भारत रत्न के नाम से जाने जाने वाले देश के इस सर्वोच्च सम्मान की व्यवस्था 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा० राजेंद्र प्रसाद द्वारा 2 जनवरी 1954 को शुरु की गई थी। शुरु में यह सम्मान केवल जीवित व्यक्तियों को ही दिए जाने की व्यवस्था थी। परंतु 1955 के बाद ही इसमें मरणोपरांत सम्मान दिए जाने की व्यवस्था भी जोड़ दी गई। अब तक भारतवर्ष में 43 विशिष्ट लोगों को इस सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा जा चुका है। जबकि 44वें व 45वें भारत रत्न सम्मान के लिए स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदनमोहन मालवीय तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नामों की घोषणा कर दी गई है। अब तक जिन प्रमुख लोगों को भारत रत्न से नवाज़ा जा चुका है उनमें डा० भीमराव अंबेडकर,मदर टेरेसा,पंडित जवाहरलाल नेहरू,सीवी रमन,राजगोपालाचारी,डा०राजेंद्र प्रसाद,खान अब्दुल गफ्फार खां,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,वीवी गिरी,बिस्मिल्लाह खां,लता मंगेश्कर तथा सचिन तेंदुलकर जैसे लोगों के नाम उल्लेखनीय हैं। परंतु भारत रत्न हेतु किसी विशिष्ट व्यक्ति को नामित किए जाते समय प्राय: कोई न कोई विवाद खड़ा होते भी देखा गया है। आलोचक तो अब स्पष्ट रूप से यह कहने लगे हें कि भारत रत्न का सम्मान अब पूरी तरह से राजनैतिक रूप से आबंटित किया जाने वाला सम्मान बनकर रह गया है। अर्थात् सत्ताधारी दल अपनी सोच-विचार,राजनैतिक नफा-नुकसान आदि देखकर इस सम्मान हेतु किसी व्यक्ति को नामित करते हैं।
इंदिरा गांधी,राजीव गांधी को जिस समय भारत रत्न सम्मान से नवाज़ा गया था उस समय भी इनको यह सम्मान दिए जाने की आलोचना की गई थी। इसे कांग्रेस सरकार द्वारा अपने नेताओं को ही सम्मानित करने की कोशिश बताया गया था। जब लता मंगेश्कर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई उस समय भी यह आवाज़ उठी थी कि यदि किसी गायक को ही सम्मानित करना है तो लता मंगेश्कर ही क्योंं,मोहम्मद रफी क्यों नहीं? मदर टेरेसा को भारत रत्न देते समय दक्षिणपंथियों द्वारा यह कहा गया कि यह मिशनरीज़ को खुश करने के लिए उठाया गया कदम है। सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने पर जब पूरे देश के क्रिकेट प्रेमी जश्र मना रहे थे उस समय एक ज़ोरदार आवाज़ हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के पक्ष में उठी और पहले हॉकी के इस महान खिलाड़ी को भारत रत्न दिए जाने की मांग की जाने लगी। एम जी रामचंद्रन को जब भारत रत्न दिया गया उस समय इस सम्मान के स्तर को छोटा व क्षेत्रीय करने की कोशिश बताया गया। कुल मिलाकर अब तक आबंटित भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वालों में इस प्रकार के कई नाम ऐसे रहे जिन्हें किसी न किसी प्रकार से आलोचना का सामना करना पड़ा। एक बार फिर भारत सरकार द्वारा 44वें व 45वें भारत रत्न सम्मान के रूप में पंडित मदनमोहन मालवीय व अटल बिहारी वाजपेयी के नामों की घोषणा की गई है। राष्ट्र निर्माण में इन दोनों ही महान नेताओं के योगादान की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के साथ-साथ समाज को विभिन्न तरीकों से एकजुट करने का जो काम किया हे उसे देश कभी भुला नहीं सकता। देश को सत्यमेव जयते का उद्घोष मंत्र देने वाले मालवीय जी ने ही हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा आरती की शुरुआत की थी। इसका मकसद था कि देश के लोगों को प्रतिदिन एकजुट करना। शिक्षा के लिए मालवीय जी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसा शिक्षण संस्थान देश को अपने अथक प्रयासों से भेंट किया। वे एक महान पत्रकार व नि:स्वार्थ रूप से देश व समाज की सेवा में लीन रहने वाले महान व्यक्ति थे। इसी प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी ने पहले पत्रकारिता फिर राजनीति के माध्यम से देश की सेवा की। देश में सफल गठबंधन सरकार चलाए जाने का उन्हें गौरव हासिल है। अपनी स्पष्टवादिता,वाकपटुता तथा अपनी विशिष्ट भाषण शैली के लिए पक्ष-विपक्ष सभी दलों के नेता उनका आदर व सम्मान करते हैं। वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते उनसे भारत रत्न स्वयं लेने का प्रस्ताव उनके शुभचिंतकों द्वारा दिया गया था जिसका उन्होंने विरोध किया था। कहा जाता है कि एक बार भारत रत्न पुरस्कार निर्णायक समिति ने यह तय किया कि जिस समय वाजपेयी विदेश दौरे पर होंगे उस समय यहां उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा कर दी जाएगी। वाजपेयी को जब इस ‘साजि़श’ का पता चला तो उन्होंने ऐसा प्रयास करने वालों को डांट भी लगाई।
परंतु इन सब बातों के बावजूद मालवीय तथा वाजपेयी दोनों ही को भारत रत्न दिए जाने की आलोचना होती देखी जा रही है। मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने के आलोचक सवाल कर रहे हैं कि बालगंगाधर तिलक,गोपाल कृष्ण गोखले तथा लाला लाजपत राय स्वतंत्रता सेनानियों ने क्या पंडित मदन मोहन मालवीय से कम योगदान स्वतंत्रता आंदोलन में किया है? इसी प्रकार वाजपेयी को भारत रत्न दिए जाने की आलोचना करने वाले इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को सम्मानति किए जाने का प्रयास बता रहे हैं। कुछ आलोचकों को तो यहां तक कहना है कि अटल बिहारी वाजपेयी व उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी द्वारा दिया गया वह बयान आगरा के जि़ला जज के रिकॉर्ड रूम में मौजूद दस्तावेज एसटी नंबर-03/1943 में दर्ज है जिसके कारण स्वतंत्रता सेनानी लीलाधर वाजपेयी व अन्य सेनानियों को सज़ा हुई थी तथा अंग्रेज़ सरकार द्वारा उसी आधार पर आगरा के बटेशवर गांव के लोगों पर सामूहिक जुर्माना किया गया था। गोया सीधेतौर पर वाजपेयी पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का विरोध करने की बात की जा रही है। एक सवाल यह भी किया जा रहा है कि आिखर मरणोपरांत किसी भी व्यक्ति को भारत रत्न दिए जाने का औचित्य ही क्या है? किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन में ही भारत रत्न से नवाज़ा जाना चाहिए। भारत रत्न सम्मान को लेकर मचे इस घमासान के बीच यह बात भी गौरतलब है कि अभी तक देश की किसी भी सरकार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इस सम्मान के योग्य संभवत: नहीं समझा है। अन्यथा मेरे विचार से गांधी जी व सुभाष चंद्र बोस देश के पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों में थे जिन्हें प्रथम भारत रत्न सम्मान मिलना चाहिए था? एक सवाल यह भी है कि क्या चंद्रशेखर आज़ाद,भगतसिंह,राजगुरू,सुखदेव,अशफाक उल्लाह खां व रामप्रसाद बिस्मिल जैसे भारत के कई रत्न भारत रत्न के हकदार नहीं?
