बहु संख्य ‘धर्मप्राण’ जनता  आप से जुड़े।  चूँकि यह बहुसंख्य जनता  की आस्था का सवाल है और इसको नजर अंदाज करने के बजाय उनके समक्ष दरपेश चुनौतियों से ‘दो -चार’  होना ही उचित कदम होगा।
ख्यातनाम जगद्गुरु शंकराचार्य  स्वामी श्री स्वरूपानंद जी ने इस फिल्म ‘पी के ‘ की आलोचना के  माध्यम से  एक   बहुत ही  सटीक और  रेखांकनीय  प्रासंगिक प्रश्न  उठाया है। कुछ अन्य हिंदूवादी भी इस फिल्म  में उल्लेखित कुछ आपत्तियों का विरोध कर रहे हैं। इन सभी का यह पक्ष है कि चूँकि हिन्दू धर्म बहुत उदार और सहिष्णु है इसलिए उसके नगण्य नकारात्मक पक्ष को  शिद्द्त से  उघारा जाता है। जब कभी   धर्म -मजहब में व्याप्त कुरीतियों या आडंबरों की  आलोचना  को मनोरंजनीय  बनाया जाता है या  किसी फिल्म की विषय  वस्तू  बनाया जाता है. तो ‘हिन्दू धर्म’ को ही  एक सोची समझी चाल के अनुरूप ‘लक्षित’ याने टॉरगेट  किया जाता है।  स्वरूपानंद जी का  ये भी मानना है कि  गैर हिन्दू – मजहबों के  सापेक्ष   हिन्दू धर्मावलम्बी बहुत क्षमाशील और विनम्र होते हैं। इसलिए वे नितांत समझौतावादी और पलायनवादी हैं। इसी उदारता  का   बेजा  फायदा ये फिल्म वाले आये दिन उठाया करते हैं।  किन्तु देश में हिंदुत्व वाद वालों की सरकार है और सत्ता में जो जमे हुए हैं वे अब  ‘हिंदुत्व’ को रस्ते में पड़ी  कुतिया समझकर लतीया  रहे हैं। हिन्दुओं को समझना होगा कि  भाजपा और संघ परिवार ने ‘हिंदुत्व’ को चुनाव में केश’ कराने का जरिया बाना लिया है। शासक वर्ग  साम्प्रदायिकता  को उभारकर असल  मुद्दे से ध्यान बँटाने  में मश्गूल है।  इनके राज में पूँजीपतियों  की लूट और मुनाफाखोरी  भयंकर बढ़ रही है। मेहनतकशों  -गरीब किसानों के श्रम  को सस्ते में लूटने की छूट देशी -विदेशी इजारेदाराओं को निर्बाध उपलब्ध है। संगठित संघर्ष की राह में धर्म-मजहब के फंडे  सृजित किये जा रहे हैं। ‘पी के ‘फिल्म के बहाने एक नया फंडा फिर हाजिर  है। शंकराचार्य स्वरूपानंद जी ने फिल्म के बहाने ‘नकली हिन्दुत्ववादियों’ को ललकारा है। उन्होंने हिन्दुओं  के सदाचार,शील ,उदारता ,सहिष्णुता और सौजन्यता का जो बखान किया है उसका वही  विरोध कर सकता है जिसमे ये ‘तत्व’ मौजूद नहीं हैं। चूंकि मैं तो इन मानवीय और नैतिक  मूल्यों  की बहुत कदर करता हूँ इसलिए त्वरित प्रतिक्रया के लिए तत्पर हूँ।
मेरी दिक्कत ये है की  जगदुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद जी के इन शब्दों का  चाहते हुए भी विरोध  नहीं कर  पा रहा हूँ।  क्योंकि  मैं  उपरोक्त  मानवीय गुणों को [यदि वे किसी धर्म -मजहब में हैं तो !.] मानवता के पक्ष में सकारात्मक मानता हूँ।  दूसरी ओर मैं शंकराचर्य जी के और हिंदूवादियों के इस नकारात्मक हस्तक्षेप का  भी विरोध  करना चाहता  हूँ।  क्योंकि उनका  या किसी और साम्प्रदायिक जमात का इस तरह से – फिल्म ,मनोरंजन,कला ,साहित्य  या संगीत में हस्तक्षेप ना-काबिले -बर्दास्त है। बहुत सम्भव है कि  जिसमें ये गुण-  शील,सौजन्यता और क्षमाशीलता न हो  वे ‘पी के ‘ जैसी फिल्म से छुइ -मुई हो जाएँ।  जिन धर्मों या मजहबों में यदि विनम्रता ,क्षमाशीलता या सहिष्णुता न हो उनका अस्तित्व तो अवश्य ही खतरे ,में होगा।  जो धर्म -मजहब या पंथ – आडंबर,पाखंड ,शोषण ,उत्पीड़न ,आतंक , असत्य या झूँठ  की नीव पर टिके होंगे  उनको ‘पी के’ क्या ‘बिना पी के ‘ भी निपटाया जा सकता है।
