क्यों नहीं रुक रहा भ्रष्टाचार

शैलेन्द्र चौहान
राजनीति भारत जैसे देश में कामयाबी और रातोंरात अमीर बनने की कुंजी बन गई है। यही वजह है कि हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की तर्ज पर राजनीतिज्ञों की जमात लगातार लंबी होती जा रही है। राजनीतिक पार्टियों का मूल उद्देश्य सत्ता पर काबिज रहना है। जाहिरा तौर पर राजनैतिक क्षेत्र में आज सर्वाधिक भ्रष्टाचार हो रहा है। मंत्रियों को, अमीर एवं धनी व्यक्तियों से धन लेकर अपराधियों को देना पड़ता है। ताकि वे चुनाव जीत जाएँ। फलस्वरूप चुनाव जीतने के बाद और व्यक्तियों की स्वार्थ पूर्ण शर्त पूरी हो जाती है। राजनेताओं और उनसे जुड़े लोगों के लिए भाई-भतीजावाद या किसी को राजनीतिक संरक्षण देने से जुड़े भ्रष्टाचार उनकी व्यावहारिक ज़रूरत हैं। ये एक तरह की सेवा ही है। ऐसी सेवा जिससे संभावनाओं के नए दरवाज़े खुल जाते हैं, जिससे सिस्टम की सुस्त मशीन में रफ़्तार आ जाती है। ऐसा भ्रष्टाचार भारत में आम जीवन की मुश्किलों को हल करने का एक ‘जुगाड़’ जैसा तरीका है। इन्होंने युक्ति निकाली है कि गरीब को राहत देने के नाम पर अपने समर्थकों की टोली खड़ी कर लो। पैसे वाले आदमी एवं अमीर व्यक्तियों का इलाज पहले किया जाता है, लेकिन गरीब व्यक्ति का चाहे जितनी बड़ी उसकी बीमारी हो, उसकी अवहेलना की जाती है। दवाइयों में मिलावट की जाती है, जो रोगी के लिए बहुत खतरनाक होता है। शैक्षिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से बचा नहीं है। अध्यापक के पास जो छात्र ट्यूशन लेते हैं, उन्हें परीक्षा में ज्यादा नंबर मिल जाते हैं, जबकि जो छात्र पढ़ने में अच्छा हो, उसे कम अंक मिलते हैं। सरकार और प्रशासन से जुड़े मामले में गिफ़्ट और रिटर्न गिफ़्ट स्कॉलरशिप या किसी काम का ठेका देने के रूप में ही दिए जाते हैं। गौरतलब है कि मीडिया हमेशा ही भ्रष्टाचार से जुड़े विवादों में असल मुद्दा छुपाने का काम करता है। घोटाले और घोटाले की राजनीति करने वाले ऐसा दिखावा करते हैं कि भ्रष्टाचार कोई आम बात नहीं है, ये कभी-कभार ही होता है। पुलिस थानों में ऊपर से लेकर नीचे तक क़रीब सभी लोग ऐसे मामलों में शामिल होते हैं। अस्पतालों इत्यादि में होने वाले घोटालों की कड़ियाँ भी ऐसी ही होती हैं। इस तरह मिलजुलकर आपसी सहयोग से किया गया भ्रष्टाचार एक संगठित कार्य बन जाता है। रक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। इसका एक दूसरा पहलू भी है। एक ईमानदार नौकरशाह पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाता है। सिस्टम की मूल भावना बचाए रखने के लिए ऐसे ईमानदार अफ़सर का बार-बार तबादला किया जाता रहता है। ऐसे में अक्सर कहा जाता है कि एक-दो लोगों से सिस्टम नहीं बदलता। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 40 प्रतिशत माल का रिसाव होता रहा है। सरकारी कर्मचारियों की लॉबी का सामना करने का या तो इनमें साहस नहीं है या फिर यह सब जानबूझ कर किया जा रहा है ताकि भ्रष्टाचार कायम रहे। वैसे भारत में सदैव ही भ्रष्टाचार का मुद्दा चर्चा और आन्दोलनों का एक प्रमुख विषय रहा है। भ्रटाचार और असमानता की समस्याओं को रोकने में हम असफल हैं। आजादी के मात्र एक दशक बाद ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और उस समय संसद में इस बात पर बहस भी होती थी। 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।

भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारत में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है। इसके अलावा न्यायपालिका, मीडिया, सेना, पुलिस आदि में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। 2005 में भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल नामक एक संस्था द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 62% से अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या ऊँचे दर्ज़े के प्रभाव का प्रयोग करना पड़ा। वर्ष 2008 में पेश की गयी इसी संस्था की रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में लगभग 20 करोड़ की रिश्वत अलग-अलग लोकसेवकों को (जिसमें न्यायिक सेवा के लोग भी शामिल हैं) दी जाती है। उन्हीं का यह निष्कर्ष है कि भारत में पुलिस और कर एकत्र करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। आज यह कटु सत्य है कि किसी भी शहर के नगर निगम में रिश्वत दिये बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यह मानकर चलता है कि किसी भी सरकारी महकमे में पैसा दिये बगैर गाड़ी नहीं चलती। भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट + आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो। भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह है। आज भारत देश में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है। इसकी जड़ें तेजी से फैल रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा। भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है। जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है। यदि हम इस वर्ष की ही बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जो कि भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। जैसे आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग, नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने की लालसा में कई लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। क्रिकेट ही ऐसी चीज़ है जो मोदी, जेटली, पवार, डालमिया, श्रीनिवास जैसे लोग को जोड़ती है। भारत में क्रिकेट और राजनीति का गठजोड़ वैसा ही बनता जा रहा है जैसा गठजोड़ अमरीका में राजनीति और कॉरपोरेट के बीच माना जाता है। दुख की बात ये है कि भ्रष्टाचार को लेकर होने वाले इन ड्रामों से इसके प्रति उदासीनता पैदा हो जाती है। आम आदमी इन्हें एक तमाशे के रूप में देखता है और ये सोचकर आगे बढ़ जाता है कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं है। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है।

आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि। भ्रष्टाचार के कारण : भ्रष्टाचार के कई कारण है। असंतोष – जब किसी को अभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है। जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है। अत: यह बेहद ही आवश्यक है कि हम भ्रष्टाचार के इस जहरीले सांप को कुचल डालें। साथ ही सरकार को भी भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। जिससे हम एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को सच कर सकें। भ्रष्टाचार पिछड़ेपन का द्योतक है। भ्रष्टाचार का बोलबाला यह दर्शाता है कि जिसे जो करना है वह कुछ ले-देकर अपना काम चला लेता है और लोगों को कानों-कान खबर तक नहीं होती। और अगर होती भी हो तो यहाँ हर व्यक्ति खरीदे जाने के लिए तैयार है। गवाहों का उलट जाना, जाँचों का अनन्तकाल तक चलते रहना, सत्य को सामने न आने देना – ये सब एक पिछड़े समाज के अति दु:खदायी पहलू हैं। किसी को निर्णय लेने का अधिकार मिलता है तो वह एक या दूसरे पक्ष में निर्णय ले सकता है। यह उसका विवेकाधिकार है और एक सफल लोकतन्त्र का लक्षण भी है। परन्तु जब यह विवेकाधिकार