हादसे में खाक होती जिंदगी

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अरविंद जयतिलक

मध्यप्रदेश राज्य के झाबुआ जिले के पेटलावद कस्बे में रसोई गैस सिलेंडर विस्फोट के उपरांत रेस्टोरेंट की छत गिरने से 90 से अधिक लोगों की मौत और  दो सौ से अधिक लोगों का घायल होना प्रमाणित करता है कि एक छोटी-सी लापरवाही किस तरह सैकड़ों लोगों की जिंदगी तबाह कर सकती है। तथ्यों के मुताबिक जिस दुकान में रसोई गैस सिलेंडर ब्लास्ट हुआ उसके एक हिस्से में फर्टिलाइजर की दुकान में डेटोनेटर्स, जिलेटिन की छडें और कई तरह की विस्फोटक सामग्रियां रखी गयी थी। विस्फोट होते ही यह सामग्रियां लपटों में धधक उठी और दुकान से लगा रेस्टोरेंट भी चपेट में आ गया। रेस्टोरेंट में रखे गए सिलेंडर फट पड़े और छत गिर पड़ी। विस्फोट इतना भयानक रहा कि वहां मौजूद लोगों के शरीर चिथड़े बन गए और विस्फोट स्थल के आसपास के कई घर और सैकड़ों वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। मौंजू सवाल यह है कि रिहायशी इलाके में एक फर्टिलाइजर्स की दुकान में इतने बड़े पैमाने पर विस्फोटक सामग्रियां क्यों और किसकी इजाजत से रखी गयी थी? जबकि यह नियम है कि विस्फोटक सामग्रियों को न सिर्फ रिहायशी इलाके से दूर रखा जाना चाहिए बल्कि उसकी सुरक्षा का भी पुख्ता इंतजाम होना चाहिए। गौरतलब है कि 2010 से ही राज्य प्रशासन ने विस्फोटक सामग्रियों के रखरखाव के सख्त नियम बनाए हैं। इसके तहत स्थानीय प्रशासन और पुलिस को सुनिश्चित करना होता है कि विस्फोटक और डेटोनेटर सामग्रियां रिहायशी इलाके से दूर सुरक्षित स्थान पर रखा गया है या नहीं। साथ ही विस्फोटक मंगाने वाले को भी सूचित करना पड़ता है कि उसका इस्तेमाल कहां और कब होगा। यह जांच का विषय है कि फर्टिलाइजर्स की दुकान में विस्फोटक व डेटोनेटर किसकी इजाजत से रखा गया और उसका उपयोग कहां होना था। लेकिन अगर यह विस्फोटक रिहायशी इलाके से दूर रखा गया होता तो भीषण तबाही नहीं होती। बहरहाल घटना से साफ है कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने अपने कर्तव्यों का समुचित निर्वहन नहीं किया और उस लापरवाही की कीमत सैकड़ों लोगों को जान देकर चुकानी पड़ी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि झाबुआ के अन्य जिलों व कस्बों के रिहायशी इलाकों में भी इस तरह के खतरनाक विस्फोटक और डेटोनेटर रखे गए हों। यह आशंका इसलिए कि झाबुआ में माइनिंग गतिविधियां बड़े पैमाने पर होता है। खनन माफिया सरकार से लाइसेंस हासिल किए बिना ही स्थानीय प्रशासन और पुलिस के सहयोग से माइनिंग गतिविधियों को अंजाम देते हंै। ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि वह झाबुआ ही नहीं बल्कि राज्य के सभी जिलों व cylinderकस्बों की जांच कराए जहां अवैध तरीके से विस्फोटक व डेटोनेटर्स रखे गए हैं। साथ ही नियम का उलंघन करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई भी करे ताकि इस तरह का हादसा दोबारा न हो। यह पर्याप्त नहीं कि राज्य सरकार हादसे में मारे गए व घायल हुए लोगों के परिजनों को मुआवजा थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ले। इस मुआवजे से न तो मारे गए लोगों की जिंदगी लौटने वाली है और न ही इससे अपनांे को खो चुके लोगों का दर्द कम होने वाला है। न्याय तब मिलेगा जब इस हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही होगी। दिल दहला देने वाली इस घटना को महज दुकानदार की लापरवाही और व्यवस्था की बदहाली से जोड़कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता और न ही हल यह है कि सरकार ऐसे गैर-जिम्मेदार दुकानदारों का लाइसेंस रद्द कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ले या इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार कर अपनी पीठ थपथपाले। हो सकता है कि इस फौरी कार्रवाई से लोगों का आक्रोश ठंडा पड़ जाए। लेकिन इस बात की क्या गारंटी कि इस तरह के हादसे दोबारा नहीं होंगे। सच तो यह है कि ऐसे हादसों पर नियंत्रण तभी लगेगा जब स्थानीय प्रशासन भ्रष्टाचार मुक्त होगा। आश्चर्य है कि सरकार और प्रशासन की निगाह ऐसे गैर-जिम्मेदार तत्वों की ओर नहीं जा रही है जो निहित स्वार्थ के लिए लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं। ऐसा संभव ही नहीं है कि पेटलावद का स्थानीय प्रशासन व पुलिस रिहायशी इलाके में विस्फोटक व डेटोनेटर्स की मौजूदगी से अवगत नहीं रहा होगा। लेकिन उसकी अकर्मण्यता का नतीजा है कि सैकड़ों लोगों की जान चली गयी। उचित होगा कि देश के सभी राज्य इस त्रासदीपूर्ण घटना से सबक लें और अपने राज्यों के शहरों व कस्बों में निर्मित होटल, काॅम्पलेक्स और सार्वजनिक भवनों की सुरक्षा की जांच करें। साथ ही सुरक्षा मानकों का उलंघन कर निर्माण करने वाले लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे। यह पहली घटना नहीं है जो सुरक्षा के प्रति सतर्कता के अभाव में हुई हो। इस तरह की घटनाएं आए दिन देश को विचलित कर रही हैं। सच तो यह है कि आज सरकारी भवन, अस्पताल, फैक्टरी, रेल, स्टेशन, सड़क, वायुयान, निजी संरक्षण गृह, समारोह स्थल, स्कूल और आस्था केंद्र कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं रह गया है। लापरवाही की वजह से इन स्थानों पर हादसे की संभावना बनी हुई है। अभी हाल ही में देखा गया कि झारखंड राज्य के देवघर में बाबा वैद्यनाथ मंदिर में कुप्रबंधन के कारण मची भगदड़ में तकरीबन एक दर्जन श्रद्धालुओं को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह आंध्रप्रदेश राज्य के गोदावरी पुष्करम महोत्सव और मध्यप्रदेश के कामतानाथ मंदिर में लापरवाही की वजह से मची भगदड़ में कई लोग मारे गए। इस तरह के अनगिनत उदाहरण और भी हैं। विचार करें तो तीर्थ एवं धर्मस्थलों पर हो रहे हादसों के लिए पूर्ण रुप से शासन-प्रशासन और महोत्सव प्रबंधतंत्र ही जिम्मेदार है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन हादसों से न तो किसी तरह का सबक लिया जा रहा है और न ही हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा दी जा रही है। नतीजा सामने है। ध्यान देना होगा कि देश के प्रसिद्ध धर्मस्थल और तीर्थस्थान आतंकियों के निशाने पर हैं। हाल ही में खूफिया विभाग ने खुलासा किया है कि कुछ आतंकी संगठन मंदिरों को निशाना बनाने की फिराक में हैं। उचित होगा कि राज्य सरकारें अपना खुफिया तंत्र मजबूत कर मंदिरों, तीर्थस्थानों व सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। आश्चर्य यह कि निजी क्षेत्र के होटल, अस्पताल, स्कूल और सार्वजनिक स्थान भी सुरक्षित नहीं है। जबकि वे ग्राहकों से मोटा पैसा वसूल रहे हैं। अभी गत माह पहले ही उत्तर प्रदेश राज्य के प्रतापगढ़ जिले में स्थित होटल गोयल रेजीडेंसी में शार्ट सर्किट से लगी आग में तकरीबन एक दर्जन से अधिक लोग मारे गए। होटल का नक्शा दो मंजिल के लिए पास था लेकिन सरकारी बाबुओं, इंजीनियरों और अफसरों की मिलीभगत से इसे तीन मंजिल बना दिया गया लेकिन सुरक्षा मानकों का ध्यान नहीं रखा गया। याद होगा गत वर्ष पहले कोलकाता के नामी-गिरामी अस्पताल एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में लगी आग में तकरीबन 90 लोग स्वाहा हो गए। हादसे के समय अस्पताल में सुरक्षा के मामूली उपाय तक नहीं थे। अभी गत वर्ष ही मध्यप्रदेश के सतना जिले के एक अस्पताल में भीषण आग की घटना में 32 नवजात शिशु खाक होते-होते बचे। 6 अगस्त, 2001 को तमिलनाडु के इरावदी जिले में स्थित एक निजी संरक्षण गृह में आग लगने से मानसिक रुप से कमजोर 28 लोग जलकर मर गए। तमिलनाडु के ही श्रीरंगम विवाह समारोह में आग लगने से 50 लोग काल-कवलित हो गए। देश की राजधानी दिल्ली में किन्नरों के महासम्मेलन के दौरान पंडाल में लगी आग से 16 किन्नरों की मौत हुई। 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा हाॅल में आग लगने से 59 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। दिसंबर 1995 में हरियाणा के मंडी डबवाली में स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान पंडाल में आग लगने से तकरीबन 442 बच्चों की मौत हो गयी। गौर करें तो यह सभी घटनाएं सुरक्षा मानकों की अनदेखी का ही नतीजा हैं। दिखावे के तौर पर निजी व सरकारी संस्थान हादसों से निपटने के लिए इंतजाम का कागजी भरोसा तो देते हैं लेकिन जमीनी तौर पर इससे निपटने का कोई ठोस इंतजाम नहीं होता। नतीजा निर्दोष लोगों की जिंदगी दांव पर लगी रहती है। उचित होगा कि सरकार हादसों से निपटने की ठोस रणनीति बनाए ताकि निर्दोष लोगों की जिंदगी हादसों की भेंट न चढ़े।

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