मैंने बचपन से ही अनुभव किया है  और  अधिकांस फिल्मों में देखा भी  है कि  मुल्ला  -मौलवी या फादर नन तो बहुत पाक साफ़ और देवदूत  जैसे दिखाए जाते  रहे हैं। प्रायः प्रगतिशीलता या आधुनकिता  के बहाने  खास तौर  से ‘हिन्दू मूल्यों ‘ का ही उपहास किया गया है। कहीं -कहीं अन्य मजहबों या धर्मों के गुंडों -मवालियों को -अंडर  वर्ल्ड के बदमाशों को न केवल ‘महानायक’ बनाया गया बल्कि हिन्दू हीरोइनों को दुबई,यूएई ,अमीरात में बलात ले जाकर अंकशायनी  भी बना  लिया गया। ऐंसा नहीं है कि समाज और राष्ट्र को यह सब मालूम नहीं है किन्तु बर्र के छत्ते में हाथ कोई नहीं डालना चाहता। शंकराचार्य ने डाला है तो  शायद सही ही किया है उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा? अधिकांस फिल्मों में  पंडित ,ब्राह्मण, ठाकुर ,बनिया  और सनातनी हिन्दू ही बहुत बदमाश  बताये जाते हैं । किसी सलमान खान ,किसी शाहरुख़ खान ,किंसी इमरान खान ,किसी अमीर खान , किसी फरहा खान  ,किसी सरोज खान ,किसी पार्वती खान ,किसी गौरी खान ,किसी मलाइका खान ,किसी करीना खान से पूंछा जाना चाहिए कि उन्होंने किसी  ऐंसी फिल्म में काम क्यों नहीं किया जो हाजी मस्तान ,अबु सालेम ,हाफिज सईद,दाऊद खानदान जैसे [कु]पात्रों  पर  फिल्माई  गई हो  ?   क्या  यारी – रिस्तेदारी -कारोबारी  का यह शंकास्पद संजाल नहीं है ? क्या २६/११ ,क्या ९/११ क्या मुंबई बमकांड  हर जगह चुप्पी रखने वालों से यह  जरूर  पूंछा जाए कि आप को  किसने अधिकार दिया या आपको  क्या जरुरत  आन पड़ी कि   बहुसंख्यक हिन्दुओं को ही  सुधारने   का बीड़ा उठायें  ?
मनोजकुमार का सवाल लाजिमी है कि   क्या ‘खान्स ‘ ही  शेष बचे हैं  जो  हिन्दुओं को ये  समझाये कि  उनका धर्म कैसा  हो  ? क्या वे दाऊद ,ओसामा बिन लादेन या आईएस आई ,हाफिज सईद इंडियन मुजहदीन   को भी कुछ समझाने   का माद्दा रखते हैं ?  क्या वे इन पर भी  ‘पी के ‘ जैसी ही फिल्म बनायँगे ?  सब जानते हैं कि आप  नहीं बनाएंगे  . क्योंकि  आपको  मालूम है कि  आप  मार दिए जाएंगे। चूँकि  हिन्दू धर्म  पर धंधा करना  आसान है।  यहाँ  कोई उग्र विरोध नहीं यहाँ तो ‘पी के ‘ के समर्थन में लाल कृष्ण आडवाणी जी भी फौरन हाजिर हैं।  यहाँ तो हिंदुत्व का दिग्विजयी  अश्वमेध विजेता भी ‘खांस’ का फेंन है। तभी तो  जिसे जेल में होना चाहिए उस सलमान के साथ मोदी जी पतंग उड़ाने में गर्व महसूस करते हैं।
क्या ऐंसे हिंदूवादियों से स्वरूपानंद जी जैसे शुद्ध हिंदूवादी ज्यादा ईमानदार नहीं हैं ? कम से कम वे हिंदुत्व की राजनीति  तो नहीं करते ! कम से कम वे  ‘मुँह   देखी  मख्खी नहीं निगलते’ . हिंदुत्व के बारे में स्वरूपानंद जी से  ज्यादा न तो ये सत्तानशीं नेता जानते हैं और न ही ‘पी के  फिल्म का निर्माण करने जानते हैं।  वेशक यदि स्व असगर अली इंजीनियर कहते ,स्व उस्ताद बिस्मिल्ला खां  कहते ,अमीर खुसरो कहते ,तो उनकी बात हिन्दू जरूर मानते। अभी भी  जावेद अख्तर कहें , उस्ताद अमजद अली खां  साहिब कहें या कोई प्रगतिशील जनवादी धर्मनिरपेक्ष विद्वान सुझाव दे कि  हिन्दुओं को फलाँ  चीज से जुदा  रहना चाहिए तो शायद  हिन्दू उनकी बात जरूर सुनेंगे। किन्तु  अपने स्वार्थ या धंधे के लिए केवल ‘हिन्दू धर्म’ को लक्षित करना ,लज्जित करना ठीक बात नहीं है।  चूँकि हिन्दू स्वभाव से ही  क्षमाशील है ,उदार है ,स्वभावतः धर्मनिरपेक्ष है, इसलिए  वह दिल से ‘पी ‘के  देख रहा है। लेकिन शंकराचार्य की बात में भी दम  है उसे नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए !
श्रीराम तिवारी

8 COMMENTS

  1. जाने या अनजाने मैं पी.के .पर चल रही बहस का एक हिस्सा बन गया हूँ ऐसे चूँकि मैंने फिल्म देखी है,अतः मैं शायद उन लोगों से जयादा सही तौर से उसकी समीक्षा करने में समर्थ हूँ,जिन्होंने फिल्म नहीं देखी है.तिवारी जीजब एक तरफ़ा बाम पंथी संहिता का बखान करने लगते हैं,तो मैं अपने को उनके विपक्ष में खड़ा पाता हूँ और आज जब उन्होंने बिना फिल्म देखे शंकराचार्य का समर्थन आरम्भ किया तो भी मैं इस विषय पर कुछ कहने के लिए आगे आ गया हूँ.इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहा जाए.इस फिल्म में आमिर खान के अतिरिक्त अन्य कोई खान तो नहीं नजर आता,तो फिर यह खान की फिल्म कैसे हो गयी?मैंने फिल्म देखते समय यह ध्यान नहीं दिया था कि इसका लेखक ,निर्देशक और निर्माता कौन है?क्या वे सब खान हैं? अगर ऐसा नहीं है,तो खान तो केवल एक चरित्र है,जो दूसरे ग्रह का वासी है.सर्व दोषारोपण उसी पर क्यों? अब बात आती है,कुरीतियों पर उंगली उठाने और उसको पर्दाफाश करने की,तो उसमे हर्ज क्या है? डाक्टर मीणा ने अपने आलेख में आमिर खान के अन्य किरदारों का हवाला देते हुए कुछ प्रश्न उठाये थे,उनका उत्तर भी कभी तक नदारत है.एक अन्य प्रश्न भी सामने आया है.ओह माई गॉड फिल्महिन्दू धर्म का या किसी भी धर्म का इससे ज्यादा मजाक उड़ाती है,फिर भी उस पर इतनी तीब्र प्रतिक्रिया क्यों नहीं हुई? यहाँ तक कि उस फिल्म का प्रधान किरदार भाजपा के टिकट पर लोकसभा का सदस्य भी बन गया. ये सब बहुत से प्रश्न हैं,जो पूर्वाग्रह की ओर संकेत करते हैं. जो लोग बिना फिल्म देखे उसकी समीक्षा करते जा रहे हैं,उनलोगों से ख़ास निवेदन है कि वे पहले फिल्म तो देख ले. सनातन धर्म में अच्छाइयाँ हैं तो उसमे ढोंग भी बहुत है.अगर ऐसा नहीं होता तो आर्यसमाज का जन्म नहीं होता. अन्य बहुत धर्म भी उसी से निकल कर बाहर आएं है,वैसा भी नहीं होता.रही बात सहिष्णुता कि तो उसका दर्शन वहीँ हो जाता है,जब तथाकथित उच्च जाति वाले अपने से तथाकथित निम्न जाति वालों के साथव्यवहार में दिखाते हैं.

  2. dr. sudhesh ji, sachin tyagi ji…. yadi aap log hindu shabd se itna moh rakhenge to desh ki kisi bhi samasya ka samadhan kabhi nahi hoga kyoki yatha nam tatha gun hota hai. aap log kithe samajhdar hai ye to aap log hi janiye. mai to Maharshi Dayanand Saraswati ji ke kahe anusar is shabd ko chhodne ki bat kah raha hoo.Swami Dayanad ji ne yadi satyartha prakash nahi likha hota to ye hindu shabd ke samarthak aur hindu samaj ke thekedar is desh ko gulami ki janjiro se chhura nahi pate. kyoki hindu to har samasya ka samadhan moorti ko poojkar aur janmana apne ko bramhan manne walo se muhurt poochhkar hi karta hai. Yadi arya samaj ki sthapna nahi hota to pande-pujari aur purano ki katha sunane walo ne to hindu samaj ko dubo diya hota. vishesh jankari ke liye ‘Satyarth Prakash’ awashya parhiye. aur kuch pustake is sambandh me parh le to bahut achchha hoga. jaise ‘Mandiro ki loot’, ‘Murtipooja ki haniyan’, ”Bharat ki awnati ke karan” , ‘Hindu Shabd Videshi hai’, ‘Hindu nahi arya’, ‘Hindu nam kasauti par’, ‘Garva se kaho ham arya hai’ adi. hindu samaj ke thekedaro ne is desh ke bahusankhyako (hinduo) ko kabhi sahi disha nahi dikhaya. aap log hindu shabd ko pakre rakhna chahte hai to nischit janiye ki is desh ke bahusankhyako ( hinduo) ki sukh, shanti aur samriddhi me sabse bade aur pramukh badhak aap log hi hai. Maharshi Dayanand ji ne hamare vyavhar ki bhasha ko jise aap hindi bhash kahte hai use ‘aryabhasha’ kaha hai. is desh ka nam hindustan arthat kala, kafir, chor logo ka desh thik nahi hai. sristi ke arambh se aryo ka nivas hone ke karan aryavart nam hi sab prakar se uchit hai. jo kisi bhi prakar se nasha, mansahar tatha apradh nahi karta wah arya hai. arya shabd ki vyakhya me aur bhi bahut kuchh pramain tathya phir kabhi likhenge. ‘Jaihind’ shabd ke sthan par ‘Jai Bharat’, Jai Aryawarta kahiye. hindu shabd ko arya shabd ke saman aadar samman kabhi nahi milega. jab tak ye hindu shabd aur hindutva is desh me rahega sansar ki koi bhi shakti is desh ki sukhi, shant aur samriddha nahi bana sakta. jin videshiyo ne hindu shabd diya hai wahi log arya shabd ka arth bujurg, ijjatdar karte hai. yadi videshiyo dwara arya shabd ka achchha arth kiya gaya hai to nischit roop se iska prabhav sansar buddhjiviyo par achchha hi hoga. ved, upnsishad, brahmangranth, vyakaranshastra, ramayan, mahabharat, gita adi granth ‘arya’ shabd ka hi samarthan kar rahe hai. chor ko police nam dekar sudhara nahi ja sakta. anparh ko master kahkar koi vidyalay me adhyapak nahi banata. hatyaro/apradhyo ko sant /mahatma nam dene ka parinam asharam-narayan sai-rampal ke roop me duniya ne dekh liya hai.

  3. तिवारीजी ,मैं आप सेसहमत हूँ,आपकी पीड़ा से भी हिन्दुओं के बारे मैं लिखा गया हैवे एकदम सही है, असल मैं आम हिन्दू कट्टर धर्मांड नहीं है, आजकल लव जिहाद /पिके /घरवापसी की बड़ी चर्चा है. धर्मनिरपेक्षवाद का भूत नेताओं पर इस कदर चढ़ा है की वे धर्म परिवर्तन पर नियम का विरोध कर रहे हैं, /हम लव जिहाद का उदहारण लें ,आज दिनांक ३ जनवरी २०१५ के हिंदी दैनिक ‘नई दुनिया के प्रथम पृष्ठ पर एक समाचार छापा है. उसका शीर्षक पुलिस ने मेघनगर स्थित घर खंगाला /”लव जिहाद के आरोपी ने ठगे ‘ १ करोड़”अखबार आगे लिखता है की इमरान नाम के आदमी ने २६ दिसम्बर २००९ को गुजरात के बलसाड मैं अपना नाम देवेन्द्रसिंह पिता नरेंद्रसिंघ बताकर शादी की, बारात मैं वह अकेला ही पहुंचा,उसने बताया की उसकी दादी का निधन हो गया है इसलिए उसके घर वाला बहार नहीं निकलेंगे. और डेढ़ महीने तक वह पत्नी को भी घर नहीं ले जा सकता /घर वाले झांसे मैं आ गये. शादी हो गयी. इसके बाद से एक साल तक उसने व्यापर धंदा शुरू करने के लिए पैसे लिए,लगभग ७२ लाख रु. और २५-३० लाख के सोने चंडी के आभूषण उसने ठग लिए,पता चला की पहले से उसकी एक पत्नी और दो बच्चे भी हैं. ठगी का मामला अक्टूबर १४ मैं दर्ज किया गया,और उसे ३० दिसम्बर को गोधरा रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया। तिवारीजी आप बताएं इन हिन्दू माँ बाप और उन बेटियों की नासमझी है या उस इमरान की चालाकी है?

  4. Hindu shabd videshi hai. iska arth bhi sammansuchak nahi hai. is shabd ko jitna jaldi ho sake desh ke bahar nikalne me hi bhalai hai. Arya shabd swadeshi hai, jiska praman ved adi shastro me hai. hamare sabhi mahapurush- Shri Ram, Shri Krishna, Hanuman tatha sabhi Rishi-Maharshi Arya the. aaj is desh ke bahusabkhyak jin khan logo se dukhi hai unhi khan ke poorvajo ne ye hindu shabd diya hai. apni agyanta ke karan is hindu shabd par garv kar rahe hai. Garv se kahi ham ‘Arya’ hai. hindutva (murtipooja, puran, janmana jati pratha, mansahar, sarab, andhvishwas, bramhanwad, chhuachhut adi ) samaj aur rashtra ke liye atyant hanikarak hai. Vaidik paddhati se gyan, karm aur upasna hi Aryatva hai. isliye arya bano aur sabko arya banao.

    • यह सही है कि हिन्दू शब्द पहले विदेशी लोगों ने सिन्धु के अपभ्रंश हिन्द के निवासियों के लिए प्रयुक्त किया था और उन की भाषा को हिन्दुई फिर हिन्दी कहा गया । तो हिन्दू शब्द का बहिष्कार करेंगे तो क्या हिन्दी शब्द का नहीं करेंगे । आर्य शब्द पुराना है पर हिन्द , हिन्दू , हिन्दी परम्परा के भाग बन गये हैं , जिन का बहिष्कार भयंकर होगा । आर्य शब्द के मोह में अब यह कहना बहुत ग़लत होगा कि हिन्दू शब्द का विरोध किया जाए । फिर तो जयहिन्द का भी विरोध करना पड़ेगा क्योंकि हिन्द शब्द भी पहले विदेशियों ने चलाया ।

      • डॉ सुधेश जी , आप सही कहते हैं . फ़िलहाल हिन्दू शब्द का विरोध या बहिष्कार करना उचित नहीं लगता .अगर कभी समाज इतना जागरूक व ज्ञानवान हुआ तो वह स्वयम उचित शब्दों को अपना लेगा …….!! फ़िलहाल हमे हिन्दू शब्द को ही आर्य जैसा आदर देना होगा और सम्माननीय बनाना होगा ……..!!

  5. भाई श्री राम जी, बहुत सही लिखा है.यह सही है कि हिन्दू ‘समाज’ में शताब्दियों से कुछ कुरीतियां घर कर गयी थीं.लेकिन यह भी सही है कि हिन्दू ‘धर्म’ में समय-२ पर इन कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयास भी होते रहे हैं.एक सेल्फ बिल्ट मेकेनिज्म की तरह.पिछले कई शतब्दियों में विदेशियों से मुक्ति के लिए जूझते रहने से सुधार की यह प्रक्रिया कुंद हुई.फिर भी महात्मा ज्योतिबा फुले, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, डॉ.आंबेडकर एवं गांधीजी, ठक्कर बापा तथा ऐसे अन्य महापुरुषों ने आज़ादी के संघर्ष के दौरान भी समाज सुधार जारी रखा.लेकिन आज जो कुछ फिल्मों के माध्यम से दिखाया जा रहा है वह समाज सुधार के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि हिन्दू समाज की ‘विद्रूपताओं’ को प्रदर्शित करके हिन्दू जीवन पद्धति और उनकी धार्मिक आस्थाओं का मजाक बनाने के लिए अधिक हो रहा है.तस्लीमा नसरीन की ‘लज्जा’ और ऐसे ही अनेकों पाकिस्तानी लेखकों द्वारा मुस्लिम समाज पर जो चोट की है वह कमोबेश पूरे प्रायद्वीप पर लागू होती हैं.लेकिन उसके आरे में कोई फिल्मकार कभी कुछ दिखाने की सोच भी नहीं सकता क्योंकि वहां सर कलम करने का फतवा दिए जाने में देर नहीं लगेगी.अभी कुछ समय पूर्व पश्चिम में पैगम्बर मोहम्मद के जीवन पर आधारित फिल्म के विरूद्ध किस प्रकार पूरी दुनिया के मुस्लिमों ने उपद्रव किये थे वह सबको ज्ञात ही हैं.कुछ वर्ष पूर्व ईसा मसीह के जीवन के कुछ पहलुओं को दर्शाती फिल्म के विरुद्ध भी दुनिया भर में ऐसी ही असहिष्णु प्रतिक्रियाएं देखने में आई थीं.जो आमिर खान टीवी पर यह कहने के लिए कि गरीब का बच्चा सौ रुपये की दवाई के अभाव में मर जाता है तीन करोड़ रुपये चार्ज करता हो उसको आज हिन्दू धर्म की कमियां गिनाने का ठेका मिल गया है क्या?क्या कभी किसी मुस्लिम प्रथा के बारे में कोई सवाल खड़ा करने की उसने हिम्मत दिखाई है.एक देहाती कहावत है “गरीब की जोरू सबकी भाभी”.आज हिन्दू समाज की सहिष्णुता को उसकी कमजोरी समझकर कोई भी कुछ भी कह देता है और जब उसका विरोध किया जाता है तो विरोध करने वालों को अतिवादी करार दे दिया जाता है.आमिर खान और उस जैसे और भी तथाकथित ‘सुधारवादियों’ को यह समझ लेना होगा कि सुधार पहले घर से शुरू होता है.पहले अपने मुस्लिम समाज को ही साफ़ करने की मुहीम चलायें, हिन्दू समाज की कमियों को दूर करने में हम स्वयं सक्षम हैं.और कमियां गिनाने के नाम पर हमारी आस्थाओं का मखौल उड़ाना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.डॉ.अरविन्द कुमार सिंह जी जैसे मेकाले पुत्रों की आस्थाएं बेशक कमजोर हो गयी हैं लेकिन जब श्रीराम तिवारी जैसे जनवादी भी इस विषय के पक्ष में खड़े होते हैं तो मन में ये विश्वास जागता है की सिद्धांतों पर चलने वालों की कमी नहीं है.

  6. प्रिय बन्धु
    फिल्म पीके देखी। पंसद आयी। हिन्दु धर्म के अन्धविश्वासो पर करारी चोट है। व्यंग एवं मनोरंजन के माध्यम से। आशा है आने वाले वक्त में हिन्दु अन्धविश्वासो से भी अधिक जकडे हुये मुस्लीम अन्धविश्वासेा पर चोट करती हुयी आमिर की कोई अन्य फिल्म हमें देखने को मिलेगी। अगर ऐसा नही होगा तो हम मान लेगे मात्र पैसा कमाने के लिये एक कलाकार ने राग नम्बर डायल किया था। सच और कला के बीच यह एक बेईमान गठबन्धन था। चोट करनी है तो कबीर की तरह करोए जिसने हिन्दू मुसलमान पर बराबर की चोट की थी। ईश्वर के सन्दर्भ में यदि कुछ बताने का ठेका किसी अन्य के पास नही तो फिर आमिर के पास कैसेघ् यह स्व अनुभूति की चीज है। सारी जिन्दगी दूसरो को ढूढने वाला यदि नहीं ढूढ पाता हे तो सिर्फ अपने आप को। जिस दिन अपने को ढूढ लेगा उस दिन किसी और की आवश्यकता नहीं।
    आपका
    अरविन्द

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