वस्तुपरक न होकर दूसरे कारणों के आधार पर इस्तेमाल किया जाता है तब यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है अथवा इसे करने वाला व्यक्ति भ्रष्ट कहलाता है। किसी निर्णय को जब कोई शासकीय अधिकारी धन पर अथवा अन्य किसी लालच के कारण करता है तो वह भ्रष्टाचार कहलाता है। ईमानदारी से काम करने के बजाय, लोग बेईमानी क्यों करते हैं? क्योंकि कुछ लोग ज़िंदगी में जो हासिल करना चाहते हैं, उसे पाने का उन्हें एक ही आसान तरीका नज़र आता है, और वह है रिश्वतखोरी। कई बार, घूस देकर मुजरिम बड़ी सफाई से कानून के हाथ से बच जाते हैं। जब लोग देखते हैं कि नेता, पुलिस अधिकारी और जज जैसे बड़े लोग भी भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाते या खुद रिश्वत लेते हैं तो वे भी उन्हीं की देखादेखी रिश्वतखोर बन जाते हैं। रिश्वत लेना इतना आम हो गया है कि लोगों को अब इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती। जिन लोगों की तनख्वाह बहुत ही कम है उन्हें लगता है कि गुज़ारे के लिए ऊपर की आमदनी होना भी ज़रूरी है। अपनी ज़रूरतें पूरी करनी हैं तो उन्हें लोगों से रिश्वत माँगनी ही पड़ेगी। और जब लोग देखते हैं कि रिश्वत माँगनेवालों और रिश्वत देनेवालों को कोई सज़ा नहीं होती तो वे उनके खिलाफ आवाज़ उठाने से कतराते हैं। भ्रष्टाचार इस हद तक फैल चुका है और इतना गंभीर रूप ले चुका है कि इसने समाज की बुनियाद को ही खोखला कर दिया है। कुछ देशों में तो जब तक मुट्ठी गर्म न की जाए तब तक कोई काम ही नहीं होता। सही आदमी को रिश्वत दी जाए तो परीक्षा में पास होना, ड्राइविंग का लाइसेंस हासिल करना, कॉन्ट्रेक्ट हासिल करना या मुकद्दमा जीतना आसान हो जाता है। खासकर व्यापार की दुनिया में घूसखोरी का बोलबाला है। कुछ कंपनियों में मुनाफे का एक-तिहाई हिस्सा, सरकारी अधिकारियों को घूस देने के लिए अलग रखा जाता है। ब्रिटिश पत्रिका दी इकॉनमिस्ट के मुताबिक दुनिया भर में, हथियारों के व्यापार पर हर साल 10.75 खरब रुपए खर्च किए जाते हैं। और हथियार बेचनेवाले अपना व्यापार बढ़ाने के लिए इस रकम का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा, ऐसे लोगों को रिश्वत के रूप में देते हैं जो आगे उनसे हथियार खरीद सकते हैं। जैसे-जैसे भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे इसके नतीजे और बदतर होते जा रहे हैं। पिछले दस सालों में लेन-देन के मामलों में “भाई-भतीजावाद” की वज़ह से तमाम देशों की अर्थव्यवस्था बिगड़ गयी है। क्योंकि ज़िम्मेदारी के पद पर बैठे अफसर अपनी जान-पहचान के लोगों को ही आगे बढ़ाने के लिए धोखाधड़ी करते हैं। भ्रष्टाचार की वज़ह से जब अर्थव्यवस्था टूटने लगती है तो इसकी सबसे बुरी मार गरीबों पर ही पड़ती है, जिनके पास इतने पैसे ही नहीं होते कि किसी को घूस दें। दी इकॉनमिस्ट ने कहा, “रिश्वतखोरी दरअसल एक किस्म का ज़ुल्म है।” क्या इस ज़ुल्म को रोका जा सकता है या क्या ऐसा है कि रिश्वत दिए बिना कोई भी काम करवाना नामुमकिन है? भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में हाल ही के वर्षों में कुछ जागरुकता बढ़ी है। जिसके कारण भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम -1988, सिटीजन चार्टर, सूचना का अधिकार अधिनियम – 2005, कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट आदि बनाने के लिये भारत सरकार बाध्य हुई है। पर यह पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः बिना गंभीर राजनीतिक पहल और इच्छाशक्ति के भ्रष्टाचार का यह खेल रुक नहीं सकता

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress