कितने औचक होते हैं युवराज के अचानक रात्रि विश्राम!

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-लिमटी खरे

दलित आदिवासियों के बीच रात बिताकर मीडिया की सुर्खियां बटोरने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के अचानक दलित बस्तियों में जाने की बात कितनी औचक होती है, इस बात से आम आदमी अब तक अनजान ही है। राहुल बाबा का सुरक्षा घेरा स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) का होता है, जिसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता है, फिर अचानक किसी अनजान जगह पर कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी का रात बिताना आसानी से गले नहीं उतरता है। वास्तविकता तो यह है कि राहुल गांधी के प्रस्तावित दौरों के स्थानों की खाक खुफिया एजेंसियों द्वारा लंबे समय पहले ही छान ली जाती है, जजमान को भी पता नहीं होता है कि उसके घर भगवान (युवराज) पधारने वाले हैं। मीडिया को भी अंतिम समय में ही ज्ञात होता है कि राहुल बाबा फलां के घर रात्रि विश्राम करने वाले हैं। कांग्रेस की राजमाता और राहुल गांधी की माता श्रीमती सोनिया गांधी को राहुल की सुरक्षा की चिंता सदा ही खाए जाती है, किन्तु एसपीजी के निदेशक की देखरेख में राहुल की सुरक्षा से वे खासी संतुष्ट नजर आती हैं। कहा जाता है कि राहुल को इस तरह के दौरों की अनुमति श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा प्रदत्त है, ताकि कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की छवि आम आदमी से जुड़ने, उनकी समस्याओं से रूबरू होने और उसके निदान की योजनाएं बनाने की बन सके। सवाल अब भी यही खड़ा है कि राहुल गांधी की इन यात्राओं से देश का क्या भला हो रहा है? एक साधारण से संसद सदस्य और कांग्रेस के महासचिव के दौरों पर भारत और सूबों की सरकार सरकारी खजाने से पानी की तरह पैसा क्यों बहाती है?

नेहरू गांधी परिवार में मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के उपरांत आगे बढ़ी पीढ़ी में तीन ही सितारे आकाश में खिले नजर आते हैं। इनमें से राजीव और सोनिया की पुत्री प्रियंका अब गांधी से वढ़ेरा हो चुकी हैं, तथा देश की सियासत से प्रत्यक्ष तौर पर एक दूरी बना चुकी हैं। इसके अलावा स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की आखों के तारे रहे राहुल और वरूण गांधी ने अपने अपने रास्ते अलग अलग चुन रखे हैं। एक ही परिवार के दो वारिसों को अलग अलग सुरक्षा श्रेणियां सिर्फ और सिर्फ हिन्दुस्तान में ही संभव है। लोग प्रियंका में उनकी नानी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी तो राहुल में ‘‘दुश्मनों को नानी याद दिलाने वाले‘‘ स्व.राजीव गांधी की छवि देखते हैं। भारत का पूर्वाग्रही मीडिया भी अजीब है, किसी को उसी खानदान के संजय मेनका के पुत्र वरूण गांधी में किसी की छवि नहीं दिखाई देती है। स्व.संजय गांधी के बाल सखा और उनके अभिन्न मित्रों जिन्होंने राजनीतिक पायदान भी संजय गांधी के सहारे से ही चढ़ी हैं, भी वरूण गांधी से इस तरह का बरताव करते हैं जैसा कि अठ्ठारहवीं शताब्दी में सवर्णों द्वारा अछूतों से किया जाता था।

देश के ‘कांग्रेस और लक्ष्मीभक्त‘ दोनों ही तरह के मीडिया ने नेहरू गांधी परिवार की एक शाख जिसमें श्रीमति सोनिया और राहुल बंधे हैं, को अर्श पर इतना ऊपर चढ़ा दिया है कि कांग्रेस के लोग उन्हें भगवान से कम नहीं मानते हैं। राहुल गांधी जब भी जहां भी जाते हैं वहां भीड़ जुट जाती है, कांग्रेस का जनाधार बढ़ता है, युवाओं के मानस पटल पर कांग्रेस की अमिट छाप लग जाती है, कांग्रेस की गिरती साख को बचाया जा सकता है। सारी बातें मंजूर हैं, पर यह सब किस कीमत पर हो रहा है? क्या राहुल की एक यात्रा का भोगमान कांग्रेस ने भोगा है? क्या गांधी के नाम का गर्व के साथ उपयोग करने वाले राहुल ने अपनी यात्राएं महात्मा गांधी की सादगी से की हैं? जाहिर है नहीं। बापू रेल गाडी के साधारण डिब्बे में यात्रा करते थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी के साथ बिता दिया, आधी लंगोटी में ही बापू ने अपना जीवन काटकर उन ब्रितानियों को जिनके बारे में कहा जाता था कि उनका सूरज कभी डूबता नहीं है, को डेढ़ सौ बरस के राज पाट को छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। राहुल गांधी एक यात्रा में उपयोग में आने वाले विमान और हेलीकाप्टर का किराया ही अगर जोड़ लिया जाए तो एक शहर के गरीबों को एक महीना भोजन कराया जा सकता है। इसके अलावा राहुल की सुरक्षा में लगी एजेंसियों, प्रदेश सरकार का सुरक्षा बल आदि का खर्च जोड़ लिया जाए तो मंहगाई के बोझ से दबे आम आदमी की मानो चीख ही निकल जाएगी। इस कीमत पर आम आदमी के गाढ़े पसीने की कमाई से कांग्रेस द्वारा अपने आप को मजबूत करने के लिए झोंका जा रहा है राहुल गांधी को। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने व्ही.व्ही.आई.पी. पर होने वाले व्यय को आना पाई से केद्र और राज्य सरकार को चुकाए, क्योंकि सोनिया या राहुल की यात्राओं से देश का नहीं कांग्रेस का भला हो रहा है।

आज कांग्रेस की नजरों में गरीबों के मसीहा राहुल गांधी के सिर्फ जूतों पर ही गौर फरमाया जाए तो उनकी कीमत पांच अंको में होगी। राहुल गांधी की संपत्ति के बारे में देश के लोग कम ही जानते हैं। सैकड़ों करोड़ रूपयों की संपत्ति के मालिक हैं राहुल गांधी जिनकी संपत्ति में हर साल दस बीस फीसदी नहीं डेढ़ से दो सौ फीसदी का इजाफा होता है। आखिर एक संसद सदस्य के पास कौन सी एसी मशीन है कि वह अपनी संपत्ति में इस तरह हर साल बेतहाशा बढ़ोत्तरी करते जा रहे हैं। अगर उनके पास आकूत दौलत है तो उन्हें बतौर सांसद मिलने वाली तनख्वाह और वेतन को अस्वीकार कर एक नजीर पेश करना चाहिए।

बहरहाल कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की अचानक ही दलित बस्तियों की यात्राएं, दलित आदिवासियों के घरों पर रात बिताना उनके साथ भोजन करना, जैसी खबरों से देश के आम लोग, प्रशासन और मीडिया चकित ही रह जाता है। लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं कि राहुल गांधी जैसा ‘‘सुकुमार युवराज‘‘ आम आदमी के घर कैसे? आम आदमी यह सौच कर हैरान होता है कि कांग्रेस आखिर राहुल गांधी इस तरह की यात्राओं के माध्यम से भला क्या संदेश देना चाहती है।

राहुल गांधी की औचक यात्राओं से सबसे ज्यादा खौफजदा अगर कोई है तो वह हैं यूपी की निजाम मायावती। मायावती को लगने लगा है कि राहुल की इस तरह की यात्राएं उनके दलित आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर रही है। उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के मनमाने दौरों से आजिज आकर यूपी के चीफ सेक्रेटरी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर अपनी अपत्ति दर्ज कराई है। यूपी सरकार का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा यूपी प्रशासन और स्थानीय प्रशासन को सूचना दिए बिना की जाने वाली यात्राएं राहुल गांधी को प्रदत्त सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। केंद्रीय गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम राज्य की आपत्ति को सिरे से खारिज करते हैं। चिदम्बरम का कहना है कि राहुल द्वारा अपनी यात्राओं में सुरक्षा व्यवस्था के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया जा रहा है। राहुल की यात्राओं में सुरक्षा मनदण्डों का पूरा पूरा पालन किया जा रहा है। चिदम्बरम ने साफ किया है कि राहुल की यात्राओं के पहले एसपीजी द्वारा सुरक्षा के पर्याप्त इंतजामात कर दिए जाते हैं।

राहुल गांधी की इन औचक यात्राओं के बारे में हकीकत कुछ और बयां करती है। दरअसल, राहुल गांधी के इस तरह के औचक कार्यक्रम स्थानीय लोगों, प्रशासन, कांग्रेस पार्टी और मीडिया के लिए कोतुहल एवं आश्चर्य का विषय होते हैं, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इससे कतई अनजान नहीं होती हैं। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों का कहना है कि इस तरह के औचक कार्यक्रमों में सुरक्षा एजेंसियों की लंबी कवायद के बाद ही इन्हें हरी झंडी दी जाती है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जब भी जहां भी जाते हैं वहां जाने की योजना महीनों पहले ही बना दी जाती है।

राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के इस तरह के दौरों की तैयारी एक से दो माह पहले ही आरंभ हो जाती है। सर्वप्रथम राहुल गांधी की कोर टीम यह तय करती है कि राहुल गांधी कहां जाएंगे। उस क्षेत्र की भौगोलिक, राजनैतिक, सामाजिक स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी जुटाई जाती है। इसके बाद राहुल गांधी के बतौर सांसद सरकारी आवास 12, तुगलक लेन में उनकी निजी टीम इसे अंतिम तौर पर अंजाम देने का काम करती है। यहां बैठे राहुल के सहयोगी कनिष्क सिंह, पंकज शंकर, सचिन राव आदि इन सारी जानकारियों को एक सूत्र में पिरोकर एसपीजी के अधिकारियों से इस बारे में विचार विमर्श करते हैं। इन सारी तैयारियों और सूचनाओं को केंद्रीय जांच एजेंसी ‘इंटेलीजेंस ब्योरो‘ द्वारा खुद अपने स्तर पर अपने सूत्रों के माध्यम से जांचा जाता है। आई बी की हरी झंडी के उपरांत ही राहुल गांधी के दौरे की तारीख तय की जाती है। राहुल गांधी के कार्यालय, एसपीजी और आईबी के अधिकारियों के बीच की कवायद को इतना गुप्त रखा जाता है कि मीडिया तक उसे पता नही कर पाती।

इस तरह गोपनीय तौर पर कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री का दौरा कार्यक्रम तय होता है और राहुल गांधी अचानक ही किसी दलित आदिवासी के घर पर जाकर रात बिताकर सभी को हतप्रभ कर देते है। देखा जाए तो राहुल गांधी जिस भी गांव में रात बिताने का उपक्रम करते हैं, उस गांव में एसपीजी और आईबी के कर्मचारी सादे कपड़ों में हर गतिविधि पर नजर रखते हैं। इस सारे घटनाक्रम की भनक स्थानीय प्रशासन तक को नहीं हो पाती है। राहुल के रात बिताने वाले क्षेत्र में व्हीव्हीआईपी सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक एएसएल (एडवांस सिक्यूरिटी लेयर) अर्थात अग्रिम सुरक्षा कवच को पूरी तरह चाक चौबंद कर लिया जाता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जिस भी गांव में देश के युवराज रात बिताते हैं उस गांव में उस दिन आरजी (राहुल गांधी) की पसंद की सब्जी भी बिकती है, ताकि वे रात के खाने में उसका स्वाद ले सकें।

यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है कि राहुल गांधी की इस तरह की यात्राओं से देश का क्या भला हो रहा है? क्या राहुल गांधी के नेतृत्व में आज तक कोई बड़ा आंदोलन अंजाम ले सका है जिसने देश की दिशा और दशा को बदला हो? राहुल की यात्राओं से सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का ही भला हो रहा है। यही सच्चाई है, और इसके लिए राहुल गांधी की सुरक्षा में लगी एसपीजी, आईबी, प्रदेश सरकार का सुरक्षा अमला और सुरक्षा एजेंसियों पर होने वाले खर्च को कांग्रेस से ही वसूला जाना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस ही वह है जो राहुल गांधी के दौरों से अपना जनाधार बढ़ाकर राहुल गांधी को महिमा मण्डित कर रहे हैं। सबसे अधिक आश्चर्य तो तब होता है जब विपक्ष में बैठी भाजपा और राहुल फेक्टर से सबसे अधिक घबराने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती तक इस मामले में मौन धारण कर लेती हैं।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

20 COMMENTS

  1. आदरणीय प्रवक्ता जी नमस्कार…मै भी प्रवक्ता.कॉम पर अपने लेख लिखना चाहता हूँ, अभी मेरे पास एक लेख तैयार है और मै लेखकों की सूची में अपने नाम के साथ लेख भेजना चाहता हूँ| मुझे क्या करना होगा कृपया मार्गदर्शन करें| धन्यवाद…

    • शैलेन्‍द्र जी

      आप vandemataramvaranasi.blogspot.com का अवलोकन करने का कष्‍ट करें हो सकता है हमारे प्रयास से जो आप चाहते हैं मिल जाय हमारी कमियों को आप अवश्‍य बतायें

      आपका राम प्रसाद सिंह

  2. नाचे कूंदे बांदरी ….हलुवा खायं अमीर …
    सवा सौ साल पुराणी कांग्रेस को अपने खून से सींचने बालों को आज भी इस देश की जनता के दिल में जगह है … देश की आवाम के सुख दुःख जानने निकले -देश को समझने की कोशिश करने निकले श्री राहुल गाँधी भले ही कोई दर्शन शाश्त्री या इजिम्स के सिद्धांतकार -वेत्ता नहीं हैं फिर भी भारत जैसे महा भृष्ट देश में नौ जवान पीढी को सदाचार सिखाने का माद्दा तो अवश्य है …..जो लोग अपनी राजनितिक प्रतिवद्धता के बरक्स्स चश्मा चढ़ाकर देखेंगे उन्हें तो खुद के सिवाय किसी में कोई खूबी नज़र नहीं आती तो .इसे कोनसा फोबिया कहेंगे ?राहुल में क्या कमी है ये तो आने वाले वक्त में सबको पता चल जायेगा ..लेकिन अभी से बेवजह खिल्ली उड़ना क्या अभीष्ट सिद्ध करता है .

  3. धन्यवाद श्रीमान खरे जी. बिलकुल सत्य कह रहे है आप.

  4. सक्रिय आलोचनात्मक आलेख में बाकी सब ठीक है किन्तु एक महती जिम्मेदारी आपकी भी है की आपका संदेश वैकल्पिक संभावनाओं को भी प्रस्तुत करे अन्यथा राजनेतिक शून्यता के लिए भविष्य में किसी को कोसने लायक भी न रहोगे .मेरा मतलब है की आधा अधुरा लूला लंगड़ा ही सही हमारा लोकतंत्र धीरे -धीरे आगे बढ़ रहा है कांग्रेस बहुत बुरी है तो भाजपा महा बुरी है और मध्यप्रदेश में तीसरी ताकत धुल धूसरित है .अब राहुल के लिए रास्ता साफ है .किन्तु शिवराज जी के सदसई अंकों में बढ़ोत्तरी करके राहुल के हाथ क्या आया .
    एक मित्र ने लगता है की दारू के नशे में खरे साब को राजीव दुबे साहब लिख डाला .कैसे कैसे घटिया लोग पत्रकार बन बैठे हैं ?

    • तिवारी जी मुझे तो लगता है कि दारु के नशे में आप हैं… सुरेश भाई ने लिमटी खरे जी को नहीं राजिव दुबे जी को टिपण्णी दी है… आप पहले सभी टिप्पणियों को ध्यान से और तमीज से पढ़ा कीजिए और उसी तमीज के साथ टिप्पणी करा कीजिए…
      “कैसे कैसे घटिया लोग पत्रकार बन बैठे हैं ?” किसी को घटिया कहने से पहले अपने आप को देख समझ लीजिये…सुरेश भाई जैसे राष्ट्रवादी लेखक को कभी आप तमीज से और ध्यान से पढेंगे तब आपको पता चलेगा कि अब तक घटिया कौन था…

      • धन्यवाद दिनेश जी बढिया जवाब दिया। व ैसे भी आप किनसे तमीज़ की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

    • हालांकि तिवारी जी को जवाब देने की इच्छा कभी भी नहीं रहती, फ़िलहाल जिन राजीव दुबे जी से मैं सम्बोधित था, उन्होंने मेरी बात का जवाब दे दिया है… और तिवारी जी को जवाब गौर साहब ने दे दिया है…

      तिवारी जी को लगता है कि गाँधी परिवार के न होने से देश में “राजनैतिक शून्यता” आ जायेगी… ऐसा सोचने के लिये वे स्वतन्त्र हैं…। 1991 के नरसिंहराव शासन से 2004 तक यूपीए के सत्ता में लौटने तक 13 साल, शायद देश राजनैतिक शून्यता में ही घिरा हुआ था…

      और हाँ तिवारी जी… आपकी सूचना और ज्ञानवर्धन के लिये बता दूं कि मैं अभी तक “पत्रकार” नहीं हूं… मैं स्वतन्त्र हूं…। पत्रकार बनने के बाद तो मलाई खाने मिलती है, अभी तो मैं जो और जितना लिख रहा हूं, अपनी जेब से खर्च करके… एक फ़ूटी कौड़ी भी मुझे कभी किसी संगठन या सत्ता प्रतिष्ठान से नहीं मिली है…।

  5. राजीव दुबे साहब…
    हाल ही में युवराज मध्यप्रदेश के दौरे पर थे, जहाँ शिवराज ने “सौजन्यतावश”(?) उन्हें राजकीय अतिथि का दर्जा दिया था, यानी खाने-पीने से लेकर कारों के काफ़िले, सुरक्षा बंदोबस्त, हेलीकॉप्टर सभी का खर्चा आम जनता की जेब काट कर…
    और ये पहली बार नहीं है, हमेशा से ऐसा होता आया है… ये तो भाजपा वाले मूर्ख हैं जो इस “भोंदू” की पोल खोलने में पता नहीं क्यों सकुचा रहे हैं।

    जिस व्यक्ति का जनरल नॉलेज शून्य है, देश की समस्याओं की समझ जीरो है उसे देश का भावी प्रधानमंत्री बनाकर भारत के माथे पर थोप दिया जायेगा, और जनता भी उसे कबूल कर लेगी, क्योंकि भारत की गरीब और अशिक्षित जनता सिर्फ़ “करिश्मा”, “मार्केटिंग”, “चरण-वन्दना” से प्रभावित हो जाती है, उसे क्या मालूम कि इस “परिवार” ने देश को कितने घाव दिये हैं…

    बुद्धिजीवी तो इस बात को आम जनता तक ले जाने से रहे, क्योंकि उनमें से भी अधिकतर या तो बिके हुए हैं, या विभीषण-जयचन्द हैं… इसका सबूत अयोध्या निर्णय आने के बाद उनके कपड़े फ़ाड़ने से ही ज़ाहिर हो जाता है। यही गिरे हुए बुद्धिजीवी हैं जो कांग्रेस को आपातकाल, भोपाल गैस काण्ड, सिखों के नरसंहार के लिए माफ़ कर देते हैं, लेकिन भाजपा-संघ के पीछे पड़े रहते हैं…। यह “परिवार” हमारी छाती पर मूंग दलता ही रहेगा, चाहे आप पसन्द करें या ना करें… राहुल गाँधी नही रहेंगे तो प्रियंका आ जायेगी, प्रियंका चली जायेगी तो उसके बच्चे आ जायेंगे…। कॉमनवेल्थ खेलों को खुशी-खुशी स्वीकार करने वाला गुलाम देश सदियों तक गुलाम रहा और आगे भी रहेगा… कभी किसी परिवार का, तो कभी किसी मल्टीनेशनल का…

    इस देश की संस्कृति, देश का आत्मसम्मान, देश की भाषाई और जातिगत एकता को जानबूझकर इसीलिये तोड़ा गया है ताकि इस पर आसानी से शासन किया जा सके…

    • सुरेश जी ,
      राष्ट्र के भविष्य निर्माण में हमें वैकल्पिक विचारधारा की शक्ति खड़ी करनी होगी ऐसा मेरा मानना रहा है . जब तक एक सशक्त विचारधारा समकालीन सत्ताधारी विचारधारा को चुनौती देकर विजय हासिल नहीं करेगी तब तक हम व्यक्तियों के ऊपर नाराज़गी को व्यक्त करने पर मजबूर बने रहेंगे . विचारधाराओं का संघर्ष चिरकालीन रहा है और आगे भी चलेगा . संघर्ष से विचारधाराएँ और निखर कर आती हैं .

      हमारा भविष्य उज्जवल है ऐसा मेरा विचार है … हाँ सजग रहना आवश्यक है .

      जहां तक राहुल गांधी की बात है तो मैं यही कहूंगा कि वह और उनकी पार्टी मूल्यों और आदर्शों की बात करते हैं और राहुल गांधी भी यही कहते हैं . हमें यह प्रश्न उन लोगों तक पहुंचाकर उनकी राय मांगनी चाहिए – कि क्या उनके द्वारा किये जा रहे दौरे किसी सरकारी कार्यक्रम के अंतर्गत हैं? यदि हाँ, तो बात ख़त्म हो जाती है . यदि न तो हम अपेक्षा करेंगे कि विपक्ष इस प्रश्न पर सरकार से ज़वाबदेही मांगे .

      • राजीव भाई,
        क्या आप भी मीडिया के “बनाये हुए हीरो” के आभामण्डल में खो गये हैं…
        आपने कहा कि – “…वह और उनकी पार्टी मूल्यों और आदर्शों की बात करते हैं और राहुल गांधी भी यही कहते हैं …”। मेरा कहना यही है कि मूल्यों और आदर्शों की बात करना और उस पर अमल करने में ज़मीन-आसमान का अन्तर है, और कांग्रेस ने आज तक कभी भी आदर्शों की राजनीति नहीं की, सिर्फ़ वोट बैंक की राजनीति की है, उसकी देखादेखी अन्य दल भी उसी रास्ते पर चल पड़े…

        योजनाबद्ध तरीके से राहुल गाँधी के चारों ओर मीडिया और मैनेजमेण्ट द्वारा एक आभामंडल रचा जा रहा है, ताकि उसका भोंदूपन छिपा रहे… राहुल गाँधी बिहार में जमकर हूटिंग झेल चुके हैं, गुजरात में जाकर ऊटपटांग बयान दे चुके हैं, आज ही मध्यप्रदेश में सिमी और संघ को एक समान बता चुके हैं… तात्पर्य यह कि न तो उनमें देश की समस्याओं की समझ है, और न ही कोई राजनैतिक चातुर्य… दिग्विजय सिंह जैसा पढ़ा देते हैं वैसा वे बोल देते हैं…

        जिस प्रकार राहुल गाँधी के चारों ओर मीडिया ने सकारात्मक “औरा” रचा हुआ है, ठीक वैसा ही नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ नकारात्मक भी रचा हुआ है, क्योंकि कांग्रेस को पता है कि भाजपा में सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी ही है जो राहुल गाँधी के कथित जादू(?) का मुकाबला कर सकते हैं… लेकिन उनके दुर्भाग्य से गुजरात में विकास का जितना काम पिछले 10 साल में हुआ है, उतना कांग्रेस ने 60 साल में किसी राज्य में नहीं किया…। अब मीडिया चाहे जितना भी गरिया ले, कांग्रेस चाहे जितना भी मोदी की छवि खराब करे… गुजरात के सड़क-पानी-बिजली-उद्योग तो झूठ नहीं बोल सकते ना…

        मुझे तो लगता है कि 2004 में सुषमा स्वराज ने सोनिया गाँधी को प्रधानमंत्री न बनवाकर बहुत बड़ी गलती की, उन्हें प्रधानमंत्री बन जाने देना चाहिये था… कम से कम उनकी पोल तो खुल जाती, जो अभी मनमोहन सिंह को आगे करके बची हुई है…। राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद भी देश की स्थिति में कोई बड़ा परिवर्तन आयेगा यह सोचना बेकार है…

        • सुरेश जी ,
          मैं एक और तरीके से अपनी बात दोहराना चाहता हूँ . वैकल्पिक राष्ट्रवादी विचारधारा की ताकत इतनी बढ़ाइए की दिल्ली की सरकार उस विचारधारा से चले . हमें एक बड़ी लकीर खींचने के कार्य में अपनी ऊर्जा, क्षमता एवं समय लगा कर आगे बढ़ जाना चाहिए . व्यक्ति आते और चले जाते हैं और कभी कभी व्यक्ति विचारधारा भी बदल लेते हैं . कई उदाहरण हैं – आधुनिक काल में भी . एक दो व्यक्तियों को हराने से क्या होगा ? दिल्ली की सरकार वोट से बनती और बिगड़ती है . वोट लोग अच्छा और बुरा लगता है – इस भावना से देते हैं. वैकल्पिक विचारधारा को यह भावना अपने पक्ष में करनी होगी . अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली शक्तियां और साथ ही वाम पंथी शक्तियां यही करती हैं . संचार तंत्र के द्वारा, साहित्य के द्वारा , कथा के द्वारा , और विचारधारा के प्रसार द्वारा . क्या राष्ट्रवादी विचारधारा यह सब कर सकती है ?

          आधुनिक परिप्रेक्ष्य में, युवाओं को आकृष्ट करते हुए, नई भाषा शैली एवं कथानक के साथ, और आधुनिकता को अपनाते हुए क्या राष्ट्रवादी विचारधारा तकनीक, विज्ञान, और मुक्त समाज की पक्षधर बन कर भी अपनी विचारधारा को आगे ला सकती है ?

          यदि हाँ तो हम दिल्ली पहुँच सकते हैं . यदि न तो हमें यह सब परिवर्तन लाना होगा और फिर हम दिल्ली की और बढ़ सकते हैं . परिवर्तन अवश्यम्भावी है और एक मात्र सत्य है . एक अनूठे नए भारत का सपना जिसमें मौलिक अधिकारों की मान्यता होगी , सभी धर्मों का सम्मान होगा एवं समृद्धि होगी – इतना ही तो है हर नागरिक का सपना – इस सपने की व्याख्या करते हैं और आगे बढ़ते हैं .

          • राजीव भाई वैकल्पिक राष्ट्रवादी विचारधारा की ताकत को आप कितना भी बढ़ाइए ये कांग्रेस की सरकार तो अपनी घटिया राजनीति से बाज़ नहीं आएगी…नेहरू से लेकर अब सोनिया तक सबने देश को धोखे में ही रखा है और अपनी चाल चलते गए हैं, और अब राहुल भी उसी राह पर निकल पड़ा है. एक टिप्पणी में रामदास सोनी जी ने राहुल गाँधी के लिए सही कहा है की आक के पेड़ पर कभी आम नहीं लग सकता. नेहरु से लेकर राहुल तक इस परिवार के एक एक सदस्य का सच सब जानते हैं और जो नहीं जानते वह सुरेश भाई के ब्लॉग का एक लेख नेहरु गाँधी राजवंश पढ़ लें. इसके अलावा मैंने राहुल गाँधी के कॉलेज टाइम की कुछ ऐसी ऐसी तस्वीरें देखी हैं जिन्हें देख कर देश के किसी भी अच्छे परिवार के सज्जनों को शर्म आ जाये…चाहें तो आप भी देख सकते हैं…|
            और यहाँ चर्चा राहुल गाँधी के व्यर्थ खर्चों की हो रही है, दिल्ली सरकार की सोच हम बदल देंगे किन्तु पहले राहुल का सच लोगों के सामने लाना जरूरी है…वह किसी राजकीय पद पर नहीं है फिर क्यों देश उसका खर्चा ढोये सिर्फ इसलिए की वह उस परिवार का सम्बन्ध रखता है जिसने देश के साथ हमेशा छल ही किया है…

          • यदि राष्ट्रवादी विचारधारा की ताकत पर्याप्त रूप से बढ़ाई जा सके तो दिल्ली की सरकार बदली जा सकती है . दूसरी बात, राहुल गांधी के दौरों के खर्च का प्रश्न विपक्ष के द्वारा संसद में उठाया जा सकता है . ‘प्रवक्ता’ को यह बात लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के समक्ष लानी चाहिए .

          • राजीव भाई आप की बात सही है की यह मुद्दा विपक्ष को उठाना चाहिए, किन्तु एक बात बताइये कि यदि कोई पार्टी अपना काम ठीक से न कर पाए तो क्या हमें चुप बैठ जाना चाहिए, क्या हमारा इस देश से कोई सम्बन्ध नहीं है, क्या केवल भाजपा ही है जो देश का अन्न और जल ग्रहण कर रही है? कुछ तो हमें भी करना होगा| चाणक्य ने कहा था कि राष्ट्र कि वेदी पर यदि राजनैतिक सत्ताओं की भी बलि चढ़ानी पड़े तो पीछे न हटे, राजनैतिक सत्ताओं से राष्ट्र अधिक महत्वपूर्ण है|
            और राजनैतिक सत्ताओं के क्षुद्र स्वार्थों के लिए हम राष्ट्र की बलि नहीं चढ़ा सकते|

          • दिनेश जी,
            आशा है कि मैनें आपको आपके रुचिकर नाम से संबोधित किया है . मैं आपकी बात से सहमत हूँ . हमारा कर्त्तव्य है की हम राष्ट्र हित में आवाज़ उठायें और जागरूकता बनाएं तथा कार्य भी करें – और इसीलिये लिमटी जी का यह लेख इतनी चर्चा का विषय है . संसद में बात उठाने से यह बात अपने गंतव्य तक पहुंचेगी और शायद कोई कार्यवाही भी की जा सके नहीं तो सत्ताधारी लोग हमें चुपचाप उपेक्षित कर आगे बढ़ जायेंगे . लोकतंत्र में बात का आगे बढ़ता रहना जरूरी है . यदि विपक्ष के ध्यान में लाने पर वह भी अपना कार्य न करें तो हमें – हो सके तो ‘प्रवक्ता’ के माध्यम से – सूचनाधिकार के प्रयोग द्वारा यह बात आगे बढानी चाहिए . यदि कांग्रेस यह खर्च उठा रही है तो यह बात उनके पक्ष में जायेगी अन्यथा यह एक मूल्यों के विरुद्ध एवं सरकारी तंत्र के दुरूपयोग का मामला बनेगा .

  6. “राहुल गांधी की सुरक्षा में लगी एसपीजी, आईबी, प्रदेश सरकार का सुरक्षा अमला और सुरक्षा एजेंसियों पर होने वाले खर्च को कांग्रेस से ही वसूला जाना चाहिए”

    क्या ऐसा नहीं है ? कांग्रेस तो नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों पर चलने की हामी भरती रही है . आप ज़रा राहुल गांधी से बात कर पता लगाइए . यह बात सत्य होना कि उनका सारा कार्यक्रम सरकारी खर्चे से हो रहा है काफी अचंभित करता है .

  7. कान्ग्रेस की सच्चाई यही है, गान्धी का नाम अपना लिया लेकिन काम नही…..
    देश के भावी प्रधानमन्त्री की पोल खोलने के लिये धन्यवाद.

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