प्रतिरोध की रचनात्मक अभिव्‍यक्ति

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नाइजीरिया से हिमांशु सिंह

अन्ना मंगलवार को कुछ सुस्त हैं। अनशन का आठवा दिन है। भारत माता की जय के नारे लगते हैं तो लेटे लेटे दाहिना हाथ उठ जाता है। गर्दन घुमाकर पीछे गाधी के चित्र पर नजर और फिर एक निगाह सामने जनता पर। मानो प्रेरणा व प्रभाव को जोड़ रहे हों। भारत कोई आदोलनबाज देश नहीं है, धैर्य की परीक्षा में लोगों की महारथ है फिर भी छह दिन में हजारों लोग का सड़क पर प्रभाव बोल रहा है।

74 साल के बूढे़ रिटायर्ड फौजी किशनराव बाबूराव हजारे ने मुल्क को एक उम्मीद थमा दी है। सन 75 के दुष्यंत [जेपी के संदर्भ में] बेसाख्ता याद आ जाते हैं.. ‘एक बूढ़ा आदमी है मुल्क में.. या यों कहो/ इस अंधेरी कोठरी में एक रोशनदान है।’

आदोलन के मूल्य पुराने हैं, तरीका आजमाया हुआ है, मगर भाषा नई है और शामिल लोगों की समझ विलक्षण है। लोग सरकार के पैंतरेबाजी और पेशबंदी पढ़ रहे हैं और चिढ़ रहे हैं। भ्रष्टाचार अमूर्त है, लेकिन गुस्सा जाहिर करने के प्रतीक बड़े पैने हैं। सरकार और राजनीतिके कुछ चेहरे सबके गुस्से का निशाना हैं।

संयोग से आपातकाल और इस आदोलन के प्रतीकों में बड़ी गहरी समानता है। दुष्यंत फिर याद आ जाते हैं, ‘एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है/ एक शायर यह तमाशा देखकर हैरान है।’ तब गुड़िया इंदिरा गाधी थीं आज कौन है, यह रामलीला मैदान पहुंच कर जाना जा सकता है।

आदोलन तो खूब हुए मगर इतने लोगों ने शायद ही एक साथ कभी खुद को, मैं गाधी हूं, मै जेपी हूं, मैं मंडेला हूं, मैं [मर्टिन लूथर] किंग नहीं कहा होगा, जितने लोग आज खुद को अन्ना बता रहे हैं। नेतृत्व का यह साधारणीकरण अनोखा और करिश्माई है।

अन्ना इतने साधारण हैं, इतने गैर करिश्माई हैं, इतने आम हैं कि हर कोई अन्ना बन जाता है। अन्ना के शब्द सीमित हैं,भाषण सामान्य है। ज्ञान का पुट कम है। सर कटा सकते हैं और आपस में भाई भाई जैसी बातें कोई और बोले तो उबासी आने लगे, लेकिन अन्ना का यही खाटीपन देखकर हर कोई खुद को अन्ना बना लेता है। अन्ना आज नहीं बोले, मगर लोग खूब बोल रहे हैं।

पूरा आदोलन विरोध की रचनात्मक प्रदर्शनी है। चूर चूर हो जाएगा जैसे पुराने नारे रिटायर हो गए हैं। लोग चीखते नहीं, बल्किबड़े पैने तंज करते हैं। रामलीला मैदान में तिरंगों के साथ विरोध की नई भाषा भी हिलोरें ले रही है। हाथ से बने पोस्टर, तरह तरह के कोलाज, अद्भुत आकडें, बेजोड़ जुमले, मुखौटे, नारे ..लोग उपहास के साथ विरोध कर रहे हैं। लोग हंस कर, नाच कर, घटा, ढोल बजाकर, चेहरों को तिरंगा रंग भ्रष्टाचार का दर्द एक दूसरे से बाट रहे हैं। एक अनुशासित व अहिंसक आदोलन भीतर से बड़ा जीवंत है। पड़ोस के घर में 75 साल की दादी पोते को लोरी गाते हुए सुला रही हैं। सामने टीवी पर रामलीला मैदान का दृश्य है। दादी अनायास लोरी धुन में गा उठती हैं, अन्ना तुम संघर्ष करो, गोलू तुम्हारे साथ है। ..अन्ना वक्त के साथ दुर्बल हो रहे हैं, मगर असर यकीनन मजबूत हो रहा है।

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