बहरहाल, भारत रत्न के लिए नामित लोगों के पक्ष और विपक्ष में आने वाली तमाम तरह की दलीलों के बीच कम से कम यह निष्कर्ष तो निकलता ही है कि इस सर्वाेच्च सम्मान को ऐसे व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए जो दल,विचारधारा,क्षेत्र तथा वर्ग विशेष आदि से ऊपर उठकर मानवता के कल्याण के लिए काम करने वाला हो। और नि:संकोच देश में इस समय एक ऐसा महान व्यक्ति मौजूद है जिसने अपना पूरा जीवन पर्यावरण,वन संरक्षण तथा धरती की रक्षा हेतु समर्पित कर दिया और उस महान हस्ती का नाम है सुंदर लाल बहुगुणा। 88 वर्षीय सुंदरलाल बहुगुणा को हालांकि भारत सरकार पदम विभूषण जैसे अतिविशिष्ट पुरस्कार से नवाज़ चुकी है। परंतु भारत रत्न प्राप्त करने वालों की सूची तथा इनमें से कई लोगों के नामों को लेकर उठने वाले विवादों तथा आलोचनाओं के बीच सुंदर लाल बहुगुणा का नाम एक ऐसा नाम है जिसने अपनी कारगुज़ारियों से केवल भारत के लोगों को ही नहीं बल्कि अंग्रेज़ों को भी प्रभावित किया। उन्हें अमेरिका में फैं्रड आ्फ नेचर संस्था द्वारा 1980 में पुरस्कृत किया गया था। आज भी अंग्रज़ों द्वारा बहुगुणा जी की कार्यशैली पर शोध कार्य किए जा रहे हैं तथा इनपर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। महात्मा गांधी की अहिंसा परमोधर्मा विचारधारा को आत्मसात करने वाले बहुगुणा देश के प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के भी जनक रहे हैं। इन्होंने ही चिपको आंदोलन का यह घोषणा वाक्य दिया-‘क्या है जंगल के उपकार। मिट्टी पानी और बयार। मिट्टी पानी और बयार जि़ंदा रहने के आधार। आपने खाली जेब होकर कश्मीर से कोहिमा तक की448008किलोमीटर की दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र की पैदल यात्रा पूरी की। उनकी इस यात्रा का मकसद पहाड़ी लोगों को पर्यावरण की रक्षा के लिए सचेत करना,जंगल का कटान न करने के लिए उनमें जागरूकता पैदा करना तथा उनके कठिनाईपूर्ण रहन-सहन से परिचित होना था। बावजूद इसके कि वे स्वयं एक उच्च कोटि के ब्राह्मण परिवार के सदस्य हैं परंतु उन्हें ब्राह्मणों का दलितों को मंदिर में प्रवेश न करने देने का तुगलकी फरमान नहीं भाया। उन्होंने दलितों के मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी हटाने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने दलित विद्यार्थियों के शैक्षिक उत्थान के लिए भी बहुत काम किया। चिपको आंदोलन के चलते उन्हें वृक्षमित्र के नाम से दुनिया में जाना गया। पर्यावरण गांधी के नाम से देश में प्रसिद्ध बहुगुणा का मानना है कि पर्यावरण मुनष्य की स्थायी संपत्ति है। निश्चित रूप से यदि सुंदरलाल बहुगुणा जैसे महान पर्यावरण विद को भारत रत्न जैसे सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ा जाएगा तो मुझे नहीं लगता कि उनके विरोध या आलोचना में कोई स्वर बुलंद होगा। इस सर्वोच्च सम्मान को विवादों व आलोचनाओं से मुक्त रखना बहुत ज़रूरी है। तनवीर जाफ़री
विवाद करने वाले तो विवाद करेंगे ही । इस के कारण भारत रत्न देने की परम्परा रोकी नहीं जा सकती । वाजपेयी जी से एक ग़लती हो गई उसे बार बार दोहराने के स्थान पर उन की देश सेवाओं को देखना् चाहिये । भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न बननेक फ़ैसला ऐसा काम है जिस के आधार पर उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिये । मालवीय जी जी ने दुनिया भर से चन्दा एकत्र किया , इसे दरकिनारर कर उन के आलोचक किसी राजा को बीएचयू का संस्थापक बता रहे हैं । ये कुतर्क हैं ।